प्रेम पत्र- आज भी तुम्हारी ज़रूरत है
प्रेम पत्र-2
आज भी तुम्हारी ज़रूरत है
दोस्त
तुम्हारा एहसास आज भी है हर तरफ.. जब कभी ज़िन्दगी में अकेली हुई..न जाने क्यों कदम तुम्हारे तरफ चल दिये..ये सोचे बिना उस वक्त तुम क्या कर रहे होगे।कैसे होगे... वक्त होगा या नहीं..ये सब कभी सोचा ही नही, बस तुम्हारे पास पहुच गई..। तुमने दरवाज़ा खोला ऊपर से नीचे तक देखा और अपना हर काम छोड़ कर थोड़ा सा मुस्कराए और मुझे अंदर बुला लिया ।...
तभी न जाने कैसे सारी परेशानी दूर जाते दिखने लगती..बस फिर बैठते ही शुरू हो जाती ..क्या हुआ, कैसे हुआ.किसने किया .दुनिया कितनी खराब सब मेरे पीछे हैं..हर तरफ लोग खाने दौड रहे हैं..क्यों नही मुझे कोई समझता । सब कोई ग़लत बाते क्यों करते हैं..एक सांस मै बोलना शुरू करती ..आंखों में आंसू भर जाते ..धीरे धीरे आवाज़ तेज़ होती जाती .तुम चुप चाप सुनते रहते ..बीच मैं उठ कर पानी ला देते...
मैं आंसू पोछती ..पानी पीती ... फिर अपने आप को संभलता हुआ महसूस करती...
धीरे धीरे तुम कहते.. नहीं, तुम ठीक हो..तुम्हारी बात ठीक है,तुम्हारी सोच सही .. तुम ग़लत नहीं हो सकती..
तुम्हारी बाते मेरे अंदर शक्ति पैदा करती ,जीने की उम्मीद.. संसार फिर अच्छा लगने लगता ... अंधेरे में रोशनी न जाने कैसे पैदा हो जाती ..फिर उठती, तुम्हारा शुक्रिया अदा कर करती ..और चली जाती ..
कभी तुमने कोई गिला नहीं किया, कोई शिकवा नही किया,.कभी ये नहीं कहा... क्यों भई कभी मेरा हाल तो पुछो....कभी मेरे बारे में तो जानो..कुछ, बस.... हर वक्त मेरे लिए तुम्हारे दरवाज़े खुले रहते..
दोस्त आज भी तुम्हारी ज़रूरत महसूस करती हूं..पर क्या करू जब से दूर हुई..कोई डोर ही नहीं रही..जो तुम्हारे पास ले जाए...बस वो यादे हैं, जो तुम को भूलने नहीं देती...समाज की वो चोटें हैं.. जो तुम्हारे न होने का एहसास कराती रहती हैं..
न जाने तुम कहां होगे..पर मेरा ये पत्र पढ़ो तो जवाब ज़रूर देना ... तुम्हार जवाब मेरी ज़िन्दगी को आगे ले जाने में कुछ सहारा बनेगा ।।
जवाब की आस में
तुम्हारी दोस्त...
आज भी तुम्हारी ज़रूरत है
दोस्त
तुम्हारा एहसास आज भी है हर तरफ.. जब कभी ज़िन्दगी में अकेली हुई..न जाने क्यों कदम तुम्हारे तरफ चल दिये..ये सोचे बिना उस वक्त तुम क्या कर रहे होगे।कैसे होगे... वक्त होगा या नहीं..ये सब कभी सोचा ही नही, बस तुम्हारे पास पहुच गई..। तुमने दरवाज़ा खोला ऊपर से नीचे तक देखा और अपना हर काम छोड़ कर थोड़ा सा मुस्कराए और मुझे अंदर बुला लिया ।...
तभी न जाने कैसे सारी परेशानी दूर जाते दिखने लगती..बस फिर बैठते ही शुरू हो जाती ..क्या हुआ, कैसे हुआ.किसने किया .दुनिया कितनी खराब सब मेरे पीछे हैं..हर तरफ लोग खाने दौड रहे हैं..क्यों नही मुझे कोई समझता । सब कोई ग़लत बाते क्यों करते हैं..एक सांस मै बोलना शुरू करती ..आंखों में आंसू भर जाते ..धीरे धीरे आवाज़ तेज़ होती जाती .तुम चुप चाप सुनते रहते ..बीच मैं उठ कर पानी ला देते...
मैं आंसू पोछती ..पानी पीती ... फिर अपने आप को संभलता हुआ महसूस करती...
धीरे धीरे तुम कहते.. नहीं, तुम ठीक हो..तुम्हारी बात ठीक है,तुम्हारी सोच सही .. तुम ग़लत नहीं हो सकती..
तुम्हारी बाते मेरे अंदर शक्ति पैदा करती ,जीने की उम्मीद.. संसार फिर अच्छा लगने लगता ... अंधेरे में रोशनी न जाने कैसे पैदा हो जाती ..फिर उठती, तुम्हारा शुक्रिया अदा कर करती ..और चली जाती ..
कभी तुमने कोई गिला नहीं किया, कोई शिकवा नही किया,.कभी ये नहीं कहा... क्यों भई कभी मेरा हाल तो पुछो....कभी मेरे बारे में तो जानो..कुछ, बस.... हर वक्त मेरे लिए तुम्हारे दरवाज़े खुले रहते..
दोस्त आज भी तुम्हारी ज़रूरत महसूस करती हूं..पर क्या करू जब से दूर हुई..कोई डोर ही नहीं रही..जो तुम्हारे पास ले जाए...बस वो यादे हैं, जो तुम को भूलने नहीं देती...समाज की वो चोटें हैं.. जो तुम्हारे न होने का एहसास कराती रहती हैं..
न जाने तुम कहां होगे..पर मेरा ये पत्र पढ़ो तो जवाब ज़रूर देना ... तुम्हार जवाब मेरी ज़िन्दगी को आगे ले जाने में कुछ सहारा बनेगा ।।
जवाब की आस में
तुम्हारी दोस्त...
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