2009 ..डराना नहीं चाहता
2009 ..डराना नहीं चाहता
ये बात सही है कि 2008 बुरी खबरों, दर्दनाक हादसों से भरा रहा । हर रोज़ कहीं से कोई बुरा समाचार सुनाई दे ही देता... पर एक बात जो साल 2008 में खास रही वो ये कि 2008 पत्रकार और पत्रकारिता करने वालों के लिये बेहतर साल था ... राज्यों के चुनाव,बंब बलास्ट,आंतकवादियों के पकडे जाने की खबर, सचिन का रिकॉर्ड,सौरव का इस्तिफा,धोनी को कमान, ओबामा की विजय... मनमहोन का गुस्सा.सोनिया की ललकार ,नेताओं पर थूथूकार, सीबीआई पर लानत ,शहिदों को सलाम ,देश का गौरव और देश पर आर्थिक संकट...
इस से ज्यादा पत्रकारिता के रंग नही हो सकते और इस से अधिक पत्रकार को मौके नहीं मिल सकते .. पूरे साल हर प्रकार की रिपोर्टिंग करने के बाद 2009 में हर पत्रकार का सपना है कि उन्हे इसका सिलहा मिले ..पगार बढ़े और हर तरह के दूसरे लाभ मिले .. पर कुछ मिलना तो दूर यहां पत्रकार अपनी अपनी नौकरी बचाने में लग गये हैं...
.जी, देश में आर्थिक संकट का असर टेलिविजन की न्यूज़ इंडस्ट्री पर पड़ना शुरू हो गया है ..और इसके असर भी दिखाई पड़ने लगे हैं.. किसी चैनल में लोगो की सैलरी घटा दी गई है .., कही पीकप ड्राप बंद कर दिये गये हैं.. जहा खाना नाशता मिलता था वहा पर पाबंदी लगा दी गई...टॉयलेट पैपर तक गायब हो चुके हैं ,बहुतों को नोटीस मिल गये और बहुतों की नौकरी से छुट्टी कर दी गई है....
ये साल काफी भारी रहे गा पत्रकार भाईयों के लिये लोकसभा चुनाव तक तो कुछ ख़ास नहीं हो गा पर और उसके बाद किस पर तलवार चलती है और कौन बचता है ये देखना होगा...
चैनलों मे लिस्ट तैयार हो चुकी है नाम पर विचार हो रहा है या हो चुका है हर चैनल इस साल आखिरी दांव खेले गा ..टीआरपी की दौड़ काफी खतनाक तरीके से दौड़ी जायेगी .कोई भी किसी तरह का मौका खोना नहीं चाहता ये रखना नहीं चाहता की ये कर दिया होता तो ये नहीं होता .हर को मौका दिया जा रहा है डूबते जहाज़ को बचाने की कोशिश जारी है ..बड़े चैनलों पर असर शायद देर से हो पर छोटे चैनलों की नईया पार लगना मुश्किल है ।
दोस्तों ने अपने BIO-DATA भेजने शुरू कर दिये है .पर दोस्त यहां अपनी नौकरी बच जाये वो गनिमत है.. आप के लिये क्या कर पायेगें..कंपनी सच मे घाटे में चल रही हैं क्योकि पैसा लगाने वालों के पास ही पैसा नहीं है।..एक बड़ा संकट ..आपको बता दिया है ।मंथन में कौन निकल पाता है मालुम नहीं।..इस साल तैयार रहिये कैसे रहना ये आप खुद बेहतर जानते होगें ।
ये बात सही है कि 2008 बुरी खबरों, दर्दनाक हादसों से भरा रहा । हर रोज़ कहीं से कोई बुरा समाचार सुनाई दे ही देता... पर एक बात जो साल 2008 में खास रही वो ये कि 2008 पत्रकार और पत्रकारिता करने वालों के लिये बेहतर साल था ... राज्यों के चुनाव,बंब बलास्ट,आंतकवादियों के पकडे जाने की खबर, सचिन का रिकॉर्ड,सौरव का इस्तिफा,धोनी को कमान, ओबामा की विजय... मनमहोन का गुस्सा.सोनिया की ललकार ,नेताओं पर थूथूकार, सीबीआई पर लानत ,शहिदों को सलाम ,देश का गौरव और देश पर आर्थिक संकट...
इस से ज्यादा पत्रकारिता के रंग नही हो सकते और इस से अधिक पत्रकार को मौके नहीं मिल सकते .. पूरे साल हर प्रकार की रिपोर्टिंग करने के बाद 2009 में हर पत्रकार का सपना है कि उन्हे इसका सिलहा मिले ..पगार बढ़े और हर तरह के दूसरे लाभ मिले .. पर कुछ मिलना तो दूर यहां पत्रकार अपनी अपनी नौकरी बचाने में लग गये हैं...
.जी, देश में आर्थिक संकट का असर टेलिविजन की न्यूज़ इंडस्ट्री पर पड़ना शुरू हो गया है ..और इसके असर भी दिखाई पड़ने लगे हैं.. किसी चैनल में लोगो की सैलरी घटा दी गई है .., कही पीकप ड्राप बंद कर दिये गये हैं.. जहा खाना नाशता मिलता था वहा पर पाबंदी लगा दी गई...टॉयलेट पैपर तक गायब हो चुके हैं ,बहुतों को नोटीस मिल गये और बहुतों की नौकरी से छुट्टी कर दी गई है....
ये साल काफी भारी रहे गा पत्रकार भाईयों के लिये लोकसभा चुनाव तक तो कुछ ख़ास नहीं हो गा पर और उसके बाद किस पर तलवार चलती है और कौन बचता है ये देखना होगा...
चैनलों मे लिस्ट तैयार हो चुकी है नाम पर विचार हो रहा है या हो चुका है हर चैनल इस साल आखिरी दांव खेले गा ..टीआरपी की दौड़ काफी खतनाक तरीके से दौड़ी जायेगी .कोई भी किसी तरह का मौका खोना नहीं चाहता ये रखना नहीं चाहता की ये कर दिया होता तो ये नहीं होता .हर को मौका दिया जा रहा है डूबते जहाज़ को बचाने की कोशिश जारी है ..बड़े चैनलों पर असर शायद देर से हो पर छोटे चैनलों की नईया पार लगना मुश्किल है ।
दोस्तों ने अपने BIO-DATA भेजने शुरू कर दिये है .पर दोस्त यहां अपनी नौकरी बच जाये वो गनिमत है.. आप के लिये क्या कर पायेगें..कंपनी सच मे घाटे में चल रही हैं क्योकि पैसा लगाने वालों के पास ही पैसा नहीं है।..एक बड़ा संकट ..आपको बता दिया है ।मंथन में कौन निकल पाता है मालुम नहीं।..इस साल तैयार रहिये कैसे रहना ये आप खुद बेहतर जानते होगें ।
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