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Showing posts from 2008

कब तक टीआरपी से दूर भागे गे....

कब तक टीआरपी से दूर भागे गे.... 26/11 के एक महीने बाद हर टीवी चैनलों ने मुबंई पर पाकिस्तानी आंतवादियों के हमले का एक महीना मनाया ... ... क्या मकसद था ..क्यो उन चीज़ों को दोबारा दिखाया जा रहा था ... क्या चैनलों के पास कोई नई जानकारी थी .. क्या टीवी चैनलों को जो दिशा निर्देश सरकार की तरफ से मिले थे उनका वो पालन कर रहे थे ये आप सब के ज़हन में बात आ रही होगी। 26/12 को जैसे ही घर में टीवी चला तो बच्चे सहम गये ।मां देखो फिर से मुबंई में आंतकवादियों ने हमला कर दिया ... मां भी भाग कर टीवी के पास पहुचीं टक टकी लगाये टीवी देखने लगी ...हे भगवान अब क्या होगा, क्यों इन आंतकवादियों को कोई पकड़ नहीं पा रहा ..। वो समझ नहीं पा रही की हो क्या रहा है ..कभी दिन की तस्वीरें ,कभी रात की, उसे लगा की रात को हमला हुआ... .कभी उसे लगा दिन को हमला हुआ..फिर सोचा की दोबारा उन्ही जगह पर क्यों हमला हुआ.... फिर उसने सोचा ये तो वो ही और वैसी ही जगहाएं हैं , वो ही तस्वीरे हैं, जिन्हे वो पूरे एक महीने से देखती आ रही है । फिर उसे किसी ने बताया कि अरे टीवी वाले मुबंई पर हुये हमले का एक महीना बना रहे हैं..उसने 13वां.40वा

आज कल ब्लॉग में बहुत वाहवाही लूट रहे हैं...

त्याग पत्र-2 ...... आज कल ब्लॉग में बहुत वाहवाही लूट रहे हैं... आपको लगा होगा की भई ये साहब तो भाग मे बहुत विशवास करते हैं आधी बात करते हैं और फिर गायब हो जाते हैं.. पर नहीं सर ऐसा हो नहीं सकता मैं कभी झूठ नहीं बोलता मुझे याद नही की मुझे बताया गया था अगर बता देते तो मैं वक्त पर ही आता .. और सब कुछ लिख देता है ..नरेश ऑफिस में सुबह सुबह... नये आये हुए बॉस के सामने बोल रहा था ..पर बॉस सुनने को तैयार नही था ... क्योंकि बॉस वो ही सुनता है जो वो सुनना पंसद करता है और नरेश के मुंह से सुनना तो वो कुछ भी पंसद नही करता क्योंकि आप कैसे हैं ये इस बात पर निर्भर करता है की आपको दूसरे लोगों ने कैसा बनाया या बताया है..जी , और नरेश का रिकॉर्ड इस मामले में तो बहुत ही खराब है ... नरेश की शुरूवात एक गांव से हुई ..बाप को दिल्ली में छोटी सी नौकरी और साउथ दिल्ली में छोटा सा घर मिला पर ये छोटा घर जहां था वहां चारों तरफ बड़े-बड़े घर थे । नरेश सरकारी स्कूल की ख़ाकी पैंट पहन कर इन बड़े बड़े घरों को देखता हुआ जाता था और उन घरों में रहने वालो को गाली देता रहता कभी घंटी भी बजा कर भागता तो कभी पत्थर मार कर भाग जाता

आपकी खातिर

.... आज फिर ब्लैड प्रेशर 170-100 आया .शगूर भी बढ़ी हुई थी ..पर बन्तों ये मानने को तैयार नहीं थी की वो बिमार है .और उसे कोई परेशानी है ... क्योकि वो जिस समाज में रहती थी वहां औरत को हर वक्त जवान और सेहतमंद रहना ज़रूरी है नहीं तो पति उससे दूर चला जायेगा इसका डर उसे हर वक्त लगा रहता है... तभी फोन बजता है वो फोन उठाती है ..और बोलती है .हां जी अभी डॉक्टर के पास से आ रहे हैं ..डॉक्टर ने कहा की कोई परेशानी नहीं है ..सब ठीक है .. कोई घबराने की बात नहीं ... दूसरी तरफ से आवाज़ आती हां तुझे तो ड्रामें का शौक है ..यूहीं नाटक करती रहती है.. बन्तों कुछ नहीं बोलती बस हंसतें हुए कहे देती है बस जी यूं ही,,,, गाड़ी चलाते हुए उसका दमाद अपनी पत्नी को देखता है ..पत्नी बन्तों की तरफ देख कर बोलती है, मम्मी तुम्हे शगूर है, तुम्हे परहेज़ करना है और डॉक्टर ने कहा कि अगर बीपी ठीक नहीं हुआ तो जान का भी खतरा है ..तुम डैडी को सच क्यों नहीं बता देती .. बन्तों कहती है बस तू तो यूंही पीछे पड़ जाती है .. सब घर आजाते हैं बन्तों, नौकर और बच्चे को छोड कर दामाद और बेटी अपने दफ्तर चले जाते हैं ..बन्तो छह महीने के बच्चे को द

71 साल

भाग -3 रामनरेश खुश था भले ही हम जितना कहते रहें कि लड़के लड़कियों में कोई फर्क नहीं होता सब बराबर होते हैं.. पर लड़के के जन्म से खुशी और लड़की के जन्म से दुख होना स्वभाविक है..जिसे नकारा नहीं जा सकता .. पर हां रामनरेश एक समझदार और अच्छे व्यक्ति थे उन्होने कभी भी अपनें बच्चों मे भेदभाव नही किया .ब्लकि अपनी लड़कियों को ज्यादा प्यार दिया.. एक बात याद दिला दूं ये फिल्म नहीं है ज़िन्दगी है तीनो बहनो को भी अपने भाई से बहुत प्यार था। छहों की जिन्दगी बढ़ियां न सही ठीक से गुज़र रही थी घर में एक के बाद एक ईंट लगती जा रही थी एक कमरे से दो ,दो से तीन ,तीन से चार .. और इसी के साथ तन्खाह ,कर्ज़ और जिम्मेदारी भी बढ़ रही थी ... बच्चों को पढाना,खिलाना आसान न था .. बच्चे जब बाहर निकलते हैं बाहर की दुनिया देखते हैं और दुनिया के साथ अपने को देखते हैं फिर उनको ये एहसास होने लगता है कि वो दुनिया मे कितने पीछे हैं .. फिर बच्चो को ये याद नहीं रहता कि उनके मां बाप ने अपनी और उनकी ज़िन्दगी के लिये कितनी मेहनत की ..वो अपने सपनो में खो जाते हैं ..वो ग़लत नहीं है पर हां नादान है .. ये ही हुआ रामनरेश के बच्चों के स

एक हिन्दू का दर्द

एक हिन्दू का दर्द हमारे देश में जब भी दर्द का ज़िक्र होता है तब या तो गरीबो का नाम आता है या फिर मुस्लमान का हर भारतीय एक मोर्चा लेकर निकल पड़ता है ..बडे बडे नेता और बड़े बड़े पत्रकार अपनी अपनी दुकान खोल कर ज्ञान बांटना शुरू कर देते हैं ...उन्हे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मुद्दा क्या मसला क्या है ..उन्हे तो अपने आपको देशभक्त दिखाना है और देशभक्त वो तभी कहेलायेगे जब वो मुस्लमानों के लिये बोले और आवाज़ उठायेगें.... आप ज़रूर सोच रहेगे कि आज मैं क्या कहे रहा हूं.. कौन सी कहानी बताने वाला हूं बात रविवार की है बकरीद से दो दिन पहले की... सुबह सो कर उठा तो पता चला दादी गुज़र गई.. मैं एकदम खामोश हो गया । घर मे रोने की आवाज़ भी मेरे भीतर की खामोशी नहीं तोड़ पा रही थी ।शायद इसलिये कि अभी 26/11 के आंतकवाद में इतनी मौतें देख चुका की आंसू सूख गये थे ... पर मेरी दादी थी भले ही हमारी कम बात होती हो ..पर एक प्यार तो था ही दोनो के बीच वो भी मेरे लिये निस्वार्थ बहुत कुछ करती थी जिसके बारे में मैं आप को क्या बताऊं शायद आपको कोई रूचि न हो और मै अपने लेख को कमज़ोर नहीं करना चाहता .. मैने भले ही अपनी दादी के

त्याग पत्र

आज ऑफिस पहुचां तो एक और विकेट गिर गया था ..यानि एक और सज्जन ने नोकरी छोड़ दी ।छोड़ी या उनसे से छोड़ने को कहा गया ..ये सभी समझते हैं पर सब उसी बात पर विशवास करने की कोशिश करते हैं जो उनको समझाई जा रही होती है। यानि सच जानते हुये,झूठ पर यकीन करना ,झूठ सुनना, समझना दूसरों को झूठ बताना यही पेशा है ... औऱ इस पेशे में जो होता है, हो रहा है वो ही सच है .... आज कल टीवी में एक शब्द चल रहा सूत्रों से .सूत्रों के हवाले से ..हमारे सूत्रों ने बताया,हमारे सूत्र कह रहे हैं.. ये सूत्र क्यां है ..सिर्फ और सिर्फ बॉस और पब्लिक को बेवाकूफ बनाने वाला वो शख्स जिसको किसी ने नहीं देखा पर जिसकी बातों को सबने सुना..जब टीवी में न्यूज़ आनी शुरू हुई थी तब ये साफ साफ कहा गया था कभी आप सूत्र जैसे शब्द का इस्तमाल नही करगे है। पर सब कुछ बदल गया नौकरी करनी है जो कैबीन से आने वाले सूत्र कहे वो लिख दो..वरना सूत्र उनको कुछ और बता देगें..... खैर आप को इस ज्ञान से क्या लेना आपको मसाला चाहिये कि भाई आज कौन सा राज़ खोलेगें... आज कहानी नहीं लिखूं आपको नौकरी करने के गुण बतातऊं..ये बात भी सही है इन बताये गये नियमों में से मैं

सलाम

शहीदों के नाम पसीना मौत के माथे पे आया आईना लाओ हम अपनी ज़िन्दगी की आखरी तस्वीर देखेगें।। क्या जाने खयाल आ गया किस बात का हमको रोके से जो रूकती नहीं अशकों की रवानी ।। दमे आखिर भी उनका ये अहतराम हुआ । उठे न हाथ तो आंखों ही से सलाम हुआ ।। फरेब खाते रहे एतबार करते रहे खिज़ा भी आई तो ज़िक्र बहार करते रहे ।। बहार में भी तलाशे बहार करते रहे । तमाम उम्र तेरा इंन्तज़ार करते रहे।। ..... सलाम ... आपको हमारा ...

देखो बहुत हुआ

देखो बहुत हुआ अब न होने देगें हम... अब जली है वो लौ जिसको बुझने न देगें हम. भुगत रहे कई बरसों से तुम्हारे गुनाहों की सज़ा हम हर पल हर दम हिन्दू मुस्लमां बनाये गए हम. खून बहा हमारा ही घर जले हमारे ही सुबक सुबक कर सहम सहम कर क्यों जीये अब हम देखो बहुत हुआ अब न होने देगें हम जब चाहा तुमने जैसे चाहा तुमने मारा हमको रूलाया हमको कभी बंदी तो कभी बंधक बनाया हमको कभी मुसलमां भगवान तो कभी हिन्दू अल्लाह याद दिलाया हमको खुद सोये चैन से हमको खूब जगाया तुमने देखो बहुत हुआ अब न होने देगे हम हर बार लाशों के ढ़ेर से सत्ता की सीढी चढ़ी तुमने खुद पहना सफेद कुर्ता हमको सफेद कफ़न पहनाया तुमने जशन बनाया तुमने जीत का जीत दिलाने वाले को खूब दुत्तकारा तुमने पहुचें शहीद पर नोटों की सुगात लेकर कोई एक लाख़ तो कोई एक करोड़ लेकर पर अब न चलेगा तुम्हारा ये पडयंत्र देखो बहुत हुआ.....

वो

वो वो मर गया मै इसलिये उदास नहीं हूं... क्योकि मृत्यु तो मुक्ति है और मुक्ति तो स्वंतत्रता होती है । स्वतत्रता के लिये उदास होना विद्रोह... और मैं विद्रोही नही.... धरती तो बंधक है कर्म और कर्तव्य की .. जो उसे जितना नोकों से कुरेदेगा .... उसी को तो उसे फल देना है ... नित दिन पीडा सहने के बाद भी उसको तो मुसकराना है मैं भी तो उसका एक कार्यकर्ता हूं वो मर गया.. मैं इसलिये उदास नहीं हूं । अंबर भी तो सुचालक है आशाओं और कल्पनाओं का .. दूर से ही सिमट आये आंखों मे हमारी । हर दिन हमको नये सपनो मे ले जाता है... उसकी महानता और ऊचाई हमको कितनी छोटी लगती है । मैं भी तो उस छोटे से अंबर पर चढ़ना चाहता हूं.. वो मर गया... मै इसलिये उदास नहीं हूं... कौन था वो... अपना था , पराया था या फिर मेरा अपना ही साया था छटी उंगली ही सही, था वो मेरे शरीर का ही अंग वो कटगया या मर गया ,मैने कितनी सरलता से बखान किया... क्योकि देखता हूं मैं सुनता हूं, मैं हर तरफ अजीवित इंसानों को मैं भी तो इन शवो के भंडार में एक शव हूं.. वो मर गया मैं इस लिये उदास नहीं हूं......

७१ साल

71 साल भाग -2 रात ही रात में घर खाली कर दिया ।पहले किसी जान पहचान वाले के यहां रहे फिर एक कमरा किराये पर ले लिया।रामनेरश ने अपनी तीन बेटियो और पत्नी के साथ ज़िन्दगी को नए सिरे से शुरू किया ।स्कूल दूर था सुबह जल्दी निकलते रात को देर तक टूयशन पढ़ा कर घर वापस आते ।अभी बहुत कुछ करना है बच्चियों की पढ़ाई एक अपना घर ... यही उनका सपना था ।न अपने खाने की फिक्र न पहने का होश दो जोडी कपड़े, एक जोड़ी रबड़ की चप्पल और एक साइकिल.. यही था रामनरेश के पास ..बीवी की भी कमोबोश ऐसी ही हालत थी। जहां टूयशन पढ़ाने जाते थे उन बच्चों के पिता प्रॉपर्टि डिलर थे ।उन्होने कहा मास्टर साहब एक जगह ज़मीन कट रही है एक प्लाट ले लो । रामनेरश ने कहा भाई मेरे पास इतने पैसे नहीं की ज़मीन ले सकूं.. प्रॉपर्टि डिलर ने कहा चलिए कुछ दे दिये गा और बाकि बाद में दे देना ...शारीफ आदमी पैसे बाद में दे पर देगा ज़रूर ये बात डिलर जानता था । आज रामनरेश जल्दी जल्दी घर पहुचें पत्नी को ख़बर दी ।पत्नी भी खुश हो गयी । मां बाप के खिले हुए चेहेरे देख कर बच्चो में खुशियों की लहर दौड़ गई । और क्यो न हो आखिर कुछ अपना हां अपना घर होने वाला है उन

71 साल

भाग -1 रामनरेश अपने बेटे के साथ कार में बैठे एक रशितेदार के घर जा रहे थे..तभी बराबर से गुज़रते हुए एक ऑटो पर उनकी नज़र पड़ी, एक विवाहित जोड़ा उनके पास से गुज़रा .. और रामनरेश खो गये अतित में.. जब उनकी नई नई शादी हुई थी ।बहुत बड़ा कदम था .क्योकि वो अपने खानदान में पहले ऐसे शख्स थे जिन्होने अपने खानदान से अलग शादी की थी सब ने साथ छोड़ दिया था सिर्फ एक बहनोई ही उनके साथ थे ..इंगलिश में एम.ए किया था इस लिये अमरोह के मुस्लिम स्कूल में उन्हे नौकरी मिलने में कोई दिक्कत नही हुई।प्रिसिपलसाहब अच्छे थे और उनको अच्छी सलाह दी और बीएड करने को कहा, मुरादाबाद के हिन्दू कालेज से बीएड किया ...उसी दौरान उनके घर में एक रोशनी आई बेटी के रूप में कहते हैं लड़की लक्ष्मी का रूप होती है ... पर रामनेरश के घर में खर्च बढ़ गया जिसके कारण उन्हे और मेहनत करनी पड़ी । देर रात तक टूयशन पढ़ाने पड़ रहे थे जिसकी वजह वो स्कूल रोज़ देर से पहुच रहे थे ।पसंद करने वाले प्रिंसिपल भी अमरोह छोड़ कर दिल्ली बस गये थे । इसलिये पहले उन्हे नोटिस मिला लेकिन पैसे की ज़रूरत ने नोटिस के डर को भगा दिया ..वो टूयशन बन्द न कर पाये और नौकरी खो

कुछ यादे...शायरों के नाम...

कुछ यादे.... बेहतरीन शायरी.... हर दर्द,हर मरज़ की दवा है तुम्हारे पास । आते हैं सब यहीं कि शफा है तुम्हारे पास ।। बीमारे ग़म हैं,दूर से आये हैं सुनके नाम । कहते हैं दर्दे-दिल की दवा है तुम्हारे पास।। ..... वो अक्स अपना आईने में देखते हैं । सितम आज उन पर नया हो रहा है ।। मैं खामोश बैठा हूं उस बुत के आगे । निगाहों में मतलब अदा हो रहा है ।। ..... ज़ाहिदों को किसी का खौफ नहीं । सिर्फ काली घटा से डरते हैं ।. चाहे तुम हो या नसीब अपना ... हम हर एक बेवफा से डरते हैं.... .... क्या खबर कैसे मौसम बदलते रहे । धूप में हमको चलता था चलते रहे ।। शमा तो सिर्फ रातों को जलती है । औऱ हम हैं कि दिन रात जलते रहे ।। .... तुम न आये तो क्या सहर न हुई । हां मगर चैन से बसर न हुई ।. तुम भी अच्छे ,रक़ीब भी अच्छे । मैं बुरा था ,मेरी गुज़र न हुई ।।

मै सीख गया...

सीख गया..... सुबह सुबह उठ कर जब दात मांज रहा था ।तभी शीशे पर नज़र पड़ी एक चेहरा दिखा ध्यान से देखा तो समझ में आया की ये तो मैं ही हूं... आज मेरी हल्की सी दाढ़ी बड़ी थी और उसमें मुझे तीन चार सफेद बाल दिखे... एकदम सन हो गया मै... क्या ज़िन्दगी का इतना लंबा सफर तय कर लिया मैने... कल की बात लग रही है.... जब घर में आया एक मेहमान अपनी शेविंग किट भूल गया .और मैने स्कूल से आते ही उसकी सारी क्रिम लगा कर शेव करने की कोशिश की थी । तब मेरे चेहेरे पर एक बाल नही था उस वक्त उम्र भी तो 10 साल की थी। .. सब कितना हंसे थे .. उस शीशे के चेहरे से इस शीशे के चेहरे तक आने में 23 साल गुज़र गये ..बदल गया बहुत कुछ ,छूट गये बहुत से लोग.टूट गये कई रिश्ते ...हर बात सुनने वाली मां नही रही ,मोहब्बत करने वाली प्रेमिका भी चली गयी ... मुझको समझने वाले दोस्त भी व्यस्त और दूर हो गये.. रहा तो सिर्फ मै और मेरे सपने.. एक साधारण से परिवार में जन्म लेने के बाद हर लड़के का सपना होता है कि वो जल्दी से सैटल हो जाये थोड़ा पैसा आ जाये कुछ नाम हो जाये यही सोच कर मैने भी अपनी ज़िन्दगी को आगे बढ़ाया ... डॉक्टर ,इंजीनियर ,सी.ए ,सीएस

या अल्लाह

थंब था मैं फिर भी थल पर न रूक सका दिनकर था मैं फिर भी दाह से न बच सका दुष्कर हो गया जीवन मेरा इन दिधार्थक बातों से इस कलयुग के अंधकार में इन रण की रातों से............. या अल्लाह…. शफीक मियां सुबह सुबह घर से उमदा कुर्ता पजामा पहन कर आफिस के लिये चल दिये । रास्ते में कई फोन आये... कोई बड़ा बदलाव आज होने वाला है इसकी उनको भनक पड़ चुकी थी ।लेकिन बदलाव क्या है इसका अंदाज़ा वो नहीं लगा पा रहे थे... शफीक मियां ने न्यूज़ चैनल में बहुत जल्दी तरक्की की .... वैसे तो उनके पास पत्रकारिता का कोई अनुभव नहीं था पर आजकल वो चैनल के कई दिग्गजो को पत्रकारिता के गुण सिखाते पाये जाते हैं.. क्योकि नौकरी में तरक्की इसलिये नहीं होती की आप बहुत काबिल है ..... आप कितने अपने बॉस के करीब है ये महत्वपूर्ण बात होती है ..और अपने सीनियर को कैसे शीशे में उतारना इसमे वो बहुत माहिर हैं... आज क्या होगा इसी पशोपेश में है वो... एक सही बात आप को बताते चले शफीक मियां को बहुत ज्यादा उम्मीद है कि इस बार इनको कोई बड़ी ज़िम्मेदारी मिलने वाली है .. आखिर क्यों न मिले, हर काम .. जी हां ,बॉस के काम की बात हो रही है सब टाइम पर कर

bachpan

बचपन अंबा का आचल छूटा अंबरूह से अंबू रूठा... उजबक बन कर रहे गया मैं जब से मेरा बचपन छूटा उछल कूद सब हो गये दूर अकधक-अकबक छूटे यूं अक्रिय बन कर रहे गया मैं जब से मेरा बचपन छूटा कुप्रवति से मैं हूं भरपूर ओछापन है मुझ में यूं कठपुतली बन कर रहे गया मै जब से मेरा बचपन छूटा दोस्त यार अभी भी हैं साथ अब न उनमे है वो प्यार बेगाना बन कर रहे गया मैं जब से मेरा बचपन छूटा..

मां

एक सच्ची कहानी .... ममता के कहानी किस्से आपने ज़रूर सुने होगें मां की मोहब्बत बयां करना शयाद बहुत मुशकिल है ।पर आज बात उस मां की जिसने अपनी सात साल से मरी बच्ची को अपने कलेजे से लगा रखा है ।ये कोई कहानी नहीं, फसाना नहीं ये हकीकत है ...वो भी उस देश की जिसे अपने नियम कानून और व्यवस्था पर बहुत घमंड है ... तकरीबन दस साल पहेले मिसेज़ फिलोरिडा एक अच्छे मुस्तकबिल के लिये अपने परिवार के साथ ब्रिटेन के लिये रवाना हुईं..अपने देश में सब कुछ सही पर फिर भी बुहत कुछ होता है जिसे सही करने की ज़रूरत होती है ... पति के साथ अपनी ज़िन्दगी की एक अच्छी शुरआत वो भी एक अमीर देश में शायद सब के नसीब में नहीं होता ... सब कुछ सही था ..भगवान की मेहर थी .. जल्द ही उनके आगन में एक फूल खिला ..... जिसका नाम था सुनैना... सोचा था की सब की नैनो का तारा बनेगी ...उसकी बोली सब सुनेगें पर कुदरत के आगे किसकी चली ...भगवान को क्या मंजूर किसे पता .... न जाने कौन सी तारीख़ थी कौन सा दिन था .. सुनैना की तबीयत बिगड़ गई...कुछ सोचने समझने का वक्त नहीं था जल्द ही उसे अस्पताल पहुचाया गया .. डॉक्टरों ने जांच शुरू की ..उसे भर्ती किया गय

दर्पण... एक पत्रकार का सच

एक पत्रकार की चाहत...... दर्पण.... उस दर्पण पर सर्मपित मैं जो है हर भाव से परिचित देखे जो खिलखिलाते चेहेरे जाने कितने किस के मन हैं मैले । क्या राजा ..... क्या रंक....... बदल न पाये कोई भी दर्पण के ढ़ंग मैं भी दर्पण बनना चाहू सब को उनका रूप दिखांऊ फिर ये विचार अपने मन मैं लाऊं बोले सभी कि दर्पण...कभी झूठ न बोले पर अब तक उसके सच से कौन भला डोले..

गोली का जवाब गोली से....... ....

गोली का जवाब गोली से....... अंधेरी से कुर्ला.... बस नबंर-332.. दिन सोमवार तारीख़ 27 अक्तूबर 2008 वक्त सुबह के पौने नौ बजे मुंबई का अंधेरी इलाका.. 332 नंबर की बस सुबह करीब पौने नौ बजे अंधेरी से रवाना हुई ... कम लोग, सुबह की हवा और हल्की हल्की सूरज की रोशनी छनती हुई बस के शीशे से अंदर पहुंच रही थी ।...करीब सवा नौ बजे बस साकीनाका पहुंची... यहीं से सवार हुआ 23 साल का एक खूबसूरत नौजवान देखने में किसी भी फिल्म अभिनेता को पीछे छोड दे । नौजवान बस की पहेली मंज़ील मे सब से आगे जाकर बैठ गया ...तकरीबन 15मिनट बाद यानी 9 बज कर 27 मिनट पर जब बस बैलबाज़ार ,कुर्ला के सिगनल पर पहुंची तभी इस नौजवान का कंडक्टर से झगड़ा हुआ बात बढ़ी ..नौजवान उत्तेजित हो गया, कंडक्टर को बांधक बनाना चाहा, लोगों को धमकाया और कहा मैं किसी का कोई नुकसान नहीं करुंगा .. मैं बिहार से आया हूं मेरी राज ठाकरे से बात कराओ.. नौजवान ने बस को रिवॉव्लर की नोंक पर बंधक बनाने की कोशिश की ...सवार लोगों से मोबाइल मांगा .. बाहर के लोगो को चिल्ला चिल्ला कर अपने बारे में बताया ..तभी करीब पौने दस बजे पुलिस वहां पहुंच गयी, सीन पूरा फिल्मी था .

अच्छा हुआ … जो पिटे....

अच्छा हुआ … जो पिटे.... बिहार जाने वाली या बिहार से गुज़र के जो ट्रेन जाने वाली थी सब को रद्द कर दिया गया....। स्टेशन में भीड़, लोग बेहाल परेशान, कहां जायें, कैसे पहुचें कुछ पता नहीं .... रमेश को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ट्रेनें क्यों नहीं चल रही ... उसने झुंझलाते हुये पुछा क्या हुआ ट्रेनों को क्यों नही चलाया जा रहा ....किसी ने बताया अरे भई वहां आंदोलन चल रहा है ट्रक जाम हैं सड़कों पर लोग है सब तरफ अफरातफरी है ...दुकाने जलाई जा रही है सरकारी संपत्ति का नुकसान किया जा रहा है ... बहुत ज़बरदस्त आंदोलन है .....25 तारीख़ को पूरा बिहार बंद होगा ... रमेश ने पुछा क्यों भई क्यों ... लोगो ने कहा अरे तुम कहा से आये हो, देश में कितना कुछ हो गया और तुम कहते हो क्यों ... राज .... राज ठाकरे के लोगों ने महाराष्ट्र में परीक्षा देने गये, बिहार के छात्रों को मार-मार कर भागया, बहुत पीटा ...उसी के विरोध में ये सब हो रहा है ... रमेश के लिये ये सब नया था ... उसने कहा, पर अगर ये सब मुंबई में हुआ, वहां के लोगो ने किया तो उसका विरोध बिहार में प्रदर्शन कर के अपने ही लोगो की दुकाने जला के ..अपने ही प्रदेश का नुक

आस

आस वो जो खुशियों का एक दीपक बन कर मेरी ज़िन्दगी में आया था । शायद कल्पनाओं का एक साया था भूल गया था मैं जिन्दगी के .... हर दुख़ ,हर ग़म ,हर तंनहाई.... अंजान कर दिया था .... उसने मुझे ग़मों से, परिचित कर दिया था उसने मुझे गैरो से कितना खुशनुमा झोका बन कर आया था ...... लेकिन जीवन केवल सुखों का पल थोड़ी है जब चाहा मैने अपनाना उसे .... मन के एक कोने चाहा बिठाना उसे दूर बहुत दूर चला गया वो .... मुस्कुराहट भी मेरी साथ ले गया वो ... कितना रोया कितना छटपटाया था मैं... शायद कभी तो हाथ आयेगा वो ... लेकिन उसे न आना था न ही वो आया था वो तो एक साया था ... हां वो तो एक साया था .... मेरा मन ही पागल था जो उसे पकड़ने को भरमाया था क्या कभी समुद्र की लहरों से रेत के घरौंदे बचे या फिर कभी सपने भी हक़ीक़त हुये हैं तो फिर साया कैसे हाथ आता ... हां वो सिर्फ साया था .. सिर्फ साया था ... साया ही था पर ज़िन्दगी नहीं मानती हम नहीं रुकते हम साये के साथ ही जीते है सपनों मे ही रहते हैं ... जानते हुये भी उसी ओर चलते है जिस तरफ मंज़िल का कोई नामोनिशान नहीं ... क्यो ...भला क्यों .... शायद एक आस के लिये ... आस हां उम्म

कैसे जीतता है सच में सच.....

कैसे जीतता है सच में सच..... इस बार न जाने क्यों जलते हुये रावण को देख कर मेरी आंखों से जो आंसू निकले तो रुकने का नाम ही नहीं ले रहे । एक के बाद एक घटना याद आने लगी कुछ लोग, कई पुराने साथी सब नज़रों के सामने थे ।जैसे जैसे रावण जल रहा था । वैसे वैसे मेरा मन डूब रहा था ।लोग जय श्रीराम के नारे लगा रहे थे पर मेरे कानों में न जाने कौन सी आवाज़ आ रही थी ।आग की रोशनी मुझे डरा रही थी। मुझे दिख रहे थे वो लोग जो मेरे करीब थे पर अब मुझसे बहुत दूर हैं । मैं रावण को हमेशा दूर से ही देखता हूं शायद इसलिये कि सच को जीतते हुये देखना बहुत मुश्किल है । मुझे तो याद नहीं की सच पहली और आखिरी बार कब जीता था । हां बचपन से सुनता आ रहा हूं कि हमेशा सच बोलो सच का साथ दो सच ही जीतता है ... पर जब तक ये जीत आती है तो जीतने का दिल ही नहीं चाहता क्योकि ये जीत हमसे बहुत कुछ ले चुकी होती है । आज मै रोया इसलिये नहीं कि मुझे रावण से प्यार है ।प्यार मुझे कैसे हो सकता, किसी बुरे आदमी से कोई कैसे प्यार कर सकता है। चाहे वो रावण के रूप में हो या आतंक.

this saturday

लो शनिवार है हम तैयार है शुक्रवार की शाम से विनिता काम मे लग गई इस बार न जाने शनिवार को कहां बंब फटे। पिछली बार काफी बातें सुनने को मिली थी कि यार तुम ये कर देती शॉटस कुछ ज्यादा बड़े बनवा देती पीछे आने वाली एंम्बियंस को उठा देती ।इस बार कोई चूक नहीं होगी नई नौकरी है अपने को प्रुफ करने का आतंकवादियों ने सही मौका दिया है । उसने तैयारी पूरी कर ली थी उसने पता लगा लिया है शनिवार को कौन कौन से रिपोर्टर की शिफ्ट लगी है और कौन से एंकर आफिस के पास रहते हैं। उसे योगेश का बोलने का तरीका, शब्दों के उच्चारण से काफी अपत्ति थी सोचा की उसे बदलवा दूं फिर मन ने कहा क्यो किसी विवाद में पड़ना है वैसे भी हिन्दी चैनलों में किस की भाषा सही है पर एक बात माननी होगी कि योगेश बाइट सब से पहले लेकर आता है टीवी में तो जो दिखता है वो ही बिकता है । ज्यादातर ब्लास्ट के वक्त विसुवल आने मे देर लगती है इसलिये ग्राफिक्स की भूमिका काफी बड़ जाती है । अगर ग्राफिक्स दमदार हुये तो दर्शक आप के चैनल पर थोड़ी ज्यादा देर टिके रहेगे। इस बार अनिमेतद ग्राफिक्स बनवाये गी बस एसे की उस पर ब्लास्ट की जगह लिख दी जाये दिल्ली हो, बनारस हो,

बोम्ब फटा

फिर क्यों नही फटा बम्ब बम्ब फटा और धंधा शुरु हो गया हर तरफ से कलम काग़ज़ माइक कैमरा लेकर देश के सिपाही निकल पड़े सब एक से बड़ कर एक हर एक के पास अपनी दलील अपने विचार सब आतंकवाद के खिलाफ पर आंतकवादी के कारनामों से परिचित सब चाहते की कोई बेगुनाह को सज़ा न हो और कोई आंतकवादी भी न बचे आंतकवाद क्यो पंपा इस पर बहस हुई बटला हाउस मे क्या हुआ इस पर कहानी रची गई जामिया क्यों अपने बच्चों का बचाव कर रहा इस पर चर्चा हुई शिवराजपाटिल ने कितने सूट बदले सब को दिखाया गया लो फिर बंब फटा और धंधा शुरू हो गया चम्चों का कभी काम चल गया सर क्या स्टोरी लिखी सर क्या ब्लाग में लिखा आप ही लिख सकते है साथ में अपनी भी एक थियोरी पेल दी बंब निरोधक दस्ते में लो वो शामिल हो गये आंतकवाद के खिलाफ उन्होने भी आवाज़ उठा दी लो बंब फटा फिर धंधा शुरू हो गया यही मौका था करियर की शुरूआत थी बंब से ज़ोरदार और कौन सी स्टोरी हो सकती है खून से ज्यादा और कौन छाप छोड़ सकता है रोती हुई औरतों से ज्यादा अच्छी तस्वीरे कौन पेश कर सकता है ... ये सब करना है क्यो कि आखिर में मुझे सुनना है वाह भाई ब्लास्ट क्या आपने दिखाया फिर बम्ब फटा और धंधा शुर

लो वक्त आगया

रूपये 4200 रात भर की बैचेनी सुबह मुसीबत बन गई हीरा लाल सुबह पूजा से पहले ही ज़मीन पर गिर पड़े पड़ोस में रहने वाले आज़म को बुलाया गया जल्द ही कस्बे के अस्पताल मे ले जाया गया वहां से ज़िला अस्पताल पहुंचाया गया, दिल्ली में उनके बड़े भाई को भी इत्तिला कर दी गई सब पहुच गये ।बात आपरेशन की हुई ब्रेन हमरेज हुआ था खर्चे पर सबने एक दूसरे का मुंह देखा अगर हीरालाल ठीक होकर कर्ज़ा लौटने की हैसीयत रखते तो कोई भी पैसे लगा देता पर सब हकीक़त जानते थे इसी लिये सब ने पिंड छुड़ाया और दिल्ली के सरकारी अस्पताल में ले जाने को कहा बड़े भाई ने भी दुनियादारी में हां कहा एम्बुलेंस की गई ।हीरालाल की ज़िन्दगी से ज्यादा सब को अपना जीवन चलाने की चिंता हो गयी कहां से कैसे और किस तरह से क्या किया जाये गा यही सोच रहे थे हीरा लाल के भाई अपने साले को फोन किया कहा कुछ हो सकता है साले ने अपने दोस्तों को फोन किया क्या कुछ कर पाऊगे दोस्तों ने अपने जुगाड़ लगाये की सर कर दो हमारे दोस्त का अज़ीज़ है मैने कभी अपने लिये तो कुछ नहीं कहा .. हीरा लाल दिल्ली आ गये किस्मत से दाखिला भी हो गया . रात को हीरा लाल के भाई का साला भी आगया तभ

ये मुजाहिदीन नहीं

ये मुजाहिदीन नहीं आज दिल्ली में इंडिया गेट पर मुस्लिम संगठ हाथों में बैनर पोस्टर लिये खामोशी से आंतकवाद का विरोध करने के लिये इकठ्ठा होये। सब के लब बंद थे और ज़हन में कई सवाल धूम रहे थे। सोच रहे थे की ये दशहतगर्द किस इस्लाम और किस मुस्लमान की पैरवी कर रहे है ये वो मज़हब के मानने वाले तो नहीं जो कुरान पर इमान लाये थे। हमने वहां मौजूद फैजान नक़वी से पूछा की आंतकवादी अपने को मुजाहिदीन कहते है क्या ये सही है उन्होने बिना रुके कहा की मुजाहिदीन कभी भी बच्चे और औरतों को निशाना नहीं बनाते और इस्लाम को मानने और अपने को मुस्लमान कहने वालों को रमज़ान के महिने का भी ख्याल नहीं आया । आज चंद लोगों की वजह से एक पूरी कौम कटघरे में खड़ी है ये दाग जो लगा है न जाने कभी मिटेगा भी या नहीं... क्या ये मुजाहिदीन हैं ........

समय दो

आज दफ्तर का माहौल कुछ अजीब सा था हर आदमी अपने में व्यस्त था किसी के पास समय नही था हर काम वो समय से पहले करना चाह रहा था तभी मुझे .... अपनी एक पुरानी कविता याद आई मुझे कुछ और समय़ दो , मुझे कुछ और समय दो मेरे जीवन की लौ को य़ूं न बुझने दो मुझे कुछ और समय़ दो अभी तो मेरी आँख के आसू आँख मे ही अटके हैं उसको धरती पर तो गिरने दो मुझे अभी कुछ और समय दो कुछ और समय़ दो अभी तो मेरे कानो में आज़ान भी नही गई है अभी तो मेरे मुंह से राम का नाम भी नही निकला है मुझे राम और रहीम का कुछ तो जान ने दो मुझे कुछ और समय दो मुझे कुछ और समय दो अभी तो मुझे ममता की बांहे भी नही मिली हैं अभी तो मैंने माँ के दूध का स्वाद भी नही लिया है मुझे ममता की आगोश में कुछ पल तो रहने दो मुझे कुछ और समय दो मुझे कुछ और समय दो यह कविता थी इस लिए समय मांगने की हिम्मत जुटा ली पर ज़िन्दगी में एक बार समय गुजर जाता है वो फिर कोई नही देता , ये मैंने इस कविता के लिखने के दस साल बाद जाना। शायद आपने भी अपने गुजरे हुए वक्त के पन्नो से ज़रूर कुछ समझा होगा। आज बस इतना ही. मुझे कुछ औऱ समय दो

आज वक्त है

वक्त है आज वक्त है तो इस लिये लिख रहा हूं और इसीलिये ही अपने ब्लॉग का नाम भी वक्त रखा है। अगर आप के पास वक्त हो तो पढ़ना और नहीं हो तो, जब हो तो ,तब पढ़ लेना हर काम जिन्दगी मे तब किया या ये कहूं की सारे काम तब हुये जब वक्त निकल गया स्कूल में पढाई समझ में नहीं आई, आई भी तो बस इतनी की पास होने के नम्बर मिल जाते जब धीरे धीरे नम्बर का महत्व समझता तब तक वक्त निकल चुका था। कॉलेज में गर्ल फ्रंड और बाईक पाने की इच्छा हुई जब तक इच्छा पूरी करने के लिये जोड़ तोड़ करता तब तक जवानी बस में गुज़र गई और गर्लफ्रंड के नाम पर बीवी आ गयी । ये अभी शुरूआत है मेरी तरह ज़रूर बहुत से लोग होगे जिन्होने ने वक्त पर कभी कोई काम नही किया होगा या जिनका कोई काम कभी वक्त पर नहीं हुआ होगा आज हम शुरू करेगें वक्त है तो करेगें.....