71 साल
भाग -1
रामनरेश अपने बेटे के साथ कार में बैठे एक रशितेदार के घर जा रहे थे..तभी बराबर से गुज़रते हुए एक ऑटो पर उनकी नज़र पड़ी, एक विवाहित जोड़ा उनके पास से गुज़रा .. और रामनरेश खो गये अतित में.. जब उनकी नई नई शादी हुई थी ।बहुत बड़ा कदम था .क्योकि वो अपने खानदान में पहले ऐसे शख्स थे जिन्होने अपने खानदान से अलग शादी की थी सब ने साथ छोड़ दिया था सिर्फ एक बहनोई ही उनके साथ थे
..इंगलिश में एम.ए किया था इस लिये अमरोह के मुस्लिम स्कूल में उन्हे नौकरी मिलने में कोई दिक्कत नही हुई।प्रिसिपलसाहब अच्छे थे और उनको अच्छी सलाह दी और बीएड करने को कहा, मुरादाबाद के हिन्दू कालेज से बीएड किया ...उसी दौरान उनके घर में एक रोशनी आई बेटी के रूप में कहते हैं लड़की लक्ष्मी का रूप होती है ... पर रामनेरश के घर में खर्च बढ़ गया जिसके कारण उन्हे और मेहनत करनी पड़ी । देर रात तक टूयशन पढ़ाने पड़ रहे थे जिसकी वजह वो स्कूल रोज़ देर से पहुच रहे थे ।पसंद करने वाले प्रिंसिपल भी अमरोह छोड़ कर दिल्ली बस गये थे । इसलिये पहले उन्हे नोटिस मिला लेकिन पैसे की ज़रूरत ने नोटिस के डर को भगा दिया ..वो टूयशन बन्द न कर पाये और नौकरी खो बैठे ।
बीबी ने कहा क्यो नहीं दिल्ली जा कर प्रिसिपल से बात करते छोटे शहर से बड़े शहर में आना एक आम आदमी में वैसे ही खौफ पैदा कर देता ,लेकिन परिवार चलाने के लिए अपनी औलाद को पालने के लिए इंसान हर कदम उठाने को तैयार हो जाता है । रामनरेश भी दिल्ली आ गए सच सच प्रिंसिपल साहब को बताया ..उनके सरल स्वभाव से वो पहले से प्रभावित थे ....इसलिए कहा की देखता हूं रामनरेश ने कहा उनके पास तो इतने पैसे भी नहीं है कि वो वापस जा सके ... प्रिसिपल साहब ने पैसे दिये और कहा जल्दी सूचित करेगें..
घर में टूयशन से जो पैसे आते वो इतने नहीं थे कि ज़िन्दगी चल सके... घर का किराया ,राशन, बच्ची का दूघ..ज़िन्दगी में दुख भरने के लिए काफी थे ।...और जब दुख शुरू होते है ...तो वो बस आने शुरू ही हो जाते है ... पत्नी को ब्लड प्रेशर हो गया लो दवाई का खर्च और ..साथ ही मदद करने वाले जीजा ने अपने बच्चे भी भेज दिये, एक खत के साथ भाई रामनरेश ये यहां पढ़ नही पा रहे कृप्या कर के साथ रख लो .तुम्हारे साथ रहे कर पढ़ लेगें ... पढ़ तो लेगे पर खायेगे क्या ...रामनरेश ने सोचा.....
लेकिन अगर आपकी नियत सही है तो अल्लाह भगवान आपकी मदद ज़रूर करता है ...दिल्ली से प्रिसिपल साहब ने सूचना भेज दी ..जल्दी से दिल्ली पहुचे एक सरकारी ऐडीड स्कूल मे नौकरी मिली अमरोह मे काफी कर्ज़दार हो गए थे ...शुरू की पगार उसी में चली गई...दिल्ली में एक भाई भी आ गया..मिल कर एक माकान ले लिया.. काफी समय गुज़र गया था इस दौरान रामनरेश के घर दो और बेटियों ने जन्म ले लिया था ... ज़िन्दगी तो बहुत कुछ दिखाती है ,सपनो से आस, गैरों से उम्मीद ,खून से दगा और घर में औरतो का झगड़ा ..
आये दिन रामनरेश की बीबी और भाभी का झगड़ा होने लगा ..हर बात से बात बढ़ने लगी ... अंदर इतनी खटास भर गई की दोनो को एक दूसरे की शक्ल देखना भी गवारा न रहा ।..बीच बचाव के लिए बिरादरी को बुलाया गया भाई के पास पैसा था, मकान भी उसी के नाम पर था भले ही उसमें पैसे रामनरेश के लगे थे पर मकान रामनरेश को ही खाली करना पड़ा ...साथ ही खाली हो गया विश्वास ... यहीं से शुरू हुई राम नरेश की एक नई जंग...ये बात 1974 की है.....
इस जंग से कैसे जीते राम नरेश ..और क्या हाल है राम नरेश का बताऊंगा दूसरी पोस्ट में.. तब तक अपने विचार भेजते रहिए...
रामनरेश अपने बेटे के साथ कार में बैठे एक रशितेदार के घर जा रहे थे..तभी बराबर से गुज़रते हुए एक ऑटो पर उनकी नज़र पड़ी, एक विवाहित जोड़ा उनके पास से गुज़रा .. और रामनरेश खो गये अतित में.. जब उनकी नई नई शादी हुई थी ।बहुत बड़ा कदम था .क्योकि वो अपने खानदान में पहले ऐसे शख्स थे जिन्होने अपने खानदान से अलग शादी की थी सब ने साथ छोड़ दिया था सिर्फ एक बहनोई ही उनके साथ थे
..इंगलिश में एम.ए किया था इस लिये अमरोह के मुस्लिम स्कूल में उन्हे नौकरी मिलने में कोई दिक्कत नही हुई।प्रिसिपलसाहब अच्छे थे और उनको अच्छी सलाह दी और बीएड करने को कहा, मुरादाबाद के हिन्दू कालेज से बीएड किया ...उसी दौरान उनके घर में एक रोशनी आई बेटी के रूप में कहते हैं लड़की लक्ष्मी का रूप होती है ... पर रामनेरश के घर में खर्च बढ़ गया जिसके कारण उन्हे और मेहनत करनी पड़ी । देर रात तक टूयशन पढ़ाने पड़ रहे थे जिसकी वजह वो स्कूल रोज़ देर से पहुच रहे थे ।पसंद करने वाले प्रिंसिपल भी अमरोह छोड़ कर दिल्ली बस गये थे । इसलिये पहले उन्हे नोटिस मिला लेकिन पैसे की ज़रूरत ने नोटिस के डर को भगा दिया ..वो टूयशन बन्द न कर पाये और नौकरी खो बैठे ।
बीबी ने कहा क्यो नहीं दिल्ली जा कर प्रिसिपल से बात करते छोटे शहर से बड़े शहर में आना एक आम आदमी में वैसे ही खौफ पैदा कर देता ,लेकिन परिवार चलाने के लिए अपनी औलाद को पालने के लिए इंसान हर कदम उठाने को तैयार हो जाता है । रामनरेश भी दिल्ली आ गए सच सच प्रिंसिपल साहब को बताया ..उनके सरल स्वभाव से वो पहले से प्रभावित थे ....इसलिए कहा की देखता हूं रामनरेश ने कहा उनके पास तो इतने पैसे भी नहीं है कि वो वापस जा सके ... प्रिसिपल साहब ने पैसे दिये और कहा जल्दी सूचित करेगें..
घर में टूयशन से जो पैसे आते वो इतने नहीं थे कि ज़िन्दगी चल सके... घर का किराया ,राशन, बच्ची का दूघ..ज़िन्दगी में दुख भरने के लिए काफी थे ।...और जब दुख शुरू होते है ...तो वो बस आने शुरू ही हो जाते है ... पत्नी को ब्लड प्रेशर हो गया लो दवाई का खर्च और ..साथ ही मदद करने वाले जीजा ने अपने बच्चे भी भेज दिये, एक खत के साथ भाई रामनरेश ये यहां पढ़ नही पा रहे कृप्या कर के साथ रख लो .तुम्हारे साथ रहे कर पढ़ लेगें ... पढ़ तो लेगे पर खायेगे क्या ...रामनरेश ने सोचा.....
लेकिन अगर आपकी नियत सही है तो अल्लाह भगवान आपकी मदद ज़रूर करता है ...दिल्ली से प्रिसिपल साहब ने सूचना भेज दी ..जल्दी से दिल्ली पहुचे एक सरकारी ऐडीड स्कूल मे नौकरी मिली अमरोह मे काफी कर्ज़दार हो गए थे ...शुरू की पगार उसी में चली गई...दिल्ली में एक भाई भी आ गया..मिल कर एक माकान ले लिया.. काफी समय गुज़र गया था इस दौरान रामनरेश के घर दो और बेटियों ने जन्म ले लिया था ... ज़िन्दगी तो बहुत कुछ दिखाती है ,सपनो से आस, गैरों से उम्मीद ,खून से दगा और घर में औरतो का झगड़ा ..
आये दिन रामनरेश की बीबी और भाभी का झगड़ा होने लगा ..हर बात से बात बढ़ने लगी ... अंदर इतनी खटास भर गई की दोनो को एक दूसरे की शक्ल देखना भी गवारा न रहा ।..बीच बचाव के लिए बिरादरी को बुलाया गया भाई के पास पैसा था, मकान भी उसी के नाम पर था भले ही उसमें पैसे रामनरेश के लगे थे पर मकान रामनरेश को ही खाली करना पड़ा ...साथ ही खाली हो गया विश्वास ... यहीं से शुरू हुई राम नरेश की एक नई जंग...ये बात 1974 की है.....
इस जंग से कैसे जीते राम नरेश ..और क्या हाल है राम नरेश का बताऊंगा दूसरी पोस्ट में.. तब तक अपने विचार भेजते रहिए...
Comments
but nothing new since long.... do write, i like reading ur blogs...