वो
वो
वो मर गया मै इसलिये उदास नहीं हूं...
क्योकि मृत्यु तो मुक्ति है
और मुक्ति तो स्वंतत्रता होती है ।
स्वतत्रता के लिये उदास होना विद्रोह...
और मैं विद्रोही नही....
धरती तो बंधक है कर्म और कर्तव्य की ..
जो उसे जितना नोकों से कुरेदेगा ....
उसी को तो उसे फल देना है ...
नित दिन पीडा सहने के बाद भी
उसको तो मुसकराना है
मैं भी तो उसका एक कार्यकर्ता हूं
वो मर गया.. मैं इसलिये उदास नहीं हूं ।
अंबर भी तो सुचालक है आशाओं और कल्पनाओं का ..
दूर से ही सिमट आये आंखों मे हमारी ।
हर दिन हमको नये सपनो मे ले जाता है...
उसकी महानता और ऊचाई हमको कितनी छोटी लगती है ।
मैं भी तो उस छोटे से अंबर पर चढ़ना चाहता हूं..
वो मर गया... मै इसलिये उदास नहीं हूं...
कौन था वो... अपना था , पराया था या फिर मेरा अपना ही साया था
छटी उंगली ही सही, था वो मेरे शरीर का ही अंग
वो कटगया या मर गया ,मैने कितनी सरलता से बखान किया...
क्योकि देखता हूं मैं सुनता हूं, मैं हर तरफ अजीवित इंसानों को
मैं भी तो इन शवो के भंडार में एक शव हूं..
वो मर गया मैं इस लिये उदास नहीं हूं......
वो मर गया मै इसलिये उदास नहीं हूं...
क्योकि मृत्यु तो मुक्ति है
और मुक्ति तो स्वंतत्रता होती है ।
स्वतत्रता के लिये उदास होना विद्रोह...
और मैं विद्रोही नही....
धरती तो बंधक है कर्म और कर्तव्य की ..
जो उसे जितना नोकों से कुरेदेगा ....
उसी को तो उसे फल देना है ...
नित दिन पीडा सहने के बाद भी
उसको तो मुसकराना है
मैं भी तो उसका एक कार्यकर्ता हूं
वो मर गया.. मैं इसलिये उदास नहीं हूं ।
अंबर भी तो सुचालक है आशाओं और कल्पनाओं का ..
दूर से ही सिमट आये आंखों मे हमारी ।
हर दिन हमको नये सपनो मे ले जाता है...
उसकी महानता और ऊचाई हमको कितनी छोटी लगती है ।
मैं भी तो उस छोटे से अंबर पर चढ़ना चाहता हूं..
वो मर गया... मै इसलिये उदास नहीं हूं...
कौन था वो... अपना था , पराया था या फिर मेरा अपना ही साया था
छटी उंगली ही सही, था वो मेरे शरीर का ही अंग
वो कटगया या मर गया ,मैने कितनी सरलता से बखान किया...
क्योकि देखता हूं मैं सुनता हूं, मैं हर तरफ अजीवित इंसानों को
मैं भी तो इन शवो के भंडार में एक शव हूं..
वो मर गया मैं इस लिये उदास नहीं हूं......
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क्योकि देखता हूं मैं
सुनता हूं, मैं
हर तरफ अजीवित इंसानों को
मैं भी तो इन शवो के भंडार में एक शव हूं..