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Showing posts from December, 2009

इस बार

इस बार जो बुरा हुआ उसे भूल जा जो है उस के साथ चल जिसने दर्द दिया उसे दवा दे जिसने ज़ख्म दिया उसे मरहम दे जिसने आंसू दिए उसे सब्र दे जिसने बाण छोड़ा उसे बांह दे जो बुरा हुआ उसे भूल जा जो है उस के साथ चल।। इस बार बदले गी सूरत इस बार बदले गी मुर्त इस बार बदले गी तस्वीर इस बार बदले गी तकदीर जो बुरा हुआ उसे भूल जा जो है उस के साथ चल ।। शान....

मैं अपनी भतीजी से क्या कहूं।..एक दुखियारी

लड़कियों के लिए क्या बदला जन्म दिल्ली में हुआ और यहीं पर मैं पढ़ी बड़ी ..शहर के साथ मैने औऱ मेरे परिवार दोनो ने तरक्की की ..जैसा आप सब जानते है जो हाल नौकरी पेशे में होता है वो ही हमारे परिवार का था ना बहुत अच्छा कहेंगे ना बहुत बुरा । ठीक ठीक जिंदगी गुज़र बसर हुई। पर शहर में रहते और बड़े होते मैने यहां अपने साथ बहुत बदसलूकी और बदतमिजी सही। कभी किसी का विरोध किया तो वहां मौजूद लोगों ने मेरा मज़ाक ऊड़ाया। यहां तक की दोस्तों और रिश्तेदारों ने भी कहा क्यों बात को बढ़ावा देती हो क्या होगा उल्टे बदनामी होगी। मैं खून के घूंट पीकर सब्र कर लेती कि वक्त के साथ सब कुछ ठीक हो जाएगा। मेरी दिल्ली सही हो जाएगी। बसों में मर्दों जिनमें छिछोरे नौजवान हो या पढ़े लिखे या फिर मनचले बुजुर्ग जो मेरे दादा कि उम्र के हुआ करते थे अक्सर मेरे पीछे चिपक जाया करते थे। जब मैं कहती ज़रा ठीक से खडे हो तो उनका जवाब आता अगर बस मे इतनी परेशानी हैं तो टैक्सी में चलाकर उनकी बात सुनकर पूरी बस हंसती । और मैं बिना गल्ती के शर्मिंदा हो जाती। बाज़ार में कोई सामान लेने जाऊं और दुकानदार बेईमानी करें और मैं उसे टोक दूं तो वो उल्टा

ऱूख्सत

ऱूख्सत मुझ को दर्द है ज़माने से मैं यूही ग़मगीन रहता हूं तुझसे मिलना है हसरत मेरी हर शाम ये सोच कर सोता हूं।। दर्द का रिशता पुराना है अश्कों का दरिया बहाना है मैं कई बार टूटा यूही इस बार टूट के बिखर जाना..।। न संभालो मुझको न दो सहारा दूर कर दो साहिल को अब की बार मुझको डूब ही जाना है।। कई बार चढा, कई बार उतरा रंग हिना का हाथो से इस बार खून- ने- रंग को भी आज़माना है ।। मुझसे नफरत करो तो कर ले ऐ दोस्त मुझसे गिरया करे तो न कर ऐ दोस्त मुझसे रश्क करे तो कर ले ऐ दोस्त.. मुझसे गमोरंज करे तो न कर ऐ दोस्त.. बहुत हुई नमाज़े शुक्रआना.. शुक्र अल्लाह का कर के जाता हूं.. फिर न आऊंगा इस दुनिया में ऐ शान” पढ़ दो ऐ दोस्त मेरा नमाज़े जनाज़ा ।। शान,,

शान का प्रेम पत्र -3

शान का प्रेम पत्र -3 प्रिय काफी दिनों के बाद तुम को पत्र लिख रहा हूं । इस उम्मीद के साथ जहां हमारी बात और मुलाकात खत्म हुई थी..। वहा पर तुम आज भी रोज़ जाती होगी ..याद आता होगा तुम्हे हर गुज़रा हुआ वक्त ..मेरा भी वो ही हाल है ... उन जगहों और उन लम्हों को मैने समेट कर रखा हुआ है ..जब भी अकेला होता कुछ परेशान होता तो वो गुज़रे हुए पल को अपनी यादों से निकाल कर थोड़ा मुस्कुरा लेता ...अच्छा लगता, शायद ज़िन्दगी में वो जो पल बीत चुकें हैं..उन से अच्छा वक्त न जाने मैं कब देंखू... कल कुछ अजीब हुआ..दिन रात मेरी आंखों से आसू बहते गए..ज़ोर ज़ोर और ज़ार ज़ार रोने का दिल करने लगा..चाहा रहा था बहुत से ज़ोर से रोऊं, चिल्लाऊं ,चीखूं..पर आवाज़ न जाने कहां दब गई औऱ दबी हुई आवाज़ दबी हुई भावनाओं ने अश्कों का दरिया बना दिया... ज़हन कुछ काम नही कर रहा था ..बस मैं रोता जा रहा था ..क्यों.. मालुम नही शायद मैने जीवन में सिर्फ सिर्फ खोया है ..औऱ लगातार खोता ही जा रहा हूं... बहुत कुछ पाने की चाहत है .पर जब दर्पण देखता हूं..तो अपने को अकेला पाता हूं.. सब अपनी अपनी ज़िन्दगी और दिनचर्या मे व्यस्त हो जाते हैं... सब के

85 साल के तिवारी .... सेक्स के शहंशाह ( कुछ पुरानी बात)

85 साल के तिवारी .... सेक्स के शहंशाह ( कुछ पुरानी बात) 85 साल के एन डी तिवारी तीन जवान लड़कियों के साथ एक स्टिंग आपरेशन में पकडे गए.. कहा जा रहा है तीनो लड़किया देहरादून से आंध्र प्रदेश के राजभवन लायी गयी थी .. जो औरत उन्हे लायी थी उस को तिवारीजी से कुछ काम था ..काम के बदले तिवारी जी को शबाब चाहिये था । रात में सेक्स और दिन में मसाज तिवारीजी का शगल है और ये शगल आज का नहीं बहुत पुराना है.. और केवल तिवारी ही नहीं बाकि भी कई सफेद पोश है जिनका कमरे में अपना असली रूप में दिखता है....पर बात पहले 85 साल के सेक्स के शंहशाह एन डी तिवारी की... बात 2002 की है उस दौरान रिपोर्टिंग के चलते उंत्तराचल का काफी दौरा रहता था स्थानीय पत्रकारों औऱ साथी पत्रकारों से तिवारीजी की रंगीन मिज़ाजी के किस्से सुनने को मिलते रहते थे ... बाद में चुनाव हुए तिवारी जी उत्तरॉचल के मुख्यमंत्री बने ..तब तो मुख्यमंत्री निवास पर शाम और रगीन रातों की खबर आती ही रहती है.. उन के मंत्रीमंडल का संचालन जो मंत्री जी करती थी .. उनके साथ उनके संबध को शायद ही कोई ऐसा पहाडी हो जो जानता न हो ..उन महिला मंत्री का नाम फिर कभी .. कहते ह

71साल (भाग-८)8

71साल (भाग-8) घर में खामोशी का माहौल था ...रामनरेश दिल पर हाथ रखे बैठे थे... पास में दोनो लड़कियां मां..बेटा थे। बड़ी लड़की दूसरे कमरे की चौखट पर खड़ी थी .उस जगह जहां से उस कमरे की सारी आवाज़े आसानी से सुनी जा सके जहा परिवारवाले बैठे थे। कुछ देर तक घर मे सांसे, जलती बुझती टूयब लाइट और पंखे की आवाज़ के सिवा कुछ नहीं सुनाई दे रहा था... किसी की हिम्मत नही हो रही थी की रामनरेश से कुछ पुछें...धीरे से रामनरेश की पत्नी बोली अरे बताऊ क्या कहा भाई ने ... कुछ देर तक रामनरेश चुप रहे फिर बोले लड़के वालों ने मना कर दिया .... सब के मुंह से एक साथ निकला मना कर दिया ....पर क्यों.... रामनरेश से सारी बात बताई.... शादी हमारे समाज मे कितनी अहमियत रखती है ..हर एक संबध जोडने के लिए हम कितने उतावले होते हैं ..हर खुशी हमारी उसी के आसपास रहती है ..हर पल हम उसी सपने के साथ जीते है... औऱ लडकी का ब्याह मानो एक पहाड अपने सिर में लादे हुए हो ... फिर रिश्ता टूट जाना तो किसी अपऱाध से कम नही.. वो सज़ा जिसमें आंसू और मातम से ही पुरसा दिया जा सके.. न आसू और न ही मातम रामनरेश के घर वालों के लिए नये नहीं थे ..क्यों कुछ

71 साल (भाग-7)

71 साल (भाग-7) रामनेऱश अपने भाई के पास जा कर बैठ गए... भाई लेटा रहा वो उनके सिरहाने बैठे रहे..दोनो में काफी देर तक कोई बात नहीं हुई... फिर कुछ देर बाद भाई की पत्नी नीता रामनरेश के लिए चाय ले आई... चाय रखते हुए बोली भाभी-भई वो मना कर गए.... रामनरेश-मना कर गए.. भाभी-हां उन्हे पसंद नही आया न तुम्हारा घर न तुम्हारे बच्चे और न ही लड़की ... रामनरेश ने भाई से पुछा ..भाई क्या कहे रहीं है भाभी...भाई ने अब जा कर मुंह खोला ..ठीक कहे रही हैं... रामनरेश – आपको मुझे बताना चाहिए था.. भाई – क्या करता तू ..और मैं.. रामनरेश – पर फिर भी.. भाई- ठीक है और देखेगे.. रामनरेश – पर क्या कहा भाई-बता तो दिया तेरी भाभी ने...उन्हे पसंद न आई..लड़की..देख रामनरेश ये रिश्ते तो सब भगवान की मर्जी से होते हैं... रामनरेश को चक्कर आने लगा..आंखे बंद होने लगी ज़िन्दगी फिर वही चली गई जहां से शुरू हुई थी...चाय वही रखी रही ...रामनरेश उठे..बोलते हुए....मैं घर में क्या कहूंगा...भाई और भाभी ..दोनो ने रामनरेश की तरफ देखा ... रामनरेश ने अपने घर की राह ली... रामनरेश से साइकिल नही चल पा रही थी... क्या क्या ज़हन में विचार आ रहे थे ...क

काश.....

दिल में ग़म आंखे नम किससे बयां करूं अपना हाल कौन सुने मेरी कौन है मेरा अपनो को मैने छोड़ा औरों ने मुझको को छोड़ा कैसे चलूं मैं इस पथ जिसमे बसी है तेरी याद वो याद जो रहती हर पल मेरे साथ काश तो होती मेरी और मै होता तेरा... काश..काश ...काश...

लुटरों ,चोरों औऱ हत्यारों की दिल्ली.....thanks to bihar

लुटरों ,चोरों औऱ हत्यारों की दिल्ली.....thanks to bihar कहते हैं दिल्ली कई बार लुटी औऱ बसी ..ये बात पहले भी सही थी आज भी सही है .आज भी दिल्ली रोज़ लुट रही है ..रोज़ यहां डाका डाला जा रहा है रोज़ यहां हत्याए और वारदाते हो रही हैं... क्या मैं क्या वो सब एक खौफ के साये में जी रहे हैं...आए दिन यहां अवैध कब्ज़े हो रहे हैं... मुबंई की तरह दिल्ली में भी बिहारियों का बोल बाला होता जा रहा है..नतीजा बिहार में अपराधिरक आकडे कम हो रहे हैं ... और दिल्ली के आकडे बढ़ते जा रहे हैं... कुछ महीने पहले मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने साफ साफ बिहारियों का नाम भी लिया था पर राजनीति के चलते माफी मागनी पड़ी ... जितनी तेज़ी से आबादी बढ़ रही है उतनी हमारे पास फोर्स नही है जिसके कारण इन पर लगाम लगाना मुश्किल होता जा रहा है,,,, आइये पिछले कुछ दिनो में दिल्ली मे हुई वारदातों के बारे में आपको बताए...घर सड़क,बाज़ार,ट्रेन कहीं भी दिल्ली वाला सुरक्षित नहीं है ..कोई है जो उन्हे देख रहा है उनके समान पर नज़र रखे हुए है... 16 दिसंबर 2009 दिल्ली का आशोक विहार इलाका.. जौहरी पूरणचंद बंसल के डेढ़ करोड रूपये का बैग लेकर बदमाश फरा

दंगों के लिए तैयार रहिए....मुस्लमानों को आरक्षण मिलने वाला है....(RANGNATH COMMISSION)

दंगों के लिए तैयार रहिए....मुस्लमानों को आरक्षण मिलने वाला है....(रंगनाथ मिश्रा आयोग) 2006 में रंगनाथ मिश्रा ने अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंप दी थी.... जिसमें अल्पंसंख्यक समुदायो की भागेदारी पढ़ाई लिखाई और रोज़गार में बढाने के लिए सिफारिश की गई है.... अब क्या क्या सिफारिशे है इसको भी पढ़ ले.... ओवीसी कोटे में अल्पसंख्यक पिछड़े भी शामिल किए जाए... मौजूदा 27 फीसदी कोटे में 6 फीसदी मुस्लिम पिछड़े हो... 2.4 फीसदी कोटा दूसरे अल्पसंखयक पिछड़ो को दिया जाए.... रंगनाथ मिश्रा कहते हैं ... हर धर्म और नस्ल के पिछड़े लोगों को आरक्षण मिलना चाहिए जिन पैमानो पर हिन्दुओ पिछड़ों को आरक्षण मिलता है उसी तरह मुस्लमानों और इसाईयो के पिछड़ो को आरक्षण मिलना चाहिए.. गैरमुस्लिम और इसाई शैक्षणिक संस्थानों मे अल्पसंख्यक पिछड़ो का 15 फीसदी कोटा (आरक्षण ) होना चाहिए...जिसमे 10 फीसदी मुस्लिम और 5 फीसदी दूसरे अल्पसंख्यक हों... सरकार इसे संसद में रखने की हिम्मत नही जुटा पा रही है क्योंकि जो हाल वीपी सिंह का हुआ वो इस सरकार का न हो जाए... और फिर से मंडल कमंडल की राजनीति का दौर शुरू हो जाएगा..क्योंकि मंड

71 साल (भाग-6)

71 साल (भाग-6) बाहर राम नरेश के भाई मेहमनों के साथ खड़े थे ..रामनरेश ने सब को अंदर बुलाया औरतों को औरतों के साथ भेज दिया आदमियों को मुख्य कमरे में ले गए... आने वालों में लड़का था ,लड़के का भाई , और लड़के का मामा... औरतों में लड़के की भाभी और मामी थी । कुछ इधर ऊधर की बाते हुई..पुछा मम्मी पापा नहीं आए .रामनरेश के भाई बोले भई बस मामा जी हैं जो सब फाइनल करेगें.. इन्ही पर सब छोडा है..एक हंसी ने माहौल को थोड़ा अच्छा किया .. फिर बातों का दौर शुरू हो गया... लड़का काम काज ठीक ठाक करता है ..किसी एम्बेसी में सही जगह पर नियुक्त है... देखने में उसका भाई भी सही था ... वो भी किसी आफिस मे काम करता है..दो भाई है ..एक बहन जो दोनो भाईय़ों से छोटी है ..पिता खेती बाढ़ी से जुडे हुए है...कहने का अर्थ है ..एक अच्छा नही तो खराब भी नहीं, ऐसा परिवार .पर रामनरेश और उसके परिवार के लिए एक अच्छा रिश्ता ...और वो भी ऐसा रिश्ता जो रामनरेश के भाई की तरफ से आया हो .. जिससे उनके संबध सही नहीं चल रहे थे ... तभी धर में आया छोटा बच्चा जो अंदर औरतों के साथ था, दौड़ता दौड़ता आया और बोला चाचा चाचा चाची बहुत सुंदर है।... फिर ज़ोर

मस्जिद और दरगाहों के आसपास ही क्यों होते है फरेबी लोग...

मस्जिद और दरगाहों के आसपास ही क्यों होते है फरेबी लोग... माजिद मियां पांच वक्त के नमाज़ी हैं..और जुम्मे की नमाज़ तो उन्होने शायद ही कभी न पढी हो ..ऐसा मुम्किन नहीं....सिगेरिट पीने का शौक है और वो क्लासिक सिगेरिट पीते हैं जिसकी कीमत पांच रूपए है... एक बार उनका एक हिन्दु दोस्त अजमेर शरीफ से लौटा तो दरगाह में और आसपास के ठगों के बारे में बताने लगा ..कि कैसे ठगों ने अजमेर स्टेशन से ही उनका पीछा ले लिया ..बड़ी मुशिक्ल से बच कर वो दरगाह के अंदर पहुचा तो देखा की अंदर तो बहुत बडे बडे ठग और लूटरे मौजूद थे ..हर शख्स उन्हे चिश्ती साहब के आज़ाब का डर दिखा कर नोट ऐठने को तैयार था.. एक दरवाज़े जिसे जन्नत का दरवाज़ा कहा जाता है ..उस पर तो बहुत ही बड़ा शातिर लूटेरा हाथों में लठ और ज़मीन पर चादर बिछाए खड़ा था ..चादर पर रूपए पड़े हुए थे .. और लोगों को वो उस चादर पर ही रूपए डालने को कहे रहा था .. सरकारं ने वहा हिदायत लिख रखी है की आने वाले लोग सरकारी पेटी में ही चढावा डालें.. किसी और को न दे.. दान पेटी में डाला गया पैसा दरगाह की देख रेख में लगाया जाएगा... तो उसने 100 रूपए निकाले और दान पेटी में डालने ल

71 साल

71 साल (भाग-5) सब कुछ जल्दी जल्दी हुआ ... रामनरेश ने अपनी इज्ज़त बचाने के लिए अपनी बड़ी बेटी की शादी की तैयारी शुरू कर दी ..पर ज़िन्दगी इतनी आसान होती तो ... भगवान और अल्लहा की दुकानों पर इतनी रौनक कभी नहीं होती ,,,,,। आज रिश्तेवालों को आना हैं रामनरेश के बड़े भाई ने रिश्ता करवाया है ..रामनरेश की बीवी को जब रात मे रामनरेश ने ये बात बताई थी ..तभी से वो बहुत परेशान थी।.क्योकि जिस भाई से कभी न बनी जिसने ..रात ही रात को अपना माकान खाली करा लिया वो इतना कैसे मेहरबान की अपने भाई की बेटी के लिए कोई अच्छा रिश्ता लाए...। पर घर का माहौल ऐसा था की कोई कुछ नही बोल रहा था .. खामोश ज़बा..आंखे नम , दिल भारी .. पर हो रही थी मेहमानों के आने की तैयारी ...। पैसे जो़ड़ जोड़ कर अपने बच्चों का पेट काट काट कर रामनरेश की पत्नी ने घर की चीज़े जोडी और बनाई थी .. नई चादरें ,पर्दे.खाने के बर्तन ... और भी मेहमानो की खातीर दारी के लिए बाकी सामान....। नाशते और खाने का प्रबंध किया गया था ...बाथरूम और टायलेट को भी अच्छी तरह से साफ कर दिया गया, नया तौलिया, नया साबुन... शीशे से लेकर फर्श और खिड़की दरवाज़े सब चमक रहे थ