सीवीआई सरकार की रखेल (भाग-1)
सीवीआई सरकार की रखेल
(भाग-1)
शायद कई लोगों को मेरी भाषा पर गुस्सा आए ..मेरे शब्दों से एतराज़ हो ... ये शब्द सख्त ज़रूर हैं लेकिन हैं सच...
सीबीआई बनी थी सरकार के काम काज पर नज़र रखने के लिए..उसमें हो रहे भ्रष्टाचार को रोकन के लिए ..पर सीबीआई की हालत देख कर यही लगता है की सरकार तय करती है सीबीआई कैसे और किस तरह से काम करे...सीबीआई की ऑटोनॉमी की बातें खोखली और बेमानी लगती है.. आईये उदाहरणों से अपनी बात को पेश करते हैं...औऱ चलते हैं 6दिंसबर 1992 बाबरी मस्जिद गिरा दी गई...और बीजेपी और वीएचपी के कई बड़े नेताओं के खिलाफ मामला दर्ज हुआ.
जिनमे लाल कृष्ण आडवाणी ,मुरली मनोहर जोशी ,उमा भारती और विनय कटियार के नाम सामने आए..
विशेष सीबीआई अदालत में मामले चलते रहे,एनडीए की सरकार बनी और आडवाणी जी गृह मंत्री बन गए ...और फिर शुरू हुआ खेल ..
जब आरोप तय होने थे उस समय के मानव संसाधन विकास मंत्री मुरली मनोहर जोशी ने कहे दिया अगर मुझ पर आरोप तय हुए तो मैं इस्तीफा दे दूंगा..ये बात आडवाणी पर दबाव बनाने के तौर पर कही गई..अगले दिन आडवाणी जी छूट गए और बाकी सब नप गए...।
पूरे देश में आडवाणी के छूटने पर हाय तौबा मची ..बतौर गृह मंत्री उनपर सीबीआई का अपने पक्ष में इस्तेमाल करने का आरोप लगा..
ये आरोप बेबुनियाद नहीं था क्योकि उससे कुछ महीने पहले कुछ घंटों के लिए सीबीआई को गृह मंत्रालय के अधीन कर दिया गया था लेकिन बाद में इसे कैबीनेट सचिवालय के अधीन किया गया ।
इस के खिलाफ इलाहबाद हाई कोर्ट में अपील की गई । हाई कोर्ट ने सीबीआई द्वारा आडवाणी को दी गई क्लीन चीट पर सीबीआई की आलोचना भी की बाद में यूपीए की सरकार बनी इसने भी सीबीआई के कामकाज में दखल दिया
पहली बार 2004 में जब प्रधान मंत्री कार्यालय में संयुक्त सचिव ने कर्मिक मंत्रालय के सचिव को चिट्ठी लिख कर पूछा कि आडवाणी के मामले में क्या हो रहा है ।।
दूसरी बार सीधे सीबीआई निदेशक को चिट्ठी लिखी गई और पूछा गया कि आडवाणी के मामले में विशेष कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील क्यों नही गई..
सीबीआई कैसे बनी रखेल और किन किन लोगों ने की दलाली भाग दो में पता चले गा।।।।।
(भाग-1)
शायद कई लोगों को मेरी भाषा पर गुस्सा आए ..मेरे शब्दों से एतराज़ हो ... ये शब्द सख्त ज़रूर हैं लेकिन हैं सच...
सीबीआई बनी थी सरकार के काम काज पर नज़र रखने के लिए..उसमें हो रहे भ्रष्टाचार को रोकन के लिए ..पर सीबीआई की हालत देख कर यही लगता है की सरकार तय करती है सीबीआई कैसे और किस तरह से काम करे...सीबीआई की ऑटोनॉमी की बातें खोखली और बेमानी लगती है.. आईये उदाहरणों से अपनी बात को पेश करते हैं...औऱ चलते हैं 6दिंसबर 1992 बाबरी मस्जिद गिरा दी गई...और बीजेपी और वीएचपी के कई बड़े नेताओं के खिलाफ मामला दर्ज हुआ.
जिनमे लाल कृष्ण आडवाणी ,मुरली मनोहर जोशी ,उमा भारती और विनय कटियार के नाम सामने आए..
विशेष सीबीआई अदालत में मामले चलते रहे,एनडीए की सरकार बनी और आडवाणी जी गृह मंत्री बन गए ...और फिर शुरू हुआ खेल ..
जब आरोप तय होने थे उस समय के मानव संसाधन विकास मंत्री मुरली मनोहर जोशी ने कहे दिया अगर मुझ पर आरोप तय हुए तो मैं इस्तीफा दे दूंगा..ये बात आडवाणी पर दबाव बनाने के तौर पर कही गई..अगले दिन आडवाणी जी छूट गए और बाकी सब नप गए...।
पूरे देश में आडवाणी के छूटने पर हाय तौबा मची ..बतौर गृह मंत्री उनपर सीबीआई का अपने पक्ष में इस्तेमाल करने का आरोप लगा..
ये आरोप बेबुनियाद नहीं था क्योकि उससे कुछ महीने पहले कुछ घंटों के लिए सीबीआई को गृह मंत्रालय के अधीन कर दिया गया था लेकिन बाद में इसे कैबीनेट सचिवालय के अधीन किया गया ।
इस के खिलाफ इलाहबाद हाई कोर्ट में अपील की गई । हाई कोर्ट ने सीबीआई द्वारा आडवाणी को दी गई क्लीन चीट पर सीबीआई की आलोचना भी की बाद में यूपीए की सरकार बनी इसने भी सीबीआई के कामकाज में दखल दिया
पहली बार 2004 में जब प्रधान मंत्री कार्यालय में संयुक्त सचिव ने कर्मिक मंत्रालय के सचिव को चिट्ठी लिख कर पूछा कि आडवाणी के मामले में क्या हो रहा है ।।
दूसरी बार सीधे सीबीआई निदेशक को चिट्ठी लिखी गई और पूछा गया कि आडवाणी के मामले में विशेष कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील क्यों नही गई..
सीबीआई कैसे बनी रखेल और किन किन लोगों ने की दलाली भाग दो में पता चले गा।।।।।
Comments