तेरे कदम
तेरे कदम.....
साल 2013 की है ये बात .
अभी तो शुरू हुई है शुरूआत...
कदम से आगे कदम बढ़ेगे
रूके हुए थे जो अब वो भी चलेगें..
ज़रा इस बहती हुई धारा को तो देखो..
इस जलती हुई शमा को तो देखो
फिज़ा में क्या कुछ हलचल हुई है ...
इससे उससे क्या कुछ बात हुई है ..
इस नगर से उस डगर तक
देखो ये कैसी सुबह हुई है ..
जहां हर तस्वीर अब बदल गई है ....
इस तस्वीर के ज़रा रंगों को तो देखो..
जिसने बनाया है उन हाथों को तो देखों
इसमें तेरी लाल रंग की चूड़िया नहीं मिलेगी
दिवानों और मजनू के लिए
मोहब्बत की पंक्तियां नहीं मिलेगी ....
ये वो कलाई है जो इस वक्त की हकीक़त बताती है
तुझ जैसे और मुझ जैसे कितनों को रास्ता दिखाती है ।
ये वो है जिसने उस दुनिया मैं भी अपनी मर्जी का ही खाया है।
यहां भी तेरे चूह्ले का राशन लाती है ।
अपनो नामों के आगे पीछे के फेरों को भूल जाऊ
अपनी बनाई हुई सोच और परंपराओ को भूल जाऊ
अभी भी वक्त है उसके कदमों की आहट को समझ जाओ
इस चिंगारी की ताप को समझ जाओ...
मर कर भी जो बदलावों की ज्योत जला जाती है
उस ज्योति की लौ को समझ जाऊ...
चीख पुकार दर्द पीड़ा के दौर अब खत्म होगें
तेरे कदमो के पीछे अब सबके कदम होगें......
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