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Showing posts from November, 2008

वो

वो वो मर गया मै इसलिये उदास नहीं हूं... क्योकि मृत्यु तो मुक्ति है और मुक्ति तो स्वंतत्रता होती है । स्वतत्रता के लिये उदास होना विद्रोह... और मैं विद्रोही नही.... धरती तो बंधक है कर्म और कर्तव्य की .. जो उसे जितना नोकों से कुरेदेगा .... उसी को तो उसे फल देना है ... नित दिन पीडा सहने के बाद भी उसको तो मुसकराना है मैं भी तो उसका एक कार्यकर्ता हूं वो मर गया.. मैं इसलिये उदास नहीं हूं । अंबर भी तो सुचालक है आशाओं और कल्पनाओं का .. दूर से ही सिमट आये आंखों मे हमारी । हर दिन हमको नये सपनो मे ले जाता है... उसकी महानता और ऊचाई हमको कितनी छोटी लगती है । मैं भी तो उस छोटे से अंबर पर चढ़ना चाहता हूं.. वो मर गया... मै इसलिये उदास नहीं हूं... कौन था वो... अपना था , पराया था या फिर मेरा अपना ही साया था छटी उंगली ही सही, था वो मेरे शरीर का ही अंग वो कटगया या मर गया ,मैने कितनी सरलता से बखान किया... क्योकि देखता हूं मैं सुनता हूं, मैं हर तरफ अजीवित इंसानों को मैं भी तो इन शवो के भंडार में एक शव हूं.. वो मर गया मैं इस लिये उदास नहीं हूं......

७१ साल

71 साल भाग -2 रात ही रात में घर खाली कर दिया ।पहले किसी जान पहचान वाले के यहां रहे फिर एक कमरा किराये पर ले लिया।रामनेरश ने अपनी तीन बेटियो और पत्नी के साथ ज़िन्दगी को नए सिरे से शुरू किया ।स्कूल दूर था सुबह जल्दी निकलते रात को देर तक टूयशन पढ़ा कर घर वापस आते ।अभी बहुत कुछ करना है बच्चियों की पढ़ाई एक अपना घर ... यही उनका सपना था ।न अपने खाने की फिक्र न पहने का होश दो जोडी कपड़े, एक जोड़ी रबड़ की चप्पल और एक साइकिल.. यही था रामनरेश के पास ..बीवी की भी कमोबोश ऐसी ही हालत थी। जहां टूयशन पढ़ाने जाते थे उन बच्चों के पिता प्रॉपर्टि डिलर थे ।उन्होने कहा मास्टर साहब एक जगह ज़मीन कट रही है एक प्लाट ले लो । रामनेरश ने कहा भाई मेरे पास इतने पैसे नहीं की ज़मीन ले सकूं.. प्रॉपर्टि डिलर ने कहा चलिए कुछ दे दिये गा और बाकि बाद में दे देना ...शारीफ आदमी पैसे बाद में दे पर देगा ज़रूर ये बात डिलर जानता था । आज रामनरेश जल्दी जल्दी घर पहुचें पत्नी को ख़बर दी ।पत्नी भी खुश हो गयी । मां बाप के खिले हुए चेहेरे देख कर बच्चो में खुशियों की लहर दौड़ गई । और क्यो न हो आखिर कुछ अपना हां अपना घर होने वाला है उन...

71 साल

भाग -1 रामनरेश अपने बेटे के साथ कार में बैठे एक रशितेदार के घर जा रहे थे..तभी बराबर से गुज़रते हुए एक ऑटो पर उनकी नज़र पड़ी, एक विवाहित जोड़ा उनके पास से गुज़रा .. और रामनरेश खो गये अतित में.. जब उनकी नई नई शादी हुई थी ।बहुत बड़ा कदम था .क्योकि वो अपने खानदान में पहले ऐसे शख्स थे जिन्होने अपने खानदान से अलग शादी की थी सब ने साथ छोड़ दिया था सिर्फ एक बहनोई ही उनके साथ थे ..इंगलिश में एम.ए किया था इस लिये अमरोह के मुस्लिम स्कूल में उन्हे नौकरी मिलने में कोई दिक्कत नही हुई।प्रिसिपलसाहब अच्छे थे और उनको अच्छी सलाह दी और बीएड करने को कहा, मुरादाबाद के हिन्दू कालेज से बीएड किया ...उसी दौरान उनके घर में एक रोशनी आई बेटी के रूप में कहते हैं लड़की लक्ष्मी का रूप होती है ... पर रामनेरश के घर में खर्च बढ़ गया जिसके कारण उन्हे और मेहनत करनी पड़ी । देर रात तक टूयशन पढ़ाने पड़ रहे थे जिसकी वजह वो स्कूल रोज़ देर से पहुच रहे थे ।पसंद करने वाले प्रिंसिपल भी अमरोह छोड़ कर दिल्ली बस गये थे । इसलिये पहले उन्हे नोटिस मिला लेकिन पैसे की ज़रूरत ने नोटिस के डर को भगा दिया ..वो टूयशन बन्द न कर पाये और नौकरी खो...

कुछ यादे...शायरों के नाम...

कुछ यादे.... बेहतरीन शायरी.... हर दर्द,हर मरज़ की दवा है तुम्हारे पास । आते हैं सब यहीं कि शफा है तुम्हारे पास ।। बीमारे ग़म हैं,दूर से आये हैं सुनके नाम । कहते हैं दर्दे-दिल की दवा है तुम्हारे पास।। ..... वो अक्स अपना आईने में देखते हैं । सितम आज उन पर नया हो रहा है ।। मैं खामोश बैठा हूं उस बुत के आगे । निगाहों में मतलब अदा हो रहा है ।। ..... ज़ाहिदों को किसी का खौफ नहीं । सिर्फ काली घटा से डरते हैं ।. चाहे तुम हो या नसीब अपना ... हम हर एक बेवफा से डरते हैं.... .... क्या खबर कैसे मौसम बदलते रहे । धूप में हमको चलता था चलते रहे ।। शमा तो सिर्फ रातों को जलती है । औऱ हम हैं कि दिन रात जलते रहे ।। .... तुम न आये तो क्या सहर न हुई । हां मगर चैन से बसर न हुई ।. तुम भी अच्छे ,रक़ीब भी अच्छे । मैं बुरा था ,मेरी गुज़र न हुई ।।

मै सीख गया...

सीख गया..... सुबह सुबह उठ कर जब दात मांज रहा था ।तभी शीशे पर नज़र पड़ी एक चेहरा दिखा ध्यान से देखा तो समझ में आया की ये तो मैं ही हूं... आज मेरी हल्की सी दाढ़ी बड़ी थी और उसमें मुझे तीन चार सफेद बाल दिखे... एकदम सन हो गया मै... क्या ज़िन्दगी का इतना लंबा सफर तय कर लिया मैने... कल की बात लग रही है.... जब घर में आया एक मेहमान अपनी शेविंग किट भूल गया .और मैने स्कूल से आते ही उसकी सारी क्रिम लगा कर शेव करने की कोशिश की थी । तब मेरे चेहेरे पर एक बाल नही था उस वक्त उम्र भी तो 10 साल की थी। .. सब कितना हंसे थे .. उस शीशे के चेहरे से इस शीशे के चेहरे तक आने में 23 साल गुज़र गये ..बदल गया बहुत कुछ ,छूट गये बहुत से लोग.टूट गये कई रिश्ते ...हर बात सुनने वाली मां नही रही ,मोहब्बत करने वाली प्रेमिका भी चली गयी ... मुझको समझने वाले दोस्त भी व्यस्त और दूर हो गये.. रहा तो सिर्फ मै और मेरे सपने.. एक साधारण से परिवार में जन्म लेने के बाद हर लड़के का सपना होता है कि वो जल्दी से सैटल हो जाये थोड़ा पैसा आ जाये कुछ नाम हो जाये यही सोच कर मैने भी अपनी ज़िन्दगी को आगे बढ़ाया ... डॉक्टर ,इंजीनियर ,सी.ए ,सीएस ...

या अल्लाह

थंब था मैं फिर भी थल पर न रूक सका दिनकर था मैं फिर भी दाह से न बच सका दुष्कर हो गया जीवन मेरा इन दिधार्थक बातों से इस कलयुग के अंधकार में इन रण की रातों से............. या अल्लाह…. शफीक मियां सुबह सुबह घर से उमदा कुर्ता पजामा पहन कर आफिस के लिये चल दिये । रास्ते में कई फोन आये... कोई बड़ा बदलाव आज होने वाला है इसकी उनको भनक पड़ चुकी थी ।लेकिन बदलाव क्या है इसका अंदाज़ा वो नहीं लगा पा रहे थे... शफीक मियां ने न्यूज़ चैनल में बहुत जल्दी तरक्की की .... वैसे तो उनके पास पत्रकारिता का कोई अनुभव नहीं था पर आजकल वो चैनल के कई दिग्गजो को पत्रकारिता के गुण सिखाते पाये जाते हैं.. क्योकि नौकरी में तरक्की इसलिये नहीं होती की आप बहुत काबिल है ..... आप कितने अपने बॉस के करीब है ये महत्वपूर्ण बात होती है ..और अपने सीनियर को कैसे शीशे में उतारना इसमे वो बहुत माहिर हैं... आज क्या होगा इसी पशोपेश में है वो... एक सही बात आप को बताते चले शफीक मियां को बहुत ज्यादा उम्मीद है कि इस बार इनको कोई बड़ी ज़िम्मेदारी मिलने वाली है .. आखिर क्यों न मिले, हर काम .. जी हां ,बॉस के काम की बात हो रही है सब टाइम पर कर...

bachpan

बचपन अंबा का आचल छूटा अंबरूह से अंबू रूठा... उजबक बन कर रहे गया मैं जब से मेरा बचपन छूटा उछल कूद सब हो गये दूर अकधक-अकबक छूटे यूं अक्रिय बन कर रहे गया मैं जब से मेरा बचपन छूटा कुप्रवति से मैं हूं भरपूर ओछापन है मुझ में यूं कठपुतली बन कर रहे गया मै जब से मेरा बचपन छूटा दोस्त यार अभी भी हैं साथ अब न उनमे है वो प्यार बेगाना बन कर रहे गया मैं जब से मेरा बचपन छूटा..