अधूरे खव्वाब...... मेरी कविताए शायद में इस को प्रकाशित न कर सकीं इसलिए इसें में THEATRE ARTISTE OF INDIA को मंचन के लिये देता हूं मुझे लगता है वो मेरी कविताओं के साथ इंसाफ करेगें शान अब नही रहा जाता खामोश दरिया भर गया है .. तूफान बस रूका है बरस जाए गा बादल गिर जाएगी बिजली छलक जाएगा पैमाना बंद जंबा खुलने वाली है शायद प्रलय आने वाली .. क्यों सहूं ज़िल्लत क्यों सुनु उसकी इस पेट के खातिर ये भी अब मुझ को समझ गया है.. बस बुहत हुआ अब खामोश नही रहा जाता .... 2 लो फिर बात चली एक हल्की हवा फिर चली लो तेरी बात फिर चली ।। हर झोका एक एहसास जगाता है हर बार एक तमन्ना फिर जग जाती है कोई कुछ कहता है पर मन तेरे बारे मे ही सोचता है।। चलता हूं गुज़रता हूं जब उन बीते रास्तों से हर तरफ वो पल नज़र आता है।। सादगी थी , मसूमियत थी हम में न जाने कौन सी रौनक थी ..।। वो ही तारीख वो ही दिन , पर साल बदलते देखे हमने वक्त के साथ सारे , रिश्ते बदलते देखते ..।। फिर जब भी कोई ज़िक्र हो जाता है ... एक एहसास फिर उठ जाता है... शायद तू भी वो ही सोचता होगा...