मै सीख गया...
सीख गया.....
सुबह सुबह उठ कर जब दात मांज रहा था ।तभी शीशे पर नज़र पड़ी एक चेहरा दिखा ध्यान से देखा तो समझ में आया की ये तो मैं ही हूं... आज मेरी हल्की सी दाढ़ी बड़ी थी और उसमें मुझे तीन चार सफेद बाल दिखे... एकदम सन हो गया मै... क्या ज़िन्दगी का इतना लंबा सफर तय कर लिया मैने...
कल की बात लग रही है.... जब घर में आया एक मेहमान अपनी शेविंग किट भूल गया .और मैने स्कूल से आते ही उसकी सारी क्रिम लगा कर शेव करने की कोशिश की थी । तब मेरे चेहेरे पर एक बाल नही था उस वक्त उम्र भी तो 10 साल की थी। .. सब कितना हंसे थे .. उस शीशे के चेहरे से इस शीशे के चेहरे तक आने में 23 साल गुज़र गये ..बदल गया बहुत कुछ ,छूट गये बहुत से लोग.टूट गये कई रिश्ते ...हर बात सुनने वाली मां नही रही ,मोहब्बत करने वाली प्रेमिका भी चली गयी ... मुझको समझने वाले दोस्त भी व्यस्त और दूर हो गये.. रहा तो सिर्फ मै और मेरे सपने..
एक साधारण से परिवार में जन्म लेने के बाद हर लड़के का सपना होता है कि वो जल्दी से सैटल हो जाये थोड़ा पैसा आ जाये कुछ नाम हो जाये यही सोच कर मैने भी अपनी ज़िन्दगी को आगे बढ़ाया ...
डॉक्टर ,इंजीनियर ,सी.ए ,सीएस सब में कोशिश की फिर रंग मंच से जुड़ा मीडिया का कोर्स किया ...सन 1999 आ चुका था ।दोस्त से एक नौकरी की अर्ज़ी लिखवाई .और फिर एक मीडिया हाउस में ट्रेनिंग शुरू की .. और साथ ही शुरू हुआ सपने और हकीक़त का सफर...
सुना था की टेलीविज़न में बहुत पैसा है .. घर वाले भी खुश थे और दोस्त भी अब हम और हमारा लड़का अमीर हो जायेगे ..घर में खुशियां, नौकरी मिल गयी है, अरे टीवी में बहुत पैसा है ..भई सही लाइन पकड़ी तुमने.. सारी बाते मैं सुनता था और एक दबी ख़िसयाई हुई हंसी हसता। क्योंकि मुझे अपनी हैसीयत के बारे में पता था मेरी पगार मात्र 12,00 रूपये थी जिसे दुनिया को मैने 3500 रूपये बताया ..झूठ बोलना, यही मेरा टीवी का पहला पाठ था जो जितनी कुशलता से इसे अदा करता है वो ही सफल होता है ये मैं सीख चुका था ।
पर राह आसान नहीं थी सर पर निर्देशक बनने का जुनून था जिसे क्रेटीव काम कहते हैं वो करना चाहता था । कॉलेज में कविता और नाटक करता था इसलिये लगता था की मझसे ज्यादा कौन क्रेटीव हो सकता है ... पर ज़मीनी सच्चाई कुछ और थी..आप से बेहतर यहां भरे पड़े हैं लोग... इसलिये प्रोडक्शन का काम करना शुरू किया.. प्रोडक्शन भी बहुत बड़ा क्षेत्र है .. एक संगीत के कार्यक्रम में लोगो का बुलाना प्रोग्राम के बैनर पोस्टर लगाना और प्रतियोगियो को ढूढ़ना.... चुनना नही...फिर जो जीत जाये उसके घर इनाम पहुचाना ... ये था पहला प्रोडक्शन का काम ...पर रिशतेदारों और दोस्तों में बड़ी लैट थी क्योंकि टीवी में नाम आता था। करता क्या हूं, मिलता क्या है क्रेडीट रोल में नाम देख कोई कुछ नही पुछता...
अपने को दिलासा देता रहा की अभी तो सीख रहा हूं..और ये सीखना कई साल तक जारी रहा ...जब भी पैसे बढ़ाने की बात होती तभी मैडम कहे देती अभी तो ये सीख रहा है .. कोई ज़िम्मेदारी की बात होती तब भी कहा जाता अभी नहीं आप को बहुत कुछ सीखना है ... मेरे एक दोस्त ने कहा यार कब तक सीखोगे बात दिल को लगी नौकरी छोड़ दी .. जब दूसरी जगह काम पर गया तो पता चला कि अब तक जो सीखा वो किसी काम का ही नहीं..अभी तो और बहुत कुछ सीखना है ... फिर जो सीखने का दौर शुरू हुआ वो अब तक खत्म ही नही हो रहा .. शेव करते हुए आफिस से फोन आगया ..आप कब तक आयेगें मैने बिना संकोच के कहा ,रास्ते में हूं ...जाम है.. जैसे ही खत्म हो गा पहुचता हूं.. फोन रखने के बाद मै मुस्कुराया और मन में कहा चलो ये तो मै सीख गया.....
सुबह सुबह उठ कर जब दात मांज रहा था ।तभी शीशे पर नज़र पड़ी एक चेहरा दिखा ध्यान से देखा तो समझ में आया की ये तो मैं ही हूं... आज मेरी हल्की सी दाढ़ी बड़ी थी और उसमें मुझे तीन चार सफेद बाल दिखे... एकदम सन हो गया मै... क्या ज़िन्दगी का इतना लंबा सफर तय कर लिया मैने...
कल की बात लग रही है.... जब घर में आया एक मेहमान अपनी शेविंग किट भूल गया .और मैने स्कूल से आते ही उसकी सारी क्रिम लगा कर शेव करने की कोशिश की थी । तब मेरे चेहेरे पर एक बाल नही था उस वक्त उम्र भी तो 10 साल की थी। .. सब कितना हंसे थे .. उस शीशे के चेहरे से इस शीशे के चेहरे तक आने में 23 साल गुज़र गये ..बदल गया बहुत कुछ ,छूट गये बहुत से लोग.टूट गये कई रिश्ते ...हर बात सुनने वाली मां नही रही ,मोहब्बत करने वाली प्रेमिका भी चली गयी ... मुझको समझने वाले दोस्त भी व्यस्त और दूर हो गये.. रहा तो सिर्फ मै और मेरे सपने..
एक साधारण से परिवार में जन्म लेने के बाद हर लड़के का सपना होता है कि वो जल्दी से सैटल हो जाये थोड़ा पैसा आ जाये कुछ नाम हो जाये यही सोच कर मैने भी अपनी ज़िन्दगी को आगे बढ़ाया ...
डॉक्टर ,इंजीनियर ,सी.ए ,सीएस सब में कोशिश की फिर रंग मंच से जुड़ा मीडिया का कोर्स किया ...सन 1999 आ चुका था ।दोस्त से एक नौकरी की अर्ज़ी लिखवाई .और फिर एक मीडिया हाउस में ट्रेनिंग शुरू की .. और साथ ही शुरू हुआ सपने और हकीक़त का सफर...
सुना था की टेलीविज़न में बहुत पैसा है .. घर वाले भी खुश थे और दोस्त भी अब हम और हमारा लड़का अमीर हो जायेगे ..घर में खुशियां, नौकरी मिल गयी है, अरे टीवी में बहुत पैसा है ..भई सही लाइन पकड़ी तुमने.. सारी बाते मैं सुनता था और एक दबी ख़िसयाई हुई हंसी हसता। क्योंकि मुझे अपनी हैसीयत के बारे में पता था मेरी पगार मात्र 12,00 रूपये थी जिसे दुनिया को मैने 3500 रूपये बताया ..झूठ बोलना, यही मेरा टीवी का पहला पाठ था जो जितनी कुशलता से इसे अदा करता है वो ही सफल होता है ये मैं सीख चुका था ।
पर राह आसान नहीं थी सर पर निर्देशक बनने का जुनून था जिसे क्रेटीव काम कहते हैं वो करना चाहता था । कॉलेज में कविता और नाटक करता था इसलिये लगता था की मझसे ज्यादा कौन क्रेटीव हो सकता है ... पर ज़मीनी सच्चाई कुछ और थी..आप से बेहतर यहां भरे पड़े हैं लोग... इसलिये प्रोडक्शन का काम करना शुरू किया.. प्रोडक्शन भी बहुत बड़ा क्षेत्र है .. एक संगीत के कार्यक्रम में लोगो का बुलाना प्रोग्राम के बैनर पोस्टर लगाना और प्रतियोगियो को ढूढ़ना.... चुनना नही...फिर जो जीत जाये उसके घर इनाम पहुचाना ... ये था पहला प्रोडक्शन का काम ...पर रिशतेदारों और दोस्तों में बड़ी लैट थी क्योंकि टीवी में नाम आता था। करता क्या हूं, मिलता क्या है क्रेडीट रोल में नाम देख कोई कुछ नही पुछता...
अपने को दिलासा देता रहा की अभी तो सीख रहा हूं..और ये सीखना कई साल तक जारी रहा ...जब भी पैसे बढ़ाने की बात होती तभी मैडम कहे देती अभी तो ये सीख रहा है .. कोई ज़िम्मेदारी की बात होती तब भी कहा जाता अभी नहीं आप को बहुत कुछ सीखना है ... मेरे एक दोस्त ने कहा यार कब तक सीखोगे बात दिल को लगी नौकरी छोड़ दी .. जब दूसरी जगह काम पर गया तो पता चला कि अब तक जो सीखा वो किसी काम का ही नहीं..अभी तो और बहुत कुछ सीखना है ... फिर जो सीखने का दौर शुरू हुआ वो अब तक खत्म ही नही हो रहा .. शेव करते हुए आफिस से फोन आगया ..आप कब तक आयेगें मैने बिना संकोच के कहा ,रास्ते में हूं ...जाम है.. जैसे ही खत्म हो गा पहुचता हूं.. फोन रखने के बाद मै मुस्कुराया और मन में कहा चलो ये तो मै सीख गया.....
Comments
ALOK SINGH "SAHIL"