तुम याद आये

तुम याद आये ... और याद आये तु्महारे अशार

ये धूप किनारा ,शाम ढले
मिलते हैं दोनो वक्त जहां
जो रात न दिन,
जो आज न कल
पल भर को अमर
पल भर में धुआं
इस धूप किनारे पल दो पल
होठों की लपक
बाहों की छनक
ये मेरा हमारा झूठ न सच
क्यूं राड़ करो, क्यूं दोष धरो
किस कारण झूठी बात करो
जब तेरी समंदर ऑखों में
इस शाम का सूरज डूबेगा
सुख सोएगा घर दर वाले
और राही अपनी रह लेगा...

Comments

seema gupta said…
ये धूप किनारा ,शाम ढले
मिलते हैं दोनो वक्त जहां
जो रात न दिन,
जो आज न कल
पल भर को अमर
पल भर में धुआं
" बहुत प्यारे और नाजुक से भावः....."

Regards

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