एक हिन्दू का दर्द
एक हिन्दू का दर्द
हमारे देश में जब भी दर्द का ज़िक्र होता है तब या तो गरीबो का नाम आता है या फिर मुस्लमान का हर भारतीय एक मोर्चा लेकर निकल पड़ता है ..बडे बडे नेता और बड़े बड़े पत्रकार अपनी अपनी दुकान खोल कर ज्ञान बांटना शुरू कर देते हैं ...उन्हे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मुद्दा क्या मसला क्या है ..उन्हे तो अपने आपको देशभक्त दिखाना है और देशभक्त वो तभी कहेलायेगे जब वो मुस्लमानों के लिये बोले और आवाज़ उठायेगें....
आप ज़रूर सोच रहेगे कि आज मैं क्या कहे रहा हूं.. कौन सी कहानी बताने वाला हूं बात रविवार की है बकरीद से दो दिन पहले की... सुबह सो कर उठा तो पता चला दादी गुज़र गई.. मैं एकदम खामोश हो गया । घर मे रोने की आवाज़ भी मेरे भीतर की खामोशी नहीं तोड़ पा रही थी ।शायद इसलिये कि अभी 26/11 के आंतकवाद में इतनी मौतें देख चुका की आंसू सूख गये थे ...
पर मेरी दादी थी भले ही हमारी कम बात होती हो ..पर एक प्यार तो था ही दोनो के बीच वो भी मेरे लिये निस्वार्थ बहुत कुछ करती थी जिसके बारे में मैं आप को क्या बताऊं शायद आपको कोई रूचि न हो और मै अपने लेख को कमज़ोर नहीं करना चाहता .. मैने भले ही अपनी दादी के लिये कुछ किया हो बहुत कुछ या न किया हो पर आज ये सवाल है कि अब तो मेरा फर्ज़ है कि मै जो कर सकता हूं वो करूं .
दूसरे दिन पांच राज्यों के चुनाव के नतीजे आने थे पर मैने छुट्टी ले ली ..और दादी की अस्थियां लेकर गढ़ गंगा चला गया वहां पहुच कर पूजा की .. पंडितजी ने बताया कि जब तक दादी की तेरवीं नहीं होती आप सुबह सुबह गाय को रोटी खिलाये .. मैंने कहा हां ज़रूर । मुझे नहीं पता और न ही मैं जानना चाहता हूं कि मरने के बाद इन सब कामों का क्या होता है .. मैं तो बस इतना जानता हूं मेरी दादी से जुड़ी बात है और मुझे ये करना है ...
पुरानी दिल्ली एक ऐसी जगह है हिन्दुस्तान में जहां हिन्दू अल्पसंख्यक हैं ये बात मैंने अपने पिताजी के दोस्तों के मुंह से कई बार सुनी थी और हर बार मैं इस बात को टाल जाता था ।..पर उस दिन मुझे एहसास हुआ जब मै गाय को रोटी खिलाने निकला .चौकी इंचार्ज मेरे पास आगया कहा कहां घूम रहे हो मैने उसे सारी बात बताई .. उसने मुझ से कहा आप घर चले जाईये.. अभी आप कुछ नहीं कर सकते ..6 से 10 नामाज़ के लिये सब बंद कर दिया जाता है .. मैने पूछा अगर मेरी दादी मर जाती तो भी आप मुझे नहीं जाने देते .. वो थोड़ा रुका और फिऱ बोला हां दस बजे के बाद ही जाने देता.. ....
हमारे देश में जब भी दर्द का ज़िक्र होता है तब या तो गरीबो का नाम आता है या फिर मुस्लमान का हर भारतीय एक मोर्चा लेकर निकल पड़ता है ..बडे बडे नेता और बड़े बड़े पत्रकार अपनी अपनी दुकान खोल कर ज्ञान बांटना शुरू कर देते हैं ...उन्हे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मुद्दा क्या मसला क्या है ..उन्हे तो अपने आपको देशभक्त दिखाना है और देशभक्त वो तभी कहेलायेगे जब वो मुस्लमानों के लिये बोले और आवाज़ उठायेगें....
आप ज़रूर सोच रहेगे कि आज मैं क्या कहे रहा हूं.. कौन सी कहानी बताने वाला हूं बात रविवार की है बकरीद से दो दिन पहले की... सुबह सो कर उठा तो पता चला दादी गुज़र गई.. मैं एकदम खामोश हो गया । घर मे रोने की आवाज़ भी मेरे भीतर की खामोशी नहीं तोड़ पा रही थी ।शायद इसलिये कि अभी 26/11 के आंतकवाद में इतनी मौतें देख चुका की आंसू सूख गये थे ...
पर मेरी दादी थी भले ही हमारी कम बात होती हो ..पर एक प्यार तो था ही दोनो के बीच वो भी मेरे लिये निस्वार्थ बहुत कुछ करती थी जिसके बारे में मैं आप को क्या बताऊं शायद आपको कोई रूचि न हो और मै अपने लेख को कमज़ोर नहीं करना चाहता .. मैने भले ही अपनी दादी के लिये कुछ किया हो बहुत कुछ या न किया हो पर आज ये सवाल है कि अब तो मेरा फर्ज़ है कि मै जो कर सकता हूं वो करूं .
दूसरे दिन पांच राज्यों के चुनाव के नतीजे आने थे पर मैने छुट्टी ले ली ..और दादी की अस्थियां लेकर गढ़ गंगा चला गया वहां पहुच कर पूजा की .. पंडितजी ने बताया कि जब तक दादी की तेरवीं नहीं होती आप सुबह सुबह गाय को रोटी खिलाये .. मैंने कहा हां ज़रूर । मुझे नहीं पता और न ही मैं जानना चाहता हूं कि मरने के बाद इन सब कामों का क्या होता है .. मैं तो बस इतना जानता हूं मेरी दादी से जुड़ी बात है और मुझे ये करना है ...
पुरानी दिल्ली एक ऐसी जगह है हिन्दुस्तान में जहां हिन्दू अल्पसंख्यक हैं ये बात मैंने अपने पिताजी के दोस्तों के मुंह से कई बार सुनी थी और हर बार मैं इस बात को टाल जाता था ।..पर उस दिन मुझे एहसास हुआ जब मै गाय को रोटी खिलाने निकला .चौकी इंचार्ज मेरे पास आगया कहा कहां घूम रहे हो मैने उसे सारी बात बताई .. उसने मुझ से कहा आप घर चले जाईये.. अभी आप कुछ नहीं कर सकते ..6 से 10 नामाज़ के लिये सब बंद कर दिया जाता है .. मैने पूछा अगर मेरी दादी मर जाती तो भी आप मुझे नहीं जाने देते .. वो थोड़ा रुका और फिऱ बोला हां दस बजे के बाद ही जाने देता.. ....
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घुघूती बासूती