किसी ने कहा -5

देखा गया है कि जो सचमुच आत्म-कल्याण एवं ईश्वर प्राप्ति के उद्देश्य से सुख सुविधाओं को त्याग कर घर से निकले थे, उन्हें रास्ता नहीं मिला और ऐसे जंजाल में भटक गये, जहाँ लोक और परलोक में से एक भी प्रयोजन पूरा न हो सका । परलोक इसलिए नहीं सधा कि उनने मात्र कार्य कष्ट सहा और उदात्त वृत्तियों का अभिवर्द्धन नहीं कर सके । उदात्त वृत्तियों का अभिवर्द्धन तो सेवा-साधना का जल सिंचन चाहता था, उसकी एक बूँद भी न मिल सकी । पूजा-पाठ की प्रक्रिया दुहराई जाती रही, सो ठीक, पर न तो ईश्वर का स्वरूप समझा गया और न उसकी प्राप्ति का आधार जाना गया । ईश्वर मनुष्य के रोम-रोम में बसा है । स्वार्थपरता और संकीर्णता की दीवार के पीछे ही वह छिपा बैठा है । यह दीवार गिरा दी जाय तो पल भर में ईश्वर से लिपटने का आनन्द मिल सकता है । यह किसी ने उन्हें बताया होता तो निस्सन्देह इन तप, त्याग करने वाले लोगों में से हर एक को सचमुच ही ईश्वर मिल गया होता और वे सच्चे अर्थों में ऋषि बन गये होते ।

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