शहज़ादा गुलरेज़ की नज्म

शहज़ादा गुलरेज़ की नज्म
कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की
बहुत खूबसूरत मगर सांवली सी
मुझे अपने ख्वाबों की बांहों में पा कर।
कभी नींद में मुस्कुराती तो होगी
उसी नींद में कसमसा-कसमसा कर
सरहाने से तकिया गिराती तो होगी
वही ख्वाब दिन की मंडेरों पर आकर
उसे दिल ही दिल में लुभाते तो होगें
कई तार सीने की खामोशियों में
मेरी याद से झनझनाते तो होगें
कभी चौक पर सोचते सोचते कुछ
चलो खत लिखे दिल में आता तो होगा
मगर उंगलियां कांप जाती तो होगीं
कलम हाथ से छूट जाता तो होगा
कलम फिर उठा लेती होंगी उमंगे
कि धड़कन कोई गीत गाती तो होगी
कोई वहम उसको सताता तो होगा
वो लोगों की नज़रों से छुपती तो होगी
मेरे वास्ते फूल कढ़ते तो होगें
मगर सुई उंगली में चुभती तो होगी
कहीं के कहीं पांव पड़ते तो होगें
मसहरी से आंचल उलझता तो होगा
प्लेटें कभी टूट जाती तो होंगी
कभी दूध चूल्हे पे जलता तो होगा
गरज़ अपनी मासूम नादानियों पर
वह नाज़ुक बदन झेंप जाती तो होगीं
शहज़ादा गुलरेज़....

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