शक्ले बदलेगीं पर नज़रे नहीं
देखो उसने मुझे देखा अच्छा लगा फिर देखा तो मैने कुछ सोचा जब फिर देखा तो कुछ अटपटा लगा अब वो फिर देख रहा और मुझसे बर्दाशत नही हो रहा क्यो ये मुझे बार बार देखा रहा देखने की भी हद होती है हिम्मत कर के मैने भी उसे देखा पर कुछ देर के बाद मैं न देख पाई पर वो देखता जा रहा है मुझे तो अब घबराहट हो रही है कौन है ..क्यों देख रहा है क्या कोई जान पहचान का है आस पडोस का कोई रिश्तेदार या कोई रिश्ते लाने वाला पर ऐसे कैसे मुझे ये देख सकता है पास जाऊं..नही नहीं बेकार की बात है क्यों बात को बढ़ाऊं पर अब भी मुझे वो देख रहा है अब मुझे डर लगा रहा क्या चाहता है क्यों इस तरह.. बार-बार मेरी तरफ मेरी तरफ मेरी तरफ क्या मंशा है क्या करूं ..क्या न करू शोर करूं..ज़ोर से नहीं नहीं नहीं यहां से भागों पर कहा क्या इन नज़रों से बच सकती हूं या ये नज़र मेरा पीछा छोड़ सकती हैं मुझे तो इन आंखों के साथ ही जीना है इन्ही के साथ रहना जहा भी पहुचना है वहां इन्ही को पाना शक्ले बदलेगीं पर नज़रे नहीं लोग बदलेगे पर सोच नहीं