दुनिया

दुनिया सब से पहले महसूस होती है सांसों से । जब ज़िन्दगी जन्म लेती है कोख़ में होती है तो उसके लिये दुनिया का मतलब सिर्फ सांसे होता है । जो सांसे अंदर बाहर होती हैं जिस पानी में वो रहती है वो ही उसकी ज़िन्दगी होती और उसी को वो दुनिया समझ लेती है ।
इस के बाद दुनिया वो है जो आंखों से दिखती है । जो सामने होता है वो दुनिया होती है । जो लोग सामने दिखते है उसका वो ही संसार होता है कितना छोटा सब कुछ आंखो में समाया हुआ।
फिर दुनिया अपना रूप बदलती है फिर जो सुनाई देता है वो संसार होता है यानि वो आवाज़े जो किसी माध्यम से हम तक पहुचने लगती है हम उसे ही दुनिया समझ लेते हैं किसी ने जो बताया किसी ने कुछ कहा वो ही हमारा संसार होता जाता और बनता जाता है ।
फिर दुनिया अपना रूप बदलती है जो समझ में आने लगता है । सासों आंखों और स्वरों से बन कर हमारे दिमाग में पहुचता है वो हमारी दुनिया बन जाती है ...और फिर इस दुनिया को समझने की कोशिश चल पड़ती है ।यानि तकरीबन पांच साल की उम्र से हम दुनिया को समझते आते है पर समझ नहीं पाते ..
और एक दिन सीधी चलती हुई दुनिया उल्टी चलने लगती है ... दिमाग काम करना बंद करने लगता है , कानो से से सुनाई देना कम होने लगता है . आंखों से दिखाई देना मुश्किल हो जाता है और फिर सांसों का चलना कम कम और खत्म हो जाता .. जिस दुनिया का समझने के लिए हम ज़िन्दगी को लगा देते है वो ही दुनिया हम को वापस वहीं भेज देती है जहां से हम आए हुए थे ।। और दुनिया फिर उसी तरह से चलने लगती है।

Comments

nikhil nagpal said…
bhavnatmak tareeke se, zindagi ki zindagi se chal rahi jadojahad, ka ek aisa prastutikaran kiya hai, ki jaise insaano ke beech koi jung chal rahi ho...
आपके ब्लॉग पे आया बहुत ही अच्चा लगा बढ़िया पोस्ट है धन्यवाद |
यहाँ भी आयें|
कृपया अपनी टिपण्णी जरुर दें|
यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो फालोवर अवश्य बने .साथ ही अपने सुझावों से हमें अवगत भी कराएँ . हमारा पता है ... www.akashsingh307.blogspot.com

Popular posts from this blog

woh subhah kab ayaegi (THEATRE ARTISTE OF INDIA)

33 प्रतिक्षत में आम मुस्लमान औरतों के हिस्से क्या... कुछ नहीं..