दुनिया ने कहा हम कुत्ते हैं


हम ग़रीब हैं ,,गंदे हैं.. चोर हैं.. और कुत्ते हैं.. पर हम खुश है क्योंकि ये खिताब हम को अंग्रेज़ो ने दिया है ..भले ही आज़ादी के इतने साल बीत गये हों ..पर अंग्रेज़ो द्वारा दी गई कोई भी चीज़ हमें सर आंखों पर स्वीकार है ..भले ही गाली हो या फिर जूते पर लिपटी हुई कोई ट्रॉफी ..
हमे रहमान और गुलज़ार की प्रतिभाओं पर कोई शक नहीं उनकी योग्यता किसी भी ऑस्कर की महौताज नहीं..उनका जो हुनर है वो इस कायनात के हर उस ज़र्रे में बसा हुआ है जो हमारा अपना है हमारा सम्मान है...
हमें स्लमडॉग के निर्देशक ,राईटर से कोई दुशमनी नहीं वो लोग क्रेटीव हैं उन्होने
हर चीज़ को बखौबी दिखाया... और उनकी दिखाई हुई हर एक चीज़ पर हमने वाह वाह किया यानि वो सच है जो वो दिखा रहे हैं...
हमारे नेताओं ने बधाई दी पर किसी के मुहं से ये न निकला की बस बहुत हुआ अब आपको ऐसी कोई चीज नही दिखेगी जो गंदी हो अब आप हमें डॉग नही कहे पायेगें..
लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ होता भी कैसा उन्होने ही तो हमें कुत्ता बना कर छोड़ दिया है ..
आज रूबीना और अज़र को सरकारी माकान दिया जा रहा है । कोई इनसे पूछे क्यों किस लिये ऐसा क्या किया उन्होने ..इनाम देना है तो लवलीन टंडन को दो..जिसने इन बच्चों को ढूंढा ..अगर आप थोड़ी मेहनत करेगे तो इसी देश में आपको हर कोने में रूबीना और अज़र मिल जायेगें.. क्या उन सब को माकान देगे..अगर हां तो अब तक क्यों नही दिया ..और अगर नहीं तो इस लिये नहीं क्यों कि उन्होने किसी ऑस्कर जीतने वाली फिल्म मे काम नही किया ...ये तो कोई तर्क नहीं...
पर स्लमडॉग हमारी हकीकत है जिसे अंग्रेज़ो ने बहुत अच्छी तरीके से पेश किया...
क्या अब हम कुछ करेगें या फिर एक दूसरों को तौहमत लगाते रहेगे.. और कोई बाहर वाला हमको कुत्ता कहे कर और हड़डी डाल कर चला जायेगा ...और हम खुश होगे क्योंकि हमे विदेशी हड्डी मिली है इसलिये....हमारा मीडिया सुबह चार बजे से जय हो जय हो कहेगा ......

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सभ भरतीयों के बारे में नहीं कहा गया है....वास्‍तव में कुछ कुत्‍तों से बदतर जीवन व्‍यतीत कर रहे हैं ...और इस सच से इंकार नहीं किया जा सकता ।

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