71 साल
71 साल
(भाग-5)
सब कुछ जल्दी जल्दी हुआ ... रामनरेश ने अपनी इज्ज़त बचाने के लिए अपनी बड़ी बेटी की शादी की तैयारी शुरू कर दी ..पर ज़िन्दगी इतनी आसान होती तो ... भगवान और अल्लहा की दुकानों पर इतनी रौनक कभी नहीं होती ,,,,,।
आज रिश्तेवालों को आना हैं रामनरेश के बड़े भाई ने रिश्ता करवाया है ..रामनरेश की बीवी को जब रात मे रामनरेश ने ये बात बताई थी ..तभी से वो बहुत परेशान थी।.क्योकि जिस भाई से कभी न बनी जिसने ..रात ही रात को अपना माकान खाली करा लिया वो इतना कैसे मेहरबान की अपने भाई की बेटी के लिए कोई अच्छा रिश्ता लाए...।
पर घर का माहौल ऐसा था की कोई कुछ नही बोल रहा था .. खामोश ज़बा..आंखे नम , दिल भारी .. पर हो रही थी मेहमानों के आने की तैयारी ...।
पैसे जो़ड़ जोड़ कर अपने बच्चों का पेट काट काट कर रामनरेश की पत्नी ने घर की चीज़े जोडी और बनाई थी .. नई चादरें ,पर्दे.खाने के बर्तन ... और भी मेहमानो की खातीर दारी के लिए बाकी सामान....।
नाशते और खाने का प्रबंध किया गया था ...बाथरूम और टायलेट को भी अच्छी तरह से साफ कर दिया गया, नया तौलिया, नया साबुन... शीशे से लेकर फर्श और खिड़की दरवाज़े सब चमक रहे थे...
सुबह के दस बजे तक सब कुछ तैयार ... अब हो रहा था मेहमानों का इंतज़ार ..बड़ी बेटी को भी तैयार कर दिया गया था ..छोटी बेटी और लड़के को भी खामोश रहने की हिदायत दे दी गई....न जाने कौन सा डर सब को सता रहा था ... पर किसी की हिम्मत नही थी की कोई कुछ बोले ..
तभी बाहर के दरवाज़े से आवाज़ आती है ,,,रामनरेश... ये आवाज़ रामनरेश के भाई थी ..उनके साथ कुछ लोग थे .दो औरते ..तीन मर्द और एक बच्चा...
क्या होगा आगे बताउंगा ..अगले अंक में तब तक अपने विचार भेजते रहिए. जो नए पाठको के लिए बाकी अंक इस के नीचे पोस्ट कर रहा हूं.......
भाग -1रामनरेश अपने बेटे के साथ कार में बैठे एक रशितेदार के घर जा रहे थे..तभी बराबर से गुज़रते हुए एक ऑटो पर उनकी नज़र पड़ी, एक विवाहित जोड़ा उनके पास से गुज़रा .. और रामनरेश खो गये अतित में.. जब उनकी नई नई शादी हुई थी ।बहुत बड़ा कदम था .क्योकि वो अपने खानदान में पहले ऐसे शख्स थे जिन्होने अपने खानदान से अलग शादी की थी सब ने साथ छोड़ दिया था सिर्फ एक बहनोई ही उनके साथ थे ..इंगलिश में एम.ए किया था इस लिये अमरोह के मुस्लिम स्कूल में उन्हे नौकरी मिलने में कोई दिक्कत नही हुई।प्रिसिपलसाहब अच्छे थे और उनको अच्छी सलाह दी और बीएड करने को कहा, मुरादाबाद के हिन्दू कालेज से बीएड किया ...उसी दौरान उनके घर में एक रोशनी आई बेटी के रूप में कहते हैं लड़की लक्ष्मी का रूप होती है ... पर रामनेरश के घर में खर्च बढ़ गया जिसके कारण उन्हे और मेहनत करनी पड़ी । देर रात तक टूयशन पढ़ाने पड़ रहे थे जिसकी वजह वो स्कूल रोज़ देर से पहुच रहे थे ।पसंद करने वाले प्रिंसिपल भी अमरोह छोड़ कर दिल्ली बस गये थे । इसलिये पहले उन्हे नोटिस मिला लेकिन पैसे की ज़रूरत ने नोटिस के डर को भगा दिया ..वो टूयशन बन्द न कर पाये और नौकरी खो बैठे ।बीबी ने कहा क्यो नहीं दिल्ली जा कर प्रिसिपल से बात करते छोटे शहर से बड़े शहर में आना एक आम आदमी में वैसे ही खौफ पैदा कर देता ,लेकिन परिवार चलाने के लिए अपनी औलाद को पालने के लिए इंसान हर कदम उठाने को तैयार हो जाता है । रामनरेश भी दिल्ली आ गए सच सच प्रिंसिपल साहब को बताया ..उनके सरल स्वभाव से वो पहले से प्रभावित थे ....इसलिए कहा की देखता हूं रामनरेश ने कहा उनके पास तो इतने पैसे भी नहीं है कि वो वापस जा सके ... प्रिसिपल साहब ने पैसे दिये और कहा जल्दी सूचित करेगें.. घर में टूयशन से जो पैसे आते वो इतने नहीं थे कि ज़िन्दगी चल सके... घर का किराया ,राशन, बच्ची का दूघ..ज़िन्दगी में दुख भरने के लिए काफी थे ।...और जब दुख शुरू होते है ...तो वो बस आने शुरू ही हो जाते है ... पत्नी को ब्लड प्रेशर हो गया लो दवाई का खर्च और ..साथ ही मदद करने वाले जीजा ने अपने बच्चे भी भेज दिये, एक खत के साथ भाई रामनरेश ये यहां पढ़ नही पा रहे कृप्या कर के साथ रख लो .तुम्हारे साथ रहे कर पढ़ लेगें ... पढ़ तो लेगे पर खायेगे क्या ...रामनरेश ने सोचा.....लेकिन अगर आपकी नियत सही है तो अल्लाह भगवान आपकी मदद ज़रूर करता है ...दिल्ली से प्रिसिपल साहब ने सूचना भेज दी ..जल्दी से दिल्ली पहुचे एक सरकारी ऐडीड स्कूल मे नौकरी मिली अमरोह मे काफी कर्ज़दार हो गए थे ...शुरू की पगार उसी में चली गई...दिल्ली में एक भाई भी आ गया..मिल कर एक माकान ले लिया.. काफी समय गुज़र गया था इस दौरान रामनरेश के घर दो और बेटियों ने जन्म ले लिया था ... ज़िन्दगी तो बहुत कुछ दिखाती है ,सपनो से आस, गैरों से उम्मीद ,खून से दगा और घर में औरतो का झगड़ा ..आये दिन रामनरेश की बीबी और भाभी का झगड़ा होने लगा ..हर बात से बात बढ़ने लगी ... अंदर इतनी खटास भर गई की दोनो को एक दूसरे की शक्ल देखना भी गवारा न रहा ।..बीच बचाव के लिए बिरादरी को बुलाया गया भाई के पास पैसा था, मकान भी उसी के नाम पर था भले ही उसमें पैसे रामनरेश के लगे थे पर मकान रामनरेश को ही खाली करना पड़ा ...साथ ही खाली हो गया विश्वास ... यहीं से शुरू हुई राम नरेश की एक नई जंग...ये बात 1974 की है.....इस जंग से कैसे जीते राम नरेश ..और क्या हाल है राम नरेश का बताऊंगा दूसरी पोस्ट में.. तब तक अपने विचार भेजते रहिए...
71 साल
भाग -2
रात ही रात में घर खाली कर दिया ।पहले किसी जान पहचान वाले के यहां रहे फिर एक कमरा किराये पर ले लिया।रामनेरश ने अपनी तीन बेटियो और पत्नी के साथ ज़िन्दगी को नए सिरे से शुरू किया ।स्कूल दूर था सुबह जल्दी निकलते रात को देर तक टूयशन पढ़ा कर घर वापस आते ।अभी बहुत कुछ करना है बच्चियों की पढ़ाई एक अपना घर ... यही उनका सपना था ।न अपने खाने की फिक्र न पहने का होश दो जोडी कपड़े, एक जोड़ी रबड़ की चप्पल और एक साइकिल.. यही था रामनरेश के पास ..बीवी की भी कमोबोश ऐसी ही हालत थी।
जहां टूयशन पढ़ाने जाते थे उन बच्चों के पिता प्रॉपर्टि डिलर थे ।उन्होने कहा मास्टर साहब एक जगह ज़मीन कट रही है एक प्लाट ले लो । रामनेरश ने कहा भाई मेरे पास इतने पैसे नहीं की ज़मीन ले सकूं.. प्रॉपर्टि डिलर ने कहा चलिए कुछ दे दिये गा और बाकि बाद में दे देना ...शारीफ आदमी पैसे बाद में दे पर देगा ज़रूर ये बात डिलर जानता था ।
आज रामनरेश जल्दी जल्दी घर पहुचें पत्नी को ख़बर दी ।पत्नी भी खुश हो गयी । मां बाप के खिले हुए चेहेरे देख कर बच्चो में खुशियों की लहर दौड़ गई । और क्यो न हो आखिर कुछ अपना हां अपना घर होने वाला है उनका वो भी देश की राजधानी में । घर में दाल के साथ आजएक सब्ज़ी भी बनी और मीठे में खीर भी थी ..यही इनकी खुशी और पार्टी थी ।
कुछ पैसे दे दिये कुछ देने का वादा कर लिया .. लो रामनरेश को एक दो सौ गज का प्लाट मिल गया ।तब दिल्ली बस रही थी चारों तरफ जंगल थे या फिर खेत थे ।बिजली के लिए लकड़ी के पोल लगाए जाते थे और दूर से लाइन खीची जाती थी ।पानी के लिए हैंडपंम्प प्रयोग में आता था जिसमें मटमैला और बदबूदार पानी आया करता था ।सीवर तो बहुत दूर की बात है नाली तक नहीं होती थी .घरों आगे गड्डे खोदे जाते थे जिसमें पानी जमा होता था ।
रामनरेश और उनकी पत्नी ने जब जगह देखी तो एक दसरे का मुंह देखने लगे पर कुछ कहने की हिम्मत दोनो जुटा नहीं पाये... कैसे ,किस तरह से ,क्या होगा अभी तो चल जायेगा बच्चियां छोटी हैं पर जब बड़ी होगीं .कहां पढ़ेगी,कैसे वक्त कटेगा दोनो यही सोच रहे थे ।पर ये अपनी ज़मीन है हमारा अपना माकान बनेगा इस खुशी के आगे दोनो सब कुछ भूल गये थे ।
माकान बनना शुरू हुआ...भाई तक भी किसी ने ख़बर पहुचाई ..भई तु्म्हारे भाई रामनरेश ने ज़मीन ले ली अब माकान बनवा रहे हैं.. भाई से सुना न गया एकदम से ताना मारा ..अरे पागल हो गया है ..किसके लिये कर रहा है ..बनाने दो साले को इसके कौन सा लड़का है .. तीन तीन लड़कियां है सब कुछ मिलेगा तो हमारे ही लड़को को ...सुनने वाले ने सुना और कहने वाले ने रामनरेश को भी तबा दिया..बात रामनरेश और उनकी बीवी के दिल पर लग गयी ।दोनो खामोश हो गये पर बेटियों ने देखा उस रात मां बाप दोनो को अकेले में रोते हुए ।
माकान बनना शुरू हो गया उन दिनों सिमेंट ब्लैक में मिलती थी ।..इसलिये लोग सिमेंट का कम इस्तमाल करते थे ज्यादा काम गारे यानि मिट्टी से ही होता था चुनाई गारे की ही कराई जाती थी । बड़ी दोनो लड़किया स्कूल जाने लगी थी रामनरेश दोनो को स्कूल छोड़ने के बाद खुद भी पढ़ाने चले जाते थे और उनकी पत्नी अपनी छोटी बेटी के साथ अपनी ज़मीन पर चली आती थी ... पर उनके ज़हन में हर बार अपने जेट की बात ध्यान आ जाती ..आंखे भर जाती है ..मन में कहती ऐ भगवान तुम ही इनको जवाब दो....
एक कमरा लैटरीन बाथरूम तैयार हो गया था। रामनरेश अपने घर शिफ्ट कर गये थे ।इस बीच इनकी बीवी भी गर्भवती हो गई थी । रामनरेश की ज़िम्मेदारी काफी बढ़ गई थी ..घर, बच्चे,नौकरी,टूयशन और अब अस्पताल भी ।रामनरेश ने अपनी बहन की बेटी को बुलाना चाहा पर बड़े भाई का रौब ज्यादा था इसलिये बहन ने साफ साफ मना कर दिया ..पर रामनरेश को थोड़ी राहत ज़रूर मिली जब उनकी बीवी की बहन रहने आ गयी ।.चलो बच्चों को तो देख ही ले गी ।
मकान बनाने में काफी कर्ज़ चढ़ गया था । सरकारी अस्पताल के जनरल वार्ड में ही बीवी को भर्ती कराया गया था ।सर्दी के दिन थे घर में इतनी ही रज़ाई थी की बच्चों को उढ़ाया जा सके ।इसलिये रामनरेश की पत्नी अस्पताल में बिछने वाली चादर से ही काम चला रही थी । नर्स ने उनको बात भी सुनाई क्यों बहन जब पैसे नही थे तो ये सब क्यो... रामनरेश की बीबी कुछ नहीं बोली बस चुप होकर रहे गयी और एक दर्द भरी मुस्कुराहट के साथ ऊपर की तरफ देखा .. कुछ दिन के बाद उनके घर में एक लड़का हुआ जिसका नाम रखा नाम ...विजय... जो कभी भी न हारे....
क्या रामनरेश के ग़म विजय के बाद कुछ कम होगे.. कैसे कटेगी आगे की ज़िन्दगी.बताऊंगा ..अगले भाग मे.....तब तक अपने विचार भेजते रहिये.....
भाग -3रामनरेश खुश था भले ही हम जितना कहते रहें कि लड़के लड़कियों में कोई फर्क नहीं होता सब बराबर होते हैं.. पर लड़के के जन्म से खुशी और लड़की के जन्म से दुख होना स्वभाविक है..जिसे नकारा नहीं जा सकता .. पर हां रामनरेश एक समझदार और अच्छे व्यक्ति थे उन्होने कभी भी अपनें बच्चों मे भेदभाव नही किया .ब्लकि अपनी लड़कियों को ज्यादा प्यार दिया.. एक बात याद दिला दूं ये फिल्म नहीं है ज़िन्दगी है तीनो बहनो को भी अपने भाई से बहुत प्यार था।छहों की जिन्दगी बढ़ियां न सही ठीक से गुज़र रही थी घर में एक के बाद एक ईंट लगती जा रही थी एक कमरे से दो ,दो से तीन ,तीन से चार .. और इसी के साथ तन्खाह ,कर्ज़ और जिम्मेदारी भी बढ़ रही थी ...बच्चों को पढाना,खिलाना आसान न था .. बच्चे जब बाहर निकलते हैं बाहर की दुनिया देखते हैं और दुनिया के साथ अपने को देखते हैं फिर उनको ये एहसास होने लगता है कि वो दुनिया मे कितने पीछे हैं .. फिर बच्चो को ये याद नहीं रहता कि उनके मां बाप ने अपनी और उनकी ज़िन्दगी के लिये कितनी मेहनत की ..वो अपने सपनो में खो जाते हैं ..वो ग़लत नहीं है पर हां नादान है .. ये ही हुआ रामनरेश के बच्चों के साथ वो अपने मां बाप से प्यार तो करते थे प्यार के साथ एक दूरी भी बनने लगी .. उनकी कुछ पाने की इच्छा होती उसे वो अपने पिता माता से कहते वो उनसे कुछ बहाना बना देते कोई परेशानी गिना देते बच्चे समझदार थे ..धीरे धीरे हसरतों को दिल में दबाना सीख गये मां बाप से कहना छोड़ दिया और अपनी ज़िन्दगी का नया रास्ता ढूढना शुरू कर दिया...किस रास्ते पर चले रामनरेश के बच्चे बताउंगा अगली बारी तब तक अपने विचार भेजते रहिये...
71 साल.भाग-4आप लोग सोच रहेगें होगे कि इतने दिनों के बाद 71 साल की कैसे आई याद .. ज़हन में कहानी पूरी है पर लिखने के लिये वक्त और शब्द तलाश कर रहा था ...बात रामनरेश के बच्चो की..ज़िन्दगी हमारी धूमती है समाज औऱ उसके इर्द गिर्द.. और जब हम अपने दायरे से बाहर निकलते हैं तभी कहानी दूसरा मोड़ ले लेती..ये मोड़ या तो आपकी ज़िन्दगी को किसी मुकाम तक पहुचा देता हैं या फिर आपकी ज़िन्दगी मंजिल तलाशती रहती है ..ऐसे ही रामनरेश के बच्चों के साथ हुआ ।हर चीज़ का अभाव ज़िन्दगी को भावहीन कर देते हैं और हम हर चमक की तरफ दौड पड़ते हैं जो हमे दिख रही होती है ...जिन्दगी में रोशनी की लालसा हमें अकसर अंधेरे की तरफ ले जाती है ... और जब तक हम समझ पाते हैं, तब तक देर हो चुकी होती है ..राम नरेश को , पड़ोसी ने बताया कि उनकी बड़ी बेटी एक लड़के के साथ अकसर घूमती देखी गई ..बाप की गैरत करवट पलटती है ..और पुरूष का पौरूष बाहर आजाता है ..पहली बार हां पहली बार रामनरेश की दिवारों ने राम नरेश की शयाद इतनी भंयकर आवाज़ सुनी थी .. घर में मौजूद सब लोग थर्रा गये.. राम नरेश अपने गुस्से को ज्यादा देर तक नहीं रख पाये और फूट फूट कर रोने लगे ..रामनरेश के साथ सब रोये .मां..दोनो छोटी बेटी और बेटा .. सब को देख कर बड़ी बेटी भी रो पड़ी और बोली पापा मैने ऐसा कुछ नहीं किया ..बस कुछ वक्त उसके साथ बिताया .. रामनरेश के आंसू नहीं रोके ..रोते- रोते बोले .बेटा जानता हूं.. मेरे अंदर कमी है ..तुम्हारा जो हक है शायद मैं वो नहीं दे पा रहा.. पर रहे रहा के एक इज्ज़त है वो अगर बची रहे ..तो तुम लोगों की बड़ी महरबानी ..उस रात रामनरेश के घर में किसी के आंसू रूक नहीं रहे थे .कुछ खाना नहीं बना ..रात को रामनरेश ने अपनी पत्नी से कहा अपने भाई से बात करो ..बड़ी बिटिया के रिशते की ...रामनरेश और उनके परिवार का जीवन किस राह चलेगा बताउंगा अगली पोस्ट में ..तब तक अपने विचार लिखते रहिये....
(भाग-5)
सब कुछ जल्दी जल्दी हुआ ... रामनरेश ने अपनी इज्ज़त बचाने के लिए अपनी बड़ी बेटी की शादी की तैयारी शुरू कर दी ..पर ज़िन्दगी इतनी आसान होती तो ... भगवान और अल्लहा की दुकानों पर इतनी रौनक कभी नहीं होती ,,,,,।
आज रिश्तेवालों को आना हैं रामनरेश के बड़े भाई ने रिश्ता करवाया है ..रामनरेश की बीवी को जब रात मे रामनरेश ने ये बात बताई थी ..तभी से वो बहुत परेशान थी।.क्योकि जिस भाई से कभी न बनी जिसने ..रात ही रात को अपना माकान खाली करा लिया वो इतना कैसे मेहरबान की अपने भाई की बेटी के लिए कोई अच्छा रिश्ता लाए...।
पर घर का माहौल ऐसा था की कोई कुछ नही बोल रहा था .. खामोश ज़बा..आंखे नम , दिल भारी .. पर हो रही थी मेहमानों के आने की तैयारी ...।
पैसे जो़ड़ जोड़ कर अपने बच्चों का पेट काट काट कर रामनरेश की पत्नी ने घर की चीज़े जोडी और बनाई थी .. नई चादरें ,पर्दे.खाने के बर्तन ... और भी मेहमानो की खातीर दारी के लिए बाकी सामान....।
नाशते और खाने का प्रबंध किया गया था ...बाथरूम और टायलेट को भी अच्छी तरह से साफ कर दिया गया, नया तौलिया, नया साबुन... शीशे से लेकर फर्श और खिड़की दरवाज़े सब चमक रहे थे...
सुबह के दस बजे तक सब कुछ तैयार ... अब हो रहा था मेहमानों का इंतज़ार ..बड़ी बेटी को भी तैयार कर दिया गया था ..छोटी बेटी और लड़के को भी खामोश रहने की हिदायत दे दी गई....न जाने कौन सा डर सब को सता रहा था ... पर किसी की हिम्मत नही थी की कोई कुछ बोले ..
तभी बाहर के दरवाज़े से आवाज़ आती है ,,,रामनरेश... ये आवाज़ रामनरेश के भाई थी ..उनके साथ कुछ लोग थे .दो औरते ..तीन मर्द और एक बच्चा...
क्या होगा आगे बताउंगा ..अगले अंक में तब तक अपने विचार भेजते रहिए. जो नए पाठको के लिए बाकी अंक इस के नीचे पोस्ट कर रहा हूं.......
भाग -1रामनरेश अपने बेटे के साथ कार में बैठे एक रशितेदार के घर जा रहे थे..तभी बराबर से गुज़रते हुए एक ऑटो पर उनकी नज़र पड़ी, एक विवाहित जोड़ा उनके पास से गुज़रा .. और रामनरेश खो गये अतित में.. जब उनकी नई नई शादी हुई थी ।बहुत बड़ा कदम था .क्योकि वो अपने खानदान में पहले ऐसे शख्स थे जिन्होने अपने खानदान से अलग शादी की थी सब ने साथ छोड़ दिया था सिर्फ एक बहनोई ही उनके साथ थे ..इंगलिश में एम.ए किया था इस लिये अमरोह के मुस्लिम स्कूल में उन्हे नौकरी मिलने में कोई दिक्कत नही हुई।प्रिसिपलसाहब अच्छे थे और उनको अच्छी सलाह दी और बीएड करने को कहा, मुरादाबाद के हिन्दू कालेज से बीएड किया ...उसी दौरान उनके घर में एक रोशनी आई बेटी के रूप में कहते हैं लड़की लक्ष्मी का रूप होती है ... पर रामनेरश के घर में खर्च बढ़ गया जिसके कारण उन्हे और मेहनत करनी पड़ी । देर रात तक टूयशन पढ़ाने पड़ रहे थे जिसकी वजह वो स्कूल रोज़ देर से पहुच रहे थे ।पसंद करने वाले प्रिंसिपल भी अमरोह छोड़ कर दिल्ली बस गये थे । इसलिये पहले उन्हे नोटिस मिला लेकिन पैसे की ज़रूरत ने नोटिस के डर को भगा दिया ..वो टूयशन बन्द न कर पाये और नौकरी खो बैठे ।बीबी ने कहा क्यो नहीं दिल्ली जा कर प्रिसिपल से बात करते छोटे शहर से बड़े शहर में आना एक आम आदमी में वैसे ही खौफ पैदा कर देता ,लेकिन परिवार चलाने के लिए अपनी औलाद को पालने के लिए इंसान हर कदम उठाने को तैयार हो जाता है । रामनरेश भी दिल्ली आ गए सच सच प्रिंसिपल साहब को बताया ..उनके सरल स्वभाव से वो पहले से प्रभावित थे ....इसलिए कहा की देखता हूं रामनरेश ने कहा उनके पास तो इतने पैसे भी नहीं है कि वो वापस जा सके ... प्रिसिपल साहब ने पैसे दिये और कहा जल्दी सूचित करेगें.. घर में टूयशन से जो पैसे आते वो इतने नहीं थे कि ज़िन्दगी चल सके... घर का किराया ,राशन, बच्ची का दूघ..ज़िन्दगी में दुख भरने के लिए काफी थे ।...और जब दुख शुरू होते है ...तो वो बस आने शुरू ही हो जाते है ... पत्नी को ब्लड प्रेशर हो गया लो दवाई का खर्च और ..साथ ही मदद करने वाले जीजा ने अपने बच्चे भी भेज दिये, एक खत के साथ भाई रामनरेश ये यहां पढ़ नही पा रहे कृप्या कर के साथ रख लो .तुम्हारे साथ रहे कर पढ़ लेगें ... पढ़ तो लेगे पर खायेगे क्या ...रामनरेश ने सोचा.....लेकिन अगर आपकी नियत सही है तो अल्लाह भगवान आपकी मदद ज़रूर करता है ...दिल्ली से प्रिसिपल साहब ने सूचना भेज दी ..जल्दी से दिल्ली पहुचे एक सरकारी ऐडीड स्कूल मे नौकरी मिली अमरोह मे काफी कर्ज़दार हो गए थे ...शुरू की पगार उसी में चली गई...दिल्ली में एक भाई भी आ गया..मिल कर एक माकान ले लिया.. काफी समय गुज़र गया था इस दौरान रामनरेश के घर दो और बेटियों ने जन्म ले लिया था ... ज़िन्दगी तो बहुत कुछ दिखाती है ,सपनो से आस, गैरों से उम्मीद ,खून से दगा और घर में औरतो का झगड़ा ..आये दिन रामनरेश की बीबी और भाभी का झगड़ा होने लगा ..हर बात से बात बढ़ने लगी ... अंदर इतनी खटास भर गई की दोनो को एक दूसरे की शक्ल देखना भी गवारा न रहा ।..बीच बचाव के लिए बिरादरी को बुलाया गया भाई के पास पैसा था, मकान भी उसी के नाम पर था भले ही उसमें पैसे रामनरेश के लगे थे पर मकान रामनरेश को ही खाली करना पड़ा ...साथ ही खाली हो गया विश्वास ... यहीं से शुरू हुई राम नरेश की एक नई जंग...ये बात 1974 की है.....इस जंग से कैसे जीते राम नरेश ..और क्या हाल है राम नरेश का बताऊंगा दूसरी पोस्ट में.. तब तक अपने विचार भेजते रहिए...
71 साल
भाग -2
रात ही रात में घर खाली कर दिया ।पहले किसी जान पहचान वाले के यहां रहे फिर एक कमरा किराये पर ले लिया।रामनेरश ने अपनी तीन बेटियो और पत्नी के साथ ज़िन्दगी को नए सिरे से शुरू किया ।स्कूल दूर था सुबह जल्दी निकलते रात को देर तक टूयशन पढ़ा कर घर वापस आते ।अभी बहुत कुछ करना है बच्चियों की पढ़ाई एक अपना घर ... यही उनका सपना था ।न अपने खाने की फिक्र न पहने का होश दो जोडी कपड़े, एक जोड़ी रबड़ की चप्पल और एक साइकिल.. यही था रामनरेश के पास ..बीवी की भी कमोबोश ऐसी ही हालत थी।
जहां टूयशन पढ़ाने जाते थे उन बच्चों के पिता प्रॉपर्टि डिलर थे ।उन्होने कहा मास्टर साहब एक जगह ज़मीन कट रही है एक प्लाट ले लो । रामनेरश ने कहा भाई मेरे पास इतने पैसे नहीं की ज़मीन ले सकूं.. प्रॉपर्टि डिलर ने कहा चलिए कुछ दे दिये गा और बाकि बाद में दे देना ...शारीफ आदमी पैसे बाद में दे पर देगा ज़रूर ये बात डिलर जानता था ।
आज रामनरेश जल्दी जल्दी घर पहुचें पत्नी को ख़बर दी ।पत्नी भी खुश हो गयी । मां बाप के खिले हुए चेहेरे देख कर बच्चो में खुशियों की लहर दौड़ गई । और क्यो न हो आखिर कुछ अपना हां अपना घर होने वाला है उनका वो भी देश की राजधानी में । घर में दाल के साथ आजएक सब्ज़ी भी बनी और मीठे में खीर भी थी ..यही इनकी खुशी और पार्टी थी ।
कुछ पैसे दे दिये कुछ देने का वादा कर लिया .. लो रामनरेश को एक दो सौ गज का प्लाट मिल गया ।तब दिल्ली बस रही थी चारों तरफ जंगल थे या फिर खेत थे ।बिजली के लिए लकड़ी के पोल लगाए जाते थे और दूर से लाइन खीची जाती थी ।पानी के लिए हैंडपंम्प प्रयोग में आता था जिसमें मटमैला और बदबूदार पानी आया करता था ।सीवर तो बहुत दूर की बात है नाली तक नहीं होती थी .घरों आगे गड्डे खोदे जाते थे जिसमें पानी जमा होता था ।
रामनरेश और उनकी पत्नी ने जब जगह देखी तो एक दसरे का मुंह देखने लगे पर कुछ कहने की हिम्मत दोनो जुटा नहीं पाये... कैसे ,किस तरह से ,क्या होगा अभी तो चल जायेगा बच्चियां छोटी हैं पर जब बड़ी होगीं .कहां पढ़ेगी,कैसे वक्त कटेगा दोनो यही सोच रहे थे ।पर ये अपनी ज़मीन है हमारा अपना माकान बनेगा इस खुशी के आगे दोनो सब कुछ भूल गये थे ।
माकान बनना शुरू हुआ...भाई तक भी किसी ने ख़बर पहुचाई ..भई तु्म्हारे भाई रामनरेश ने ज़मीन ले ली अब माकान बनवा रहे हैं.. भाई से सुना न गया एकदम से ताना मारा ..अरे पागल हो गया है ..किसके लिये कर रहा है ..बनाने दो साले को इसके कौन सा लड़का है .. तीन तीन लड़कियां है सब कुछ मिलेगा तो हमारे ही लड़को को ...सुनने वाले ने सुना और कहने वाले ने रामनरेश को भी तबा दिया..बात रामनरेश और उनकी बीवी के दिल पर लग गयी ।दोनो खामोश हो गये पर बेटियों ने देखा उस रात मां बाप दोनो को अकेले में रोते हुए ।
माकान बनना शुरू हो गया उन दिनों सिमेंट ब्लैक में मिलती थी ।..इसलिये लोग सिमेंट का कम इस्तमाल करते थे ज्यादा काम गारे यानि मिट्टी से ही होता था चुनाई गारे की ही कराई जाती थी । बड़ी दोनो लड़किया स्कूल जाने लगी थी रामनरेश दोनो को स्कूल छोड़ने के बाद खुद भी पढ़ाने चले जाते थे और उनकी पत्नी अपनी छोटी बेटी के साथ अपनी ज़मीन पर चली आती थी ... पर उनके ज़हन में हर बार अपने जेट की बात ध्यान आ जाती ..आंखे भर जाती है ..मन में कहती ऐ भगवान तुम ही इनको जवाब दो....
एक कमरा लैटरीन बाथरूम तैयार हो गया था। रामनरेश अपने घर शिफ्ट कर गये थे ।इस बीच इनकी बीवी भी गर्भवती हो गई थी । रामनरेश की ज़िम्मेदारी काफी बढ़ गई थी ..घर, बच्चे,नौकरी,टूयशन और अब अस्पताल भी ।रामनरेश ने अपनी बहन की बेटी को बुलाना चाहा पर बड़े भाई का रौब ज्यादा था इसलिये बहन ने साफ साफ मना कर दिया ..पर रामनरेश को थोड़ी राहत ज़रूर मिली जब उनकी बीवी की बहन रहने आ गयी ।.चलो बच्चों को तो देख ही ले गी ।
मकान बनाने में काफी कर्ज़ चढ़ गया था । सरकारी अस्पताल के जनरल वार्ड में ही बीवी को भर्ती कराया गया था ।सर्दी के दिन थे घर में इतनी ही रज़ाई थी की बच्चों को उढ़ाया जा सके ।इसलिये रामनरेश की पत्नी अस्पताल में बिछने वाली चादर से ही काम चला रही थी । नर्स ने उनको बात भी सुनाई क्यों बहन जब पैसे नही थे तो ये सब क्यो... रामनरेश की बीबी कुछ नहीं बोली बस चुप होकर रहे गयी और एक दर्द भरी मुस्कुराहट के साथ ऊपर की तरफ देखा .. कुछ दिन के बाद उनके घर में एक लड़का हुआ जिसका नाम रखा नाम ...विजय... जो कभी भी न हारे....
क्या रामनरेश के ग़म विजय के बाद कुछ कम होगे.. कैसे कटेगी आगे की ज़िन्दगी.बताऊंगा ..अगले भाग मे.....तब तक अपने विचार भेजते रहिये.....
भाग -3रामनरेश खुश था भले ही हम जितना कहते रहें कि लड़के लड़कियों में कोई फर्क नहीं होता सब बराबर होते हैं.. पर लड़के के जन्म से खुशी और लड़की के जन्म से दुख होना स्वभाविक है..जिसे नकारा नहीं जा सकता .. पर हां रामनरेश एक समझदार और अच्छे व्यक्ति थे उन्होने कभी भी अपनें बच्चों मे भेदभाव नही किया .ब्लकि अपनी लड़कियों को ज्यादा प्यार दिया.. एक बात याद दिला दूं ये फिल्म नहीं है ज़िन्दगी है तीनो बहनो को भी अपने भाई से बहुत प्यार था।छहों की जिन्दगी बढ़ियां न सही ठीक से गुज़र रही थी घर में एक के बाद एक ईंट लगती जा रही थी एक कमरे से दो ,दो से तीन ,तीन से चार .. और इसी के साथ तन्खाह ,कर्ज़ और जिम्मेदारी भी बढ़ रही थी ...बच्चों को पढाना,खिलाना आसान न था .. बच्चे जब बाहर निकलते हैं बाहर की दुनिया देखते हैं और दुनिया के साथ अपने को देखते हैं फिर उनको ये एहसास होने लगता है कि वो दुनिया मे कितने पीछे हैं .. फिर बच्चो को ये याद नहीं रहता कि उनके मां बाप ने अपनी और उनकी ज़िन्दगी के लिये कितनी मेहनत की ..वो अपने सपनो में खो जाते हैं ..वो ग़लत नहीं है पर हां नादान है .. ये ही हुआ रामनरेश के बच्चों के साथ वो अपने मां बाप से प्यार तो करते थे प्यार के साथ एक दूरी भी बनने लगी .. उनकी कुछ पाने की इच्छा होती उसे वो अपने पिता माता से कहते वो उनसे कुछ बहाना बना देते कोई परेशानी गिना देते बच्चे समझदार थे ..धीरे धीरे हसरतों को दिल में दबाना सीख गये मां बाप से कहना छोड़ दिया और अपनी ज़िन्दगी का नया रास्ता ढूढना शुरू कर दिया...किस रास्ते पर चले रामनरेश के बच्चे बताउंगा अगली बारी तब तक अपने विचार भेजते रहिये...
71 साल.भाग-4आप लोग सोच रहेगें होगे कि इतने दिनों के बाद 71 साल की कैसे आई याद .. ज़हन में कहानी पूरी है पर लिखने के लिये वक्त और शब्द तलाश कर रहा था ...बात रामनरेश के बच्चो की..ज़िन्दगी हमारी धूमती है समाज औऱ उसके इर्द गिर्द.. और जब हम अपने दायरे से बाहर निकलते हैं तभी कहानी दूसरा मोड़ ले लेती..ये मोड़ या तो आपकी ज़िन्दगी को किसी मुकाम तक पहुचा देता हैं या फिर आपकी ज़िन्दगी मंजिल तलाशती रहती है ..ऐसे ही रामनरेश के बच्चों के साथ हुआ ।हर चीज़ का अभाव ज़िन्दगी को भावहीन कर देते हैं और हम हर चमक की तरफ दौड पड़ते हैं जो हमे दिख रही होती है ...जिन्दगी में रोशनी की लालसा हमें अकसर अंधेरे की तरफ ले जाती है ... और जब तक हम समझ पाते हैं, तब तक देर हो चुकी होती है ..राम नरेश को , पड़ोसी ने बताया कि उनकी बड़ी बेटी एक लड़के के साथ अकसर घूमती देखी गई ..बाप की गैरत करवट पलटती है ..और पुरूष का पौरूष बाहर आजाता है ..पहली बार हां पहली बार रामनरेश की दिवारों ने राम नरेश की शयाद इतनी भंयकर आवाज़ सुनी थी .. घर में मौजूद सब लोग थर्रा गये.. राम नरेश अपने गुस्से को ज्यादा देर तक नहीं रख पाये और फूट फूट कर रोने लगे ..रामनरेश के साथ सब रोये .मां..दोनो छोटी बेटी और बेटा .. सब को देख कर बड़ी बेटी भी रो पड़ी और बोली पापा मैने ऐसा कुछ नहीं किया ..बस कुछ वक्त उसके साथ बिताया .. रामनरेश के आंसू नहीं रोके ..रोते- रोते बोले .बेटा जानता हूं.. मेरे अंदर कमी है ..तुम्हारा जो हक है शायद मैं वो नहीं दे पा रहा.. पर रहे रहा के एक इज्ज़त है वो अगर बची रहे ..तो तुम लोगों की बड़ी महरबानी ..उस रात रामनरेश के घर में किसी के आंसू रूक नहीं रहे थे .कुछ खाना नहीं बना ..रात को रामनरेश ने अपनी पत्नी से कहा अपने भाई से बात करो ..बड़ी बिटिया के रिशते की ...रामनरेश और उनके परिवार का जीवन किस राह चलेगा बताउंगा अगली पोस्ट में ..तब तक अपने विचार लिखते रहिये....
Comments
vaise aapki lekhni bahut sashakt hai.
badhaai !