प्रेम पत्र -5
प्रेम पत्र -5
प्रिय आज फिर तुम को पत्र लिख रहा हूं.. जब भी मन भाव से भर जाता है । शब्द गायब होने लगते हैं ।हलक़ से वाणी नहीं निकल पाती कोई आसपास नहीं होता ।हृदय कि गति तेज़ होने लगती ..आंखों में पानी बहने लगता ..नज़रें कभी इधर कभी उधर घुमने लगती किसी का सामना करने की हिम्मत नही जुटा पाता तब फिर तुम्हारी याद आने लगती है। तुम्हारे दूर जाने का एहसास होने लगता ..मन चिढ़ चिढा हो जाता बार बार झुंझूलाहट होने लगती है। तब किसी अँधेरे कमरे में बैठ कर बड़ा सुकून मिलता ..और उस पल सच कहू तुम्हारे सिवा कोई और नहीं दिखता .. और मन तुम्हे ढ़ूढने के लिए निकल पड़ता ...पर तुम न मिलती, तो ये मन वापस आकर अपना हाल बयान करता ... और उस हाल को शब्द देकर मैं एक पत्र का रूप दे देता ।
मेरी हालत तुम जानो
तुम ही मुझको पहचानो
हर डगर हर पथ
तुम को चाहूं मै
नैनों में
सांसों मे
मेरे रक्त और
रिक्त स्थानों में
तुम्हारी ही तलाश है
तुम्हे पाने की आस है।।
शायद तुम नही हो तभी ये एहसास है अगर तुम होती ..... क्या तब कोई दूसरी बात होती या तब भी मैं अंधेरे कमरो में अपने आप को खोजता रहता है । आज तो तुम्हार बहाना है ..जिससे दुनिया मुहब्बत कहती है वो फसाना है .. पर ठीक है जो है वो मेरा अपना है ..उसी के साथ जी लूंगा तुम को पत्र लिख कर खुश हो लूंगा ... इस उम्मीद के साथ कि पत्र पढ़ कर तुम्हारी आंखे फिर नम होगीं.. तुम फिर थोड़ा ग़मगीन होगी कलम उठाओगी कुछ लिखोगी पर कभी मुझ तक तुम्हारे शब्द तुम्हारे एहसास नही पहुचेगें... पर मैं फिर भी खुश रहूंगा कि तुमने मुझे पढ़ा तो सही ..मुझे समझा तो सही ... फिर कभी दर्द आएगा तो फिर वो एहसास शब्दों में गढ़ दिए जाएंगे अब मन कुछ हल्का हुआ तुम से बात कर के अच्छा लगा ...
तुम्हारा
शान
प्रिय आज फिर तुम को पत्र लिख रहा हूं.. जब भी मन भाव से भर जाता है । शब्द गायब होने लगते हैं ।हलक़ से वाणी नहीं निकल पाती कोई आसपास नहीं होता ।हृदय कि गति तेज़ होने लगती ..आंखों में पानी बहने लगता ..नज़रें कभी इधर कभी उधर घुमने लगती किसी का सामना करने की हिम्मत नही जुटा पाता तब फिर तुम्हारी याद आने लगती है। तुम्हारे दूर जाने का एहसास होने लगता ..मन चिढ़ चिढा हो जाता बार बार झुंझूलाहट होने लगती है। तब किसी अँधेरे कमरे में बैठ कर बड़ा सुकून मिलता ..और उस पल सच कहू तुम्हारे सिवा कोई और नहीं दिखता .. और मन तुम्हे ढ़ूढने के लिए निकल पड़ता ...पर तुम न मिलती, तो ये मन वापस आकर अपना हाल बयान करता ... और उस हाल को शब्द देकर मैं एक पत्र का रूप दे देता ।
मेरी हालत तुम जानो
तुम ही मुझको पहचानो
हर डगर हर पथ
तुम को चाहूं मै
नैनों में
सांसों मे
मेरे रक्त और
रिक्त स्थानों में
तुम्हारी ही तलाश है
तुम्हे पाने की आस है।।
शायद तुम नही हो तभी ये एहसास है अगर तुम होती ..... क्या तब कोई दूसरी बात होती या तब भी मैं अंधेरे कमरो में अपने आप को खोजता रहता है । आज तो तुम्हार बहाना है ..जिससे दुनिया मुहब्बत कहती है वो फसाना है .. पर ठीक है जो है वो मेरा अपना है ..उसी के साथ जी लूंगा तुम को पत्र लिख कर खुश हो लूंगा ... इस उम्मीद के साथ कि पत्र पढ़ कर तुम्हारी आंखे फिर नम होगीं.. तुम फिर थोड़ा ग़मगीन होगी कलम उठाओगी कुछ लिखोगी पर कभी मुझ तक तुम्हारे शब्द तुम्हारे एहसास नही पहुचेगें... पर मैं फिर भी खुश रहूंगा कि तुमने मुझे पढ़ा तो सही ..मुझे समझा तो सही ... फिर कभी दर्द आएगा तो फिर वो एहसास शब्दों में गढ़ दिए जाएंगे अब मन कुछ हल्का हुआ तुम से बात कर के अच्छा लगा ...
तुम्हारा
शान
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