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Showing posts from December, 2008

कब तक टीआरपी से दूर भागे गे....

कब तक टीआरपी से दूर भागे गे.... 26/11 के एक महीने बाद हर टीवी चैनलों ने मुबंई पर पाकिस्तानी आंतवादियों के हमले का एक महीना मनाया ... ... क्या मकसद था ..क्यो उन चीज़ों को दोबारा दिखाया जा रहा था ... क्या चैनलों के पास कोई नई जानकारी थी .. क्या टीवी चैनलों को जो दिशा निर्देश सरकार की तरफ से मिले थे उनका वो पालन कर रहे थे ये आप सब के ज़हन में बात आ रही होगी। 26/12 को जैसे ही घर में टीवी चला तो बच्चे सहम गये ।मां देखो फिर से मुबंई में आंतकवादियों ने हमला कर दिया ... मां भी भाग कर टीवी के पास पहुचीं टक टकी लगाये टीवी देखने लगी ...हे भगवान अब क्या होगा, क्यों इन आंतकवादियों को कोई पकड़ नहीं पा रहा ..। वो समझ नहीं पा रही की हो क्या रहा है ..कभी दिन की तस्वीरें ,कभी रात की, उसे लगा की रात को हमला हुआ... .कभी उसे लगा दिन को हमला हुआ..फिर सोचा की दोबारा उन्ही जगह पर क्यों हमला हुआ.... फिर उसने सोचा ये तो वो ही और वैसी ही जगहाएं हैं , वो ही तस्वीरे हैं, जिन्हे वो पूरे एक महीने से देखती आ रही है । फिर उसे किसी ने बताया कि अरे टीवी वाले मुबंई पर हुये हमले का एक महीना बना रहे हैं..उसने 13वां.40वा

आज कल ब्लॉग में बहुत वाहवाही लूट रहे हैं...

त्याग पत्र-2 ...... आज कल ब्लॉग में बहुत वाहवाही लूट रहे हैं... आपको लगा होगा की भई ये साहब तो भाग मे बहुत विशवास करते हैं आधी बात करते हैं और फिर गायब हो जाते हैं.. पर नहीं सर ऐसा हो नहीं सकता मैं कभी झूठ नहीं बोलता मुझे याद नही की मुझे बताया गया था अगर बता देते तो मैं वक्त पर ही आता .. और सब कुछ लिख देता है ..नरेश ऑफिस में सुबह सुबह... नये आये हुए बॉस के सामने बोल रहा था ..पर बॉस सुनने को तैयार नही था ... क्योंकि बॉस वो ही सुनता है जो वो सुनना पंसद करता है और नरेश के मुंह से सुनना तो वो कुछ भी पंसद नही करता क्योंकि आप कैसे हैं ये इस बात पर निर्भर करता है की आपको दूसरे लोगों ने कैसा बनाया या बताया है..जी , और नरेश का रिकॉर्ड इस मामले में तो बहुत ही खराब है ... नरेश की शुरूवात एक गांव से हुई ..बाप को दिल्ली में छोटी सी नौकरी और साउथ दिल्ली में छोटा सा घर मिला पर ये छोटा घर जहां था वहां चारों तरफ बड़े-बड़े घर थे । नरेश सरकारी स्कूल की ख़ाकी पैंट पहन कर इन बड़े बड़े घरों को देखता हुआ जाता था और उन घरों में रहने वालो को गाली देता रहता कभी घंटी भी बजा कर भागता तो कभी पत्थर मार कर भाग जाता

आपकी खातिर

.... आज फिर ब्लैड प्रेशर 170-100 आया .शगूर भी बढ़ी हुई थी ..पर बन्तों ये मानने को तैयार नहीं थी की वो बिमार है .और उसे कोई परेशानी है ... क्योकि वो जिस समाज में रहती थी वहां औरत को हर वक्त जवान और सेहतमंद रहना ज़रूरी है नहीं तो पति उससे दूर चला जायेगा इसका डर उसे हर वक्त लगा रहता है... तभी फोन बजता है वो फोन उठाती है ..और बोलती है .हां जी अभी डॉक्टर के पास से आ रहे हैं ..डॉक्टर ने कहा की कोई परेशानी नहीं है ..सब ठीक है .. कोई घबराने की बात नहीं ... दूसरी तरफ से आवाज़ आती हां तुझे तो ड्रामें का शौक है ..यूहीं नाटक करती रहती है.. बन्तों कुछ नहीं बोलती बस हंसतें हुए कहे देती है बस जी यूं ही,,,, गाड़ी चलाते हुए उसका दमाद अपनी पत्नी को देखता है ..पत्नी बन्तों की तरफ देख कर बोलती है, मम्मी तुम्हे शगूर है, तुम्हे परहेज़ करना है और डॉक्टर ने कहा कि अगर बीपी ठीक नहीं हुआ तो जान का भी खतरा है ..तुम डैडी को सच क्यों नहीं बता देती .. बन्तों कहती है बस तू तो यूंही पीछे पड़ जाती है .. सब घर आजाते हैं बन्तों, नौकर और बच्चे को छोड कर दामाद और बेटी अपने दफ्तर चले जाते हैं ..बन्तो छह महीने के बच्चे को द

71 साल

भाग -3 रामनरेश खुश था भले ही हम जितना कहते रहें कि लड़के लड़कियों में कोई फर्क नहीं होता सब बराबर होते हैं.. पर लड़के के जन्म से खुशी और लड़की के जन्म से दुख होना स्वभाविक है..जिसे नकारा नहीं जा सकता .. पर हां रामनरेश एक समझदार और अच्छे व्यक्ति थे उन्होने कभी भी अपनें बच्चों मे भेदभाव नही किया .ब्लकि अपनी लड़कियों को ज्यादा प्यार दिया.. एक बात याद दिला दूं ये फिल्म नहीं है ज़िन्दगी है तीनो बहनो को भी अपने भाई से बहुत प्यार था। छहों की जिन्दगी बढ़ियां न सही ठीक से गुज़र रही थी घर में एक के बाद एक ईंट लगती जा रही थी एक कमरे से दो ,दो से तीन ,तीन से चार .. और इसी के साथ तन्खाह ,कर्ज़ और जिम्मेदारी भी बढ़ रही थी ... बच्चों को पढाना,खिलाना आसान न था .. बच्चे जब बाहर निकलते हैं बाहर की दुनिया देखते हैं और दुनिया के साथ अपने को देखते हैं फिर उनको ये एहसास होने लगता है कि वो दुनिया मे कितने पीछे हैं .. फिर बच्चो को ये याद नहीं रहता कि उनके मां बाप ने अपनी और उनकी ज़िन्दगी के लिये कितनी मेहनत की ..वो अपने सपनो में खो जाते हैं ..वो ग़लत नहीं है पर हां नादान है .. ये ही हुआ रामनरेश के बच्चों के स

एक हिन्दू का दर्द

एक हिन्दू का दर्द हमारे देश में जब भी दर्द का ज़िक्र होता है तब या तो गरीबो का नाम आता है या फिर मुस्लमान का हर भारतीय एक मोर्चा लेकर निकल पड़ता है ..बडे बडे नेता और बड़े बड़े पत्रकार अपनी अपनी दुकान खोल कर ज्ञान बांटना शुरू कर देते हैं ...उन्हे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मुद्दा क्या मसला क्या है ..उन्हे तो अपने आपको देशभक्त दिखाना है और देशभक्त वो तभी कहेलायेगे जब वो मुस्लमानों के लिये बोले और आवाज़ उठायेगें.... आप ज़रूर सोच रहेगे कि आज मैं क्या कहे रहा हूं.. कौन सी कहानी बताने वाला हूं बात रविवार की है बकरीद से दो दिन पहले की... सुबह सो कर उठा तो पता चला दादी गुज़र गई.. मैं एकदम खामोश हो गया । घर मे रोने की आवाज़ भी मेरे भीतर की खामोशी नहीं तोड़ पा रही थी ।शायद इसलिये कि अभी 26/11 के आंतकवाद में इतनी मौतें देख चुका की आंसू सूख गये थे ... पर मेरी दादी थी भले ही हमारी कम बात होती हो ..पर एक प्यार तो था ही दोनो के बीच वो भी मेरे लिये निस्वार्थ बहुत कुछ करती थी जिसके बारे में मैं आप को क्या बताऊं शायद आपको कोई रूचि न हो और मै अपने लेख को कमज़ोर नहीं करना चाहता .. मैने भले ही अपनी दादी के

त्याग पत्र

आज ऑफिस पहुचां तो एक और विकेट गिर गया था ..यानि एक और सज्जन ने नोकरी छोड़ दी ।छोड़ी या उनसे से छोड़ने को कहा गया ..ये सभी समझते हैं पर सब उसी बात पर विशवास करने की कोशिश करते हैं जो उनको समझाई जा रही होती है। यानि सच जानते हुये,झूठ पर यकीन करना ,झूठ सुनना, समझना दूसरों को झूठ बताना यही पेशा है ... औऱ इस पेशे में जो होता है, हो रहा है वो ही सच है .... आज कल टीवी में एक शब्द चल रहा सूत्रों से .सूत्रों के हवाले से ..हमारे सूत्रों ने बताया,हमारे सूत्र कह रहे हैं.. ये सूत्र क्यां है ..सिर्फ और सिर्फ बॉस और पब्लिक को बेवाकूफ बनाने वाला वो शख्स जिसको किसी ने नहीं देखा पर जिसकी बातों को सबने सुना..जब टीवी में न्यूज़ आनी शुरू हुई थी तब ये साफ साफ कहा गया था कभी आप सूत्र जैसे शब्द का इस्तमाल नही करगे है। पर सब कुछ बदल गया नौकरी करनी है जो कैबीन से आने वाले सूत्र कहे वो लिख दो..वरना सूत्र उनको कुछ और बता देगें..... खैर आप को इस ज्ञान से क्या लेना आपको मसाला चाहिये कि भाई आज कौन सा राज़ खोलेगें... आज कहानी नहीं लिखूं आपको नौकरी करने के गुण बतातऊं..ये बात भी सही है इन बताये गये नियमों में से मैं

सलाम

शहीदों के नाम पसीना मौत के माथे पे आया आईना लाओ हम अपनी ज़िन्दगी की आखरी तस्वीर देखेगें।। क्या जाने खयाल आ गया किस बात का हमको रोके से जो रूकती नहीं अशकों की रवानी ।। दमे आखिर भी उनका ये अहतराम हुआ । उठे न हाथ तो आंखों ही से सलाम हुआ ।। फरेब खाते रहे एतबार करते रहे खिज़ा भी आई तो ज़िक्र बहार करते रहे ।। बहार में भी तलाशे बहार करते रहे । तमाम उम्र तेरा इंन्तज़ार करते रहे।। ..... सलाम ... आपको हमारा ...

देखो बहुत हुआ

देखो बहुत हुआ अब न होने देगें हम... अब जली है वो लौ जिसको बुझने न देगें हम. भुगत रहे कई बरसों से तुम्हारे गुनाहों की सज़ा हम हर पल हर दम हिन्दू मुस्लमां बनाये गए हम. खून बहा हमारा ही घर जले हमारे ही सुबक सुबक कर सहम सहम कर क्यों जीये अब हम देखो बहुत हुआ अब न होने देगें हम जब चाहा तुमने जैसे चाहा तुमने मारा हमको रूलाया हमको कभी बंदी तो कभी बंधक बनाया हमको कभी मुसलमां भगवान तो कभी हिन्दू अल्लाह याद दिलाया हमको खुद सोये चैन से हमको खूब जगाया तुमने देखो बहुत हुआ अब न होने देगे हम हर बार लाशों के ढ़ेर से सत्ता की सीढी चढ़ी तुमने खुद पहना सफेद कुर्ता हमको सफेद कफ़न पहनाया तुमने जशन बनाया तुमने जीत का जीत दिलाने वाले को खूब दुत्तकारा तुमने पहुचें शहीद पर नोटों की सुगात लेकर कोई एक लाख़ तो कोई एक करोड़ लेकर पर अब न चलेगा तुम्हारा ये पडयंत्र देखो बहुत हुआ.....