कुत्ते


कुत्ते
मेरी आंखों में ना मोहब्बत है.... न कोई ख्वाब...
सिर्फ है तो वो है तलाश...
उसी चीज़ की तलाश जो आज का हर इंसान करता है ...
रोटी ..नौकरी ... और प्यार की.....
इसी की खोज में मैं दर दर भटकता हूं...
भटकता हूं ...इस गली ..इस कूचे...
अमीरों के बचे हुए झूठन में अपने पेट को राहत देने के लिए ..
गंदगी ..कूड़ा ,नाली ..नाले ... सड़क... कचरा ..कुछ भी ... बस मेरा पेट शांत होना चाहिए...
अगर ..पेट में हलचल है तो .वो हलचल भंकूप का रूप लेकर मेरे मुंह से निकलने लगेगी...
और जब खाली पेट की आवाज़ मुंह से निकलती है ... तो वो बहुत खौफनाक होती है...
वो भूल जाती है हर रिश्ते ..हर नाते ...वैसे भी सड़क पर रहने वाले .. किसी डोर नहीं बंघे होते ...
रिश्ते नातो को वो इस सड़क पर रोज़ टोटते और बिकते देखते है...
मैं खुश हूं की मैं कुत्ता हूं.... इंसानों के लिए एक सब से बड़ी गाली .... पर मैं बता दूं ..हमारे अंदर भी इंसानो के गुण आ गए हैं .. दूसरों के  इलाकों में हमें घुस्सने की इजाज़त नहीं है ..दूसरों की औरतों को देखने का हक नहीं है... पर क्या करें ...इन हरकातों को करने से  जब इंसान ही बाज़ नहीं आता ... तो हम कैसे अपने को रोके ... हम तो कुत्ते है...रात और दिन किसी के साथ भी कट जाये..बस पेट की आग बुझ जाये... चाहे उसके लिए ..जिस्म की किमत भी क्यों न देनी पड़े...
हम कुत्ते है... पर आजकल तो हर जगह हमें अपनी कौम के लोग ही दिखते है... भूखे... बेरोज़गार.. दानव ... लालच से भरे ... कुत्ते की ज़िन्दगी जीते और कुत्ते की तरह .........मरते हुए ........ 

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