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Showing posts from February, 2009

उसके साथ बलत्कार हुआ था .......

उसके साथ बलत्कार हुआ था ....... वो चीखती रही रोती रही बिलकती रही पर किसी ने नहीं सुनी उसकी सिसकियां.. बात हल्द्वानी शहर की है ॥जहां प्रीति नाम की लड़की एक प्राइवेट इंस्टियूट में पढाती थी ..एक दिन जब वो देर रात तक घर नहीं पहुची तो घर में हलचल मच गई..रिश्तेदार और दोस्तों ने ढूंढना शुरू किया पर काफी देर तक वो नहीं मिली तो पुलिस में रिपोर्ट लिखवा कर वापस घर आ गये और खुदा की महर रहे इसकी दुआ मांगने लगे ..पर ऐसा कुछ हुआ नही... दूसरे दिन जब लोग खेतों में शौच के लिये गये तो एक लाश देख कर सब की चीख निकल गई ॥लाश बहुत बुरी हालत में थी .. एक लडकी नंग हालत में ..मुंह से खून ,टांगे इधर उधर ,पास में पर्स ,मोबाइल, गर्दन एक तरफ और बाकी शरीर एक तरफ... देखते ही माजरा क्या था... साफ पता चल रहा था ..बात छोटे शहर की थी ..जल्दी फैल गई ,,तमाशबीनों का जमावड़ा लग गया .कोई कुछ कहे .कोई कुछ बोले ...लोगों का कहना और देख कर ये लग रहा था की सामुहिक बलत्कार का ही मामला है पर किसने किया इस पर कोई बोलने को तैयार नहीं था ... उत्तराखण्ड का मामला था पुलिस को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका चाहिये था उसने जल्दी से कार्यवाही कर

दुनिया ने कहा हम कुत्ते हैं

हम ग़रीब हैं ,,गंदे हैं.. चोर हैं.. और कुत्ते हैं.. पर हम खुश है क्योंकि ये खिताब हम को अंग्रेज़ो ने दिया है ..भले ही आज़ादी के इतने साल बीत गये हों ..पर अंग्रेज़ो द्वारा दी गई कोई भी चीज़ हमें सर आंखों पर स्वीकार है ..भले ही गाली हो या फिर जूते पर लिपटी हुई कोई ट्रॉफी .. हमे रहमान और गुलज़ार की प्रतिभाओं पर कोई शक नहीं उनकी योग्यता किसी भी ऑस्कर की महौताज नहीं..उनका जो हुनर है वो इस कायनात के हर उस ज़र्रे में बसा हुआ है जो हमारा अपना है हमारा सम्मान है... हमें स्लमडॉग के निर्देशक ,राईटर से कोई दुशमनी नहीं वो लोग क्रेटीव हैं उन्होने हर चीज़ को बखौबी दिखाया... और उनकी दिखाई हुई हर एक चीज़ पर हमने वाह वाह किया यानि वो सच है जो वो दिखा रहे हैं... हमारे नेताओं ने बधाई दी पर किसी के मुहं से ये न निकला की बस बहुत हुआ अब आपको ऐसी कोई चीज नही दिखेगी जो गंदी हो अब आप हमें डॉग नही कहे पायेगें.. लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ होता भी कैसा उन्होने ही तो हमें कुत्ता बना कर छोड़ दिया है .. आज रूबीना और अज़र को सरकारी माकान दिया जा रहा है । कोई इनसे पूछे क्यों किस लिये ऐसा क्या किया उन्होने ..इनाम देना है त

क्या चीज़ महुब्बत है...

क्या चीज़ महुब्बत है... वक्त के साथ मुहब्बत बदलती जा रही है ...इश्क नये रास्ते इख्तियार करता जा रहा है । जहां पहले मुहब्बत में जान दे दी जाती थी आज प्रेमी और प्रेमिका एक दूसरे की जान ले लेते हैं ... पहले जो इज़हार नज़रों और कलामों से हुआ करता था आज सीडी और डीवीडी से होता है..पहले तस्वीर निशानी होती थी आज तस्वीर बदनामी हो गई है ... गुरू और शिक्षक में अदब था आज वासना है ..नियत खराब है ...पहले पढ़ने वाल अपने उस्ताद को देख कर खड़ा हो जाता था ...आज उस्ताद खड़ा है .... आज प्रेम बाज़ार है ..पहले बाज़ार में प्रेम करने की कोई सोच नही सकता था आज बाज़ार के लिये ही प्रेम होता है ..महुब्बत बिकती है ..और मुनाफे के लिये प्यार कराया और किया जाता है ... बंद कमरों कि बातें कोई सुन न ले ..ऐसा ख्याअल सब रखते थे आज बंद कमरे में क्या हुआ इसे सब को दिखाया जाता है.... वो भी दावा करते थे अपनी मुहब्बत का ये भी दावा करते हैं अपने इश्क का .... बस हम तो ये ही कहेगें... दिल ग़म का निशाना है दुनिया की इनायत है । तकदीर से क्या शिकवा क्या उनसे शिकायत है ।. महफिल में कहां बैठे.देखें तो किधर देखे। इस सिम्त कयामत है ,उस

ब्लॉगर,संपादक,अविनाश का बयान....

ब्लॉगर,संपादक,अविनाश का बयान.... क्‍या सचमुच एक झूठ से सब कुछ ख़त्‍म हो जाता है?मुझ पर जो अशोभनीय लांछन लगे हैं, ये उनका जवाब नहीं है। इसलिए नहीं है, क्‍योंकि कोई जवाब चाह ही नहीं रहा है। दुख की कुछ क़तरने हैं, जिन्‍हें मैं अपने कुछ दोस्‍तों की सलाह पर आपके सामने रख रहा हूं - बस।मैं दुखी हूं। दुख का रिश्‍ता उन फफोलों से है, जो आपके मन में चाहे-अनचाहे उग आते हैं। इस वक्‍त सिर्फ मैं ये कह सकता हूं कि मैं निर्दोष हूं या सिर्फ वो लड़की, जिसने मुझ पर इतने संगीन आरोप लगाये। कठघरे में मैं हूं, इसलिए मेरे लिए ये कहना ज्‍यादा आसान होगा कि आरोप लगाने वाली लड़की के बारे में जितनी तफसील हमारे सामने है - वह उसे मोहरा साबित करते हैं और पारंपरिक शब्‍दावली में चरित्रहीन भी। लेकिन मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं और अभी भी पीड़‍िता की मन:स्थिति को समझने की कोशिश कर रहा हूं।मैं दोषी हूं, तो मुझे सलाखों के पीछे होना चाहिए। पीट पीट कर मुझसे सच उगलवाया जाना चाहिए। या लड़की के आरोपों से मिलान करते हुए मुझसे क्रॉस क्‍वेश्‍चन किये जाने चाहिए। या फिर मेरी दलील के आधार पर उसके आरोपों की सच्‍चाई परखनी चाहिए। लेकिन अब किस

अविनाश विनाश की राह पर...

अविनाश विनाश की राह पर... आज जब ये खबर मिली की अविनाश दाश ने एक लड़की के साथ बल्तकार किया है तो एक दम से झटका लगा ....फिर जा कर नेट पर देखा तो बात छेड़खानी की लिखी थी ...फिर किसी और का ब्लॉग पढा तो उसमें लिखा था कि उन्होने उसको पहले... दफ्तर बुलाया फिर उसे घर छोड़ने का ऑफर दिया ..फिर उससे चाय पीने को कहा ..फिर उसके कमरे मे घुसे ..फिर रेप की कोशिश की ...जब उसने विरोध किया तो उसे छोड़ कर चले गये बाद में एस एम एस का दौर शुरू हुआ... कहने का मतलब ये है किसी के पास पूरी जानकारी नहीं है ..पर मुंह से बात निकल रही है और फैलती जा रही..हमें कुछ लिखने से पहले ,कुछ बोलने से पहले सच की पड़ताल कर लेनी चाहिये... जहां तक मुझे पता है अविनाश एक बहुत ही गरीब परिवार से आते हैं..उनके पिता दिन रात शराब मे डूबे रहते हैं..उन्होने काफी संघर्ष किया और आगे बढ़े.. लिखते बढ़िया हैं इसमें कोई दो राय नहीं. जब उन्हे टीवी चैनल में नौकरी मिली तो उन्होने अपने दोस्तों से कहा यार बहुत पैसा मिल रहा है .. जबकि उस वक्त उनकी सैलरी दफ्तर में दूसरे लोगों को मिलने वाली पगार से काफी कम थी ... उन्होने डेस्क में क्राइम में काफी का

Pub culture…

Pub culture… काफी दोस्तों ने मुझसे pub culture क्या होता है पब में क्या होता है लिखने को कहा..मैं किसी को कोई दिशा नहीं देना चाहता । पर जो वहां होता है वो में साफ साफ लिख रहा हूं..सही ग़लत बताने वाला मैं कोई नहीं ..और pub culture का न मैं विरोध कर रहा हू और न समर्थन ..हमारी अपनी ज़िन्दगी है हम जिस राह चाहे चल सकते है .. काम काज के लिये मैने कई साल मुंबई में बिताये है , इसी दौरान शाराब ,पब डांसिंग बार ..कार्ल गर्ल ,नशा और दौलत कमाने के रात के तरीकों को बहुत करीब से देखा और समझने कि कोशिश की है ..और उसी में से एक pub culture के बारे में और पब में आने वालों की ज़िन्दगी के बारे में लिखने जा रहा हूं... . उस दौरान टीवी में थ्रीलर का काफी चलन शुरू हुआ था । और क्राईम लिखने के लिए प्लॉट की तलाश करते हुए रात को होने वाली गतिविधियों को देखने चल देते थे ।... मुबंई एयरपोर्ट के पास एक डिस्को थीक ये एक ऐसी जगह थी जहां स्टैग एंटरी हो सकती है यानी अकेला आदमी भी जा सकता है ।वैसे ऐसे पबों में अकेले आना वर्जित होता है ..यानि अगर आपको आना है तो आपके साथ दूसरे लिंग का व्यक्ति होना ज़रूरी होता है ..लड़के के

HOSPITAL

दिल्ली का अपोलो अस्पताल और अस्पताल का आईसीयू वार्ड.. बेड पर एक बाप और शीशे से झाकते उसके दो लड़के रवि औऱ शशि... अब तक दो लाख का बिल बन चुका है बिमारी है कि खत्म होने का नाम नहीं ले रही ..और रकम दिन ब दिन खत्म होती जा रही है.... जिन्दगी अभी सही चल रही थी पर आचानक नरेंद्रपाल की तबीयत खराब हुई । पहले पडोस के डॉक्टर को दिखाया ,बात नहीं बनी तो नज़दीक के नर्सींग होम ले गए..तबीयत और बिगड़ गई...तो एक बड़े अस्पताल लेकर पहुचें .. जब सहेत नहीं संभली तो सब ने कहा अपोलो चलो... अब तक टेस्ट मे पता चल चुका था की दोनो कि़डनी 90 प्रतिशत तक खराब हो चुकी है दिल की दो नसें पूरी तरह से बंद हो चुकी हैं.. मंहगें टेस्ट ,मंहगी दवाई, और पांचतारा अस्पताल , दो लाख का कंपनी मेडिकल इंशोरेंस देती है जो पहले ही खत्म हो चुका , घर की जमा पूंजी भी लग गई ..। पहले रिशतेदारों से मांगा जिनकी जो हैसीयत थी दिया..किसी ने अपना समझ कर ,किसी ने मजबूर समझ कर ,किसी ने मुहं बनाकर ,किसी ने एहसान जता कर.. बाप हैं बचाना है सब को और सब कुछ सहना है .. रिशतेंदारों के बाद दोस्तों से मांगने का सिलसिला शुरू हुआ.. बहुतों ने मदद की पर ज्यादात

Just for you

आप के लिये..... कितनी खामोश निगाहों ने बुलाआ मुझको । कितनी मगरूर अदाओ ने लुभाया मुझको ।। कितने दिल थे जो मेरे वास्ते बेताब रहे । कितनी आंखों ने मेरे प्यार के सपने देखे ।। नाज़नीनों ने मेरे प्यार में ,मरना सीखा। कितनी ज़ुल्फों ने मेरे ,ग़म में बिखरना सीखा ।। हर तरफ मेरे लिये हुस्न के नज़ारे थे । मेरे हमराह कभी चांद, कभी तारे थे ।। फिर भी ठुकरा दी तेरे वास्ते दुनिया मैने । किसी जलवे की तरफ मुड़ के न देखा मैंने ।। मैं तो बस तेरी निगाहों का तमन्नाई था। तेरी जुल्फों की घनी छांव का शैदाई था ।। मेरी आंखों में तेरे हुस्न की रा नाई थी । मेरे दिल में तेरी तस्वीर उतर आई थी ।। मेरे होंठों पे मचलते थे तराने तेरे । मेरी आंखों से छलकते थे फ़साने तेरे ।। मैं हमेशा तेरी जुल्फों का गिरफ्तार रहा । लबो-रूखसार की जन्नत का परस्तार रहा ।। मैंने शादाब किए तेरी मुहब्बत का चलन छोड़ दिया। मेरी उम्मीद का हर ताजमहल तोड़ दिया ।। छीन के चैन मेरा ,तोड़ के पैमाने ए दिल । करके बरबाद मेरे प्यार की रंगी महफिल ।। अब किसी औऱ की महफिल को सजाने के लिए । तूने जुल्फों को संवारा है ज़माने के लिये ।। मेरी आंखों में तेरे ग़म की न

शराब मौत की घंटी

शराब मौत की घंटी पिछले दो हफ्तों से हर शुक्रवार को फोन की घंटी बजती है तो किसी के मौत की ही खबर सुनने को मिलती है .. जिनकी लोगों की मौत की ख़बर मिली वो मेरे कुछ खास नहीं थे पर उनकी ज़िन्दगी को मैने बहुत करीब से देखा हर पल उनका संघर्ष हर वक्त जिन्दगी को जीने की आस ..कुछ करने का ज़ोर फिर निराशा हाथ... महेश कालरा से मेरी मुलाकात एक प्रोडक्शन हाउस में हुई.. उस वक्त उनकी सेलरी हम सब से ज्यादा थी .. फ्रेंच कट, सिर एकदम साफ पठानी सूट और मुहं से हर वक्त अंग्रेज़ी के शब्द ...देखते ही हर आदमी प्रभावित..पर ये प्रभाव ज्यादा दिन तक नही रहे पाता ..दूसरे दिन हर आदमी उनका मज़ाक उड़ाता हुआ दिखता ... मैं दूसरा प्रोग्राम देखता था इसलिये उनसे ज्याद वास्ता नहीं पड़ता पर जो कैमरामैन उनके साथ जाता वो ये ही बताता यार कालराजी ऐसा शॉट्स बताते है कि बस .एक ही शॉट्स में ऊपर नीचे राईट लेफ्ट पैन ज़ूम सब कुछ.. मै भी मुस्कुरा देता .. एक दिन हमारे बॉस ने बुलाया और कहा कुछ फैशन की ऐवी हैं आप और महेश साथ करेगें.मुझे बहुत चीढ़ सी हुई जिस आदमी की इतनी बुराई सुनी हो उसके साथ काम करना मुझे ठीक नहीं लग रहा था ..सुना था