मां
एक सच्ची कहानी ....
ममता के कहानी किस्से आपने ज़रूर सुने होगें मां की मोहब्बत बयां करना शयाद बहुत मुशकिल है ।पर आज बात उस मां की जिसने अपनी सात साल से मरी बच्ची को अपने कलेजे से लगा रखा है ।ये कोई कहानी नहीं, फसाना नहीं ये हकीकत है ...वो भी उस देश की जिसे अपने नियम कानून और व्यवस्था पर बहुत घमंड है ...
तकरीबन दस साल पहेले मिसेज़ फिलोरिडा एक अच्छे मुस्तकबिल के लिये अपने परिवार के साथ ब्रिटेन के लिये रवाना हुईं..अपने देश में सब कुछ सही पर फिर भी बुहत कुछ होता है जिसे सही करने की ज़रूरत होती है ... पति के साथ अपनी ज़िन्दगी की एक अच्छी शुरआत वो भी एक अमीर देश में शायद सब के नसीब में नहीं होता ...
सब कुछ सही था ..भगवान की मेहर थी .. जल्द ही उनके आगन में एक फूल खिला ..... जिसका नाम था सुनैना... सोचा था की सब की नैनो का तारा बनेगी ...उसकी बोली सब सुनेगें पर कुदरत के आगे किसकी चली ...भगवान को क्या मंजूर किसे पता ....
न जाने कौन सी तारीख़ थी कौन सा दिन था .. सुनैना की तबीयत बिगड़ गई...कुछ सोचने समझने का वक्त नहीं था जल्द ही उसे अस्पताल पहुचाया गया .. डॉक्टरों ने जांच शुरू की ..उसे भर्ती किया गया पर सुनैना की तबीयत बद से बदतर होती जा रही थी ...और दस दिन बाद उसकी मौत हो गयी....
ऐसा क्या हुआ जो सुनैना की तबीयत सुधर न सकी .. परिवार अपना आपा खो बैठा .. देखते देखते सजे हुये सपने बिखर गये .. ज़िन्दगी थम गयी ..ज़ाहीर है ऐसे में मां की क्या हालत होगी ... ये खुद ही समझ में आ गया होगा ...मिसेज फिलोरिडा अपना आपा खो चुकीं थी ... अस्पताल जल्दी जल्दी खानापूर्ति करने में लग गया ...जल्द ही नन्ही सी लाश को ,उनके हवाले करने के लिये आमादा हो गया ....
सुनैना की मां जानना चाहती थी की आखिर क्या हुआ उनकी बच्ची को ... वो पोस्टमार्टम कराना चाहती थी ...उस हकीक़त को जानना चाहती थी जिस वजह से उनकी सुनैना दुनिया से रूखसत हो गई ... पर हर जगह के कानून और नियमों के आगे भावनाए बड़ी बेमानी लगती है अस्पताल राज़ी नहीं हुआ कई नियमों का पाठ पढ़ा दिया गया ... पर मां ने भी फैसला कर लिया था कि जब तक जांच नहीं होगी, वो सुनैना को नहीं दफनाए गी ... एक लम्बी लड़ाई के लिये अपने को तैयार किया ..समाज से ठकराने के लिये अपने को मज़बूत बनाया .....नन्ही सुनैना को कई कैमिकल के सहारे रखा गया... पर कहा जाता है जब मुसीबत आती है तो हर तरफ से आती है ..और बार बार आती है .. अस्पताल मान गया, पोस्टमार्टम के लिये .. ये कुछ पल की तो जीत थी पर एक लंबे ..... संघर्ष की पहल . ....
पोस्टमार्टम में समान्य मौत बताई गई जिस पर विशवास कर पाना और मुश्किल था ... पराए देश में न्याय मिलना मुश्किल लग रहा था विकसित देश पर भरोसा कर के परिवार ने इंसाफ के लिये गुहार लगाई ।दूसरा अस्पताल चुना गया पोस्टमार्टम के लिये। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के बाद भी मां को करार नहीं मिला ... हार कर रुख़ किया हिन्दुस्तान का ... साथ में नन्ही सुनैना की लाश भी हिन्दुस्तान पहुचीं...
हर विभाग ने उम्मीद जताई पर .सुनैना की लाश फाइलों में कैद हो कर.. दफ्तरों के चक्कर लगा रही है .....आज भी मां लाश को महफूज़ रखे हुये है ......और इंसाफ की लड़ाई लड़ रही है .........
ममता के कहानी किस्से आपने ज़रूर सुने होगें मां की मोहब्बत बयां करना शयाद बहुत मुशकिल है ।पर आज बात उस मां की जिसने अपनी सात साल से मरी बच्ची को अपने कलेजे से लगा रखा है ।ये कोई कहानी नहीं, फसाना नहीं ये हकीकत है ...वो भी उस देश की जिसे अपने नियम कानून और व्यवस्था पर बहुत घमंड है ...
तकरीबन दस साल पहेले मिसेज़ फिलोरिडा एक अच्छे मुस्तकबिल के लिये अपने परिवार के साथ ब्रिटेन के लिये रवाना हुईं..अपने देश में सब कुछ सही पर फिर भी बुहत कुछ होता है जिसे सही करने की ज़रूरत होती है ... पति के साथ अपनी ज़िन्दगी की एक अच्छी शुरआत वो भी एक अमीर देश में शायद सब के नसीब में नहीं होता ...
सब कुछ सही था ..भगवान की मेहर थी .. जल्द ही उनके आगन में एक फूल खिला ..... जिसका नाम था सुनैना... सोचा था की सब की नैनो का तारा बनेगी ...उसकी बोली सब सुनेगें पर कुदरत के आगे किसकी चली ...भगवान को क्या मंजूर किसे पता ....
न जाने कौन सी तारीख़ थी कौन सा दिन था .. सुनैना की तबीयत बिगड़ गई...कुछ सोचने समझने का वक्त नहीं था जल्द ही उसे अस्पताल पहुचाया गया .. डॉक्टरों ने जांच शुरू की ..उसे भर्ती किया गया पर सुनैना की तबीयत बद से बदतर होती जा रही थी ...और दस दिन बाद उसकी मौत हो गयी....
ऐसा क्या हुआ जो सुनैना की तबीयत सुधर न सकी .. परिवार अपना आपा खो बैठा .. देखते देखते सजे हुये सपने बिखर गये .. ज़िन्दगी थम गयी ..ज़ाहीर है ऐसे में मां की क्या हालत होगी ... ये खुद ही समझ में आ गया होगा ...मिसेज फिलोरिडा अपना आपा खो चुकीं थी ... अस्पताल जल्दी जल्दी खानापूर्ति करने में लग गया ...जल्द ही नन्ही सी लाश को ,उनके हवाले करने के लिये आमादा हो गया ....
सुनैना की मां जानना चाहती थी की आखिर क्या हुआ उनकी बच्ची को ... वो पोस्टमार्टम कराना चाहती थी ...उस हकीक़त को जानना चाहती थी जिस वजह से उनकी सुनैना दुनिया से रूखसत हो गई ... पर हर जगह के कानून और नियमों के आगे भावनाए बड़ी बेमानी लगती है अस्पताल राज़ी नहीं हुआ कई नियमों का पाठ पढ़ा दिया गया ... पर मां ने भी फैसला कर लिया था कि जब तक जांच नहीं होगी, वो सुनैना को नहीं दफनाए गी ... एक लम्बी लड़ाई के लिये अपने को तैयार किया ..समाज से ठकराने के लिये अपने को मज़बूत बनाया .....नन्ही सुनैना को कई कैमिकल के सहारे रखा गया... पर कहा जाता है जब मुसीबत आती है तो हर तरफ से आती है ..और बार बार आती है .. अस्पताल मान गया, पोस्टमार्टम के लिये .. ये कुछ पल की तो जीत थी पर एक लंबे ..... संघर्ष की पहल . ....
पोस्टमार्टम में समान्य मौत बताई गई जिस पर विशवास कर पाना और मुश्किल था ... पराए देश में न्याय मिलना मुश्किल लग रहा था विकसित देश पर भरोसा कर के परिवार ने इंसाफ के लिये गुहार लगाई ।दूसरा अस्पताल चुना गया पोस्टमार्टम के लिये। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के बाद भी मां को करार नहीं मिला ... हार कर रुख़ किया हिन्दुस्तान का ... साथ में नन्ही सुनैना की लाश भी हिन्दुस्तान पहुचीं...
हर विभाग ने उम्मीद जताई पर .सुनैना की लाश फाइलों में कैद हो कर.. दफ्तरों के चक्कर लगा रही है .....आज भी मां लाश को महफूज़ रखे हुये है ......और इंसाफ की लड़ाई लड़ रही है .........
Comments
us maa ko ab har gam sehne ki aadat daalni hogi,chup rehne ki aadat daalni hogi...!
par zindgi ka falsafa to yahi hai..kisi ke jaane se zindgi rukti nahin..kisi ke aane se zindgi jhukti nahin...!
zindgi ki apni ek raftaar hai use to chalna hai.ye to aap sochiye ki aap ko zindgi ke saath chalna hai, ya, zindgi ke baad...
shaan sahab!aaj kuch zyada emotional sa ho gaya main...kyun!