कलयुग का श्रवण

कलयुग का श्रवण

एक युवक अपनी मां को कांवड़ में बिठाकर पिछले चौदह साल से पैदल तीर्थ यात्रा करा रहा है। कलयुग में इस श्रवण कुमार को देखकर लोग हैरान हैं और इसके संकल्प की सराहना भी कर रहे हैं। यह श्रवण कुमार हैं मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर के कैलाश। बदरीनाथ धाम में दर्शन के बाद अब वे अपनी मां को लेकर केदारनाथ की यात्रा पर
निकले हैं

... अ॥धे माता-पिता को कांधे पर बैठा कर तीर्थ यात्रा पर ले जाने वाले श्रवण कुमार के बारे में सबने पढ़ा या सुना होगा। वह श्रवण कुमार त्रेता युग में था। अभी कलयुग चल रहा है और इस दौर में किसी श्रवण कुमार की कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन जबलपुर के कैलाश गिरी को जो भी देखता है श्रवण कुमार कहने लगता है। कैलाश अपनी अंधी और बूढ़ी मां को चार धाम यात्रा पर लेकर आए हैं वह भी पैदल। कैलाश पिछले चौदह साल से अपनी मां को कांधे पर बैठाकर तीर्थ यात्रा करा रहे हैं। वह अब तक रामेश्वरम, जगन्नाथ तथा बदरीनाथ धाम के दर्शन कर चुके हैं। विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले पवित्र धाम बदरीनाथ में भी कलयुग का यह श्रवण कड़कड़ाती ठंड एवं बारिश में ही कंधों के सहारे अपनी मां को यहां तक लाया। कैलाश के इस संकल्प की सब तरफ सराहना हो रही है। वे जहां से गुजरते हैं उन्हें देखने वालों का तांता लग जाता है।

कैलाश की इस अनोखी मिसाल को देखते हुए १९ मई को बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने पर मंदिर समिति ने श्रवण की मां को प्रथम वरीयता के आधार पर मंदिर में दर्शन करवाने की व्यवस्था की थी। दोनों मां बेटे जहां भी जाते हैं लोग पहले से ही उन्हें देखने वहां पहुंच जाते हैं। कई स्थानों पर तो लोग इनकी हाथ जोड़कर पूजा भी कर रहे हैं। बदरीनाथ में दर्शन के बाद अब ये केदारनाथ धाम की यात्रा पर निकले हैं। यहां बताते चलें कि केदारनाथ धाम गौरीकुण्ड से १४ किमी की ऊंचाई पर स्थित है। यहां तक पहुंचने के लिए १४ किमी का जोखिम भरा सफर भी पैदल ही तय करना पड़ता है। पर श्रवण के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं है। उसके जुनून में न तो कोई कमी है और न ही चिंता। कलयुग का यह श्रवण धार्मिक यात्रा के इस सफर में न तो किसी से ज्यादा बात करता है और ना ही किसी से कुछ मदद की गुहार ही करता है!

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