कर्मफल भी किश्तों में

कर्मफल भी किश्तों में बाजारू व्यवहार नकद लेन-देन के आधार पर चलता है । 'इस हाथ दे, इस हाथ ले' का नियम बनाकर ही छोटे दुकानदार अपना काम चलाते हैं । 'आज नकद, कल उधार' के बोर्ड कई दुकानों पर लगे होते हैं । इतने पर भी यह नियम अकाट्‌य और अनिवार्य नहीं है। सर्वदा ऐसा ही होता हो, सो बात भी नहीं है। बैंक पूरी तरह उधार देने-लेने पर ही अवलम्बित हैं । बैंक कर्ज भी देता है और उसे किश्तों में चुकाने की सुविधा भी । उपरोक्त दोनों व्यवहारों के उदाहरण जीवन में अपनाई गई गतिविधियों के परिणाम उपलब्ध करने के सम्बन्ध में लागू होते हैं । ठीक यही प्रक्रिया मनुष्य शरीर में प्रवेश करने के उपरान्त भी किए गए दुष्कर्मों के सम्बंध में है । उनका सारा प्रतिफल तत्काल नहीं मिलता । यदि मिलने लगे, तो उसी दबाव में जीव दबा रह जाएगा । जीवनक्रम चलाने के लिए या प्रगति की व्यवस्था करने के लिए कोई अवसर ही हाथ न रहेगा, दण्ड की प्रताड़ना से ही कचूमर निकल जाएगा । कर्मफल का अवश्यम्भावी परिणाम चट्‌टान की तरह अटल है, पर उनके सम्बन्ध में यही नियति निर्धारण है कि यह उपलब्धि किश्तों में हो । जिसने दुष्कंर्म किए हैं, उसे दण्ड धीरे-धीरे जन्म-जन्मान्तरों में भुगतना पड़ेगा । यह नियम सत्कंर्मों के बारे में भी है वह भी धीरे-धीरे मिलता रहता है । इस विद्या के कार्यान्वित होने की एक स्वसंचालित प्रक्रिया है। कर्म-बन्धनों की ग्रन्थियाँ बनकर अन्तराल की गहराई में जड़ जमा लेती हैं और फिर धीरे-धीरे अपने अंकुर उगाती रहती हैं । इनका स्वरूप अन्तःप्रेरणा बनकर फलित होता है, जिससे कुकर्मों के फलस्वरूप नारकीय प्रताड़ना भुगतनी पड़ती है । उनकी अन्तःचेतना ऐसी आकांक्षाएँ उत्पन्न करती है, जो आगे भी कुकर्मों की ओर धकेले । ऐसी दशा में सुधार-परिष्कार के सामयिक प्रयत्न उस अन्तःप्रेरणा के दबाव में निरस्त होते, असफल रहते हैं । यदि सत्कर्म सुसंस्कार बनकर अन्तराल में जमे हैं, तो बाह्य परिस्थितियों के प्रतिकूल होने पर भी अपना काम करते हैं । अवरोधों को पराजित करते रहते हैं । पतन के वातावरण को भीतरी चेतना उलट देती है, इस प्रकार कर्मफल उपरोक्त दोनो सिद्धांतों पर कार्य करता है ।

Comments

Popular posts from this blog

इमरान हाशमी को घर नहीं क्योकि वो मुस्लमान हैं....

Hungry Black Bear Breaks Into Canadian Home Looking for Boxes of Pizza Left Near the Door