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Showing posts from March, 2010

सानिया मिर्ज़ा ने सब कुछ पा कर भी क्या किया....

सानिया मिर्ज़ा ने सब कुछ पा कर भी क्या किया.... आज न जाने समाज में अकसर कही जाने वाली बात ज़हन में आ रही है कि लड़किया तो पराई होती हैं ।उनको तो चला ही जाना है पर बदलते समाज के साथ लोगों की सोच भी बदली इस मुद्दे पर बहस हुई..और सबने कहा नहीं लड़कियां पराई नहीं होती ।पर जब से ये खबर आई कि सानिया और शौऐब मलिक की शादी हो रही तब से फिर यही बात ज़हन में कौंध रही है ... सानिया हमारे मुल्क की है इस लिए पहले बात उनकी और उनके इस फैसले की क्या सानिया का ये फैसला सही है? क्या सानिया की शादी सफल रहेगी? अब तक के उदाहरण को देखते हुए समाजिक और इंसान के हावभाव को समझने वाले मानते है कि ये शादी सफल नही हो पाएगी ..एक दो या ज्यादा से ज्यादा तीन साल में ये रिश्ता टूट जाएगा और रिश्ता तोड़ने में सानिया को ज़रा सा भी कोई एहसास नही होगा क्योंकि उनके लिए हर रिश्तों को निभाने से ऊपर वो खुद हैं..मतलब वो हर चीज़ में अपने को ज्यादा तरीज़ह देती है बनिस्बत दूसरों कि भावनाओ को.. आप को अगर याद हो पाकिस्तानी औपनर मोहसिन खान रीना रॉय की शादी ..बड़ी धूम धाम से हुई थी पर नतीजा आप लोगो के सामने ,इमरान खान की शादी को देख लि

एक कहानी हू मैं

एक कहानी हू मैं ये कविता मेरे प्रिय मित्र ज्योति त्रिपाठी जी ने भेजी है जिन्हे हम बाबा कहते है॥ अगर पंसद आए तो बाबा के नाम से संदेश भेजें.... अगर रख सको तो एक निशानी हूँ मैं, खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूँ मैं , रोक पाए न जिसको ये सारी दुनिया, वोह एक बूँद आँख का पानी हूँ मैं..... सबको प्यार देने की आदत है हमें, अपनी अलग पहचान बनाने की आदत है हमे, कितना भी गहरा जख्म दे कोई, उतना ही ज्यादा मुस्कराने की आदत है हमें... इस अजनबी दुनिया में अकेला ख्वाब हूँ मैं, सवालो से खफा छोटा सा जवाब हूँ मैं, जो समझ न सके मुझे, उनके लिए "कौन" जो समझ गए उनके लिए खुली किताब हूँ मैं, आँख से देखोगे तो खुश पाओगे, दिल से पूछोगे तो दर्द का सैलाब हूँ मैं,,,,, "अगर रख सको तो निशानी, खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूँ मैं".... ज्योति

महिला आरक्षण बिल से लेखक समूह परेशान

महिला आरक्षण बिल से लेखक समूह परेशान महिला आरक्षण बिल क्या आया और क्या राज्यसभा में पास हुआ कि हिन्दुस्तान में सब की पेशानी पर पसीना आने लगा ..जगह जगह और अलग अलग वर्ग से प्रतिक्रिया आनी शुरू हो गई.. धोती वाले बोले दाढ़ी वाले बोले जवान बोले और अपने को जवान कहलवाने वाले बोले ,,सब ने राग अलापा किसी ने पक्ष में तो किसी विपक्ष में .. कुछ हितों की बात करने लगे और कुछ अहितों .किसको क्या मिलेगा और किससे क्या छिनेगा इस पर देश में बहस गर्म है ... अब बात करते हैं कि भला लेखकों राईटरों को इससे क्यों हो रही है परेशानी ॥कल शाम कॉफी हाऊस में बैठा था तभी मेरा एक दोस्त आया जो टीवी और फिल्मों में कहानी और संवाद लिखता है ..ब़ड़ा परेशान दिखा मैंने कहा क्या हुआ भाई क्यों इतना दुखी हो वो बोला यार ये महिला बिल पास नहीं होना चाहिए ... मैनें कहा क्यों भला तुम क्या परेशानी तुम्हे क्या चुनाव लड़ना है वो बोला भाई चुनाव नहीं हमें तो लिखना है लिखने से रोटी चलती है हमारी .. मैने पुछा लिखने का और बिल का क्या संबध॥ उसे गुस्सा आ गया कहने लगा यार टीवी और फिल्मे करैक्टर से आगे चलती है यानी पात्रों से और फिल्म में एक पात

प्रेम पत्र -5

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प्रेम पत्र -5 प्रिय आज फिर तुम को पत्र लिख रहा हूं.. जब भी मन भाव से भर जाता है । शब्द गायब होने लगते हैं ।हलक़ से वाणी नहीं निकल पाती कोई आसपास नहीं होता ।हृदय कि गति तेज़ होने लगती ..आंखों में पानी बहने लगता ..नज़रें कभी इधर कभी उधर घुमने लगती किसी का सामना करने की हिम्मत नही जुटा पाता तब फिर तुम्हारी याद आने लगती है। तुम्हारे दूर जाने का एहसास होने लगता ..मन चिढ़ चिढा हो जाता बार बार झुंझूलाहट होने लगती है। तब किसी अँधेरे कमरे में बैठ कर बड़ा सुकून मिलता ..और उस पल सच कहू तुम्हारे सिवा कोई और नहीं दिखता .. और मन तुम्हे ढ़ूढने के लिए निकल पड़ता ...पर तुम न मिलती, तो ये मन वापस आकर अपना हाल बयान करता ... और उस हाल को शब्द देकर मैं एक पत्र का रूप दे देता । मेरी हालत तुम जानो तुम ही मुझको पहचानो हर डगर हर पथ तुम को चाहूं मै नैनों में सांसों मे मेरे रक्त और रिक्त स्थानों में तुम्हारी ही तलाश है तुम्हे पाने की आस है।। शायद तुम नही हो तभी ये एहसास है अगर तुम होती ..... क्या तब कोई दूसरी बात होती या तब भी मैं अंधेरे कमरो में अपने आप को खोजता रहता है । आज तो तुम्हार बहाना है ..जिससे दुनिया

मुसलमान औरते सिर्फ बच्चे पैदा करे ..कहने वाले धर्म गुरू को जानिए..

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मुसलमान औरते सिर्फ बच्चे पैदा करे ..कहने वाले धर्म गुरू को जानिए.. ये बात कही मौलाना कल्बे जव्वाद ने.. कल्बे जव्वाद लखनऊ में रहते है ।महिला आरक्षण के बाद से उनके औरतों के विरोध में बयान आना शुरू हुए। पहले एक टीवी चैनल पर उन्होने कहा औरतों को चुनाव के दौरान लोगों से मिलना होगा भीड़ में जाना होगा जिसकी इस्लाम इजाज़त नहीं देता इसलिए राजनीति में आना इस्लाम के खिलाफ है । इस पर यूपी सरकार और मुलायम सिंह ने उनकी पीट थपथपाई तो उनमें और हिम्मत आ गई और कहे डाला औरतों का काम सिर्फ बच्चे पैदा करना है वो वही करें ..राजनीति में आ कर क्या करें गी। मौलाना सहाब अभी तो मुस्लमान औरतों को आरक्षण मिले गा या नहीं इस पर ही बहस हो रही है उस पर आप इस्लाम की दुहाई देकर उन लोगों का हाथ मज़बूत कर रहे हैं जो चाहते ही नहीं कि आपकी कौम आगे बढ़े.. और हमे लगता है आप भी नहीं चाहते कि कौम आगे बढ़े..तभी तो आपकी दुकान भी चलती रहे गी ..विदेशों से गरीब कम पढ़े लिखे लोगों के लिए पैसा आता रहे गा और आपकी तोंद मोटी होती रहे गी ।जिस प्रदेश में आप रहते हैं वहां तो वैसे ही इस बिल का पास होना मुश्किल है और लगता है आपको भी मोटी रकम

तुम कब जाओगे अतिथि –अजयदेवगन या शरदजोशी

तुम कब जाओगे अतिथि –अजयदेवगन या शरदजोशी शरद जोशी की कहानी पर फिल्म बनी आईये आपको कहानी पढ़ाते हैं।तुम कब जाओगे अतिथि –अजयदेवगन या शरदजोशी शरद जोशी की मशहूर कहानी .... आज तुम्हारे आगमन के चुतर्थ दिवस पर यह प्रशन बार बार मन में घुमड़ रहा है –तुम कब जाओगे.अतिथि... तुम जहां बैठे निस्संकोच सिगरेट का धुआं फेंक रहे हो ,उसके ठीक सामने एक कलैंडर है देख रहे हो न तुम..इसकी तारीखें अपनी सीमा में नम्रता से फड़फड़ाती रहती हैं विगत दो दिन से मैं तुम्हे दिखाकर तारीखें बदल रहा हूं तुम जानते हो ,अगर तुम्हे हिसाब लगाना आता है कि यह चौथा दिन है ,तुम्हारे सतत अतिथ्य का चौथा भारी दिन पर तुम्हारे जाने की कोई संभावना प्रतीत नहीं होती लाखों मील लंबी यात्रा करने के बाद वो दोनो एस्ट्रॉनाट्स भी इतने समय चांद पर नहीं रूके थे,जितने समय तुम एक छोटी सी यात्रा कर मेरे घर आए हो . तुम अपने भारी चरण कमलों की छाप मेरी ज़मीन पर अंकीत कर चुके ,तुमने एक अंतरंग निजी संबधं मुझसे स्थापित कर लिया , तुमने मेरी आर्थिक सीमाओं की बैंजनी चट्टान देख ली , तुम मेरी काफी मिट्टी खोद चुके . अब तुम लौट जाओ,अतिथि तुम्हारे जाने के लिए यह उच्च

33 प्रतिक्षत में आम मुस्लमान औरतों के हिस्से क्या... कुछ नहीं..

33 प्रतिक्षत में आम मुस्लमान औरतों के हिस्से क्या... कुछ नहीं.. सहारनपुर के पास गांव कैलाशपुर की रहने वाली नसीमा रोज़ अपने शौहर नसीम से पिटती है ..कारण नसीमा को नेता बनने का शौक था ..कहीं कुछ होता खड़ी हो जाती हर बात में हर एक से उलझ पड़ती ..बड़े बड़े अफसर से लौहा लेने में पीछे नहीं रहती नसीम जब शहर से लौटता तो पुलिया पर ही कोई न कोई मिल कर कहे ही देता आज तेरी लुगाई ने ये किया भई इंदीरा बने गई वो तो,...नसीम को बात गवारा नही होती घर में कदम रखते ही बस नसींमा की कुटाई शुरू.. मारते मारते कहता अरे तुझे कोई टिकट न देगा..बस हमारी रूसवाई ही कराती रहे ..नसींमा सोचती देश बदल रहा औरते आगे आ रही हैं हमारी कौम की औरतों के लिए भी आवाज़ उठेगी कोई उनके लिए भी बोलेगा हमारे देश की सबसे बड़ी पार्टी की अध्यक्ष, सभापति नेताविपक्ष,राष्ट्रपति सब तो औरते हैं फिर मैं क्यों नही.. नसीमा की बात सही थी वो क्यों नहीं.. पर वो जिनका उसने नाम लिया उनमे से कोई आम औरत नहीं है और कोई मुस्लमान नहीं है जो वो है .. नसीमा औऱ उसकी कौम की औरतों की आखिरी उम्मीद, महिला आरक्षण बील में उनके लिए कुछ नहीं है..और ये सच है 15वीं लोकस

कब से ऐसी शाम न देखी

कब से ऐसी शाम न देखी सूरज जब ढलता गगन पर लाली होती चिडियां घोंसले कि ओर चलती गर्मी गायब होने को होती कब से ऐसी शाम न देखी।। . आगन में पानी का छिड़कॉव होता चारपाईयों को बिछाया जाता हल्के रंग की चादर उनपर डाली जाती फिर बैठ कर मौसम की बात होती कब से ऐसी शाम न देखी।। पिताजी के आने का वक्त होता शर्माजी का आना भी लाज़मी होता चांद मियां के चाय समोसे के साथ बातो बातों मे सबकी चुटकी ले ली जाती कब से ऐसी शाम न देखी ।। क्या किया क्या न किया दिनभर का हिसाब लिया जाता लालू राजू को डाट पड़ती शिकायतों की लम्बी फेरिस्त होती कब से ऐसी शाम न देखी ।। तू तू मै मै हां हां न न हंसते मुस्कुराते अचानक कूकर की सीटी बज जाती सबकी भूख जग जाती कब से ऐसी शाम न देखी।। ताज़ी सब्ज़ी के साथ गर्म गर्म रोटी खाई जाती थोड़ा टहल कर लम्बी डकार आती एक अंगडाई के साथ नींद आ जाती कब से ऐसी शाम न देखी ।. शान।।।

खुशियों का रंग भर डाले

खुशियों का रंग भर डाले विद्या की देवी सरस्वती को प्रणाम करता हूं बंसत के इस मौसम में आप का अभिनंदन करता हूं सर्दी ने रूखस्त ली रज़ाई कोटी सब मां ने बन्द की खेतों में फसल लहलहा उठी पीले रंग की चादर लो ओढ़ ली नई कलियां, नए फूल हर तरफ नए कंवल खिलते हैं बंसत ऋतु का स्वागत हम सब करते हैं रंगों के इस मौसम में सब पर प्यार रंग का चढ़ता है देखो राम रहीम यहां गले मिलते हैं मेरे देश में बंसत का क्या कहना कहीं झूले कहीं नगाडे कहीं ढ़ोल तमाशे दिखते हैं राधे राधे शिव शंभू सब एक ही रंग में फिरते हैं। आओ इस बंसत ऋतु को हर एक के जीवन में ले जायें सब की झोली में खुशियों का रंग भर डाले।। सब की झोली में खुशियों का रंग भर डाले।।