मां.....

मां.....
क्यों चली गई
बहुत याद आती है
आंख अक्सर भर जाती है
कुछ कहूं ,कुछ करूं
तेरी शबी नज़र आती है
आज मलाल है तेरे जाने का
तेरे लिए कुछ न कर पाने का
मैं नाकारा रहा निक्मा रहा
फिर भी तेरा दुलारा रहा..
वो शब्द अब भी गूंजते है
मैं चली जाऊंगी जब पता चलेगा
वो शायद तब मज़ाक था पर
उस हकीक़त का एहसास अब हो रहा है...
सच मैं मां बहुत याद आती है
शान....

Comments

Mithilesh dubey said…
माँ बहुत याद आती है। दिल को छु लेने वाली रचना।
Shan........ bahut achcha likha hai........ main bhi apni maa ko bahut miss karta hoon......... aur bilkul yahi kahna chahta hoon ....jo aapne apni is kavita mein likha hai.......
drparveenchopra said…
आप ने इतने दिल से यह रचना रच डाली है कि समझ लें कि यह आप की मां जी तक पहुंच ही गई और वे जहां भी हैं वहीं से आप को आशीर्वाद दे रही होंगी।
बेहद ईमानदार रचना।
माँ बहुत बढ़िया रचना लिखी है बधाई.
मेरी आंखें भर आई हैं शान...
nikhil nagpal said…
maa... ! ye ek shabd hi bahot hai apne andar chipe hue ek nanhe bachche ko zinda rakhne ke liye !

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