मैं अपनी भतीजी से क्या कहूं।..एक दुखियारी
लड़कियों के लिए क्या बदला
जन्म दिल्ली में हुआ और यहीं पर मैं पढ़ी बड़ी ..शहर के साथ मैने औऱ मेरे परिवार दोनो ने तरक्की की ..जैसा आप सब जानते है जो हाल नौकरी पेशे में होता है वो ही हमारे परिवार का था ना बहुत अच्छा कहेंगे ना बहुत बुरा । ठीक ठीक जिंदगी गुज़र बसर हुई। पर शहर में रहते और बड़े होते मैने यहां अपने साथ बहुत बदसलूकी और बदतमिजी सही।
कभी किसी का विरोध किया तो वहां मौजूद लोगों ने मेरा मज़ाक ऊड़ाया। यहां तक की दोस्तों और रिश्तेदारों ने भी कहा क्यों बात को बढ़ावा देती हो क्या होगा उल्टे बदनामी होगी। मैं खून के घूंट पीकर सब्र कर लेती कि वक्त के साथ सब कुछ ठीक हो जाएगा। मेरी दिल्ली सही हो जाएगी।
बसों में मर्दों जिनमें छिछोरे नौजवान हो या पढ़े लिखे या फिर मनचले बुजुर्ग जो मेरे दादा कि उम्र के हुआ करते थे अक्सर मेरे पीछे चिपक जाया करते थे। जब मैं कहती ज़रा ठीक से खडे हो तो उनका जवाब आता अगर बस मे इतनी परेशानी हैं तो टैक्सी में चलाकर उनकी बात सुनकर पूरी बस हंसती । और मैं बिना गल्ती के शर्मिंदा हो जाती।
बाज़ार में कोई सामान लेने जाऊं और दुकानदार बेईमानी करें और मैं उसे टोक दूं तो वो उल्टा मुझसे इस लहजे में बात करना शूरु कर दे कि आंखों से आंसू निकल पड़े। वो ज़ोर से चिल्लाने लगता जानता हूं में तुम जैसी लड़कियों को । मैं क्या मतलब कहूं तो आगे बढ़कर बोलने लगे बताऊं.....मैं फिर चुप हो कर घर आजाती भाई और पिता को नहीं बताती ......जानती थी कि वो उन लोगों का कुछ नहीं बिगाड़ सकते और कहीं उनको मेरी वजह से परेशानी ना हो कोई मुसिबत ना खड़ी हो जाएं। पुलिस के पास जाकर शिकायत करना तो मुमकिन ही नहीं था। हर दिन मरती और ज़िल्लत सहती मैं बड़ी हुई।
फिर शादी हो गई दिल्ली छोड़क दूसरे शहर चली गई। वक्त के साथ पति के प्यार के सहारे सब कुछ भूल गई जैसे शायद बाकि मेरी बहने भूल चुकी थी. बहुत बरसों के बाद दिल्ली आना हुआ पूरा नक्शा बदल चुका था। बडी बड़ी गाडियां लो फ्लोर बस मेट्रो और ना जाने क्या क्या । मुझे खुशी हुई कि मेरी दिल्ली बदल गई और मैं इस खुमार में आ गई कि शायद लोगों का रवैयय भी बदल गया होगा। पर आज मैने अपनी भतीजी को रोते देखा। तो रहा ना गया। उसके कमरे में जाकर पूछा क्या हुआ बेटा ...तो वो मुझसे लिपट कर ज़ोर ज़ोर से रोने लगी और अपने साथ लगातार हो रही दिल्ली के मरदों की हरकतों के बारे में बताने लगी। वो जो जो बता रही थी मुझे उके हर हादसे और वाक्ए में अपने ऊपर गुज़रा हर मंजर नज़र आ रहा था। मैने क्हा लड़कियों के लिए क्या कुछ बदला। आप लोग मेरे सवाल का जवाब देंगे । मैं अपनी भतीजी से क्या कहूं।
आपके जवाब के इंतज़ार में ...........
एक दुखियारी
जन्म दिल्ली में हुआ और यहीं पर मैं पढ़ी बड़ी ..शहर के साथ मैने औऱ मेरे परिवार दोनो ने तरक्की की ..जैसा आप सब जानते है जो हाल नौकरी पेशे में होता है वो ही हमारे परिवार का था ना बहुत अच्छा कहेंगे ना बहुत बुरा । ठीक ठीक जिंदगी गुज़र बसर हुई। पर शहर में रहते और बड़े होते मैने यहां अपने साथ बहुत बदसलूकी और बदतमिजी सही।
कभी किसी का विरोध किया तो वहां मौजूद लोगों ने मेरा मज़ाक ऊड़ाया। यहां तक की दोस्तों और रिश्तेदारों ने भी कहा क्यों बात को बढ़ावा देती हो क्या होगा उल्टे बदनामी होगी। मैं खून के घूंट पीकर सब्र कर लेती कि वक्त के साथ सब कुछ ठीक हो जाएगा। मेरी दिल्ली सही हो जाएगी।
बसों में मर्दों जिनमें छिछोरे नौजवान हो या पढ़े लिखे या फिर मनचले बुजुर्ग जो मेरे दादा कि उम्र के हुआ करते थे अक्सर मेरे पीछे चिपक जाया करते थे। जब मैं कहती ज़रा ठीक से खडे हो तो उनका जवाब आता अगर बस मे इतनी परेशानी हैं तो टैक्सी में चलाकर उनकी बात सुनकर पूरी बस हंसती । और मैं बिना गल्ती के शर्मिंदा हो जाती।
बाज़ार में कोई सामान लेने जाऊं और दुकानदार बेईमानी करें और मैं उसे टोक दूं तो वो उल्टा मुझसे इस लहजे में बात करना शूरु कर दे कि आंखों से आंसू निकल पड़े। वो ज़ोर से चिल्लाने लगता जानता हूं में तुम जैसी लड़कियों को । मैं क्या मतलब कहूं तो आगे बढ़कर बोलने लगे बताऊं.....मैं फिर चुप हो कर घर आजाती भाई और पिता को नहीं बताती ......जानती थी कि वो उन लोगों का कुछ नहीं बिगाड़ सकते और कहीं उनको मेरी वजह से परेशानी ना हो कोई मुसिबत ना खड़ी हो जाएं। पुलिस के पास जाकर शिकायत करना तो मुमकिन ही नहीं था। हर दिन मरती और ज़िल्लत सहती मैं बड़ी हुई।
फिर शादी हो गई दिल्ली छोड़क दूसरे शहर चली गई। वक्त के साथ पति के प्यार के सहारे सब कुछ भूल गई जैसे शायद बाकि मेरी बहने भूल चुकी थी. बहुत बरसों के बाद दिल्ली आना हुआ पूरा नक्शा बदल चुका था। बडी बड़ी गाडियां लो फ्लोर बस मेट्रो और ना जाने क्या क्या । मुझे खुशी हुई कि मेरी दिल्ली बदल गई और मैं इस खुमार में आ गई कि शायद लोगों का रवैयय भी बदल गया होगा। पर आज मैने अपनी भतीजी को रोते देखा। तो रहा ना गया। उसके कमरे में जाकर पूछा क्या हुआ बेटा ...तो वो मुझसे लिपट कर ज़ोर ज़ोर से रोने लगी और अपने साथ लगातार हो रही दिल्ली के मरदों की हरकतों के बारे में बताने लगी। वो जो जो बता रही थी मुझे उके हर हादसे और वाक्ए में अपने ऊपर गुज़रा हर मंजर नज़र आ रहा था। मैने क्हा लड़कियों के लिए क्या कुछ बदला। आप लोग मेरे सवाल का जवाब देंगे । मैं अपनी भतीजी से क्या कहूं।
आपके जवाब के इंतज़ार में ...........
एक दुखियारी
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