मां.....
मां.....
क्यों चली गई
बहुत याद आती है
आंख अक्सर भर जाती है
कुछ कहूं ,कुछ करूं
तेरी शबी नज़र आती है
आज मलाल है तेरे जाने का
तेरे लिए कुछ न कर पाने का
मैं नाकारा रहा निक्मा रहा
फिर भी तेरा दुलारा रहा..
वो शब्द अब भी गूंजते है
मैं चली जाऊंगी जब पता चलेगा
वो शायद तब मज़ाक था पर
उस हकीक़त का एहसास अब हो रहा है...
सच मैं मां बहुत याद आती है
शान....
क्यों चली गई
बहुत याद आती है
आंख अक्सर भर जाती है
कुछ कहूं ,कुछ करूं
तेरी शबी नज़र आती है
आज मलाल है तेरे जाने का
तेरे लिए कुछ न कर पाने का
मैं नाकारा रहा निक्मा रहा
फिर भी तेरा दुलारा रहा..
वो शब्द अब भी गूंजते है
मैं चली जाऊंगी जब पता चलेगा
वो शायद तब मज़ाक था पर
उस हकीक़त का एहसास अब हो रहा है...
सच मैं मां बहुत याद आती है
शान....
Comments
बेहद ईमानदार रचना।