हिन्दुओं का अंतिम संस्कार पाकिस्तान में कितना दर्दनाक


हिन्दुओं का अंतिम संस्कार पाकिस्तान में कितना दर्दनाक

बात पुरानी है पर बात शुरू करने के लिये एकदम सटीक ..70 साल की राधा का देहांत 30 मई 2006 में पाकिस्तान के लाहोर शहर में होता है ...राधा का इस दुनिया में कोई नहीं था ..लिहाज़ा उसकी मृत्यु पर भी कोई नहीं आया ..पांच दिन तक उसकी लाश मृत्यु गृह में पड़ी रही ..कारण ये नहीं था कि उसका कोई रिश्तेदार नहीं आया, वज़ह थी कि लाहोर शहर में शमशानघाट है ही नहीं .. Daily News and Analysis(DNA)
पैसों का अभाव जगह की कमी और हिन्दु के मरने पर प्रशासन के कड़े नियम की वज़ह से लाहोर हिन्दु कमेटी ने भी अपने हाथ पीछे खीच लिये..आखिर में उसे मुस्लिम -मियानी साहेब क्रबिस्तान में दफन किया गया ..
इस के बाद वहां के हिन्दुओं ने फिर उठाई शहर में शमशान की मांग..जिसे वो काफी अरसे से कर रहे थे,
बंटवारे के बाद लाहोर में 11 शमशान घाट हुआ करते थे ,मुख्य शमशान घाट मॉडल टाउन,टक्साली गेट,और कृष्णा मंदिर के पास था पर आज कुछ भी नहीं है .ये बात पाकिस्तान की सरकार खुद मानती है । शमशान की ज़मीनों को मकानो में तबदील कर दिया गया ।कुछ में बड़ी बड़ी इमारते तामीर की गई या फिर गिरा दिया गया ।
बंटवारे के वक्त पाकिस्तान के हर शहर में शमशान घाट हुआ करते थे लेकिन ज्यादतर हिन्दु सिंध के इलाके में रूके इसलिये सिंध के तो शमसान घाट कायम हैं पर दूसरे शहरों में हिन्दुओं की कम तादाद होने के कारण शमशान घाट खत्म कर दिये गए हैं..
लाहोर में हिन्दुओं के पास तीन विकल्प बचते हैं अपने प्रियजनों के अंतीम संस्कार करने के
पहला-वो लाश को नानक साहब ले जाये जहां शमशान घाट मौजूद है पर बहुत कम हिन्दु ही ये कर पाते हैं .. क्योंकि पाकिस्तान मे हिन्दुओं की आर्थिक स्थिति मज़बूत नहीं हैं ..नानक साहब ले जाने में बहुत खर्चा होता है ।
दूसरा-विक्लप है कि वो रवि नदी के पास अंतिम क्रिया को अंजाम दे..पर इसमे दो परेशानियां है पहली ये कि इसके लिये सरकार की अनुमति चाहिये होती है जो सरकार से मिलना बहुत मुश्किल होता है रसूक और रिश्वत चलती है जिसे पूरा करने में हिन्दु समर्थ नहीं ..दूसरी बात ये कि वहां आप मरने पर होने वाले क्रिया पाठ नहीं कर सकते जो शमशान में किये जा सकते हैं।
तीसरा- ये कि उन्हे दफना दिया जाये..जिसे वहां के ज्यादातर लोग अपनाते हैं.क्योंकि ये सबसे आसान तरीका है एक खर्चा कम दूसरा किसी अनुमित की ज़रूरत नहीं..
आपको ये जानकर हैरानी होगी कि ज्यादतर हिन्दु इसी का सहारा लेता हैं क्योकि दाह संस्कार में तकरीबन 20 टन लकड़ी और 2 कनस्तर घी की ज़रूरत पड़ती है और पाकिस्तान के हिन्दुओं के पास इतना पैसा नही है..भारत में कई संस्थान मदद के लिये आगे आ जाती हैं पर पाकिस्तान में ऐसा कुछ नहीं है..
दूसरी वजह दफनाने की ये है कि वहा हिन्दु अपनी पहचान छुपा कर रहते हैं ।
बाबरी मस्जिद के बाद तो ये सिलसिला खत्म ही नहीं हुआ।
बाल्मिक सभा के लोग इस के लिये संधर्ष कर रहे है उन्हे कुछ दिलासे भी मिले
1976 में लाहोर के बुंद रोड पर उन्हे ज़मीन दी गई थी पर ज़मीन विवादित थी।इसलिये वहां शमशान घाट नहीं बन पाया । बाद में मई99 में उन्हे 10 कनाल यानि 4,000sqmt कि ज़मीन बुंद रोड ही पर सागियान पुल के पास मुहिया कराई गई..लेकिन सरकारी दांव पेंच के कारण वो ज़मीन इन्हें नहीं सौंपी गई...
पहले पाकिस्तान के सदन में हिन्दु नुमाइंदगी होती पर अब अल्पसंख्यक सीट इसाईयों को दे दी जाती है । मौत के बाद भी पाकिस्तान के हिन्दुओं का दर्द कम नहीं होता ..तालिबान का जुल्म तो अभी चर्चा में आया हैं लेकिन पाकिस्तान के हिन्दु तो बंटवारे के बाद से ही पाकिस्तानी हुक्मत के तालिबानों से डरे-सहमें, जी और मर रहे हैं।।।।
(क्राची में Old Golimar road में शमशान घाट है)

Comments

सही बात उठाई है। पर 20 टन लकड़ी और 2 कनस्तर घी का उल्लेख आपने किया है जिस से लगता है आप को भी हिन्दू अंतिम संस्कार की कोई जानकारी नहीं है। चार-पाँच क्विंटल लकड़ी और पाव भर से किलो भर घी या अधिक श्रद्धानुसार बहुत होता है।
यह हालात देखकर हमारे भाईयों के हैं, पढ़कर दर्द हुआ। जबकि हमारे यहां के अल्पसंख्यक तो बड़े मजे में हैं, और मलाई तो वो ही खा रहे हैं।

अल्पसंख्यक न होते हुए भी अल्पसंख्यक होने का मजा ले रहे हैं।
vipul said…
सर आपने बहुत अच्छा मुद्दा उठाया है इस पहले बरमुडा का मुद्दा भी रोचक था आपके लेख को समझने के लिये अक्ल चाहिये दिनेशजी को अंक्लमंद समझता था पर वो अंतिम संस्कार की विधि समझा रहे हैं इससे साफ ज़ाहिर है वो मुद्दा नहीं समझ सके..मैं तो उनसे अनुरोध करूगां वो पांच क्विंटल लकड़ी और पाव भर घी लेकर जाएं लाहोर तब उन्हे पाक्सितान की हकीक़त और हम हिन्दुओं के साथ हो रहे जुल्म को पता चले गा
विपुल
Unknown said…
दर्दनाक स्थिति है। कुर-आन की व्याख्या और उस पर बहस करने को तड़प रहे लोग इस पर अधिक विस्तार से टिप्पणी कर सकेंगे…। और "पाकिस्तानी नागरिकता", "मुहाजिर" आदि शब्दों के बारे में कहना बेकार ही है… मैं तो बेहद "तु्च्छ" हूं… :)
भारत जैसे देश के अल्पसंख्यक का सौभाग्य हर देश में कहां मिलेगा?????
deepa said…
जी आपने एक़ बहुत ही मार्मिक पहलू को छेडा है जिसे पद कर जिन्दगी के इस पहलू की जानकारी मिली कि हमारे यहाँ अल्प्संख्यक कितनी मौज से जी रहे हैँ
अल्पसंख्यकों को समाप्त करने के तमाम इस्लामी तरीकों में से यह एक है| ऐसे न जाने कितने तरीके दैनिक गतिविधियों से ले कर राष्ट्रीय स्तर तक सफ़लता पूर्वक इस्लाम आजमाता रहा है और रहेगा| अल्लाहताला का हुक्म जो है!
बस यह बता कर आपने मन भारी कर दिया.
सच है, हमारे यहाँ जैसे बाकी जगहों पर अल्प-संख्यकों के साथ जो होता है वो कम है.
विशेषकर हिन्दुओं के साथ.
"ग्रेट" ब्रिटेन में भी दाह-संस्कार को लेकर दिक्कतें हैं.

उसका बड़ा कारण है की हम (हिन्दू) कुछ बोलते नहीं, कुछ करते नहीं.
और हमारी सरकार... जो ना बोलो तो वो ही ठीक है!!!!

~जयंत
RAJNISH PARIHAR said…
pakistan ka yahi sach hai..aur asli chehra bhi....
Anonymous said…
दिनेश जी आप की सोच पर हसी आती है . आप हर कही छिद्र ढूंढते रहने की आदत से मजबूर है. लकडॊ तीन सो किलो और घी ने बिना भी संसकार हो जाते है पर आपने पोस्ट की असली बात को हवा मे उडा दिया . बात है हिंदुओ के मानवाधिकार की जो उसे नही मिला है . लेकिन आपको तो आसिब और उसके वकील की पैरवी से फ़ुरसत कहा . अफ़जल को बिरयानी नही मिले तो आप सर पर आसमान उठा सकते है हिंदुका क्या है मरे तो क्या फ़रक :)
pakistan mein kyon hain?
hindu waapis hindustan kyun nahin aate?
hum log hi kamjor hain... pakistan ko na kosaa jaaye.. usmein us bechaare ka koi dosh nahin!!!
हा-हा-हा, महोदय, जिस भी दुराग्रह से गर्षित होकर अपने यह मुद्दा उठाया हो , लेकिन मजा आ गया जानकार ! अपने देश की विशुद्ध भाषा में बोलना सुरु करू तो ये भैण दा टका है ही इस लायक ! इस.... (brothere in law hindi mein) के कर्म ही ऐसे है ! अगर इसके कर्म भले होते तो इसको तीन-तीन गुलामियाँ, मंगोल, मुग़ल और अंग्रेजो की ( अब चौथी इटली की कर रहा है ) करते करते भी इसे कोई अक्ल नहीं आई ! डरपोक,शांति-शांति ही करता फिरता है और जब मौका मिला सबसे जयादा शांति भंग भी यही करता है! घर में अपने ही भाई की जड़े खोदता रहता है और बाहर वालो के लिए एक भला इन्सान बना फिरता है ! मैं तो कहता हूँ कि इसकी लाश को जलाने के लिए एक लकडी भी नसीब न हो, इसकी लाश सडे और कीडे पड़े उस पर... बदबू आये और ये मुल्ले...(brothere in law hindi mein) हर vakt नाक दबा कर घुमते फिरे !

आह ! अब जाकर दिल कुछ halka हुआ !
बहुत ही हृदयविदारक स्थिति है पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिन्दुओं की. इसके लिए तो खुद भारत सरकार और शीर्ष हिन्दू संगठनों को पाक पर दबाव बनाना चाहिए ताकि वहाँ के हिन्दुओं को कम से कम आखिरी हक तो मिले. यह सही है कि भारत जैसे देश के अल्पसंख्यक का सौभाग्य हर देश में कहां मिलेगा...
आप के अमूल्य सुझावों और टिप्पणियों का 'मेरी पत्रिका' में स्वागत है...

Link : www.meripatrika.co.cc

…Ravi Srivastava
G said…
यह बड़ा ही संवेदनशील मुद्दा है I पढ कर दुःख हुआ. मगर हमारी सरकार इस बारे में शायद कभी कुछ नहीं कर पायेगी . इसी तरह सामाजिक विषयों के बारे में लिखते रहे, कहीं तो कुछ जानकारी मिलेगी, आज कल के चैनलों से तो कुछ उम्मीद करना ही बेकार है.
GYANESH said…
यह बड़ा ही संवेदनशील मुद्दा है I पढ कर दुःख हुआ. मगर हमारी सरकार इस बारे में शायद कभी कुछ नहीं कर पायेगी . इसी तरह सामाजिक विषयों के बारे में लिखते रहे, कहीं तो कुछ जानकारी मिलेगी, आज कल के चैनलों से तो कुछ उम्मीद करना ही बेकार है.
@cmpershad ji ki bat dohraana chahunga...
भारत जैसे देश के अल्पसंख्यक का सौभाग्य हर देश में कहां मिलेगा?????
Aadarsh Rathore said…
जो है सो है....
कोई क्या कर सकता है?
यशपाल said…
हिन्दू तो वहाँ पर भी अल्प संख्यक ( निहतते) है और यहाँ पर भी निहतते है दोनों तरफ मार खा रहे है यहाँ के मुल्लू की आउकट देखिये मुट्ठी भर मुसल्ले सरकार चला रहे है

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