खुशी अपनो के साथ
खुशी अपनो के साथ सुबोत ज़िन्दगी की रफतार से तेज़ चल रहा है ...वक्त से पहले सब कुछ हासिल करने की कोशिश..और इसमें ग़लत क्या है । दुनिया का ये दस्तुर है कि अगर आप वक्त के साथ और वक्त के आगे नहीं चलेंगे तो आप पीछे छूट जाएगें... कई लोग ये सोच कर संतुष्ठ हो जाते हैं कि भई हमने तो सब कुछ पा लिया ।हम तो अपने मुकाम पर पहुच गए..शायद यहीं से उनकी भूल होती है ..इसलिए आज जो, मैं जिस मुकाम पर पहुचां हूं। मुझे उससे आगे जाना है और अपनी कम्पनी को भी आगे लेकर जाना है .और आप सब जो काम कर रहे हैं उनको भी ... सुबोत ने जैसे ही अपनी बात खत्म की .वैसे ही सारा हॉल तालियों की आवाज़ से गूंज उठा कैमरे की रोशनी और रिपोर्टरों के सवाल ..सब एक साथ टूट पड़े .... किसी पत्रकार ने पुछ ही लिया इतनी जल्दी इतना सबकुछ ..क्या कुछ छुटा नही, क्या कुछ रहे तो नहीं गया ...किसी का साथ किसी का प्यार... सुबोत मुस्कुरा दिया पर पहली बार उसकी मुस्कुराहट में चिता छलक रही थी । आज उसका न जाने क्यों मन जल्दी घर जाने के लिए करने लगा ..आज न जाने कितने बरसों बाद वो शाम को घर की तरफ जा रहा था ...उसे अपना शहर कितना बदला बदला दिख रहा था ...पंछी...