Posts

Showing posts from May, 2010

मर्दर डे-मा

मर्दर डे मां.....क्यों चली गई बहुत याद आती है आंख अक्सर भर जाती है कुछ कहूं ,कुछ करूंतेरी शबी नज़र आती है आज मलाल है तेरे जाने आज मलाल है तेरे जाने का तेरे लिए कुछ न कर पाने का मैं नाकारा रहा निक्मा रहा फिर भी तेरा दुलारा रहा॥ वो शब्द अब भी गूंजते है मैं चली जाऊंगी जब पता चलेगा वो शायद तब मज़ाक था पर उस हकीक़त का एहसास अब हो रहा है... सच मैं मां बहुत याद आती है

संजीव श्रीवास्तव का जाना कोई हैरानी की बात नहीं...

संजीव श्रीवास्तव का जाना कोई हैरानी की बात नहीं... जी हां संजीव श्रीवास्तव चले गए... सहारा छोड़ा या सहारा ने उन्हे छोड़ दिया अब इस बात को भूल जाना चाहिए.जब उन्होने सहारा ज्वाइन किया था तो लोगों ने उन्हे मुबारकबाद और सहारा को सही पटरी और सही दिशा में लाने का संकेत माना था ..पर 16 जनवरी 2010 को हमने अपने ब्लाग वक्त है पर लिखा था कि संजीव कुछ बदलाव नहीं कर पाएगे और खुद बदल जाएगें...किसी को इस बात पर यकीन नहीं था ..पर हम कायम थे अपने मीडिया के अनुभवों और चैनल के नज़रिये को समझते हुए... जिस तरह का घ़टनाक्रम हमने अपने ब्लाग पर लिखा ..जिसका लिंक नीचे है वैसा ही हुआ..और संजीव को सहारा को खुदा हाफिज़ बोलना पड़ा waqt: क्या सहारा टीवी का बदलाव कुछ रंग लाएगा... http://waqthai.blogspot.com/2010/01/blog-post.html ख़बर अब ये नहीं है कि संजीव चलेगे खबर अब ये है कि उपेन्द्र राय का नंबर कब आएगा ..वो भी हम आपको बता दे ..जल्द इस साल के खत्म होते होते वो भी बाहर का रास्ता देख लेगे या फिर एचआर में बेठने लगेगे..तो उपन्द्रेजी को यही सलाह है कि बदले की भावना से काम न करते हुए .सिर्फ और सिर्फ काम

ऐसी किस्मत हर किसी को नहीं मिलती ......

ऐसी किस्मत हर किसी को नहीं मिलती ...... आई याद मुझको शवण कुमार की गाथा कैसे फिरता था वो लेकर अपने नेत्रहीन माता-पिता न अपनी सुध...बस एक धुन कैसे करूं उनकी सेवा जो हैं मेरे जन्मदाता पर हो गई ये बात पुरानी शवण तो है बस एक कहानी ... इस युग की कहानी बदली है नाम तो है शवण पर फितरत कुछ हट के है बोझ समझता है वो उनको जिनके बाज़ूओं मे वो पला है झिड़क देता है वो उनको जिसने उसको जन्म दिया हे छोड कर चल देता है उनको जिसने उसके लिए सब छोड़ा उनकी खांसी उनकी बीमारी आज सब खलती है उसको जिसके लिए उन्होने अपनी कितनी नींदों को तोड़ा है रोते है वो शवण.. फिर भी तेरे लिए दुआ करते हैं.. सोच... क्या तुझ को जन्म देकर उन्होने कुछ ग़लत किया ये वो नियामत है जो हर किसी को नहीं मिलती इनके कदमो तले जनन्त है जो हर किसी को नहीं मिलती मां बाप की खिदमत की तौफीक हर किसी को नहीं मिलती हां ये सच है... शवण की तरह किस्मत हर किसी को नहीं मिलती ।। आई याद मुझको शवण कुमार की गाथा कैसे फिरता था वो लेकर अपने नेत्रहीन माता-पिता न अपनी सुध...बस एक धुन कैसे करूं उनकी सेवा जो हैं मेरे जन्मदाता... जो है मेरे जन्मदाता... शान...

शौहरत और दौलत

शौहरत और दौलत अक्सर सोचता हूं ..जिन्दगी जो हम जी रहे हैं किस लिए...उसमें क्या क्या महत्वपूर्ण हैं.. जिससे पूछा ,सब ने कहा एक खुशहाल जीवन के लिए जिन्दगी में खुशियां होनी ज़रूरी हैं ,,और खुशियों को कैसे परिभाषित किया जाए..तो कहा सब ठीक ठाक हो...सब स्वस्थ रहे , एक अच्छा घर हो कामकाज चलता हो दुनिया में अपनी पहचान हो..बस और क्या चाहिए... फिर मुझे ध्यान आया की वो लोग कितने महान है जो जीवन में इन सब को त्याग कर के अलग रहते हैं .दौलत शौहरत से दूर .सहेत की न परवाह न अपने हाल की चिंता..वो भी तो जीवन जी रहे हैं...पर हममें से शायद ही कोई उस तरह का जीवन वितित करना चाहता हो.. क्यों... दुनिया में दौलत औऱ शौहरत इसकी प्यास सब को है.. हर शाम,हर रोज़ हर सुबह मां बाप, अम्मी अब्बू अपने लख्तेजिगर को दौलत और शौहरत से धनी लोगों का ज़िक्र करते नहीं थकते ..देखो उसने ये कर लिया वो विदेश में बस गया उसका कितना नाम है ..आज उसके पास हर चीज़ है.. बात को आगे बढ़ाने के लिए आपको दो सधारण लोगो के बारे में बताता चलू.. पहले सम्मान जाति का होता था ..यानि जो उच्च जाति का है उसको समाज में सम्मानजनक नज़रों से देखा जाता था ..छो

जसबीर कलरवि की ...तलाश

जसबीर कलरवि की ...तलाश आज उसको किसी की तलाश थी क्योंकि वो पहली बार गुम हुआ था अजनबी चहेरे भी उसको अपने लगते थे पर वो अपनापन उसके अंदुरूनी परतों से बाहर न आ सका खुद से घबराकर आखिर उसने आवाज़ दी सभी अजनबी चहेरे उसकी तरफ दौड़े अपना अपना रास्ता पूछने . ।