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Showing posts from June, 2011

किसी ने कहा-6

भीतरी दुनियाँ में गुप्‍त-चित्र या चित्रगुप्‍त पुलिस और अदालत दोनों महकमों का काम स्‍वयं ही करता है। यदि पुलिस झूठा सबूत दे दे तो अदालत का फैसला भी अनुचित हो सकता है, परंतु भीतरी दुनियाँ में ऐसी गड़बड़ी की संभावना नहीं। अंत:करण सब कुछ जानता है कि यह कर्म किस विचार से, किस इच्‍छा से, किस परिस्थिति में, क्‍यों कर किया गया था। वहाँ बाहरी मन को सफाई या बयान देने की जरूरत नहीं पड़ती क्‍योंकि गुप्‍त मन उस बात के संबंध में स्‍वयं ही पूरी-पूरी जानकारी रखता है। हम जिस इच्‍छा से, जिस भावना से जो काम करते हैं, उस इच्‍छा या भावना से ही पाप-पुण्‍य का नाप होता है। भौतिक वस्‍तुओं की नाप-तोल बाहरी दुनियाँ में होती है। एक गरीब आदमी दो पैसा दान करता है और एक धनी आदमी दस हजार रूपया दान करता है, बाहरी दुनियाँ तो पुण्‍य की तौल रुपए-पैसों की गिनती के अनुसार करेगी। दो पैसा दान करने वाले की ओर कोई आँख उठाकर भी नहीं देखेगा, पर दस हजार रूपया देने वाले की प्रशंसा चारों ओर फैल जाएगी। भीतरी दुनियाँ में यह नाप-तोल नहीं चलती। अनाज के दाने अँगोछे में बाँधकर गाँव के बनिए की दुकान पर चले जाएँ, तो वह बदले में गुड़ देगा, पर उ

किसी ने कहा-6

भीतरी दुनियाँ में गुप्‍त-चित्र या चित्रगुप्‍त पुलिस और अदालत दोनों महकमों का काम स्‍वयं ही करता है। यदि पुलिस झूठा सबूत दे दे तो अदालत का फैसला भी अनुचित हो सकता है, परंतु भीतरी दुनियाँ में ऐसी गड़बड़ी की संभावना नहीं। अंत:करण सब कुछ जानता है कि यह कर्म किस विचार से, किस इच्‍छा से, किस परिस्थिति में, क्‍यों कर किया गया था। वहाँ बाहरी मन को सफाई या बयान देने की जरूरत नहीं पड़ती क्‍योंकि गुप्‍त मन उस बात के संबंध में स्‍वयं ही पूरी-पूरी जानकारी रखता है। हम जिस इच्‍छा से, जिस भावना से जो काम करते हैं, उस इच्‍छा या भावना से ही पाप-पुण्‍य का नाप होता है। भौतिक वस्‍तुओं की नाप-तोल बाहरी दुनियाँ में होती है। एक गरीब आदमी दो पैसा दान करता है और एक धनी आदमी दस हजार रूपया दान करता है, बाहरी दुनियाँ तो पुण्‍य की तौल रुपए-पैसों की गिनती के अनुसार करेगी। दो पैसा दान करने वाले की ओर कोई आँख उठाकर भी नहीं देखेगा, पर दस हजार रूपया देने वाले की प्रशंसा चारों ओर फैल जाएगी। भीतरी दुनियाँ में यह नाप-तोल नहीं चलती। अनाज के दाने अँगोछे में बाँधकर गाँव के बनिए की दुकान पर चले जाएँ, तो वह बदले में गुड़ देगा, पर उ

किसी ने कहा -5

देखा गया है कि जो सचमुच आत्म-कल्याण एवं ईश्वर प्राप्ति के उद्देश्य से सुख सुविधाओं को त्याग कर घर से निकले थे, उन्हें रास्ता नहीं मिला और ऐसे जंजाल में भटक गये, जहाँ लोक और परलोक में से एक भी प्रयोजन पूरा न हो सका । परलोक इसलिए नहीं सधा कि उनने मात्र कार्य कष्ट सहा और उदात्त वृत्तियों का अभिवर्द्धन नहीं कर सके । उदात्त वृत्तियों का अभिवर्द्धन तो सेवा-साधना का जल सिंचन चाहता था, उसकी एक बूँद भी न मिल सकी । पूजा-पाठ की प्रक्रिया दुहराई जाती रही, सो ठीक, पर न तो ईश्वर का स्वरूप समझा गया और न उसकी प्राप्ति का आधार जाना गया । ईश्वर मनुष्य के रोम-रोम में बसा है । स्वार्थपरता और संकीर्णता की दीवार के पीछे ही वह छिपा बैठा है । यह दीवार गिरा दी जाय तो पल भर में ईश्वर से लिपटने का आनन्द मिल सकता है । यह किसी ने उन्हें बताया होता तो निस्सन्देह इन तप, त्याग करने वाले लोगों में से हर एक को सचमुच ही ईश्वर मिल गया होता और वे सच्चे अर्थों में ऋषि बन गये होते ।