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Showing posts from May, 2011

किसी ने कहा 4

मन्दिर को सजाने-सँवारने में भगवान को भुला देना निरी मूर्खता है । किन्तु देवालयों को गन्दा, तिरस्कृत, जीर्ण-शीर्ण रखना भी पाप माना जाता है । इसी प्रकार शरीर को नश्वर कहकर उसकी उपेक्षा करना अथवा उसे ही सजाने-सॅंवारने में सारी शक्ति खर्च कर देना, दोनों ही ढंग अकल्याणकारी हैं हमें सन्तुलन का मार्ग अपनाना चाहिए । शारीरिक आरोग्य के मुख्य आधार आत्म-संयम एवं नियमितता ही हैं, इनकी उपेक्षा करके मात्र औषधियों के सहारे आरोग्य लाभ का प्रयास मृगमरीचिका के अतिरिक्त और कुछ नहीं है ।

आपका रिश्ता खतरे में हैं

आपका रिश्ता खतरे में हैं एक महीना कैसे बीत गया पता नहीं चला ... खुशी के साथ नाराज़गी का ज्यादा एहसास..कुछ लोग शायद दुनिया मे खुश रहने के लिए आये ही नहीं और मेरी किस्मत कहिये या बद किस्मती की ऐसे लोगो का वास्ता मेरी दुनिया में मेरे साथ काफी है ... खुश रहना कोई फलसफा है या कोई काहनी या गणित का ऐसा सवाल जिसका हल.. गुरू के भी पसीने छुड़ा दे ।सुबह देखो तो मुंह बना हुआ है शाम को देखो तो फिर से नफरत के भाव झलक रहे हैं कारण क्या है पूछने पर नहीं बताया जाता । माना हर इंसान के पास हर चीज़ नहीं होती पर ये भी तो सच्चाई है कि ऐसे भी इंसान है जिनके पास जो हो वो उसमें ही खुश रहते हैं। हमारा दायरा यानि वो घेरा जिसमें हम अपना ज्यादा वक्त गुज़ारते हैं घर हुआ दफ्तर हुआ या फिर दोस्त ... इनके साथ ,इनके पास रहने से हमे किस चीज़ का एहसास होता है। किसी बंधन का, किसी कर्ज़ का, किसी फर्ज़ का, किसी बोझ का, या फिर खुशी का ... अगर खुशी का एहसास नहीं है तो सच मानिये आपका रिश्ता खतरे में हैं । अब इससे बड़ा सवाल ये उठता है आपको कैसे पता चले कि आप खुश हैं ... जी कई लोग बनावटी और दिखावे को ही खुशी का दरवाज़ा समझते हैं

MRS IRSHAD

मिसेज़ इरशाद लखनऊ के चौक की तंग गलियां और गलियों में धूमती बिटन ..जहां से निकलती मुल्ला मौलवी ब्रुके पहने औरतें या फिर चौहराये पर खड़े लखनऊ के शौदे.. सभी कान में फुस से कहते रियासत की लड़की ज़रूर कोई गुल खिलाए गी।..शायद बिटन की चंचलता तेज़ तरार होना बिना बाज़ू का कुर्ता पहनना और लड़कों की साइकिल चलाना वो भी ऐसे मौहल्ले में जहां औरतों ने सिर्फ मौहल्ले के सब्ज़ी वाले या कसाई के अलावा किसी और गैर शख्स से बात ही न की हो...पर बिटन सब से जुदा और हट के है पर हां इस गलतफहमी में मत रहिए की बिटन पढाई में बहुत अच्छी होगी परिवार वाले बहुत मॉर्डन होगें अब्बा तालिम के समर्थक होगें..ऐसा कुछ नहीं बिल्कुल नहीं.. रियासत तो पांच वक्त के नमाज़ी ज्यादातर वक्त उनका मजलिस मातम रोज़े नज़र नियाज़ में गुज़रता और खाली वक्त मिलता तो वो इस परेशानी में निकल जाता की पांच पांच लड़कियों की शादी कैसे होगी.... .या मौला कोई मौज्ज़ा(चमत्कार) दिखाओ..या इमामे ज़माना तुम्ही अपना करिशमा करो..खैर करिशमा तो वक्त के साथ हो ही जाता है उनमें अगर इन सब को ज़हमत भी न दी जाये तब भी काम तो अपने समय पर ही होता है खैर ये तो आस्था की बात

किसी ने कहा 3

चरित्र से जो बोला जाएगा किसी को बाहरी जानकारी देनी हो, सामाचार सुनाना हो, गणित, भूगोल पढ़ाना हो तो यह कार्य वाणी मात्र से भी हो सकता है, लिखकर भी किया जा सकता है और वह प्रयोजन आसानी से पूरा हो सकता है । पर यदि चरित्र निर्माण या व्यक्तित्व परिवर्तन करना है तो फिर उसके सामने आदर्श उपस्थित करना ही प्रभावशाली उपाय रह जाता है । प्रभावशाली व्यक्तित्व अपनी प्रखर कार्यपद्धति से अनुप्राणित करके दूसरों को अपना अनुयायी बनाते हैं । संसार के समस्त महामानवों का यही इतिहास है । उन्हें दूसरों से जो कहना था, कराना था, वह उन्होंने पहले स्वयं किया । उसी कर्तृत्व का प्रभाव पड़ा । बुद्ध, गॉंधी, हरिश्चन्द्र आदि ने अपने को एक साँचा बनाया, तब कहीं दूसरे खिलौने, दूसरे व्यक्तित्व उसमें ढलने शुरू हुए

जसबीर कलरवि

हमें आता है अब इस ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा कहना यहाँ मिल जाये कुछ मस्ती उसे ही मयकदा कहना चला हूँ मैं तो बस इक बूँद लेकिर मापने सागर तू अब सारे किनारों को ही मेरी अलविदा कहना जो दरिया गुनगुनाता है नदी जब राग सा छेड़े, उसे जा के समुन्दर की ज़रा आबो-हवा कहना। वो तेरी मंजिलों के सब पते ही तुम को देता है, मगर उसकी ये किस्मत तेरा उसको ला-पता कहना। जो उस-से मागते हो तुम वो कुदरत दे ही देती है, इसे अपनी दुआ समझो या फिर उसकी अदा कहना। मैं अपने हर जनम में ही मरा अपनी वफ़ा करके, मुझे कहना नहीं आया किसी को बे-वफ़ा कहना। लकीरें फिर मेरे माथे की अक्सर फट ही जाती है, मेरा जब भी किसी पत्थर को अपना आईना कहना।

23 april 2011

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23 april 2011 23 अप्रेल 2011 दोपहर के12 बज59 मिनट एक तारीख बन गई क्योकि इस दिन मेरी आगोश में मेरा खून था मेरा बेटा ..नौ महिने इसकी मां ने बहुत तकलीफ झेली थी ..कई बार रोई थी कई बार दर्द से करहाही थी ..लेकिन शरीर का दर्द मास के लोथड़े में बदल कर जब दुनिया में आया हर किसी की आंख नम थी खुशी ने एक बार फिर से आंसूओं का सहारा लिया और सर ज़मीने हिनदुस्तान मे अरसलान ने उतरप्रदेश के नोएडा के अस्पताल में जन्म लिया। मुझे नहीं पता तकदीर में आगे क्या लिखा है हां जो अब तक मुझे मिला है काफी संघर्ष से मिला है मेरे बेटे के मुकद्दर में क्या है . आने वाला वक्त बताए गा हां मेरी जो लिखने की धरोवर है वो हर बात ज़रूर लिखे गी चाहे वो मेरे पक्ष में हो या विरोध में ... आप लोगों से इलतिजा करता हूं आप लोग मेरे लख्तेजीगर को एक अच्छा इंसान बनने की दुआ दे और भगवान से ये ज़रूर मांगे कि न कभी उसे और न कभी मुझे और इस देश को हमसे शर्ममिंदगी उठानी और सहनी पड़े..

किसी ने कहा-2

ईश्वर विश्वास मनुष्य जीवन की सार्थकता और सुव्यवस्था के लिए बहुत आवश्यक है । यों तो सामान्य नैतिक सिद्धांतों पर आस्था रखते हुए भी मनुष्य नेक जीवन जी सकता है, अपने व्यक्तिगत उत्कर्ष और सामाजिक उन्नति में सफल योगदान दे सकता है, लेकिन ईश्वर-विश्वास के अभाव में वह कभी भी भटक सकता है । एक सर्वव्यापी, सर्व समर्थ, न्यायकारी सत्ता के रूप में ईश्वर की मान्यता मनुष्य को आदर्शनिष्ठ, समाजनिष्ठ तथा विकासोन्मुख बनाए रखने में उपयोगी सिद्ध हो सकती है । आस्तिकता को आज उपेक्षणीय और निरर्थक इसलिए माना जाने लगा है कि ईश्वर के सम्बंध में बड़ी भ्रांत मान्यताएँ फैला दी गई हैं । लोग यह समझने लगे हैं कि ईश्वर हम जैसा ही कोई निकृष्ट मनोभूमि वाला व्यक्ति है, जो थोड़ी सी खुशामद से प्रसन्न हो जाता है या पूजा स्तुति करने वालों से संतुष्ट हो जाता है । आज आस्तिक कहलाने वालों की गतिविधियों को देखकर यही निष्कर्ष निकलता है, लेकिन विवेक कहता है कि ऐसी अनैतिक सत्ता ईश्वर तो नहीं हो सकती, शैतान भले हो । कुछ लोग ईश्वर को करुणा-निधान, कृपानिधान तक मानकर ही रह जाते हैं । यह मान्यता सत्य होते हुए भी एकांगी है । ईश्वर जहां पीड़ितों

किसी ने कहा

एक दार्शनिक का कहना है कि - संसार में आधे उत्पात अनैतिकता के कारण और आधे मानसिक उद्विग्नता के कारण होते हैं । यदि आवेश एवं उद्वेग जैसी मानसिक दुर्बलता पर विजय प्राप्त कर ली जाय तो संसार में फैले हुये संकटों में से आधे तो तुरन्त ही समाप्त हो सकते हैं । अनैतिकता की तरह उद्विग्नता भी मानव जीवन के लिये समान रूप से हानिकारक है, इसलिए जहाँ हमें पापों को दूर करने और धर्म को बढ़ाने के लिये प्रयत्न करना है, वहाँ आवेश ग्रस्त होने के पागलपन को भी ध्यान में रखना है । यदि पाप मिट जाए और असहिष्णुता एवं तुनक मिजाजी इसी प्रकार बने रहे तो संसार की नारकीय स्थिति इसी प्रकार बनी रहेगी । गीताकार ने सुझाया है कि प्रत्येक विचारशील व्यक्ति को मानसिक संतुलन बनाये रहने का अभ्यासी होना चाहिये । प्रिय परिस्थितियों में न तो अहंकार एवं हर्षातिरेक में डूब जाना चाहिये और न थोड़ी सी प्रतिकूलता एवं अड़चन प्रस्तुत देखकर हड़बड़ा जाना चाहिये । दोनों ही स्थितियों में अपनी गंभीरता बनाये रखनी चाहिये और संसार के स्वरूप एवं प्रवाह को समझते हुये धैर्यपूर्वक सब कुछ सुनना, समझना और करना चाहिये ।