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Showing posts from October, 2008

मां

एक सच्ची कहानी .... ममता के कहानी किस्से आपने ज़रूर सुने होगें मां की मोहब्बत बयां करना शयाद बहुत मुशकिल है ।पर आज बात उस मां की जिसने अपनी सात साल से मरी बच्ची को अपने कलेजे से लगा रखा है ।ये कोई कहानी नहीं, फसाना नहीं ये हकीकत है ...वो भी उस देश की जिसे अपने नियम कानून और व्यवस्था पर बहुत घमंड है ... तकरीबन दस साल पहेले मिसेज़ फिलोरिडा एक अच्छे मुस्तकबिल के लिये अपने परिवार के साथ ब्रिटेन के लिये रवाना हुईं..अपने देश में सब कुछ सही पर फिर भी बुहत कुछ होता है जिसे सही करने की ज़रूरत होती है ... पति के साथ अपनी ज़िन्दगी की एक अच्छी शुरआत वो भी एक अमीर देश में शायद सब के नसीब में नहीं होता ... सब कुछ सही था ..भगवान की मेहर थी .. जल्द ही उनके आगन में एक फूल खिला ..... जिसका नाम था सुनैना... सोचा था की सब की नैनो का तारा बनेगी ...उसकी बोली सब सुनेगें पर कुदरत के आगे किसकी चली ...भगवान को क्या मंजूर किसे पता .... न जाने कौन सी तारीख़ थी कौन सा दिन था .. सुनैना की तबीयत बिगड़ गई...कुछ सोचने समझने का वक्त नहीं था जल्द ही उसे अस्पताल पहुचाया गया .. डॉक्टरों ने जांच शुरू की ..उसे भर्ती किया गय

दर्पण... एक पत्रकार का सच

एक पत्रकार की चाहत...... दर्पण.... उस दर्पण पर सर्मपित मैं जो है हर भाव से परिचित देखे जो खिलखिलाते चेहेरे जाने कितने किस के मन हैं मैले । क्या राजा ..... क्या रंक....... बदल न पाये कोई भी दर्पण के ढ़ंग मैं भी दर्पण बनना चाहू सब को उनका रूप दिखांऊ फिर ये विचार अपने मन मैं लाऊं बोले सभी कि दर्पण...कभी झूठ न बोले पर अब तक उसके सच से कौन भला डोले..

गोली का जवाब गोली से....... ....

गोली का जवाब गोली से....... अंधेरी से कुर्ला.... बस नबंर-332.. दिन सोमवार तारीख़ 27 अक्तूबर 2008 वक्त सुबह के पौने नौ बजे मुंबई का अंधेरी इलाका.. 332 नंबर की बस सुबह करीब पौने नौ बजे अंधेरी से रवाना हुई ... कम लोग, सुबह की हवा और हल्की हल्की सूरज की रोशनी छनती हुई बस के शीशे से अंदर पहुंच रही थी ।...करीब सवा नौ बजे बस साकीनाका पहुंची... यहीं से सवार हुआ 23 साल का एक खूबसूरत नौजवान देखने में किसी भी फिल्म अभिनेता को पीछे छोड दे । नौजवान बस की पहेली मंज़ील मे सब से आगे जाकर बैठ गया ...तकरीबन 15मिनट बाद यानी 9 बज कर 27 मिनट पर जब बस बैलबाज़ार ,कुर्ला के सिगनल पर पहुंची तभी इस नौजवान का कंडक्टर से झगड़ा हुआ बात बढ़ी ..नौजवान उत्तेजित हो गया, कंडक्टर को बांधक बनाना चाहा, लोगों को धमकाया और कहा मैं किसी का कोई नुकसान नहीं करुंगा .. मैं बिहार से आया हूं मेरी राज ठाकरे से बात कराओ.. नौजवान ने बस को रिवॉव्लर की नोंक पर बंधक बनाने की कोशिश की ...सवार लोगों से मोबाइल मांगा .. बाहर के लोगो को चिल्ला चिल्ला कर अपने बारे में बताया ..तभी करीब पौने दस बजे पुलिस वहां पहुंच गयी, सीन पूरा फिल्मी था .

अच्छा हुआ … जो पिटे....

अच्छा हुआ … जो पिटे.... बिहार जाने वाली या बिहार से गुज़र के जो ट्रेन जाने वाली थी सब को रद्द कर दिया गया....। स्टेशन में भीड़, लोग बेहाल परेशान, कहां जायें, कैसे पहुचें कुछ पता नहीं .... रमेश को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ट्रेनें क्यों नहीं चल रही ... उसने झुंझलाते हुये पुछा क्या हुआ ट्रेनों को क्यों नही चलाया जा रहा ....किसी ने बताया अरे भई वहां आंदोलन चल रहा है ट्रक जाम हैं सड़कों पर लोग है सब तरफ अफरातफरी है ...दुकाने जलाई जा रही है सरकारी संपत्ति का नुकसान किया जा रहा है ... बहुत ज़बरदस्त आंदोलन है .....25 तारीख़ को पूरा बिहार बंद होगा ... रमेश ने पुछा क्यों भई क्यों ... लोगो ने कहा अरे तुम कहा से आये हो, देश में कितना कुछ हो गया और तुम कहते हो क्यों ... राज .... राज ठाकरे के लोगों ने महाराष्ट्र में परीक्षा देने गये, बिहार के छात्रों को मार-मार कर भागया, बहुत पीटा ...उसी के विरोध में ये सब हो रहा है ... रमेश के लिये ये सब नया था ... उसने कहा, पर अगर ये सब मुंबई में हुआ, वहां के लोगो ने किया तो उसका विरोध बिहार में प्रदर्शन कर के अपने ही लोगो की दुकाने जला के ..अपने ही प्रदेश का नुक

आस

आस वो जो खुशियों का एक दीपक बन कर मेरी ज़िन्दगी में आया था । शायद कल्पनाओं का एक साया था भूल गया था मैं जिन्दगी के .... हर दुख़ ,हर ग़म ,हर तंनहाई.... अंजान कर दिया था .... उसने मुझे ग़मों से, परिचित कर दिया था उसने मुझे गैरो से कितना खुशनुमा झोका बन कर आया था ...... लेकिन जीवन केवल सुखों का पल थोड़ी है जब चाहा मैने अपनाना उसे .... मन के एक कोने चाहा बिठाना उसे दूर बहुत दूर चला गया वो .... मुस्कुराहट भी मेरी साथ ले गया वो ... कितना रोया कितना छटपटाया था मैं... शायद कभी तो हाथ आयेगा वो ... लेकिन उसे न आना था न ही वो आया था वो तो एक साया था ... हां वो तो एक साया था .... मेरा मन ही पागल था जो उसे पकड़ने को भरमाया था क्या कभी समुद्र की लहरों से रेत के घरौंदे बचे या फिर कभी सपने भी हक़ीक़त हुये हैं तो फिर साया कैसे हाथ आता ... हां वो सिर्फ साया था .. सिर्फ साया था ... साया ही था पर ज़िन्दगी नहीं मानती हम नहीं रुकते हम साये के साथ ही जीते है सपनों मे ही रहते हैं ... जानते हुये भी उसी ओर चलते है जिस तरफ मंज़िल का कोई नामोनिशान नहीं ... क्यो ...भला क्यों .... शायद एक आस के लिये ... आस हां उम्म

कैसे जीतता है सच में सच.....

कैसे जीतता है सच में सच..... इस बार न जाने क्यों जलते हुये रावण को देख कर मेरी आंखों से जो आंसू निकले तो रुकने का नाम ही नहीं ले रहे । एक के बाद एक घटना याद आने लगी कुछ लोग, कई पुराने साथी सब नज़रों के सामने थे ।जैसे जैसे रावण जल रहा था । वैसे वैसे मेरा मन डूब रहा था ।लोग जय श्रीराम के नारे लगा रहे थे पर मेरे कानों में न जाने कौन सी आवाज़ आ रही थी ।आग की रोशनी मुझे डरा रही थी। मुझे दिख रहे थे वो लोग जो मेरे करीब थे पर अब मुझसे बहुत दूर हैं । मैं रावण को हमेशा दूर से ही देखता हूं शायद इसलिये कि सच को जीतते हुये देखना बहुत मुश्किल है । मुझे तो याद नहीं की सच पहली और आखिरी बार कब जीता था । हां बचपन से सुनता आ रहा हूं कि हमेशा सच बोलो सच का साथ दो सच ही जीतता है ... पर जब तक ये जीत आती है तो जीतने का दिल ही नहीं चाहता क्योकि ये जीत हमसे बहुत कुछ ले चुकी होती है । आज मै रोया इसलिये नहीं कि मुझे रावण से प्यार है ।प्यार मुझे कैसे हो सकता, किसी बुरे आदमी से कोई कैसे प्यार कर सकता है। चाहे वो रावण के रूप में हो या आतंक.