आज कल ब्लॉग में बहुत वाहवाही लूट रहे हैं...
त्याग पत्र-2
...... आज कल ब्लॉग में बहुत वाहवाही लूट रहे हैं...
आपको लगा होगा की भई ये साहब तो भाग मे बहुत विशवास करते हैं आधी बात करते हैं और फिर गायब हो जाते हैं.. पर नहीं सर ऐसा हो नहीं सकता मैं कभी झूठ नहीं बोलता मुझे याद नही की मुझे बताया गया था अगर बता देते तो मैं वक्त पर ही आता .. और सब कुछ लिख देता है ..नरेश ऑफिस में सुबह सुबह... नये आये हुए बॉस के सामने बोल रहा था ..पर बॉस सुनने को तैयार नही था ...
क्योंकि बॉस वो ही सुनता है जो वो सुनना पंसद करता है और नरेश के मुंह से सुनना तो वो कुछ भी पंसद नही करता क्योंकि आप कैसे हैं ये इस बात पर निर्भर करता है की आपको दूसरे लोगों ने कैसा बनाया या बताया है..जी , और नरेश का रिकॉर्ड इस मामले में तो बहुत ही खराब है ...
नरेश की शुरूवात एक गांव से हुई ..बाप को दिल्ली में छोटी सी नौकरी और साउथ दिल्ली में छोटा सा घर मिला पर ये छोटा घर जहां था वहां चारों तरफ बड़े-बड़े घर थे । नरेश सरकारी स्कूल की ख़ाकी पैंट पहन कर इन बड़े बड़े घरों को देखता हुआ जाता था और उन घरों में रहने वालो को गाली देता रहता कभी घंटी भी बजा कर भागता तो कभी पत्थर मार कर भाग जाता । कोई समझाता तो उससे झगड़ा करता ..तभी से उसका मिजाज बदमिजाज होता गया ..और वो हर चीज़ को अपने ढंग से ही करना चाहता ..और जो उसे मिलता उससे वो कभी खुश न होता ...दिल्ली में वो गंगा का किनारा देखता.. बाग में आलू पाने की चाहत रखता... शहरों की सड़को पर गांव की गलिया खोजता... कोई कुछ बोलता तो उसे काटने दौड़ता... इस तरह से नौकरी कर पाना आसान न था
सब को यकीन था की नरेश की नौकरी एक दिन जायेगी इस देश मे वो ही ऐसा पत्रकार नहीं है जो सच जानता है और सच बताना चाहता है ... हर चैनल में हज़ारों हैं ।अगर आपको नौकरी करनी है तो आपको नियम मानने ही होगें .. और नियम बॉस के होते हैं आपके नहीं..नरेश के साथ ये हुआ कि वो मलाई तो चाहता था पर दूध से परहेज़ करता था ..
उस दिन नरेश लेट आया ऑफिस को जब उसकी ज़रूरत थी वो वहा नहीं था आपकी हर गलती बर्दाश कर सकते हैं अगर आप काम वक्त पर करते हैं .. इससे पहले भी नरेश की कई बार शिकायत बॉस तक पहुच चुकी थी .बॉस बस वक्त का इंतज़ार कर रहे थे ..और मुंबई हमले ने बॉस को भी हमला करने का मौका दे दिया ...
नरेश ने भी ताव में आकर कहे दिया मैं इस्तीफा देता हूं.. मंदी के दौर में जहां कम्पनी छटनी करने की सोच रही है ... वहां मोटी पगार और गाड़ी रखने वाले नरेश की ये पेशकश चैनल और बॉस के लिये मुंबई मिशन की कामयाबी से कम न था .. नरेश ने कहा मैं इस्तीफा देता हूं..बॉस ने कहा मैं स्वीकार करता हूं..
अब तो नरेश के काटे तो खून नहीं ..पर मुंह से शब्द निकल गये तो क्या करे .. त्याग पत्र स्वीकार हो गया... बैचेनी से नरेश को रात भर नींद नहीं आती इसलिये देर तक बिस्तर पर लेटे रहते हैं ।.कुछ करने को है नहीं तो बच्चो के साथ खेलते है.. और जिस तरह मुंबई में हर संघर्ष करने वाले से पुछो कि वो क्या कर रहा है तो वो यही कहता है कि लिख रहा हूं..वैसे ही नरेश भी अब किताब लिखने की सोच रहे हैं .. और टिकट न मिलने पर जिस तरह नेता कहता है उससे पैसों की मांग की और अब वो सारे राज़ खोल दे गा वैसे ही नरेश अब अपनी कम्पनी के कई राज़ जिसे वो हज़म कर चुके थे अब उगलने की कोशिश कर रहें. है... मतलब नरेश अभी भी नहीं सुधरे .. पर एक बात है वो आजकल ब्लॉग में उभरते हुये पत्रकारों के हीरो के रूप में देखे जा रहे है .. और कई उनके दुशमन रहे लोग अब दोस्त हो गये हैं... हमारी दुआ है कि नरेश को हीरो समझने वाले पत्रकारों का कभी दिल न टूटे...
...... आज कल ब्लॉग में बहुत वाहवाही लूट रहे हैं...
आपको लगा होगा की भई ये साहब तो भाग मे बहुत विशवास करते हैं आधी बात करते हैं और फिर गायब हो जाते हैं.. पर नहीं सर ऐसा हो नहीं सकता मैं कभी झूठ नहीं बोलता मुझे याद नही की मुझे बताया गया था अगर बता देते तो मैं वक्त पर ही आता .. और सब कुछ लिख देता है ..नरेश ऑफिस में सुबह सुबह... नये आये हुए बॉस के सामने बोल रहा था ..पर बॉस सुनने को तैयार नही था ...
क्योंकि बॉस वो ही सुनता है जो वो सुनना पंसद करता है और नरेश के मुंह से सुनना तो वो कुछ भी पंसद नही करता क्योंकि आप कैसे हैं ये इस बात पर निर्भर करता है की आपको दूसरे लोगों ने कैसा बनाया या बताया है..जी , और नरेश का रिकॉर्ड इस मामले में तो बहुत ही खराब है ...
नरेश की शुरूवात एक गांव से हुई ..बाप को दिल्ली में छोटी सी नौकरी और साउथ दिल्ली में छोटा सा घर मिला पर ये छोटा घर जहां था वहां चारों तरफ बड़े-बड़े घर थे । नरेश सरकारी स्कूल की ख़ाकी पैंट पहन कर इन बड़े बड़े घरों को देखता हुआ जाता था और उन घरों में रहने वालो को गाली देता रहता कभी घंटी भी बजा कर भागता तो कभी पत्थर मार कर भाग जाता । कोई समझाता तो उससे झगड़ा करता ..तभी से उसका मिजाज बदमिजाज होता गया ..और वो हर चीज़ को अपने ढंग से ही करना चाहता ..और जो उसे मिलता उससे वो कभी खुश न होता ...दिल्ली में वो गंगा का किनारा देखता.. बाग में आलू पाने की चाहत रखता... शहरों की सड़को पर गांव की गलिया खोजता... कोई कुछ बोलता तो उसे काटने दौड़ता... इस तरह से नौकरी कर पाना आसान न था
सब को यकीन था की नरेश की नौकरी एक दिन जायेगी इस देश मे वो ही ऐसा पत्रकार नहीं है जो सच जानता है और सच बताना चाहता है ... हर चैनल में हज़ारों हैं ।अगर आपको नौकरी करनी है तो आपको नियम मानने ही होगें .. और नियम बॉस के होते हैं आपके नहीं..नरेश के साथ ये हुआ कि वो मलाई तो चाहता था पर दूध से परहेज़ करता था ..
उस दिन नरेश लेट आया ऑफिस को जब उसकी ज़रूरत थी वो वहा नहीं था आपकी हर गलती बर्दाश कर सकते हैं अगर आप काम वक्त पर करते हैं .. इससे पहले भी नरेश की कई बार शिकायत बॉस तक पहुच चुकी थी .बॉस बस वक्त का इंतज़ार कर रहे थे ..और मुंबई हमले ने बॉस को भी हमला करने का मौका दे दिया ...
नरेश ने भी ताव में आकर कहे दिया मैं इस्तीफा देता हूं.. मंदी के दौर में जहां कम्पनी छटनी करने की सोच रही है ... वहां मोटी पगार और गाड़ी रखने वाले नरेश की ये पेशकश चैनल और बॉस के लिये मुंबई मिशन की कामयाबी से कम न था .. नरेश ने कहा मैं इस्तीफा देता हूं..बॉस ने कहा मैं स्वीकार करता हूं..
अब तो नरेश के काटे तो खून नहीं ..पर मुंह से शब्द निकल गये तो क्या करे .. त्याग पत्र स्वीकार हो गया... बैचेनी से नरेश को रात भर नींद नहीं आती इसलिये देर तक बिस्तर पर लेटे रहते हैं ।.कुछ करने को है नहीं तो बच्चो के साथ खेलते है.. और जिस तरह मुंबई में हर संघर्ष करने वाले से पुछो कि वो क्या कर रहा है तो वो यही कहता है कि लिख रहा हूं..वैसे ही नरेश भी अब किताब लिखने की सोच रहे हैं .. और टिकट न मिलने पर जिस तरह नेता कहता है उससे पैसों की मांग की और अब वो सारे राज़ खोल दे गा वैसे ही नरेश अब अपनी कम्पनी के कई राज़ जिसे वो हज़म कर चुके थे अब उगलने की कोशिश कर रहें. है... मतलब नरेश अभी भी नहीं सुधरे .. पर एक बात है वो आजकल ब्लॉग में उभरते हुये पत्रकारों के हीरो के रूप में देखे जा रहे है .. और कई उनके दुशमन रहे लोग अब दोस्त हो गये हैं... हमारी दुआ है कि नरेश को हीरो समझने वाले पत्रकारों का कभी दिल न टूटे...
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