असगर नदींम सरवर की नज्म
असगर नदींम सरवर की नज्म
भारत पाक रिश्ते पर
मुसाफ़िर साठ बरसों के अभी तक घर नहीं पहुँचे
कहीं पर रास्ते की घास में अपनी जड़ों की खोज में
तारीख़ के घर का पता मालूम करते हैं
मगर तारीख़ तो बरगद का ऐसा पेड़ है जिसकी
जड़ें तो सरहदों को चीर कर अपने लिए रस्ता बनाती हैं
मुसाफ़िर साठ बरसों के बहुत हैरान बैठे हैं...
मुसाफ़िर साठ बरसों के अभी तक घर नहीं पहुँचे
कहीं पर भी नहीं पहुँचे.
कि सुबहे-नीम वादा में धुंधलका ही धुंधलका है
कि शामे-दर्दे-फ़ितरत में कहीं पर एक रस्ता है
नहीं मालूम वो किस सम्त को जाकर निकलता है
मुसाफ़िर साठ बरसों के बहुत हैरान बैठे हैं.
भारत पाक रिश्ते पर
मुसाफ़िर साठ बरसों के अभी तक घर नहीं पहुँचे
कहीं पर रास्ते की घास में अपनी जड़ों की खोज में
तारीख़ के घर का पता मालूम करते हैं
मगर तारीख़ तो बरगद का ऐसा पेड़ है जिसकी
जड़ें तो सरहदों को चीर कर अपने लिए रस्ता बनाती हैं
मुसाफ़िर साठ बरसों के बहुत हैरान बैठे हैं...
मुसाफ़िर साठ बरसों के अभी तक घर नहीं पहुँचे
कहीं पर भी नहीं पहुँचे.
कि सुबहे-नीम वादा में धुंधलका ही धुंधलका है
कि शामे-दर्दे-फ़ितरत में कहीं पर एक रस्ता है
नहीं मालूम वो किस सम्त को जाकर निकलता है
मुसाफ़िर साठ बरसों के बहुत हैरान बैठे हैं.
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