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Showing posts from 2010

साल खत्म हो रहा है -2010

साल खत्म हो रहा है लो 2010 भी खत्म हो रहा है पांच दिन बाद 2011 का आगमन हो जायेगा...दिसंबर आते आते बीते महीनों की बातें धुधली होने लगती और बीते सालों की यादे तो मानो खत्म हो जाती है बस रहे जाता है अच्छे और बुरे अनुभवों के निशान। इस साल न कोई नये दोस्त बने और न कोई नये दुशमन ऐसा मैं मानता हूं हां इंक्रीमेंट 13000 का जरूर हआ था पर आज की तारीख़ में मेरे बैंक खाते में सिर्फ 25,000 रूपये ही बचे हैं सारे पैसे कहां गये उसका भी कोई अता पता नहीं एक रिश्ते के भाई की शादी हो गई और कई दोस्त भी निपट गये। टेलीविज़न के ऑवर्ड मिले कई ऑवर्ड में बेस्ट कैटेगरी में शामिल हुए.. पुराने प्रोग्राम ले लिये गये नये कार्यक्रम दे दिये गए.सिर के कुछ और बाल खत्म हो गए।लखनऊ,सहारनपुर पंजाब उडीसा धूम भी आये । पत्नी से कई बार झगड़े हुए और कई बार समझौते विदेशी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री का स्वागत किया और देसी नेताओं के ब्रष्ट्र चेहरे देखने को मिले तबीयत बिगड़ी तो कभी संभली डेंगू चिकनगूनिया और नये किस्म के बुखारों का सामना किया तेल मंहगा प्याज़ मंहगी मंहगा टमाटर खरीदा । नई जगह नौकरी की तलाश की पर नतीजा सिफर ही निकला।ईद ब

बिन नाम के लोग

बिन नाम के लोग (news production crew) पर्दा और पर्दे पर दिखने वाले लोगों और उनको पर्दे पर लाने वाले लोगों के बारे में जाने अंजाने सब लोग कुछ न कुछ जान ही जाते हैं । फिल्मी दुनिया के बारे में सब को काफी उत्सुकता होती है इसलिए उनके बारे में लोग पता लगा लेते हैं बहुत लोगों की कमाई सिर्फ उनके बारे में लिखने से होती है इसलिए आये दिन उनके बारे में लिखा ही जाता है ..और दुनिया को उनके बारे में पता चल ही जाता है । यही हाल टीवी के मनोरंजन चैनल में काम करने वाले लोगों का होता है उनके नाम से भी ज्यादतर लोग वाकिफ होते हैं । क्योंकि एक लंबा क्रेडीट रोल उन सब लोगो के नाम का वर्णन कर देता है जिन का सहयोग पेश किये कार्यक्रम में होता है । जिसमें आम लोगों को भले ही रूचि न हो पर हां उस क्षेत्र में काम करने वाले लोग उनके काम की प्रशंसा करते है और उनके काम को सराहा जाता है । जब बात टीवी के न्यूज़ चैनल की आती है तो लोगों की जुंबा पर स्क्रिन पर दिखने वाले चंद लोग ही होते हैं। रिपोर्टर या कार्यक्रम प्रस्तुतकर्ता को सारा श्रेय चला जाता है ज्यादा से ज्यादा कैमरा मेन का नाम ले लिया जाता है । और इसका सबूत भी ये

सलमान ख़ान ने निकलवाया मनोज तिवारी को – बिग बॉस

सलमान ख़ान ने निकलवाया मनोज तिवारी को – बिग बॉस जैसा की हमेशा लोग जानना चाहते हैं कि बिग बॉस में सब कुछ पहले से तय होता है या सब असलियत होती है । कुछ हिस्सा तो बनावटी होता है जिसे टीवी की भाषा में स्क्रिप्टिड कहा जाता है ...पर वोटिग और लोगों का जाना लगभग सही होता रहा है पर जब से सलमान ख़ान बिग बॉस को होस्ट कर रहे हैं तब से लोगों का जाना भी वो ही तय करते हैं और उनकी इच्छा के अनुसार ही लोग निकलते हैं । मनोज तिवारी का जाना जनता का आदेश नहीं सलमान ख़ान का फरमान रहा है ..मनोज तकरीबन एक लाख से ज्यादा वोटों से अशमित से आगे थे पर सलमान को ये पंसद नहीं था इसलिए रातों रात स्क्रिप्ट बदलली गई और मनोज तिवारी को एक झूठे आदमी के तोर पर दिखाया गया.. इसलिए अगर आपने कार्यक्रम देखा होगा तो पहली बार सलमान ने मनोज को एक गंदे आदमी के रूप में दिखाया और इस तरह से बोला जिससे से साफ जाहिर था कि वो मनोज को पसंद नही कर रहे । वहां बैठे प्रतियोगी को भी इस का यकीन नहीं था । सुत्रो का कहना है कि सलमान के इस फैसले की वजह वीना और अशमित पटेल के बीच चल रही प्रेम कहानी है जिस से चैनल को बॉल्ड (अशलील) सीन देखने को मिलते ह

कहां गये ब्लॉग वाले

ब्लागवाणी का कोई विकल्प 2007 साथ में जब ब्लाग लिखना शुरू किया तो बहुत लोग पढ़ते अपनी राय और सलाह देते थे । ब्लागवाणी से पता भी चल जाता था कि तकरीबन कितने लोगों ने आपकी पोस्ट को पढ़ा । लेकिन जब से ब्लॉगवाणी बंद हुई उससे रोज़ लिखने वाला साधारण सा ब्लॉगर तो बस मानो खत्म हो गया ।या फिर ये कहे आचानक लोगों में पढ़ने का शौक और अपनी प्रतिक्रिया देने की चाहत खत्म हो गई। बड़ी कंपनियों की वेब साइट और बड़े नामचिन लोगों के ब्लॉग या फेसबुक और ट्वीटर ने आम ब्लॉगरों को खत्म सा कर दिया । लेकिन शायद सब से बड़ी वजह ये लगती है कि खाली पेट भजन नहीं होता हमने ब्लॉग तो शुरू किया उसके पीछे भले ही तर्क ये दिया हो हम आज़ाद है लिखने के लिए अपने लिए जगह चाहिए अपनी पहचान चाहिए थी औप ब्लॉग ने हमें सब दे दिया और कुछ छोटे गुर्प भी बन गये थे जो आपस में अपनी तारीफ करते रहते थे लेकिन जो भी था अच्छा था कहीं कुछ लिखा तो जा रहा था लेकिन एक और दो साल में हिन्दी ब्लॉगजगत के आम और साधारण ब्लॉगर मानो नदारद हो गए इस के पीछे की शायद य़े हकीकत है की सब को पैसा चाहिए था पैसा ही लोगों की ज़रूरत है और अपने वक्त का इंवेस्टमेंट कर के

अलकायदा कर सकता है हाजियों पर हमला

अलकायदा कर सकता है हाजियों पर हमला अलकायदा के हमलों का खतरा यूरोप पर ही नहीं सऊदी अरब पर भी है ..इस बार जब दुनिया भर को जायरीन इकट्टा होगें तो उनकी हिफाज़त के ख़ास इंतज़ाम किये हैं सऊदी सरकार ने क्योंकि अलकायदा इन दिनो सऊदी अरब से नाराज़ चल रहा ..क्योकि सऊदी अरब के ही सुराग देने के कारण उसके की पार्सल बम पकड़े गए..और उसके कई आंतकी हमले बेकार चले गए.इस के अलावा अलकायदा पहले से ही सऊदी अरब के शाह का तख्ता पलटना चाहता है । वैसे इससे पहले भी मक्का और मदीने पर हमले हो चुके हैं ..30 साल पहले इस्लामिक दहशतगर्द मक्का की बड़ी मस्जिद पर हमला कर चुके है 20 नंवबर 1979 को हशियारबंद आतंकवादियों ने मक्का में अल मस्जिद अल हरम पर कब्ज़ा कर लिया था इस हमले में ओसामा के सौतेले भाई को गिरफ्तार किया गया था ..पर बाद में उसे छोड़ दिया गया..तब से सऊदी सरकार के इंतज़ाम काफी सख्त होते हैं ..और हम उम्मीद कर करते हैं कि अल्ला के घर में किसी का खून नहीं बहे गा...

बस ऐसे ही

बस ऐसे ही क्या खबर कैसे मौसम बदलते रहे । धूप में हमको चलना था चलते रहे । शमा तो सिर्फ रातों में जलती रही । और हम हैं दिन रात जलते रहे ।। ( डॉ सागर आज़मी) कली की आंख में,फूलों की गोद में आंसू खुदा न दिखलाये ऐसी बहा की सूरत।। तेरी तलाश में ये हाल हो गया मेरा । न दिन में चैन है, न शब में करार की सूरत।।

पीछे छूटती खुशी

पीछे छूटती खुशी कहां से शुरू करूं ..क्या शब्द सही हैं ,अक्षर ग़लत तो नहीं ।भागती हुई भीड़ में कहीं में पीछे तो नहीं ....कई साल बाद हरीश अपनी बालकनी में बैठा यही सोच रहा था ।31 साल की उसकी उम्र हो गई थी 32 साल का इस महीने वो हो जायेगा। लम्बे लम्बे उसके बाल कम हो गए थे ..जिन लटों को वो संवारता रहता था आज वहां खाली चमक रहे गई थी ...उसका दबा हुआ पेट आजकल काफी बाहर की तरफ बढ़ता जा रहा था । दोस्तों के साथ शराब और दूसरी आदतें भी छूट चुकीं थी । चार महीने पहले उसकी शादी हुई थी ... ज़ाहिर है जिस सोच को लेकर वो ज़िन्दगी को समझ रहा था और आगे बढ़ता जा रहा था वहां परिवार की रज़ामंदी की कोई जगह नहीं थी .. हां इस दौर में हर युवा अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहना चाहता है ..उसे इस आज़ाद देश में और आज़ादी की चाहत है ... किसी की बात और सलाह मानना तो दूर उसे सुनना भी गंवारा नहीं ... रेशमा एक सैय्यद मुस्लमानों के घर की लड़की थी । अच्छा खूबसूरत नैन नक्श काले बाल और गोरा रंग ... और उसके नैन किसी को भी अपनी तरफ आकृषित कर लें ... कई चीज़ों की तलाश और कई हसरतें और खुवाहीशें..पर मकसद क्या शायद उसे भी नहीं मालूम..

MEDIUM MULTI ROLE COMBAT AIRCRAFT(MMRC)

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भारतीय एयर डिफेंस सिस्टम पुराने हैं एयर चीफ मार्शल पीवी नायक का कहना है कि हमारे 50 फीसदी हथियार और एयरकार्फट पुराने है जो कभी भी धोखा दे सकते हैं ..ज्यादतर मिसाइलों ने अपनी मियाद पूरी कर ली है ...यानि जब दुशमन पाकिस्तान और चीन जैसे हों ऐसे में हमारे एयरबेस और कई महत्वपूर्ण इमारतों की सुरक्षा कड़ी चुनौती है मौजूदी हालत में उनको बचा पाना आसान नहीं होगा... मिग-21 को रिटायर करने के बारे में पिछले 15 साल से सोचा जा रहा है ..लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ नतीजा आए दिन आप सुनते होगें की मिग -21 दुर्घटनाग्रस्त हो गया अब 126 मल्टीरोल फाईटर की तलाश है .. ऐसी डील पर बात कई सालों से चल रही है पर अभी तक डील हुई नहीं है.. 6 medium multi role combat aircraft(mmrc) के ट्रायल्स चल रहे हैं अभी इन्हें खरीदने का इंतज़ार हैं.. इन अमेरीका के एफ-16,एफ-18 यूरोप के यूरो फाईटर स्वीडन --- ग्रिपन फ्रांस--- राफेल रशिया का मिग 35.. अब आपको दिखाते हैं इनकी तस्वीरें.. पहली बार किसी ब्लाग पर

उस जैसा

उस जैसा सकल चराचर में उस जैसा रत्न नहीं रे, भार वहन कर उसके यश का पवन बही रे उसकी छवि को अंकित कर दे ऐसा कहां चितेरा उसके मुख को भूल जाए जो ऐसा कहीं नहीं रे... ( जैसा तुम चाहो..शेक्सपियर)

हर दिन

हर दिन हर दिन एक नई शुरूआत है हर दिन एक नई ज़िन्दगी का साथ है हर दिन कुछ खोना है हर दिन एक नया मुकाम है हर दिन एक झगड़ा है हर दिन एक समझौता है हर दिन एक तमन्ना है हर दिन का रोना है हर दिन सोना है और हर दिन एक दिन का इंतज़ार है

खुशी अपनो के साथ

खुशी अपनो के साथ सुबोत ज़िन्दगी की रफतार से तेज़ चल रहा है ...वक्त से पहले सब कुछ हासिल करने की कोशिश..और इसमें ग़लत क्या है । दुनिया का ये दस्तुर है कि अगर आप वक्त के साथ और वक्त के आगे नहीं चलेंगे तो आप पीछे छूट जाएगें... कई लोग ये सोच कर संतुष्ठ हो जाते हैं कि भई हमने तो सब कुछ पा लिया ।हम तो अपने मुकाम पर पहुच गए..शायद यहीं से उनकी भूल होती है ..इसलिए आज जो, मैं जिस मुकाम पर पहुचां हूं। मुझे उससे आगे जाना है और अपनी कम्पनी को भी आगे लेकर जाना है .और आप सब जो काम कर रहे हैं उनको भी ... सुबोत ने जैसे ही अपनी बात खत्म की .वैसे ही सारा हॉल तालियों की आवाज़ से गूंज उठा कैमरे की रोशनी और रिपोर्टरों के सवाल ..सब एक साथ टूट पड़े .... किसी पत्रकार ने पुछ ही लिया इतनी जल्दी इतना सबकुछ ..क्या कुछ छुटा नही, क्या कुछ रहे तो नहीं गया ...किसी का साथ किसी का प्यार... सुबोत मुस्कुरा दिया पर पहली बार उसकी मुस्कुराहट में चिता छलक रही थी । आज उसका न जाने क्यों मन जल्दी घर जाने के लिए करने लगा ..आज न जाने कितने बरसों बाद वो शाम को घर की तरफ जा रहा था ...उसे अपना शहर कितना बदला बदला दिख रहा था ...पंछी

एड्सवाली औरत.. सच्ची घटना....

राजस्थान के शहर अजमेर से लगभग 35 km दूर बसा एक छोटा सा गाव नंदलाला.जहां काली और उसके परिवार की ज़िन्दगी हमेशा के लिये अचानक बदल गई। 42साल की काली पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा जब उसे पता चला की उसका, एचआईवी टेस्ट पॉज़िटिव है ,इससे साल भर पहले ही काली के पति की एचआईवी की वज़ह से मौत हुई थी ।काली का पति ट्रक ड्राईवर था और अपने काम के सिलसिले मे ज्यादातर बाहर रहता था । गांव के ज्यादातर आदमी ट्रक ड्राइवरी के पेशे से जूडे हुये हैं और हाईवे ही उनका घर है ।गांव में करीव 300 परिवार हैं और हर परिवार से एक आदमी ट्रक ड्राइवरी से जुड़ा हुआ है । ट्रक चालक अपने लंबे सफर के दौरान कई जगह खाने पीने और आराम के लिये रुकते हैं । इसी दौरान इनमे से कुछ कि नज़दीकियां वैश्याओं से भी हो जाती हैं और इस संभावना से इंकार नही किया जा सकता कि काली का पति अपने ऐसे ही किसी संम्बध की वजह से एचआईवी संक्रमण से ग्रस्त हुआ।.और उसी से ये संक्रमण काली में आ गये। काली के पति की मौत को दो साल हो गये हैं । एचआईवी से झूझ रही काली अपने दो बच्चों के साथ बमुशकिल अपनी ज़िन्दगी थोड़ी बहुत आमदानी के ज़रिये गुज़ार रही है । काली दो

शाह को मात

शाह को मात गुजरात सरकार के गृहमंत्री अमित शाह को मात मिल चुकी है ..कोर्ट ने उनकी अग्रिम ज़मानत की अर्ज़ी खारीज कर दी है ।गुजरात हमेशा से बीजेपी के दिल से जुड़ा हुआ है । मोदी हो या फिर उनका कोई भी मंत्री बात जब गुजरात की उठती है तो दिल्ली तक पहुंच ही जाती है.. और दिल्ली में बैठे मोदी के एजेंट मामले को अलग राह पर मोड़ देते हैं और केन्द्र को दोषी करार देने में जुट जाते हैं... हर किसी की चार्जशीट पर बवाल करने वाली बीजेपी को अब वातावरण इतना प्रदुषित लग रहा है कि उन्होने प्रधानमंत्री के दिए भोज में भी जाने से इंकार कर दिया.. सही है मोदी से ही यहां बैठे बीजेपी के लोगो की रोटी चल रही है तो मोदी या फिर मोदी की सरकार पर कोई भी आंच आए तो खाना खाने से इंकार कर दिया जाता है .. मनमोहन सिंह तो पराए हैं मोदी के चक्कर में तो अपने सहयोगी नितिश के भी भोजन को मना कर चुके हैं...जब नितिश ने कहा था मोदी को छोड़ कर सब भोजन में आ सकते हैं... पर मोदी को कैसे छोड़े बीजेपी कब तक पाप और मोदी के बोझ को बीजेपी उठाएगी.. इस प्रदुषित हुए वातावरण को किसी को तो साफ करना ही होगा...

छछुंदर के सर पर चमेली का तेल

छछुंदर के सर पर चमेली का तेल हालत देश की हुई बुरी ग़रीबी मंहगाई खूब बढ़ी।। चर्चा हो गया ये आम मेहनत का मिलता नहीं कोई दाम ।। चापलूसों ने किया देश का बंटाधार निकम्मो के सिर पर पहना कर ताज।। समझ में नहीं आता ये सारा खेल क्यों लगता है हमेशा छछुंदर के सर पर चमेली का तेल।।

आंधी

एक आंधी कुछ इस तरह से आती है साथ अपने गर्द और राख लाती है पीछे अपने अंधकार और मातम छोड़ जाती है जिसने देखा वो थर्ऱा गया जिसने सुना वो कांप गया जो गया वो लौट कर न आया जो बचा वो लौट कर जा न सका उस मंज़र को शब्दों मे बयां कैसे करूं उस रात को कलम से कैसे लिखूं रोने की आवाज़े शोर में खो गईं चीख पुकारे हवाओं मे उड गई वो आंधी इस बार सब कुछ ले गई

असगर नदींम सरवर की नज्म

असगर नदींम सरवर की नज्म भारत पाक रिश्ते पर मुसाफ़िर साठ बरसों के अभी तक घर नहीं पहुँचे कहीं पर रास्ते की घास में अपनी जड़ों की खोज में तारीख़ के घर का पता मालूम करते हैं मगर तारीख़ तो बरगद का ऐसा पेड़ है जिसकी जड़ें तो सरहदों को चीर कर अपने लिए रस्ता बनाती हैं मुसाफ़िर साठ बरसों के बहुत हैरान बैठे हैं... मुसाफ़िर साठ बरसों के अभी तक घर नहीं पहुँचे कहीं पर भी नहीं पहुँचे. कि सुबहे-नीम वादा में धुंधलका ही धुंधलका है कि शामे-दर्दे-फ़ितरत में कहीं पर एक रस्ता है नहीं मालूम वो किस सम्त को जाकर निकलता है मुसाफ़िर साठ बरसों के बहुत हैरान बैठे हैं.

बरसात कुछ लाती है

बरसात कुछ लाती है अकसर बरसात में वो घड़ी याद आती है एक मां अपने बेटे के साथ जाल लेकर आती हैं सुमंद्र के किनारे लहरों में वो जाल फेंके खड़े रहते हैं गिरती बूंदों से अपनी किस्मत की दुआ करते हैं इस बरसात में झोली अपनी भर जाएगी ये बारिश मेरे दुख, बहा ले जाएगी लहरें भी झूम के मस्त होती है हर बहाव में कुछ न कुछ भेजती है.. कोई बचता है कोई गीत गाता है कोई देख कर ही लुत्फ उठाता है ।। मुझे एक और घड़ी याद आती है कड़ी- बल्ली ,पत्थर की छत टपकती है घर की बिल्ली दुबक कर कहीं बैठती है कमरो में हर वक्त छतरी खुली रहती है मेरी चप्पल अकेले ही सैर पर निकल जाती है कोई बचता है कोई गीत गाता है कोई देख कर ही लुत्फ उठाता है ।। मुझे एक और घड़ी याद आती है हाथों मे हाथ डाले कोई चलता है कोई इधर चलता है कोई उधर चलता है पायचें उठाए ,जूते लिए बचकर कोई निकलता फिर भी मोटर गाड़ी छीटे मार कर भाग जाती है न जाने तब गाली कहां से मुंह में आती है हर बार बरसात कुछ लाती है कोई बचता है कोई गीत गाता है कोई देख कर ही लुत्फ उठाता है ।।

शहज़ादा गुलरेज़ की नज्म

शहज़ादा गुलरेज़ की नज्म कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की बहुत खूबसूरत मगर सांवली सी मुझे अपने ख्वाबों की बांहों में पा कर। कभी नींद में मुस्कुराती तो होगी उसी नींद में कसमसा-कसमसा कर सरहाने से तकिया गिराती तो होगी वही ख्वाब दिन की मंडेरों पर आकर उसे दिल ही दिल में लुभाते तो होगें कई तार सीने की खामोशियों में मेरी याद से झनझनाते तो होगें कभी चौक पर सोचते सोचते कुछ चलो खत लिखे दिल में आता तो होगा मगर उंगलियां कांप जाती तो होगीं कलम हाथ से छूट जाता तो होगा कलम फिर उठा लेती होंगी उमंगे कि धड़कन कोई गीत गाती तो होगी कोई वहम उसको सताता तो होगा वो लोगों की नज़रों से छुपती तो होगी मेरे वास्ते फूल कढ़ते तो होगें मगर सुई उंगली में चुभती तो होगी कहीं के कहीं पांव पड़ते तो होगें मसहरी से आंचल उलझता तो होगा प्लेटें कभी टूट जाती तो होंगी कभी दूध चूल्हे पे जलता तो होगा गरज़ अपनी मासूम नादानियों पर वह नाज़ुक बदन झेंप जाती तो होगीं शहज़ादा गुलरेज़....

मर्दर डे-मा

मर्दर डे मां.....क्यों चली गई बहुत याद आती है आंख अक्सर भर जाती है कुछ कहूं ,कुछ करूंतेरी शबी नज़र आती है आज मलाल है तेरे जाने आज मलाल है तेरे जाने का तेरे लिए कुछ न कर पाने का मैं नाकारा रहा निक्मा रहा फिर भी तेरा दुलारा रहा॥ वो शब्द अब भी गूंजते है मैं चली जाऊंगी जब पता चलेगा वो शायद तब मज़ाक था पर उस हकीक़त का एहसास अब हो रहा है... सच मैं मां बहुत याद आती है

संजीव श्रीवास्तव का जाना कोई हैरानी की बात नहीं...

संजीव श्रीवास्तव का जाना कोई हैरानी की बात नहीं... जी हां संजीव श्रीवास्तव चले गए... सहारा छोड़ा या सहारा ने उन्हे छोड़ दिया अब इस बात को भूल जाना चाहिए.जब उन्होने सहारा ज्वाइन किया था तो लोगों ने उन्हे मुबारकबाद और सहारा को सही पटरी और सही दिशा में लाने का संकेत माना था ..पर 16 जनवरी 2010 को हमने अपने ब्लाग वक्त है पर लिखा था कि संजीव कुछ बदलाव नहीं कर पाएगे और खुद बदल जाएगें...किसी को इस बात पर यकीन नहीं था ..पर हम कायम थे अपने मीडिया के अनुभवों और चैनल के नज़रिये को समझते हुए... जिस तरह का घ़टनाक्रम हमने अपने ब्लाग पर लिखा ..जिसका लिंक नीचे है वैसा ही हुआ..और संजीव को सहारा को खुदा हाफिज़ बोलना पड़ा waqt: क्या सहारा टीवी का बदलाव कुछ रंग लाएगा... http://waqthai.blogspot.com/2010/01/blog-post.html ख़बर अब ये नहीं है कि संजीव चलेगे खबर अब ये है कि उपेन्द्र राय का नंबर कब आएगा ..वो भी हम आपको बता दे ..जल्द इस साल के खत्म होते होते वो भी बाहर का रास्ता देख लेगे या फिर एचआर में बेठने लगेगे..तो उपन्द्रेजी को यही सलाह है कि बदले की भावना से काम न करते हुए .सिर्फ और सिर्फ काम

ऐसी किस्मत हर किसी को नहीं मिलती ......

ऐसी किस्मत हर किसी को नहीं मिलती ...... आई याद मुझको शवण कुमार की गाथा कैसे फिरता था वो लेकर अपने नेत्रहीन माता-पिता न अपनी सुध...बस एक धुन कैसे करूं उनकी सेवा जो हैं मेरे जन्मदाता पर हो गई ये बात पुरानी शवण तो है बस एक कहानी ... इस युग की कहानी बदली है नाम तो है शवण पर फितरत कुछ हट के है बोझ समझता है वो उनको जिनके बाज़ूओं मे वो पला है झिड़क देता है वो उनको जिसने उसको जन्म दिया हे छोड कर चल देता है उनको जिसने उसके लिए सब छोड़ा उनकी खांसी उनकी बीमारी आज सब खलती है उसको जिसके लिए उन्होने अपनी कितनी नींदों को तोड़ा है रोते है वो शवण.. फिर भी तेरे लिए दुआ करते हैं.. सोच... क्या तुझ को जन्म देकर उन्होने कुछ ग़लत किया ये वो नियामत है जो हर किसी को नहीं मिलती इनके कदमो तले जनन्त है जो हर किसी को नहीं मिलती मां बाप की खिदमत की तौफीक हर किसी को नहीं मिलती हां ये सच है... शवण की तरह किस्मत हर किसी को नहीं मिलती ।। आई याद मुझको शवण कुमार की गाथा कैसे फिरता था वो लेकर अपने नेत्रहीन माता-पिता न अपनी सुध...बस एक धुन कैसे करूं उनकी सेवा जो हैं मेरे जन्मदाता... जो है मेरे जन्मदाता... शान...

शौहरत और दौलत

शौहरत और दौलत अक्सर सोचता हूं ..जिन्दगी जो हम जी रहे हैं किस लिए...उसमें क्या क्या महत्वपूर्ण हैं.. जिससे पूछा ,सब ने कहा एक खुशहाल जीवन के लिए जिन्दगी में खुशियां होनी ज़रूरी हैं ,,और खुशियों को कैसे परिभाषित किया जाए..तो कहा सब ठीक ठाक हो...सब स्वस्थ रहे , एक अच्छा घर हो कामकाज चलता हो दुनिया में अपनी पहचान हो..बस और क्या चाहिए... फिर मुझे ध्यान आया की वो लोग कितने महान है जो जीवन में इन सब को त्याग कर के अलग रहते हैं .दौलत शौहरत से दूर .सहेत की न परवाह न अपने हाल की चिंता..वो भी तो जीवन जी रहे हैं...पर हममें से शायद ही कोई उस तरह का जीवन वितित करना चाहता हो.. क्यों... दुनिया में दौलत औऱ शौहरत इसकी प्यास सब को है.. हर शाम,हर रोज़ हर सुबह मां बाप, अम्मी अब्बू अपने लख्तेजिगर को दौलत और शौहरत से धनी लोगों का ज़िक्र करते नहीं थकते ..देखो उसने ये कर लिया वो विदेश में बस गया उसका कितना नाम है ..आज उसके पास हर चीज़ है.. बात को आगे बढ़ाने के लिए आपको दो सधारण लोगो के बारे में बताता चलू.. पहले सम्मान जाति का होता था ..यानि जो उच्च जाति का है उसको समाज में सम्मानजनक नज़रों से देखा जाता था ..छो

जसबीर कलरवि की ...तलाश

जसबीर कलरवि की ...तलाश आज उसको किसी की तलाश थी क्योंकि वो पहली बार गुम हुआ था अजनबी चहेरे भी उसको अपने लगते थे पर वो अपनापन उसके अंदुरूनी परतों से बाहर न आ सका खुद से घबराकर आखिर उसने आवाज़ दी सभी अजनबी चहेरे उसकी तरफ दौड़े अपना अपना रास्ता पूछने . ।

प्रार्थना के लिए हाथ उठते हैं

प्रार्थना के लिए हाथ उठते हैं आज बाज़ार गया तो दुकान पर देखा एक बच्चा अपनी मां की साड़ी को हिला हिला कर किसी चीज़ की ज़िद कर रहा था । मां ने उसे देखा और फिर नज़रअंदाज़ कर दिया । फिर देखा तो गुस्से से घुर दिया ..बच्चा नहीं माना रोने लगा ... मां भी नहीं मानी बच्चे के तमाचा जड़ दिया ..बच्चा और ज़ोर से रोया ..मां को तरस आया कहा क्या चाहिए चलो ले लो... बच्चा खुश था ..उसे वो चीज़ मिल गई थी जिसकी उसने चाहत की थी ।... मां भी संतुष्ठ थी चलो उसका बच्चा खुश तो हुआ... दोनो खुशी खुशी चले गए.. पर मेरे मन में बड़े विचित्र से सवाल उठने लगे मैने सोचा ये मां और बच्चे के बीच क्या कोई तीसरा भी था ...जिसे दुनिया भगवान औऱ अल्लाह कहती दिन रात सजदे और दीये जलाती है क्या वो भी मौजूद था ... बच्चे ने मां से क्यों मांगा भगवान से क्यों नहीं ..जब इस दुनिया का नियम है कि जो कुछ है भगवान का है जो देता है वो भगवान देता है तो बीच में ये मां कहां से आ गई... और मां ने खुद क्यों दिया .भगवान ने क्यों नहीं दिया.उसने भी तो बच्चे को रोता देखा तिलमिलता देखा ..पर नहीं बात मां बच्चे में ही निपट गई.. अब लौटते हैं अपने विषय पर प्र

ललित मोदी होगें फरार..

ललित मोदी होगें फरार.. मीडिया के शुरूआती दौर में जब पेज थ्री की पार्टी में जाना होता तो कहीं नहीं लगता था कि मेरा भारत गरीब है ..यहा लोग नंगे और खाली पेट सोते हैं... सब झूठ लगता था ... साथी पत्रकार कहते थे सब दो नंबर का पैसा जो रोशनी दिख रही है वो अंधेरे से ही आ रही है ... कहीं न कहीं इन में से हर कोई किसी ग़लत काम किसी गैर कानूनी धंधे और किसी गहरे राज़ में कैद है ..एक दिन हर किसी का पर्दा हटेगा और हम पायेंगें कि ये सब नंगे तो हैं साथ ही शरीर में कितने दाग और कितनी बीमारी लिए हुए हैं... ललित मोदी ने जो आईपीएल की दुकान खोली तो उसका रास्ता ऐसा बनाया कि आम आदमी अपने पैरों से उस पर नहीं चल कर जा सकता ..इस दुकान पर पहुचने और माल खरीदने के लिए आपके पास करोड़ों का अंबार होना चाहिए ये करोड़ो रूपए आप के पास किस तरह और कहां से आए ये कोई नहीं पुछेगा क्योंकि कोठे पर आने वाले ग्राहक से उसकी कमाई का स्त्रोत नहीं जाना जाता .. और अगर कोई जानता भी है तो कहने की हिम्मत कोई नहीं करता ,, यही आईपीएल है और इस कोठे के हेड हैं ललित मोदी ..तो जिनको माल चाहिए उन्हे मोदी को सलाम करना ही होगा ... लेकिन किस्मत क

सानिया की शादी की तस्वीरे

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सानिया शोएब की शादी और sms

सानिया और शोएब की शादी और sms 15 अप्रैल को सानिया मिर्ज़ा और शोएब मलिक की शादी है ..पर भारत वर्ष में क्रोध की लहर है ..हर तरफ गुस्सा है ..विद्रोह है ..सानिया के प्रति नाराज़गी.. देश के सम्मान को लेकर लोगों ने एसएमएस का प्रयोग करना शुरू कर दिया है ..जिसमें सानिया शोएब को गालिया गंदी गंदी भाषा नीचले स्तर के चुटकले और न जाने कितनी अशलील हरकते और किस्से लिख कर भेजे जा रहे है. और कहा जा रहा है अगर आप भारतीय है तो इसको अपने दोस्तों को भेजें ..क्या हिन्दु क्या मुस्लमान क्या पंडित क्या मौलाना सब सानिया के खिलाफ है शादी पर सब को एतराज़ है । अब सवाल उठता है क्यों .....क्या ये पहली शादी है हिन्दुस्तान और पाकितान के बीच ।ऐसा नही है हर साल कई शादियां होती हैं... क्या ये किसी स्टार का निकाह है इस लिए बवाल मच रहा है तो ऐसा भी नही है ..इससे पहले भी कई सितारे एक दूसरे के हो चुके हैं ..तो फिर ये माजरा है क्या... आईये इसके लिए एक छोटा सा किस्सा सुनाते हैं ..शायद ये मंज़र सब ने देखा हो ..किसी मौहल्ले में मीना नाम की खूबसूरत लड़की थी ... खूबसूरत थी तो आशिकों की कमी भी न थी ..मौहल्ले का हर एक दिवाना उससे नज

जसबीर कलरवि की कविता- कवि.....

जसबीर कलरवि की कविता- कवि..... कवि ------------ यह अपने आप में अनहोनी घटना है के वो सारी उमर लिखता रहा कभी नज़्म ,कभी ग़ज़ल और कभी कभी ख़त कोई ... पर यह सच है उसकी कोई भी लिखत ना किसी किताब ने संभाली न किसी हसीना के थरकते होठों ने ... । वो लिखता क्या था मैं आज आपको बताता हूँ वो लिखता था एक कथा जो जन्म से पहले पिता के लिंग का मादा था और फ़िर अपने बेटे के जिस्म में बसा ख़ुद वो ... । यह हंसती हुई गंभीर घटना तब शुरू हुई जब उसने पहली बार पीड़ित देखा अपने माथे पर चमकते चाँद के दाग का खौफ़ खौफ़ क्या था ? बस यूँ ही जीए जाने की आदत का एहसास ... । वो बर्दाश्त नही करता था अपनी सांस में उठती पीड़ा की हर नगन हँसी का मजाक वो स्वीकार नही करता था इतिहास के किसी सफ़े पर अपने पिछले जन्म का पाप ... । उसका नित-नेम कोई कोरा -कागज़ था और रोज़-मररा की जरूरत हाथ में पकड़ी हादसाओं की कलम वो बड़ी टेडी जिंदगी जी रहा था बे-मंजिल सफर सर कर रहा था पर फिर भी वो जी रहा था लिख रहा था और हर पल तैर रहा था शब्दों के बीचों -बीच आंखों के समंदर में ।

कौन समझेगा इन का दर्द-सीआरपीएफ के शहीद जवानो के परिवार..दंतवाड़ा मे शहीद 76 जवानो के परिवार को सलाम

दंतवाड़ा मे शहीद 76 जवानो के परिवार को सलाम चीन के हत्यारों से लेस नक्सलियों ने 2 दिन के थके हुए भारतीय सीआरपीएफ के जवानो को मार डाला ..जवानो की मौत गोलियों से कम हुई प्रेशरबंम और आईडी के इस्तेमाल से ज्यादा हुई...जंगल के चप्पे चप्पे से वाकिफ नक्सलियों ने 76 जवानो को घेर लिया 1000 की तादाद में आए नक्सली पेड़ों और पहाड़ो की होड़ से हमला कर रहे थे ।जवानो के पास पोज़िशन लेने का भी वक्त नही था .वो भाग कर किसी जगह पर पहुने की कोशिश करते की ज़मीन पर छुपे प्रेशर बम का शिकार बनते ।प्रेशर बम दो तरह के होते हैं एक वो जिस पर आप पैर ऱखेगें तो वो फटेगा दूसरा वो कि जिससे आप पैर हटाएगे तब वो फटेगा..सीआरपीएफ की बस तो आईडी से उड़ाई गी..चारों तरफ से घीरे होने के बावजूद हमारे जवान साढ़े चार घंटे लड़े हमला सुबह पौने चार बजे हुआ..जो ज़ख्मी है उनके जज्बे को सलाम करते हैं क्योंकि वो फिर वहा पर जाकर लड़ने के लिए तैयार है ..और नक्सली का खातमा करेने पर ऊतारू..पर जो नही रहे उनके पीछे दर्द के रिश्ते बच गए। घायल जवान अली हसन ने ज़ख्मी होने के बाद अपने परिवार से बात की पर अल्लाह ने शाय़द बात करने तक की ही उसे महौलत

शर्म आनी चाहिए जेएनयू के लोगो को

शर्म आनी चाहिए जेएनयू के लोगो को मंगलवार की खौफनाक सुबह किसी भी भारतीय के लिए भूल पाना आसान न होगा । जब हमारे सीआरपीएफ के जवान छतीसगढ़ के दंतवाड़ा के जंगलों में गश्त लगा रहे थे तभी नक्सलियों का बर्बरता से भरा असली चेहरा सामने आया ।तकरीबन 75 जवानों को लगभग 1000 से ज्यादा नक्सलियों ने गौरिल्ला तरीके से घेर कर गोलियों से भून दिया... न जाने कितने परिवार का सुहाग बेटा भाई पिता को मार डाला.।इससे पहले भी मलकानगिरी में सीआरपीएफ की बस को निशाना बनाया गया उसमे तकरीबन 20 जवानो की मौत हुई.. ये एक दुखद घटना है जिसके सीने में दिल होगा।उसे दर्द ज़रूर होगा । लेकिन ऐसा नहीं है दिल्ली का एक तपका जो अपने को पढ़ा लिखा मानता है देश में होने वाले अत्याचारों के लिए धरना प्रदर्शन करता फिरता है ..गांजा चरस से चूर रहता मोटी मोटी लाल किताबे लाल फरेरे से बहुत प्यार करता है ..देश के शोषित पीड़ितों का मसीहा बनता है ..जब सत्ता मिलती है तो मलाईदर पदों पर बैठ जाता औरतो का बखौबी सेक्स के लिए इस्तेमाल करता ये कहते हुए कि ये तो शरीर की ज़रूरत है ।उस तो ये भी बर्दाशत नही जहा वो रहता है उससे नेहरू का नाम क्यों जुड़ा है ..

देश में दो महत्वपूर्ण काम शुरू..

देश में दो महत्वपूर्ण काम शुरू.. देश में सब को मिले शिक्षा हर बच्चा पढ़े लिखे अगर ये काम सफल हो जाए तो भारत में समाजिक बराबरी हासिल होने के लिए समझो पथ बन जायेगा । इस कानून के तहत 6 से 14 साल के बच्चों लिए शिक्षा का मौलिक अधिकार होगा । मान्यता प्राप्त हर प्राईवेट स्कूलों में गरीब बच्चों के लिए 25 फीसदी सीटें रिर्ज़व होंगी।देश में अभी तकरीबन एक करोड़ से ज्यादा ऐसे बच्चे है जो स्कूल नहीं जाते । इतनी बड़ी तादाद में बच्चों के लिए नए स्कूलों और शिक्षकों की ज़रूरत पडेगी ।इन सब का इंतज़ाम केन्द्र और राज्य सरकारों को करना होगा एक उज्जवल भविष्य के लिए। केन्द्र सरकार ने नए स्कूल खोलने के लिए डेढ़ लाख करोड़ रूपए देने के लिए कहा है अगले तीन साल में में ये स्कूल खोले जाएगें। अगले पांच लाख में 15लाख नए टिचरों को ट्रेनिंग दी जाएगी।इसमें होने वाले खर्च में केन्द्र औऱ राज्य सरकार की 65 और 35 फीसदी भागीदारी होगी। इस कानून की राह मुश्किल बहुत हैं..पहली मुश्किल तो उत्तरप्रदेश की मख्यमंत्री मायावति उन्होने कहे दिया कि राज्य सरकार के पास पैसा नही है अपने हिस्सा का पैसा देने के लिए। निजी स्कूल इसमे काफी अड़च

भीष्म की मौत एक नपुंसक के हाथ

भीष्म की मौत एक नपुंसक के हाथ कोई अंग नही बचा है जिसमें बाण न लगे हों। अंग अंग भिदा है ।प्रेयत्क रोम कूप में भिदे बाण रोम से खड़े हैं । उन्ही पर लेटे हैं भीष्म। भीष्म जिनका देवव्रत भी नाम है ... और देवव्रत का अर्थ है देवाताओं जैसा व्रत ..दृढ़ निश्चय करने वाला व्यक्ति..सब जानते हैं कि भीष्म ने अपने पिता का दूसरा विवाह करने के लिए खुद विवाह न करने का व्रत लिया था । कई बार ऐसे हालात पैदा हुए जब भीष्म अपना ये व्रत तोड़ सकते थे ...पर उन्होने ऐसा नहीं किया । जो राजा हो सकता था ,उसने अर्थदास जैसा जीवन जिया...लेकिन अपने व्रत को भंग होने नही दिया। हस्तिनापुर राज्य की सेवा का व्रत उनकी कमज़ोरी बन गया था.अपने युग के महान विद्वान ,धनधुर .धर्मात्मा समाजवेत्ता होकर भी कमज़ोर ही रहे । उन्होने कौरवों के सेनापति के रूप में दस दिनों तक महाभारत युद्द किया ।भीष्म मन से पाडवों और तन से कौरवों के साथ थे । भीष्म सर्वसमर्थ होकर भी युग की सत्ता बदलने में असमर्थ रहे । इस विशाल व्यक्तित्व वाले योद्दा की मौत एक नपुसंक के हाथों से हुई..शायद इसलिए कि उन्होने अन्याय का साथ दिया.. इसलिए उनकी मौत इतनी तकलीफ दय रही...

आज भी इंतज़ार है....

आज भी इंतज़ार है.... किनारों पर बैठ के लहरों का इंतज़ार है रूठे हुए दोस्त के मुस्कुराने का इंतज़ार है पंछियों ने भरी अपनी आखिरी उड़ान है हमको भी अपने घौसले का इंतज़ार है।। देखो कही उनके सितम कम न हो जाए हौसले हमारे कहीं पस्त न पड़ जाए हर के बात पर हर बात का ख्याल है सपनो की नगरी में सौदागर का इंतज़ार है।। अब तो हुई देर, अब तो आजाओ देखो ये कौन सा है देश अब तो आजाओ यहां पर एक अजब सी ही बात है हर एक को किसी का इंतज़ार है ।। लो ये लौ भी बुझा दी ज़िन्दगी में अपनी अंधेरों को जगह दी आखें जो झपके कसम तुम्हारी है किसी बात का शिकवा करूं कसम तुम्हारी है ये आखिरी पन्ना है कहानी आखिरी है शान की ज़िन्दगी का ये ही हाल है सच कहूं तुम्हारा आज भी इंतज़ार है ।। शान...

सानिया मिर्ज़ा ने सब कुछ पा कर भी क्या किया....

सानिया मिर्ज़ा ने सब कुछ पा कर भी क्या किया.... आज न जाने समाज में अकसर कही जाने वाली बात ज़हन में आ रही है कि लड़किया तो पराई होती हैं ।उनको तो चला ही जाना है पर बदलते समाज के साथ लोगों की सोच भी बदली इस मुद्दे पर बहस हुई..और सबने कहा नहीं लड़कियां पराई नहीं होती ।पर जब से ये खबर आई कि सानिया और शौऐब मलिक की शादी हो रही तब से फिर यही बात ज़हन में कौंध रही है ... सानिया हमारे मुल्क की है इस लिए पहले बात उनकी और उनके इस फैसले की क्या सानिया का ये फैसला सही है? क्या सानिया की शादी सफल रहेगी? अब तक के उदाहरण को देखते हुए समाजिक और इंसान के हावभाव को समझने वाले मानते है कि ये शादी सफल नही हो पाएगी ..एक दो या ज्यादा से ज्यादा तीन साल में ये रिश्ता टूट जाएगा और रिश्ता तोड़ने में सानिया को ज़रा सा भी कोई एहसास नही होगा क्योंकि उनके लिए हर रिश्तों को निभाने से ऊपर वो खुद हैं..मतलब वो हर चीज़ में अपने को ज्यादा तरीज़ह देती है बनिस्बत दूसरों कि भावनाओ को.. आप को अगर याद हो पाकिस्तानी औपनर मोहसिन खान रीना रॉय की शादी ..बड़ी धूम धाम से हुई थी पर नतीजा आप लोगो के सामने ,इमरान खान की शादी को देख लि

एक कहानी हू मैं

एक कहानी हू मैं ये कविता मेरे प्रिय मित्र ज्योति त्रिपाठी जी ने भेजी है जिन्हे हम बाबा कहते है॥ अगर पंसद आए तो बाबा के नाम से संदेश भेजें.... अगर रख सको तो एक निशानी हूँ मैं, खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूँ मैं , रोक पाए न जिसको ये सारी दुनिया, वोह एक बूँद आँख का पानी हूँ मैं..... सबको प्यार देने की आदत है हमें, अपनी अलग पहचान बनाने की आदत है हमे, कितना भी गहरा जख्म दे कोई, उतना ही ज्यादा मुस्कराने की आदत है हमें... इस अजनबी दुनिया में अकेला ख्वाब हूँ मैं, सवालो से खफा छोटा सा जवाब हूँ मैं, जो समझ न सके मुझे, उनके लिए "कौन" जो समझ गए उनके लिए खुली किताब हूँ मैं, आँख से देखोगे तो खुश पाओगे, दिल से पूछोगे तो दर्द का सैलाब हूँ मैं,,,,, "अगर रख सको तो निशानी, खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूँ मैं".... ज्योति

महिला आरक्षण बिल से लेखक समूह परेशान

महिला आरक्षण बिल से लेखक समूह परेशान महिला आरक्षण बिल क्या आया और क्या राज्यसभा में पास हुआ कि हिन्दुस्तान में सब की पेशानी पर पसीना आने लगा ..जगह जगह और अलग अलग वर्ग से प्रतिक्रिया आनी शुरू हो गई.. धोती वाले बोले दाढ़ी वाले बोले जवान बोले और अपने को जवान कहलवाने वाले बोले ,,सब ने राग अलापा किसी ने पक्ष में तो किसी विपक्ष में .. कुछ हितों की बात करने लगे और कुछ अहितों .किसको क्या मिलेगा और किससे क्या छिनेगा इस पर देश में बहस गर्म है ... अब बात करते हैं कि भला लेखकों राईटरों को इससे क्यों हो रही है परेशानी ॥कल शाम कॉफी हाऊस में बैठा था तभी मेरा एक दोस्त आया जो टीवी और फिल्मों में कहानी और संवाद लिखता है ..ब़ड़ा परेशान दिखा मैंने कहा क्या हुआ भाई क्यों इतना दुखी हो वो बोला यार ये महिला बिल पास नहीं होना चाहिए ... मैनें कहा क्यों भला तुम क्या परेशानी तुम्हे क्या चुनाव लड़ना है वो बोला भाई चुनाव नहीं हमें तो लिखना है लिखने से रोटी चलती है हमारी .. मैने पुछा लिखने का और बिल का क्या संबध॥ उसे गुस्सा आ गया कहने लगा यार टीवी और फिल्मे करैक्टर से आगे चलती है यानी पात्रों से और फिल्म में एक पात

प्रेम पत्र -5

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प्रेम पत्र -5 प्रिय आज फिर तुम को पत्र लिख रहा हूं.. जब भी मन भाव से भर जाता है । शब्द गायब होने लगते हैं ।हलक़ से वाणी नहीं निकल पाती कोई आसपास नहीं होता ।हृदय कि गति तेज़ होने लगती ..आंखों में पानी बहने लगता ..नज़रें कभी इधर कभी उधर घुमने लगती किसी का सामना करने की हिम्मत नही जुटा पाता तब फिर तुम्हारी याद आने लगती है। तुम्हारे दूर जाने का एहसास होने लगता ..मन चिढ़ चिढा हो जाता बार बार झुंझूलाहट होने लगती है। तब किसी अँधेरे कमरे में बैठ कर बड़ा सुकून मिलता ..और उस पल सच कहू तुम्हारे सिवा कोई और नहीं दिखता .. और मन तुम्हे ढ़ूढने के लिए निकल पड़ता ...पर तुम न मिलती, तो ये मन वापस आकर अपना हाल बयान करता ... और उस हाल को शब्द देकर मैं एक पत्र का रूप दे देता । मेरी हालत तुम जानो तुम ही मुझको पहचानो हर डगर हर पथ तुम को चाहूं मै नैनों में सांसों मे मेरे रक्त और रिक्त स्थानों में तुम्हारी ही तलाश है तुम्हे पाने की आस है।। शायद तुम नही हो तभी ये एहसास है अगर तुम होती ..... क्या तब कोई दूसरी बात होती या तब भी मैं अंधेरे कमरो में अपने आप को खोजता रहता है । आज तो तुम्हार बहाना है ..जिससे दुनिया

मुसलमान औरते सिर्फ बच्चे पैदा करे ..कहने वाले धर्म गुरू को जानिए..

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मुसलमान औरते सिर्फ बच्चे पैदा करे ..कहने वाले धर्म गुरू को जानिए.. ये बात कही मौलाना कल्बे जव्वाद ने.. कल्बे जव्वाद लखनऊ में रहते है ।महिला आरक्षण के बाद से उनके औरतों के विरोध में बयान आना शुरू हुए। पहले एक टीवी चैनल पर उन्होने कहा औरतों को चुनाव के दौरान लोगों से मिलना होगा भीड़ में जाना होगा जिसकी इस्लाम इजाज़त नहीं देता इसलिए राजनीति में आना इस्लाम के खिलाफ है । इस पर यूपी सरकार और मुलायम सिंह ने उनकी पीट थपथपाई तो उनमें और हिम्मत आ गई और कहे डाला औरतों का काम सिर्फ बच्चे पैदा करना है वो वही करें ..राजनीति में आ कर क्या करें गी। मौलाना सहाब अभी तो मुस्लमान औरतों को आरक्षण मिले गा या नहीं इस पर ही बहस हो रही है उस पर आप इस्लाम की दुहाई देकर उन लोगों का हाथ मज़बूत कर रहे हैं जो चाहते ही नहीं कि आपकी कौम आगे बढ़े.. और हमे लगता है आप भी नहीं चाहते कि कौम आगे बढ़े..तभी तो आपकी दुकान भी चलती रहे गी ..विदेशों से गरीब कम पढ़े लिखे लोगों के लिए पैसा आता रहे गा और आपकी तोंद मोटी होती रहे गी ।जिस प्रदेश में आप रहते हैं वहां तो वैसे ही इस बिल का पास होना मुश्किल है और लगता है आपको भी मोटी रकम

तुम कब जाओगे अतिथि –अजयदेवगन या शरदजोशी

तुम कब जाओगे अतिथि –अजयदेवगन या शरदजोशी शरद जोशी की कहानी पर फिल्म बनी आईये आपको कहानी पढ़ाते हैं।तुम कब जाओगे अतिथि –अजयदेवगन या शरदजोशी शरद जोशी की मशहूर कहानी .... आज तुम्हारे आगमन के चुतर्थ दिवस पर यह प्रशन बार बार मन में घुमड़ रहा है –तुम कब जाओगे.अतिथि... तुम जहां बैठे निस्संकोच सिगरेट का धुआं फेंक रहे हो ,उसके ठीक सामने एक कलैंडर है देख रहे हो न तुम..इसकी तारीखें अपनी सीमा में नम्रता से फड़फड़ाती रहती हैं विगत दो दिन से मैं तुम्हे दिखाकर तारीखें बदल रहा हूं तुम जानते हो ,अगर तुम्हे हिसाब लगाना आता है कि यह चौथा दिन है ,तुम्हारे सतत अतिथ्य का चौथा भारी दिन पर तुम्हारे जाने की कोई संभावना प्रतीत नहीं होती लाखों मील लंबी यात्रा करने के बाद वो दोनो एस्ट्रॉनाट्स भी इतने समय चांद पर नहीं रूके थे,जितने समय तुम एक छोटी सी यात्रा कर मेरे घर आए हो . तुम अपने भारी चरण कमलों की छाप मेरी ज़मीन पर अंकीत कर चुके ,तुमने एक अंतरंग निजी संबधं मुझसे स्थापित कर लिया , तुमने मेरी आर्थिक सीमाओं की बैंजनी चट्टान देख ली , तुम मेरी काफी मिट्टी खोद चुके . अब तुम लौट जाओ,अतिथि तुम्हारे जाने के लिए यह उच्च

33 प्रतिक्षत में आम मुस्लमान औरतों के हिस्से क्या... कुछ नहीं..

33 प्रतिक्षत में आम मुस्लमान औरतों के हिस्से क्या... कुछ नहीं.. सहारनपुर के पास गांव कैलाशपुर की रहने वाली नसीमा रोज़ अपने शौहर नसीम से पिटती है ..कारण नसीमा को नेता बनने का शौक था ..कहीं कुछ होता खड़ी हो जाती हर बात में हर एक से उलझ पड़ती ..बड़े बड़े अफसर से लौहा लेने में पीछे नहीं रहती नसीम जब शहर से लौटता तो पुलिया पर ही कोई न कोई मिल कर कहे ही देता आज तेरी लुगाई ने ये किया भई इंदीरा बने गई वो तो,...नसीम को बात गवारा नही होती घर में कदम रखते ही बस नसींमा की कुटाई शुरू.. मारते मारते कहता अरे तुझे कोई टिकट न देगा..बस हमारी रूसवाई ही कराती रहे ..नसींमा सोचती देश बदल रहा औरते आगे आ रही हैं हमारी कौम की औरतों के लिए भी आवाज़ उठेगी कोई उनके लिए भी बोलेगा हमारे देश की सबसे बड़ी पार्टी की अध्यक्ष, सभापति नेताविपक्ष,राष्ट्रपति सब तो औरते हैं फिर मैं क्यों नही.. नसीमा की बात सही थी वो क्यों नहीं.. पर वो जिनका उसने नाम लिया उनमे से कोई आम औरत नहीं है और कोई मुस्लमान नहीं है जो वो है .. नसीमा औऱ उसकी कौम की औरतों की आखिरी उम्मीद, महिला आरक्षण बील में उनके लिए कुछ नहीं है..और ये सच है 15वीं लोकस