33 प्रतिक्षत में आम मुस्लमान औरतों के हिस्से क्या... कुछ नहीं..

33 प्रतिक्षत में आम मुस्लमान औरतों के हिस्से क्या... कुछ नहीं..

सहारनपुर के पास गांव कैलाशपुर की रहने वाली नसीमा रोज़ अपने शौहर नसीम से पिटती है ..कारण नसीमा को नेता बनने का शौक था ..कहीं कुछ होता खड़ी हो जाती हर बात में हर एक से उलझ पड़ती ..बड़े बड़े अफसर से लौहा लेने में पीछे नहीं रहती नसीम जब शहर से लौटता तो पुलिया पर ही कोई न कोई मिल कर कहे ही देता आज तेरी लुगाई ने ये किया भई इंदीरा बने गई वो तो,...नसीम को बात गवारा नही होती घर में कदम रखते ही बस नसींमा की कुटाई शुरू.. मारते मारते कहता अरे तुझे कोई टिकट न देगा..बस हमारी रूसवाई ही कराती रहे ..नसींमा सोचती देश बदल रहा औरते आगे आ रही हैं हमारी कौम की औरतों के लिए भी आवाज़ उठेगी कोई उनके लिए भी बोलेगा हमारे देश की सबसे बड़ी पार्टी की अध्यक्ष, सभापति नेताविपक्ष,राष्ट्रपति सब तो औरते हैं फिर मैं क्यों नही.. नसीमा की बात सही थी वो क्यों नहीं.. पर वो जिनका उसने नाम लिया उनमे से कोई आम औरत नहीं है और कोई मुस्लमान नहीं है जो वो है .. नसीमा औऱ उसकी कौम की औरतों की आखिरी उम्मीद, महिला आरक्षण बील में उनके लिए कुछ नहीं है..और ये सच है

15वीं लोकसभा के 543 सांसदो में से केवल तीन मुस्लिम औरतें हैं मौसम नूर, कैसर जहां और तबस्सुम बेगम
62 साल के इतिहास है कि 3 से ज्यादा मुस्लिम महिलाओं को कभी जगह नही मिली है बल्कि 5 लोकसभा में तो एक भी मुस्लिम औरत को जगह नही मिल पाई जबकि तीन लोकसभा में एक ही मुस्लिम औऱत सासद बनी। तीन बार ही केवल दो दो मुस्लिम महिला सांसद चुनी गई और तीन बार ही तीन मुस्लिम औरते संसद पहुची हैं।
और क्या आप जानते हैं 15 लोकसभा में सिर्फ और सिर्फ दो बार ही ऐसा हुआ है जब 50 से ज्यादा मुस्लिम महिलाओं ने चुनाव लड़ा ।
इस बार 556 महिलाओं ने लोकसभा चुनाव लड़ा जिनमें से मात्र 59 मुस्लिम औरते थी और एक बात आप को और बता दे जिनमे से 13 सीटे बीजेपी ने दी है और 23 काग्रेस ने मुलायम और लालू ने अपने घर की औरतों को ही टिकट दिया है ज्यादातर।
एक और चौकाने वाला आकड़ा जिन भी औरतो को टिकट दिया गया उनमे से कोई भी आम सधारण मुस्लमान परिवार से नहीं है ज्यादातरों का सियासी और पूजीपति परिवारों से रिशता है।

तो आम रोज़ त़ड़पने और मरने वाली मुस्लमान औरते केवल गुडिया, शाहबानो के नाम से ही पैदा होगीं जीये गई और वैसे ही किसी बदनामी के साथ इस दुनिया से रूखस्त हो जाएगी .. और जबतक आम मुस्लमान औरत को विकास और मुख्यधारा में शरीक नहीं किया जाएगा तब तक मुस्लिम समुदाय पिछड़ा ही रहेगा ।
क्यो इतना भेदभाव है और कब तक ये भेदभाव रहेगा .. आज सोनिया गांधी खुश है औऱतो के हक के लिए पर वो हक केवल एक जाति कि औरतो के लिए ही क्यों ....
कहा जा रहा किस पार्टी को मना किया गया है कि वो मुस्लमान औरतों को टिकट न दे। शायद वो भूल गई देश के वोट समीकरण को । भले यहां सब एकजुटता की बात करे पर वोट जाति और धर्म के नाम पर ही पड़ते हैं.. और जब दिल्ली जैसे शहर में कोई मुस्लिम पुरूष सांसद नही जीतता .जीतने की बात दूर टिकट ही नहीं मिलता तो मुस्लिम महिला हिन्दु बहुल इलाके और हिन्दू विरोधी से जीते गी ये सोचना भी बइमानी है.. इस 33 प्रतिक्षत में आम मुसलमान औरतों के लिए कुछ नहीं है.
नसीमा का सपना टूट गया कलावती केवल कविता के लिए है उसकी ज़िन्दगी की कहानी बन सकती है सहानुभति मिल सकती है पर कल को खुद वो किसी के लिए कुछ करे ये इस समाज को मंजूर नहीं.. नसीमा समझ जाएगी और अपनी दूसरी बहनो को भी समझा देगी ..संसद न पहुच सकी खुद तो क्या सांसदो की रैलियों में भीड तो जुटा ही देगी जो इस देश में मुस्लमानो की असली जगह है और उनकी पहचान भी ,केवल भीड भीड़ और बस भीड़ .... ।।

Comments

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देश ही ले लो ना पूरा दिक्कत खत्म...
indian citizen said…
देश ही ले लो ना पूरा दिक्कत खत्म...
एमाला said…
माक़ूल सवाल उठाया है आपने.
एमाला said…
भारतीय नागरिक साहब की शहरोज़ साहब हमेशा तारीफ़ करते रहते हैं कि आप बहुत ही प्रबुद्ध हैं.लेकिन उनके ये ख्याल किस ज़ेहन की उपज हैं.!!!!
हम सभी भारतीय नागरिक हैं..
Anonymous said…
महिलाओं की भागीधारी आर्थिक स्थिती के आधार पर होनी चाहिए न की धर्म या जाती के आधार पर .
Rohit Singh said…
मुसलमान स्त्रियों की हालत तब सुधरेगी जब कठमुल्ले इनका पीछा छोड़ेंगी....महिला आरक्षण में मुस्लिम छोक लगा कर उसे न बांटे. हर महिला सिर्फ महिला है..पहले उसे उसका हक दें....तालिम दिलाकर भी सिर्फ घर बैठाना कहां तक उचित है...
Anonymous said…
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