33 प्रतिक्षत में आम मुस्लमान औरतों के हिस्से क्या... कुछ नहीं.. सहारनपुर के पास गांव कैलाशपुर की रहने वाली नसीमा रोज़ अपने शौहर नसीम से पिटती है ..कारण नसीमा को नेता बनने का शौक था ..कहीं कुछ होता खड़ी हो जाती हर बात में हर एक से उलझ पड़ती ..बड़े बड़े अफसर से लौहा लेने में पीछे नहीं रहती नसीम जब शहर से लौटता तो पुलिया पर ही कोई न कोई मिल कर कहे ही देता आज तेरी लुगाई ने ये किया भई इंदीरा बने गई वो तो,...नसीम को बात गवारा नही होती घर में कदम रखते ही बस नसींमा की कुटाई शुरू.. मारते मारते कहता अरे तुझे कोई टिकट न देगा..बस हमारी रूसवाई ही कराती रहे ..नसींमा सोचती देश बदल रहा औरते आगे आ रही हैं हमारी कौम की औरतों के लिए भी आवाज़ उठेगी कोई उनके लिए भी बोलेगा हमारे देश की सबसे बड़ी पार्टी की अध्यक्ष, सभापति नेताविपक्ष,राष्ट्रपति सब तो औरते हैं फिर मैं क्यों नही.. नसीमा की बात सही थी वो क्यों नहीं.. पर वो जिनका उसने नाम लिया उनमे से कोई आम औरत नहीं है और कोई मुस्लमान नहीं है जो वो है .. नसीमा औऱ उसकी कौम की औरतों की आखिरी उम्मीद, महिला आरक्षण बील में उनके लिए कुछ नहीं है..और ये सच है 15वीं लोकस...
Comments
और ...फिर
एक नयी अच्छी सी पोस्ट का
इंतजार करना है .
A Silent Silence : Shamma jali sirf ek raat..(शम्मा जली सिर्फ एक रात..)
Banned Area News : Rare book on political and economic history of India digitized