औलाद की ज़रूरत,चाहत या मजबूरी ...
औलाद की ज़रूरत,चाहत या मजबूरी ...
शादी के बाद कहीं भी जाना होता तो लोगों का एक ही सवाल होता.... औऱ बच्चे !... लगता की ज़िन्दगी कुछ नहीं, बस गिने चुने नियम हैं, जिसे सब को मानना है।
अगर आप इन नियमों के दायरे में नहीं रहेगे तो लोग आपको अजीबों गरीब ढ़ग से दिखेगें और बात करेगे...
जान पहचान वाले बुर्ज़ग आप को ढ़ेरों नसीहत दे डालेगें...ज़िन्दगी क्या होती है..जीवन कैसे चलता है ..और लाईफ की सच्चाई..सब बता दिया जाता है ।
बात शुरू करने से पहले आपको अपने दोस्त प्रोफेसर के बारे में बताता चलूं...
प्रोफेसर की शादी को 6 साल हो गए... एक परिवार को दो से तीन या तीन से चार करने का प्रयाप्त वक्त, पर ऐसा हो न सका ..
प्रोफेसर का काम भी, कभी चलता कभी नही चलता .कभी नौकरी रहती तो कभी मंदी की मार से नौकरी से बाहर कर दिया जाता है..शायद ऐसी आर्थिक स्थीति में बच्चे के बारे में सोचना ...किसी के बस में नहीं वो इसलिये जहां..बच्चे का जन्म किसी छोटी फैक्ट्री लगाने के खर्च से कम नहीं होता ...वहां बिना तंन्खाह के बच्चे को दुनिया में लाने पर सोचना शायद आसान नहीं था...
लेकिन प्रोफेसर और उसकी पत्नी पर समाज औऱ रिश्तेदारों का इतना दबाव पड़ा की वो आईवीएफ के द्वारा बच्चे को जन्म देने के लिए तैयार हो गए...
आईवीएफ का कम से कम खर्चा लाख रूपए तो होता है..उसके साथ हाज़ारों की दवा ..वक्त वक्त पर इंजैक्शन ...और पूरे नौ महीने काफी मंहगा खर्चिला दौर....
ऐसे में प्रोफेसर की नौकरी भी नहीं । दोस्तों से कर्ज़ लेकर वो ये सारा ट्रीटमेंट करवा रहा है..यानि बच्चे की आने की खुशी... तो... पर क्या कर्ज़ का दर्द उसके जीवन को कैसे उभारेगा ये देखने वाली बात है...
अब ये सवाल उठता है की हम चाहे कितना अपने आपको आधुनिक कहे लेकिन हमारे समाज ने जो बरसों पहले नियम बना दिये हैं उसको ही हम पालते हैं...
आज भी शादी के बाद हमें बच्चा चाहिए ही होता है..हमें नही तो हमारे घर वालों या फिर रिश्तेदारों..
अगर पैसा है तो मॉडर्न विज्ञान में कई तरह के विकल्प हैं ....अगर नही तो साधु महात्माओं के कई डेरे भी मौजूद ..नहीं तो सब की सुनने वाला दाता तो है ही...
क्या हम ये कभी सोचेगें की हमें क्यो चाहिए औलाद ..हम किस के लिए बच्चे को दुनिया में लाना चाहते हैं..
आज हमारे देश 15 प्रतिशत ऐसे बच्चे हैं जिनका दुनिया में कोई नहीं ..और 20 प्रतिशत ऐसे मां बाप है जो अपने बच्चों को सड़क पर छोड़ देते है ... जन्म देने के बाद ...अगर आपको बच्चों से प्यार है तो आप उन्हे ले सकते हैं... पर नहीं हमें आपना खून चाहिए..अपनी औलाद ... जिससे पाने के लिए हम कुछ भी करेगें कैसे भी करेगें । कई और वाक्य हैं..जिसमें अपनी औलाद पाने के लिए लोगों ने अपनी आखिरी सांस तक प्रयास किया...
हर बार ये ही सवाल ज़हन में आता है की औलाद चाहत है ,ज़रूरत है या फिर मजबूरी ......
शादी के बाद कहीं भी जाना होता तो लोगों का एक ही सवाल होता.... औऱ बच्चे !... लगता की ज़िन्दगी कुछ नहीं, बस गिने चुने नियम हैं, जिसे सब को मानना है।
अगर आप इन नियमों के दायरे में नहीं रहेगे तो लोग आपको अजीबों गरीब ढ़ग से दिखेगें और बात करेगे...
जान पहचान वाले बुर्ज़ग आप को ढ़ेरों नसीहत दे डालेगें...ज़िन्दगी क्या होती है..जीवन कैसे चलता है ..और लाईफ की सच्चाई..सब बता दिया जाता है ।
बात शुरू करने से पहले आपको अपने दोस्त प्रोफेसर के बारे में बताता चलूं...
प्रोफेसर की शादी को 6 साल हो गए... एक परिवार को दो से तीन या तीन से चार करने का प्रयाप्त वक्त, पर ऐसा हो न सका ..
प्रोफेसर का काम भी, कभी चलता कभी नही चलता .कभी नौकरी रहती तो कभी मंदी की मार से नौकरी से बाहर कर दिया जाता है..शायद ऐसी आर्थिक स्थीति में बच्चे के बारे में सोचना ...किसी के बस में नहीं वो इसलिये जहां..बच्चे का जन्म किसी छोटी फैक्ट्री लगाने के खर्च से कम नहीं होता ...वहां बिना तंन्खाह के बच्चे को दुनिया में लाने पर सोचना शायद आसान नहीं था...
लेकिन प्रोफेसर और उसकी पत्नी पर समाज औऱ रिश्तेदारों का इतना दबाव पड़ा की वो आईवीएफ के द्वारा बच्चे को जन्म देने के लिए तैयार हो गए...
आईवीएफ का कम से कम खर्चा लाख रूपए तो होता है..उसके साथ हाज़ारों की दवा ..वक्त वक्त पर इंजैक्शन ...और पूरे नौ महीने काफी मंहगा खर्चिला दौर....
ऐसे में प्रोफेसर की नौकरी भी नहीं । दोस्तों से कर्ज़ लेकर वो ये सारा ट्रीटमेंट करवा रहा है..यानि बच्चे की आने की खुशी... तो... पर क्या कर्ज़ का दर्द उसके जीवन को कैसे उभारेगा ये देखने वाली बात है...
अब ये सवाल उठता है की हम चाहे कितना अपने आपको आधुनिक कहे लेकिन हमारे समाज ने जो बरसों पहले नियम बना दिये हैं उसको ही हम पालते हैं...
आज भी शादी के बाद हमें बच्चा चाहिए ही होता है..हमें नही तो हमारे घर वालों या फिर रिश्तेदारों..
अगर पैसा है तो मॉडर्न विज्ञान में कई तरह के विकल्प हैं ....अगर नही तो साधु महात्माओं के कई डेरे भी मौजूद ..नहीं तो सब की सुनने वाला दाता तो है ही...
क्या हम ये कभी सोचेगें की हमें क्यो चाहिए औलाद ..हम किस के लिए बच्चे को दुनिया में लाना चाहते हैं..
आज हमारे देश 15 प्रतिशत ऐसे बच्चे हैं जिनका दुनिया में कोई नहीं ..और 20 प्रतिशत ऐसे मां बाप है जो अपने बच्चों को सड़क पर छोड़ देते है ... जन्म देने के बाद ...अगर आपको बच्चों से प्यार है तो आप उन्हे ले सकते हैं... पर नहीं हमें आपना खून चाहिए..अपनी औलाद ... जिससे पाने के लिए हम कुछ भी करेगें कैसे भी करेगें । कई और वाक्य हैं..जिसमें अपनी औलाद पाने के लिए लोगों ने अपनी आखिरी सांस तक प्रयास किया...
हर बार ये ही सवाल ज़हन में आता है की औलाद चाहत है ,ज़रूरत है या फिर मजबूरी ......
Comments
धन्यवाद
विपुल
har insaan ki apni ek jarurat hai,
har insaan ki apni ek majboori hai,
zara sochiye.....sach kaha hai...
ek hi kaam ke kitne naam deti hai ye duniya,kya bahanebaazi ahi,kya bayaanbaazi hai...