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Showing posts from December, 2011

यादगार ऐ ग़ालिब

यादगार ऐ ग़ालिब के नाम से इस साल गालिब की हवेली को दिल्ली की विरासत के तौर पर पर्यटन राह की पर एक महत्वपूर्ण हवेली बनाने के उद्देश्य से हवेली में उल्लेखनीय परिवर्तन की तैयारी है-------मिर्ज़ा ग़ालिब के जन्म दिन के मोके पर पुरानी दिल्ली के बल्लीमारान की तंग ओर गलियों में रौनक आ गई---दिल्ली की मुख्यमंत्री ओर फ़िल्मी गीतकार गुलजार ने इस हवेली में जाकर ग़ालिब को याद किया ----- इंडियन काउन्सिल फॉर कल्चरल रिलेशन के सोजन्य से प्रायोजित प्रदर्शनी और गालिब के जीवन ओर उनसे जुड़े पहलुओ को साउंड ट्रैक द्वारा प्रायोजित करने की योजना का मुख्यमंत्री ने उद्घाटन किया ---- तीन दिनों तक मनाए जाने वाले जश्न यादगार ऐ ग़ालिब के दोरान मुश्यारा, गीत ओर नाटकों का आयोजन भी किया जायेगा ----यादगार ऐ ग़ालिब के नाम से इस साल गालिब की हवेली को दिल्ली की विरासत के तौर पर पर्यटन राह की पर एक महत्वपूर्ण हवेली बनाने के उद्देश्य से हवेली में उल्लेखनीय परिवर्तन की तैयारी है-------मिर्ज़ा ग़ालिब के जन्म दिन के मोके पर पुरानी दिल्ली के बल्लीमारान की तंग ओर गलियों में रौनक आ गई---दिल्ली की मुख्यमंत्री ओर फ़िल्मी गीतकार गुलजा

हिन्द के मुसलमां है हम

हिन्द के मुसलमां है हम शुक्रे खुदा करते हैं हम सजदा-ए - हक़ अदा करते है हम दिल में बसा है मादरे वतन तुझसे मोहब्बत ए वतन करते है हम हिन्द के मुसलमां है हम इस शोरो गुल के गुबार में इन इधर उधर की पुकार में इन रंगे हुए सियार में तेरी सियासत समझते है हम हिन्द के मुसलमां है हम हिन्द के दिलो जिगर और जां है हम तिरंगे की शान है हम खुद क़ाबिज़ो मुखतार है हम वतन की पहचान है हम फिर सोचते है कुछ क्यों बिन बुलाए मेहमां है हम हिन्द के मुसलमां है हम इज्ज़त अमन और रोज़गार बस चंद अपने अरमां है जितने हम में हैं उतने ही तुम में है इतेहापसंद कुछ यहां है कुछ वहां हैं हिन्द के मुसलमां है हम इसकी मिट्टी में दफन है हम ही इसकी ख़ाक से बने है हम ही इसके गली कूचों मे चले हैं हम ही अपने पुरखों की यहीं आशियां है वासी यहां के हम हैं ये अपना मकां है हिन्द के मुसलमां है हम ....

जिन्दगी का रिश्ता

जिन्दगी का रिश्ता ..जिन्दगी से कुछ ऐसा हुआ की जिन्दगी को ही भुला दिया .ज़िन्दगी जो दायरों और मिनारों और चौखटों से कभी बाहर नहीं आई ..वो आज कूचों और मौहल्लों में सफर करती नज़र आ जाती है..। कुछ सोच कर करना कुछ मुनासिब तरीके से पेश करना शायद इसका शऊर ज़िन्दगी को कभी हुआ ही नहीं... जिन्दगी कितने लंबे ग्रंथ में कही जा सकती है या फिर कितने कम शब्दों में बयान की जा सकती है इसका एहसास एक जिन्दगी गुज़ारने के बाद ही होता है.पर हां ज़िन्दगी होती बड़ी दिलचस्प है ..क्योंकि एक जिन्दगी से कई ज़िन्दगियां जुड़ी होती हा और हर जुड़ी हुई ज़िन्दगी से कई और और ज़िन्दगिया... हर का तार एक दूसरे से .. दिलचस्प ये नहीं कि हर तार एक दूसरे तार से जुड़ा होता है दिलचस्प ये कि हर तार एक दूसरे से जु़ड़े नही रहना चाहता पर फिर भी जुड़ा रहता है .. जैसे पानी की वो धारा जो किनारे पर सिर्फ दम तोड़ने आती है ...पानी की मुख्य धारा से अलग हो कर मिट्टी को सीचने के लिए और फिर अपने साथियों से हमेशा हमेशा के लिए जुदा होकर फसाना बन हो जाती है ... धारा जिन्दगी नहीं बन सकती पर ज़िन्दगी को धारा की ज़रूरत हमेशा रहती है । क्योंकि ज़िन्द

कब कहां और कैसे

कब कहां और कैसे काग़ज़ की एक कश्ती पानी में कुछ यूं चली लोगों ने कहा क्या खूब बढ़ी.. फिर न जाने किस सैलाब में बह गई कब कहां और कैसे.. एक छोटा दीया था कुटिया को रोशन किया करता था अपनो के लिए जीया करता था फिर न जाने किस तूफान में बुझ गया कब कहा और कैसे एक नन्हा बूटा था अपने बगीचे में रहता था खूब खुशबू देता था सब को अच्छा लगता था फिर न जाने किस आंधी मे टूट गया कब कहा और कैसे एक प्रेमी जोड़ा था बहुत खुश रहता था एक दूसरे के साथ चल था फिर न जाने किस मोड़ पे मुड़ गया कब कहा और कैसे...

हम क्या करते हैं TAI

theatre artiste of india थियेटर आर्टिस्ट ऑफ इंडिया ... नाटक के क्षेत्र में पूर्ण संस्था है ..। यहां नाटक की हर शैली में कार्य होता है ..और रंगमंच की नई शैली को जन्म दिया जांता है ।यहां कलाकार का जन्म भी होता है और कलाकार बनाया भी जाता है। रंगमंच को समाज का आईना कहते है ..इस समाज में क्या हो रहा है ,क्या होना चाहिए ..कौन क्या कर रहा किसे क्या करना चाहिए ये सब हम नाटक में प्रस्तुत करते हैं। विशेषकर ऐसी सरकारी, समाजिक योजनाए और नीतियां जो आम लोगों के लिए आती हैं लेकिन उसकी जानकारी उन तक नहीं पहुच पाती ..इन्ही योजनाओ और कार्यक्रम को हम छोटे छोटे नाटक स्किट हास्य और मंनोरंजन की शैली में इस तरह पीरोते हैं कि जो भी देखे उसे हर बात समझ में आ जाए। थियेटर आर्टिस्ट ऑफ इंडिया के पास देश के प्रसिद्ध कलाकार, निर्देशक, लेखक की एक लंबी टीम है जो किसी भी विष्य को अच्छे सीधे सरल और मंनोरंजन के साथ बनाती है कि अधिक से अधिक सोचना और ज्ञान लोगों तक पहुचए। जो बात आप न कहे सके न समझा सके ..वो आप हमे बताए ..आपकी बात लोगो तक हम नए अंदाज़ से पहुचाएगें थियेटर आर्टिस्ट ऑफ इंडिया ने अभी भारत के कृषि मंत्रालय

न जाने क्यों

न जाने क्यो हर बात एक बात से बढ़ जाती है न जाने क्यों तेरी याद हर याद में बस जाती है न जाने क्यों तेरी तस्वीर हर आंख में बन जाती है न जाते क्यों तेरी मूर्त हर सूरत में दिख जाती है न जाने क्यों तेरी आवाज़ हर नज़्म बन जाती है न जाने क्यों हर जगह तुझ पर ही नज़र जाती है

IMAM HUSSAIN

Mahatma Gandhi “My faith is that the progress of Islam does not depend on the use of sword by its believers, but the result of the supreme sacrifice of Hussain (A.S.), the great saint.” Pandit Jawaharlal Nehru “Imam Hussain’s (A.S.) sacrifice is for all groups and communities, an example of the path of rightousness.” ... Rabindranath Tagore “In order to keep alive justice and truth, instead of an army or weapons, success can be achieved by sacrificing lives, exactly what Imam Hussain (A.S.) did Dr. Rajendra Prasad “The sacrifice of Imam Hussain (A.S.) is not limited to one country, or nation, but it is the hereditary state of the brotherhood of all mankind.” Dr. Radha Krishnan “Though Imam Hussain (A.S.) gave his life almost 1300 years ago, but his indestructible soul rules the hearts of people even today.” Swami Shankaracharya “It is Hussain’s (A.S.) sacrifice that has kept Islam alive or else in this world there would be no one left to take Islam’s name.” Mrs. Sarojini Naidu “I congr

कलयुग का श्रवण

कलयुग का श्रवण एक युवक अपनी मां को कांवड़ में बिठाकर पिछले चौदह साल से पैदल तीर्थ यात्रा करा रहा है। कलयुग में इस श्रवण कुमार को देखकर लोग हैरान हैं और इसके संकल्प की सराहना भी कर रहे हैं। यह श्रवण कुमार हैं मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर के कैलाश। बदरीनाथ धाम में दर्शन के बाद अब वे अपनी मां को लेकर केदारनाथ की यात्रा पर निकले हैं ... अ॥धे माता-पिता को कांधे पर बैठा कर तीर्थ यात्रा पर ले जाने वाले श्रवण कुमार के बारे में सबने पढ़ा या सुना होगा। वह श्रवण कुमार त्रेता युग में था। अभी कलयुग चल रहा है और इस दौर में किसी श्रवण कुमार की कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन जबलपुर के कैलाश गिरी को जो भी देखता है श्रवण कुमार कहने लगता है। कैलाश अपनी अंधी और बूढ़ी मां को चार धाम यात्रा पर लेकर आए हैं वह भी पैदल। कैलाश पिछले चौदह साल से अपनी मां को कांधे पर बैठाकर तीर्थ यात्रा करा रहे हैं। वह अब तक रामेश्वरम, जगन्नाथ तथा बदरीनाथ धाम के दर्शन कर चुके हैं। विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले पवित्र धाम बदरीनाथ में भी कलयुग का यह श्रवण कड़कड़ाती ठंड एवं बारिश में ही कंधों के सहारे अपनी मां को यहां तक लाया। कैलाश के इ

Pre-Islamic Arabic Poetry Talks About Vedas

Pre-Islamic Arabic Poetry Talks About Vedas Amit Dua Arabic is known as an Islamic language. But you know about pre-Islamic Arabic poetry. Pre-Islamic Arabic poetry clearly talks about Vedas. Here is poetry by an ancient Arabic poetry by Labi-Bin-E- Akhtab-Bin-E-Turfa with English Translation (Poetry in red, translation in bold black): [Taken from "Vedic History of Pre-Islamic Mecca" by Shrimati Aditi Chaturvedi] "Aya muwarekal araj yushaiya noha minar HIND-e Wa aradakallaha manyonaifail jikaratun" "Oh the divine land of HIND (India) (how) very blessed art thou! Because thou art the chosen of God blessed with knowledge" "Wahalatijali Yatun ainana sahabi akha-atun jikra Wahajayhi yonajjalur -rasu minal HINDATUN " "That celestial knowledge which like four lighthouses shone in such brilliance - through the (utterances of) Indian sages in fourfold abundance." "Yakuloonallaha ya ahal araf alameen kullahum Fattabe-u jikaratul VEDA bukkun