एड्सवाली औरत.. सच्ची घटना....
राजस्थान के शहर अजमेर से लगभग 35km दूर बसा एक छोटा सा गाव नंदलाला.जहां काली और उसके परिवार की ज़िन्दगी हमेशा के लिये अचानक बदल गई। 42साल की काली पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा जब उसे पता चला की उसका, एचआईवी टेस्ट पॉज़िटिव है ,इससे साल भर पहले ही काली के पति की एचआईवी की वज़ह से मौत हुई थी ।काली का पति ट्रक ड्राईवर था और अपने काम के सिलसिले मे ज्यादातर बाहर रहता था ।
गांव के ज्यादातर आदमी ट्रक ड्राइवरी के पेशे से जूडे हुये हैं और हाईवे ही उनका घर है ।गांव में करीव 300 परिवार हैं और हर परिवार से एक आदमी ट्रक ड्राइवरी से जुड़ा हुआ है ।
ट्रक चालक अपने लंबे सफर के दौरान कई जगह खाने पीने और आराम के लिये रुकते हैं । इसी दौरान इनमे से कुछ कि नज़दीकियां वैश्याओं से भी हो जाती हैं और इस संभावना से इंकार नही किया जा सकता कि काली का पति अपने ऐसे ही किसी संम्बध की वजह से एचआईवी संक्रमण से ग्रस्त हुआ।.और उसी से ये संक्रमण काली में आ गये।
काली के पति की मौत को दो साल हो गये हैं । एचआईवी से झूझ रही काली अपने दो बच्चों के साथ बमुशकिल अपनी ज़िन्दगी थोड़ी बहुत आमदानी के ज़रिये गुज़ार रही है ।
काली दो बच्चों की मां है । बच्चों को नहीं मालुम की , मां को कौन सी बिमारी हैं।उसकी 16 साल की लड़की है, जिसने बस छठी तक पढ़ाई की ,अब वो घर के छोटे मोटे काम मे अपनी मां का हाथ बटाती है
विधवा पेंशन स्कीम के तहत मिलने वाले 200 रुपये महीना ही काली की आमदनी का अकेला ज़रिया है।और ये मिलना तब शुरू हुआ जब काली ने ग्राम पंचायत जा कर अपनी परेशानी पंचायत और वहां मौजूद सरंपंच बनावारी देवी को बताई।
उसने सरपंच से ये भी कहा कि वो गांव वालो से एचआईवी के बारे में बात करे और बताये कि इससे कैसे बचा जाये।
सरपंच को इसके बारे में खुद ज्यादा जानकारी नहीं थी ।वो उसकी इतनी ही मदद कर पाई की उसे महीने की विधवा पेशन दिलवा दी और राष्ट्रीय ग्रामिण रोज़गार गारंटी एक्ट के तहत 100 दिन का रोज़गार दिला दिया ।
हलाकि इससे काली को थोड़ी आर्थिक मदद ज़रूर मिली पर ये बहुत कम है उसकी रोज़ की ज़रूरात को पूरा करने के लिये ।दो बच्चों की देखभाल खाना पीना रोज़ के खर्च ... अभी बहुत कुछ करना है उसे ..
गांव वाले उसे चिढाते हुये कहते है एडस वाली औरत ।काली को बहुत दुख होता है जब गांव की औरते उसे पागल और चरित्रहीन कहती हैं।
ज्यादतर एचआईवी सक्रमण असुरक्षित शारीरिक संबधों से फैलता हैं।शादीशुदा पतिव्रता औरतो को ये सक्रमण अपने पति से होता है जिन्होने शादी के बाहर कई जगह असुरिक्षत शारीरिक संबध बनाए हुए होते हैं । लड़के और लड़की में भेद भाव की पंरमपरा और कम उम्र मे शादी कुछ मुख्य़ कारण है जिसकी के चलते औरते और जवान लड़किया अंजान ही रहती है एचआईवी से और अपने आपको बचा नहीं पाती यौन संबध से फैलने वाली इस बिमारी और अंचाहे गर्भ से
एचआईवी उन युवा ,ग्रामिण और औरते मे तेज़ी से फैल रहा है, जहा गरीबी अज्ञानता और लिंग भेद है। वहा लोग स्त्री पुरूष के संबधों की बात करना गलत और गंदा मानते है ..यौन संबध का ज़िक्र करना पाप समझा जाता है और यौन सेहत और यौन अधिकार पर शायद ही बात होती हो । एच आई वी के बारे में जागरुक करने में जो सबसे बड़ी परेशानी सामने आती है वो एचआईवी के बारे में फैली हुई अफवाये और जो लोग इस वाइरस से ग्रस्त हैं उनके साथ समाज में बुरा बरताव ।
एचआईवी के प्रति अज्ञानता और डर के मारे हमारा समाज उस परिवार से सारे नाते तोड़ लेता है जिसके घर में कोई एचआईवी का व्यक्ति हो ..जिसके कारण उन्हे कभी नौकरी से हाथ धोना पड़ता कभी अकेले रहना पड़ता और कभी कभी तो उनका हुक्का पानी भी बंद कर दिया जाता है ।
अजमेर ज़िले के पास के एक गांव नारवार में 22 साल की संजू रहती है ।उसका ब्याह जल्दी हो गया था पर उसकी विदाई 18 साल पूरे होने पर ही हुई।दूसरी लड़कियों की तरह उसने भी सपने सजोये एक अच्छी शादीशुदा ज़िन्दगी के, आगन में खेलते हुये बच्चों के ..पर ..उसके सपनों की उम्र बहुत छोटी थी और मुकदर उससे मुह मोड़ चुका था ..
8महीने पहले उसके पति धनपत का एचआईवी टेस्ट + निकला था ।
धनपत अपने काम के सिलसिले ज्यादातर दूसरे शहरों मे जाता था ।उसके शरीर में खरोचों के निशान बनने लगे और उसे अकसर बुखार भी रहने लगा । इसको देखते हुये संजू उसे नज़दीक के चिकित्सा केन्द्र में जांच के लिये ले गई।
धनपत बराबर अपनी शारीर की जांच के लिये सरकारी एचआईवी केन्द्र अजमेर मे जाता है । वही की एक स्थानीय संस्था ने उसका मुफ्त में बस पास बनवा दिया जिससे अजमेर जाने का उस पर कोई खर्च न पडे...पर कभी कबार बस में मौजूद यात्रियों और स्टाफ उसके साथ बुरा बर्ताव करते। जिससे उसकी परेशानी और बढ़ जाती है ।
अपनी सेहत के कारण वो काम पर रोज़ नही जा पाता जिसकी वजह से उसका परिवार गांव का सबसे गरीब परिवारों मे से एक हो गया है । इसे देख कर गाव के सरपंच संजू को खुद लेकर गये और उसे काम दिलाया .संजू 12वी तक पढी हुई है और टेस्ट के बाद पता चला की उसे एचआईवी भी नहीं है ।
संजू को नरेगा के दिये गये काम से वो 100 रु हर महीने कमा लेती है । पति की कमाई में और सहारा देने के लिए नहीं है जिसे और रूपये आ जाए वो गांव की औरतों के कपड़े सिलती है ।पति पत्नी अपनी ज़िन्दगी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये सारी कोशिशे करते हैं ।
बहिष्कार,ज़लालत.बदसूलकी , परिवार के सदस्यों और समाज के बुरे रवैय्यए से एचआईवी से ग्रस्त, लोग मजबूर हो जाते हैं कि वो कहीं गायब हो जाये या फिर खुदकुशी कर ले।
एचआईवी के साथ जो अफवाए और गलतफमी जूड़ी हुई हैं ,जैसे...
कैसे ये एक से दूसरे व्यक्ति को होता है । और किस तरह इसकी देखभाल और इलाज कराया जाए ।
42 साल की कोमा कि जिन्दगी भी उदास और ठंडी होकर कर रहे गई ।जबसे उसे पता चला कि वो एचआईवी+है अभी ज्यादा वक्त नहीं गुज़रा जब उसका पति जो खानाबदोश मज़दूर था और मज़दूरी के सिलसिले में उड़ीसा के गानजांम ज़िले गया था ..उसकी मौत कि वजह एचआईवी से जूडी हुई बिमारी निकली ।
जब वो मरा तो गांव के किसी भी आदमी ने उसके अंतिम संस्कार में भी मदद नहीं की,इसलिये कि कहीं उन्हे भी एचआईवी न हो जाए...अपने पति के मौत के बाद से कोमा संधर्ष कर रही है एक न जीतने वाली लड़ाई लड़ रही है बस इसलिये कि उसे समाज स्वीकार कर ले ।
उसको और उसके तीन बच्चों को उसके ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया था । कोमा के भाई ने उसे अपने घर में जगह दे ऱखी है ।
कुछ दिन पहले उसका बड़ा बेटे का शव आम के बाग में लटका मिला ... उसने खुदकुशी कर ली ..जब्कि उसका एचआईवी टेस्ट नगेटिव था ..पर गांव वालों ने उसका जीना दुष्वार कर दिया था ..ये कहे कहे कर कि उसे भी अपने बाप वाली बिमारी है ।
बेटी गिरिजानंदनी और बेटा निरंजन को पहले स्कूल में अलग बिठाया गया और बाद में बाहर निकाल दिया गया ये सब इसलिये हुआ क्योकि स्कूल प्रशासन को लगा कि इनकी वजह से दूसरे बच्चों की सेहत पर असर पड़ेगा।
समाजिक कार्यकर्ता ,स्कूल के हेडमास्टर और उसके पड़ोसी जो अब गांव के सरपंच भी है इन लोगों ने कोमा को बराबर समझाया सहारा दिया और निरंतर प्रयास किया जिसके कारण कोमा कोई ग़लत कदम उठाने बच गई । नहीं तो वो.......भी
इसी संदर्भ में स्थानीय सरकार कि पहल से पंचायती राज संस्थापन की भूमिका काफी अहम हो जाती है ..एचआईवी के प्रति लोगो की रूची को मुख्य विचारधारा में लाने के लिये।
स्थानीय चुने हुए नेता को इस ओर काफी मज़बूती के साथ कदम उठाने चाहिये ।अपने क्षेत्र औऱ ज़िले में लोगों की सोच को बदलने का प्रयास करना चाहिये ।और ये तभी संभव है जब कोई सोचे की भारत गांव मे बसता है और ग्रामीण क्षेत्र में हज़ारों - लाखों लोगों का घर है । जो यौन से जूडे मसलों पर बहुत कम बात करते हैं।
वार्ड और ज़िले के स्तर पर चुने गये नेताओं को प्रोत्साहित किया जा रहा कि वो अपने क्षेत्र को एचआईवी नगेटिव बनाये औऱ हर स्तर की योजनाओ में एचआईवी से जूडे लोगों को मुख्यधारा मे लाये ,स्थानीय स्तर पर इसे किस तरह रोका जा सकता है और जो लोग इससे झूझ रहे हैं वो कैसे अपनी देखभाल करे और उन्हे क्या सहायता कि ज़रूरत हो सकती है ।इन सब बातों का ध्यान रखा जाए ।
पंचायत के सदस्य इस मसले पर कुछ इस तरह मदद कर सकते हैं।
1) अफवाए और भेदभाव के विरोध मे बोले।
2) गाव के लोगों को बताना कि वो एचआईवी के बारे में कहा बातचीत कर सकते है कहां उन्हे जानकारी मिल सकती है और वो भी... एकदम मुफ्त..
3) लोगों को प्रोत्साहित करना कि वो ये सारी सुविधाओं का लाभ उठाए ।
4) एचआईवी से जुडे सारे भ्रम तोड़ना।
5) उन लोगों की मदद करना जो एचआईवी का शिकार हैं उन्हे राज्य और केन्द्र सरकार द्वारा मिली सुविधाओ के बारें बताना।
भारत के विभन्न गांव में चुने हुए स्थानीय नेता गांव के लोगों को एक साथ लेकर उन्हे एचआईवी की जानकारी देते हैं।
32 साल की ममता माई राना दोरा ग्राम पंचायत,बी ब्लाक रेनगिलुंडा गंजमान ज़िले उडीसा की सरपंच है ।
वो अपनी ग्राम पंचायत मे होने वाले कामो का जायज़ा लेती है उनकी पंचायत के तहत 7 गांव आते हैं जिसकी तकरीबन 4,000 की आबादी है ।
वो जब गांव के लोगों से बात करती है तो उस दौरान वो एचआईवी का ज़िक्र करना नहीं भूलती ।उन्होने एचआईवी को अपनी योजनाओं में मुख्य स्थान दे ऱखा है वो एचआईवी से ज़ुडी सारी आशंकाओं को मिटाने का प्रत्यन करती हैं।लोगों की समस्याओं को सुनती और उन्हे उसका हल बताती हैं ।
ममता माई एचआईवी जागरूक सभाओं का आयोजन के साथ नेतृत्व भी करती है । दूसरे गांव औऱ स्कूलो में जा कर इस विष्य पर बोलती भी हैं औऱ स्वयं सहायता संगठन में ,जो केन्द्रित है उन घरेलू औरतों पर जिनके पति दूसरे शहरों मे मज़दूरी के लिये आते जाते रहते हैं ।
वो एचआईवी के प्रति जागरूकता लाने के लिये और लोगों में इसका भ्रम दूर करने के लिये सहारा लेती है नुकड्ड नाटकों ,रंगमंच और प्रतियोगिताओं का ।
स्पष्टा और खुलापन एचआईवी के प्रति सरकारी चुने हुये नुमाइदों मे एक अच्छा उदाहरण पेश करता है ।
लोगों को आगे आने की ज़रूरत है तभी इसे कामयाबी मिले गी जब हम बाहर निकल कर इसके बारे में बात करें .
खामोशी न तो समस्या को खत्म करती है न ही एचआईवी के सच को झूठला सकती है पर हां देरी तुरन्त एचआईवी के वाइरस को रोकने में रूकावट ला सकती है और ये देरी एचआईवी से ग्रस्त लोगों के लिये एक समस्या बन जाती है न की समाधान ।चुने हुए जनप्रतिनिधि एचआईवी ग्रस्त लोगों के समक्ष जा कर उन्हे शिक्षित करते हैं समान्य जीवन जीने के लिये उत्साह बढाते
एचआईवी से हमारे समाज और परिवार का कोई भी सदस्य ग्रस्त हो सकता है ।पर इसका बचाव तभी संभव है जब कि हम इसके बारे में खुल कर बात करें उन तरीकों की जिससे इससे बचा जा सकता है अगर सब सही जानकारी दे आफवाओं और ग़लतफमी को न फैलने दे..और हम सब तैयार हों इस संकल्प के लिये कि अगर हमारे गांव कस्बे में कोई एचआईवी + से ग्रस्त है तो हम उसको कभी भी छोटा और अकेला महसूस नहीं होने देगें।
ये तभी मुमकिन है जब हम यौन संबधों के बारें में खुल कर बात करें और स्त्री पुरूष और युवाओं को उत्साहित करे यौन सुरक्षाओं के बारे में यहीं एक मात्र कुंजी है एक स्वस्थ समाज की ।
लोगों द्वारा चुने गये जन प्रतिनिधियों औऱ पंचायती राज संस्थानों के नेताओ का ये कर्तव्य हो जाता कि वो इस बात की पुष्टी करें की गांव में कोडम को सही जगह पहुचाआ गया है हम को ये बात सब को बतानी चाहिये कि एचआईवी टेस्ट अपनी शक्ति और अपनी देखभाल का प्रतिक है ।
जो लोग एचआईवी से पीडित है कानून में उनके अधिकार है ।उनको हर संभव सहायता दिलाई जाती है विभन्न सरकारी योजनाओं के तहत ..भारत के गांव में इसका ज़िम्मा पंचायत को दिया हुआ है वो इस बात को पक्का करे कि किसी स्कूल मे किसी भी ऐसे बच्चे के साथ भेदभाव न करे जिसके मां-बाप एचआईवी (+) से ग्रस्त है ।
सरकार वादा करती कि एचआईवी से जूडे सारे मुद्दो का वो हर स्तर पर लोगों को जवाब दे सकती है और इस विशाल कार्य को पूरा करने में भारत की पंचयातों का मुख्य योगदान है
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