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Showing posts from January, 2009

ऐ फिज़ाओं संभल जाऊ..

कितनी औऱ फिज़ा ... चंद्र मोहन से चांद मोहम्मद हुए, अपनी प्रेमिका को फिज़ा का नाम दिया..प्यार मोहब्बत की कसमें खाई.. घरबार छोड़ा, पत्नी से नाता तोड़ा .कुर्सी से हटाये गये ,जायदाद से बेदखल हुये.. फिज़ा के लिये .. और फिर फिज़ा को छोड़ कर लापता हो गये। फिज़ा ने खुदकुशी की कोशिश की..एक हवलदार की गोद में अस्पताल तक पहुची। चांद दिखता है खुले आकाश में, फिज़ा उसको ज्यादादेर तक छुपा कर नहीं रख सकती है ... ये हक़कीत है ..जिसे न जाने क्यों फिज़ा भूल गई और हम टीवी वालों को याद न रहा ... इस कहानी पर थोड़ी देर में आयेगें..अभी तवारिखों के पन्नों को पलट कर कुछ समझने के लिये थोड़ा पीछे चलते हैं ..धर्मेन्द्र और हेमा की शादी की तरफ...इन्होने भी इस्लाम कबूल कर शादी की ..दो बेटियों को जन्म दिया .. पर धर्मेन्द्र अपने पुराने परिवार के पास वापस चला गया.. हेमा आज कुछ भी कहे अपने सम्मान मे कसीदे पढ़े धर्मेन्द्र को सर आंखों में बिठायें पर कहीं न कहीं वो अपने को ठगा महसूस करती होगीं..आज जब भी उनके और धर्मेन्द्र का ज़िक्र आता है तो साथ ही एक लम्बी कहानी ..सब को सुनाई जाती है ..। जिस धर्म के तहत शादी की वो महज़ब छो़...

मैं एक असफल आदमी हूं......

कुछ पता नहीं जिन्दगी अपनी रफतार से चली जा रही है.बहुत आगे निकलने के बाद देखता हूं.. तो लगता है बहुत कुछ पीछे छूट गया ..कई लोगों को भूल गया कई रास्तों को छोड़ दिया .. कई रिशतों को तोड़ दिया .. किस तरफ चलना चाहता था किस तरफ चल रहूं ..कुछ दिन हंसी-खुशी में कटते हैं । फिर वो ही अंधेरी रात ..और मेरा अकेलापन मेरे साथ हो लेता है ..हर चीज़ से बोर होने लगता हूं.. लगता है क्या कर रहा हूं...और क्या करने जा रहा हूं..सुकून की तलाश.. पर फिर सोचता किस चीज़ का सुकून पैसों का या रिशतों का या फिर दोनो का ... किसी से बात करने का दिल नहीं करता ,किसी की इज्ज़त करने का मन नहीं करता .कोई बोले तो उसको दस बाते सुनाने का मन करता है ..कहीं किसी तरह खुश नही.. कई बार मन करता है मर जाऊ पर वो भी इतना आसान नहीं.. ट्रेन,बस, पानी ,बेल्ड ,गैस , फिनायल ,पंखा, सब को देख कर डर लगने लगता है ..और डरपोक लोग मर नहीं सकते है ..इसलिये और उदास हो जाता हूं...कि करूं तो क्या करूं... सड़क पर चलता हूं तो लगता है ..हर आदमी मेरी तरफ देख रहा है, हंस रहा है, मेरा मज़ाक उड़ा रहा .. मुझ पर ताने कस रहा है ..दुनिया से नफरत होने लगी है रिशते ...

..DCP SIR, DELHI TRAFFIC POLICE

... 26 जनवरी आने वाली है औऱ दिल्ली ट्रफिक पुलीस ज़ोर शोर से अपने काम पर लग गई । कुछ करें या न करे पर चलान और चलान के साथ हाथ गर्म कर वाना शुरू हो जाता है ..क्या बडा, क्या बच्चा ,क्या ट्रक , क्या कार और क्या साईकिल सब का चलान होगा क्योंकि इस विभाग में सब का माल बराबर है .. हवलदार हो या डीसीपी.. जो अभी नये आयें है बंगाली बाबू थोड़ा ज्यादा खाते हैं.. और सब कंपनी के बॉस को अच्छी तरह जानते है ..अपने सिपाही.का पूरा साथ देते हैं ..क्यों न दे आखिर उनका भी तो हिस्सा है । आजकल हवलदारों को मोटरसाइकिल मिल गई है सरकार ने दी है ..इस लिये की अगर जी अगर कोई बड़ी घटना कर के भागे तो उसका पीछा करें पर बड़ी घटना वाले से तो पहले ही बड़ा माल ले लिया जाता है ..इसलिये उसके पीछे भागने का तो सवाल ही नहीं हो सकता ..पर हां छोटा आदमी जिसको कुछ मालुम ही नहीं उसके पीछे रॉबीन हुड की तरह अपनी मोटरसाइकिल लग देते हैं मांगी जाती खूले में रिश्वत ..नहीं देने पर गिरेबान भी पकड लिया जाता है ... ये सब देखकर इस देश में जो आवाज़ उठा सकता है वो है पत्रकार आदमी को बचाया पुलिस वाले को समझाया ..जब बात नहीं बनी तो डीसीपी को फोन लगा...

तुम याद आये

तुम याद आये ... और याद आये तु्महारे अशार ये धूप किनारा ,शाम ढले मिलते हैं दोनो वक्त जहां जो रात न दिन, जो आज न कल पल भर को अमर पल भर में धुआं इस धूप किनारे पल दो पल होठों की लपक बाहों की छनक ये मेरा हमारा झूठ न सच क्यूं राड़ करो, क्यूं दोष धरो किस कारण झूठी बात करो जब तेरी समंदर ऑखों में इस शाम का सूरज डूबेगा सुख सोएगा घर दर वाले और राही अपनी रह लेगा...

2009 ..डराना नहीं चाहता

2009 ..डराना नहीं चाहता ये बात सही है कि 2008 बुरी खबरों, दर्दनाक हादसों से भरा रहा । हर रोज़ कहीं से कोई बुरा समाचार सुनाई दे ही देता... पर एक बात जो साल 2008 में खास रही वो ये कि 2008 पत्रकार और पत्रकारिता करने वालों के लिये बेहतर साल था ... राज्यों के चुनाव,बंब बलास्ट,आंतकवादियों के पकडे जाने की खबर, सचिन का रिकॉर्ड,सौरव का इस्तिफा,धोनी को कमान, ओबामा की विजय... मनमहोन का गुस्सा.सोनिया की ललकार ,नेताओं पर थूथूकार, सीबीआई पर लानत ,शहिदों को सलाम ,देश का गौरव और देश पर आर्थिक संकट... इस से ज्यादा पत्रकारिता के रंग नही हो सकते और इस से अधिक पत्रकार को मौके नहीं मिल सकते .. पूरे साल हर प्रकार की रिपोर्टिंग करने के बाद 2009 में हर पत्रकार का सपना है कि उन्हे इसका सिलहा मिले ..पगार बढ़े और हर तरह के दूसरे लाभ मिले .. पर कुछ मिलना तो दूर यहां पत्रकार अपनी अपनी नौकरी बचाने में लग गये हैं... .जी, देश में आर्थिक संकट का असर टेलिविजन की न्यूज़ इंडस्ट्री पर पड़ना शुरू हो गया है ..और इसके असर भी दिखाई पड़ने लगे हैं.. किसी चैनल में लोगो की सैलरी घटा दी गई है .., कही पीकप ड्राप बंद कर दिये गये ह...