प्रार्थना के लिए हाथ उठते हैं
प्रार्थना के लिए हाथ उठते हैं
आज बाज़ार गया तो दुकान पर देखा एक बच्चा अपनी मां की साड़ी को हिला हिला कर किसी चीज़ की ज़िद कर रहा था । मां ने उसे देखा और फिर नज़रअंदाज़ कर दिया । फिर देखा तो गुस्से से घुर दिया ..बच्चा नहीं माना रोने लगा ... मां भी नहीं मानी बच्चे के तमाचा जड़ दिया ..बच्चा और ज़ोर से रोया ..मां को तरस आया कहा क्या चाहिए चलो ले लो... बच्चा खुश था ..उसे वो चीज़ मिल गई थी जिसकी उसने चाहत की थी ।... मां भी संतुष्ठ थी चलो उसका बच्चा खुश तो हुआ... दोनो खुशी खुशी चले गए..
पर मेरे मन में बड़े विचित्र से सवाल उठने लगे मैने सोचा ये मां और बच्चे के बीच क्या कोई तीसरा भी था ...जिसे दुनिया भगवान औऱ अल्लाह कहती दिन रात सजदे और दीये जलाती है क्या वो भी मौजूद था ... बच्चे ने मां से क्यों मांगा भगवान से क्यों नहीं ..जब इस दुनिया का नियम है कि जो कुछ है भगवान का है जो देता है वो भगवान देता है तो बीच में ये मां कहां से आ गई... और मां ने खुद क्यों दिया .भगवान ने क्यों नहीं दिया.उसने भी तो बच्चे को रोता देखा तिलमिलता देखा ..पर नहीं बात मां बच्चे में ही निपट गई..
अब लौटते हैं अपने विषय पर प्रार्थना के लिए उठते हाथ.. रोज़ पांच वक्त ,सुबह शाम, मज़ारों ,दरगाहों ,मंदिर ,तीर्थस्थानों सब जगह हर आदमी कुछ न कुछ मांगता दिख जाएगा.. पर हमें मालुम हैं कि हमको क्या चाहिए?..जी आप कहेगे हां..गाड़ी ,बगला, पैसा, दौलत शौहरत ,औलाद। किसी परीक्षा मे पास होना, कहीं दाखिला मिल जाना ,किसी बीमारी से निजात पाना, परेशानियों का खातमा..और कुछ... हां मरने के बाद जन्नत या स्वर्ग... बस दो पंक्तियों में हमारी सारी इच्छाए वो सारी कमनाए निपट गई जिसे हम ताउम्र मांगते रहते हैं ।और मांगते मांगते इस दुनिया को छोड़ कर चले जाते है कहां? ...उस भगवान उस अल्लाह के पास जिससे हम इस दुनिया में गिड़गिड़ाते रहे, रोते रहे, बिलकते रहे कभी ये मांगते कभी वो चाहते ..अंत में उसी के पास पहुच गए.... वो भी खाली हाथ ...
मेरे पिताजी की उम्र 73 साल की हैं सारी उम्र वो बहुत धार्मिक रहे ..पूजा पाठ नमाज़ रोज़ा, मजलिस मातम सब करते रहे ... पर पिछले दो साल से उनका मन इन सब से उखड़ सा गया ..एक दिन वो मुझे बताने लगे जब वो छोटे थे तकरीबन 5-6 साल के तब उनके दादा उन्हे बताते थे कि दुनिया में इतना अपराध, पाप बड़ गया है कि बस अब तो कयामत आने वाली है दुनिया खत्म होने वाली है । बस दुआ करो प्रार्थना के लिए हाथ उठाओ.. भगवान सब अच्छा करेगा..पर... अल्लाह ने सब कुछ अच्छा तो किया लेकिन भारतीय कोर्ट की तरह मामला ब़ड़ता ही गया ..पाप भी बड़ता गया...औऱ दुनिया चलती रही ।हमने फिर भगवान को पाने का और सरल तरीका खोजा छ संत, गुरूओं ,मौलवियों के आगे हाथ उठा कर प्रार्थना करना शुरू कर दिया ये तो हमारी बात ज़रूर पहुचाएगे पर नतीजा रहा..वो ही..सिफर..
अब सवाल वो ही कि हम दुआ क्यों मांगते हैं .. जब हम किसी के आगे हाथ जोड़ते हैं तो हम ये मानते हैं कि हम इससे छोटे हैं..ये हम से बड़ा है .. हाथ उठाने की नौबत तब आती है जब हर जगह से हम खाली हाथ वापस आते हैं। शायद इससे मनुष्य के अंहकार को कम होता है ..दुनिया को ठीक से चलाने के लिए अंहकार का मिटना ज़रूरी होता है ..बच्चा मां से मांगता है वो चाटा मारती है फिर भी मांगता है अगर वो उस वक्त न दिलाती तो कल फिर से मांगता ... ज़िन्दगी भी बच्चे के तरह आसान होती .थोडी ज़िद थोडे नखरे और काम हो जाए...
पर हमारा हाथ तो उठता ...उठ उठ कर थक जाता है ..साल महीने बरसों हो जाते पर धीरे धीरे जो होना होता या वक्त के साथ जो होना चाहिए वो होता रहता ... दुआ मांगने में कोई परहेज़ नही न ही मैं किसी से किसी चीज़ के लिए मना कर रहा हूं... पर मैने तो न जाने कब से कोई दुआ ही नहीं मांगी ।
पर अब मन करता है की.... उस भगवान उस अल्लाह से मांगू जिससे ललित मोदी मागता है विजया माल्या बिल गेस्टस अरब के शेख. साहारा श्री मांगते है ...अगर आप जानते हो इनके भगवान इनके अल्लाह को तो मुझे ज़रूर बताइए.. आपके मारे ही इस गरीब का भला हो जाए..और ये हाथ प्रार्थना के लिए उठ पड़े...
आज बाज़ार गया तो दुकान पर देखा एक बच्चा अपनी मां की साड़ी को हिला हिला कर किसी चीज़ की ज़िद कर रहा था । मां ने उसे देखा और फिर नज़रअंदाज़ कर दिया । फिर देखा तो गुस्से से घुर दिया ..बच्चा नहीं माना रोने लगा ... मां भी नहीं मानी बच्चे के तमाचा जड़ दिया ..बच्चा और ज़ोर से रोया ..मां को तरस आया कहा क्या चाहिए चलो ले लो... बच्चा खुश था ..उसे वो चीज़ मिल गई थी जिसकी उसने चाहत की थी ।... मां भी संतुष्ठ थी चलो उसका बच्चा खुश तो हुआ... दोनो खुशी खुशी चले गए..
पर मेरे मन में बड़े विचित्र से सवाल उठने लगे मैने सोचा ये मां और बच्चे के बीच क्या कोई तीसरा भी था ...जिसे दुनिया भगवान औऱ अल्लाह कहती दिन रात सजदे और दीये जलाती है क्या वो भी मौजूद था ... बच्चे ने मां से क्यों मांगा भगवान से क्यों नहीं ..जब इस दुनिया का नियम है कि जो कुछ है भगवान का है जो देता है वो भगवान देता है तो बीच में ये मां कहां से आ गई... और मां ने खुद क्यों दिया .भगवान ने क्यों नहीं दिया.उसने भी तो बच्चे को रोता देखा तिलमिलता देखा ..पर नहीं बात मां बच्चे में ही निपट गई..
अब लौटते हैं अपने विषय पर प्रार्थना के लिए उठते हाथ.. रोज़ पांच वक्त ,सुबह शाम, मज़ारों ,दरगाहों ,मंदिर ,तीर्थस्थानों सब जगह हर आदमी कुछ न कुछ मांगता दिख जाएगा.. पर हमें मालुम हैं कि हमको क्या चाहिए?..जी आप कहेगे हां..गाड़ी ,बगला, पैसा, दौलत शौहरत ,औलाद। किसी परीक्षा मे पास होना, कहीं दाखिला मिल जाना ,किसी बीमारी से निजात पाना, परेशानियों का खातमा..और कुछ... हां मरने के बाद जन्नत या स्वर्ग... बस दो पंक्तियों में हमारी सारी इच्छाए वो सारी कमनाए निपट गई जिसे हम ताउम्र मांगते रहते हैं ।और मांगते मांगते इस दुनिया को छोड़ कर चले जाते है कहां? ...उस भगवान उस अल्लाह के पास जिससे हम इस दुनिया में गिड़गिड़ाते रहे, रोते रहे, बिलकते रहे कभी ये मांगते कभी वो चाहते ..अंत में उसी के पास पहुच गए.... वो भी खाली हाथ ...
मेरे पिताजी की उम्र 73 साल की हैं सारी उम्र वो बहुत धार्मिक रहे ..पूजा पाठ नमाज़ रोज़ा, मजलिस मातम सब करते रहे ... पर पिछले दो साल से उनका मन इन सब से उखड़ सा गया ..एक दिन वो मुझे बताने लगे जब वो छोटे थे तकरीबन 5-6 साल के तब उनके दादा उन्हे बताते थे कि दुनिया में इतना अपराध, पाप बड़ गया है कि बस अब तो कयामत आने वाली है दुनिया खत्म होने वाली है । बस दुआ करो प्रार्थना के लिए हाथ उठाओ.. भगवान सब अच्छा करेगा..पर... अल्लाह ने सब कुछ अच्छा तो किया लेकिन भारतीय कोर्ट की तरह मामला ब़ड़ता ही गया ..पाप भी बड़ता गया...औऱ दुनिया चलती रही ।हमने फिर भगवान को पाने का और सरल तरीका खोजा छ संत, गुरूओं ,मौलवियों के आगे हाथ उठा कर प्रार्थना करना शुरू कर दिया ये तो हमारी बात ज़रूर पहुचाएगे पर नतीजा रहा..वो ही..सिफर..
अब सवाल वो ही कि हम दुआ क्यों मांगते हैं .. जब हम किसी के आगे हाथ जोड़ते हैं तो हम ये मानते हैं कि हम इससे छोटे हैं..ये हम से बड़ा है .. हाथ उठाने की नौबत तब आती है जब हर जगह से हम खाली हाथ वापस आते हैं। शायद इससे मनुष्य के अंहकार को कम होता है ..दुनिया को ठीक से चलाने के लिए अंहकार का मिटना ज़रूरी होता है ..बच्चा मां से मांगता है वो चाटा मारती है फिर भी मांगता है अगर वो उस वक्त न दिलाती तो कल फिर से मांगता ... ज़िन्दगी भी बच्चे के तरह आसान होती .थोडी ज़िद थोडे नखरे और काम हो जाए...
पर हमारा हाथ तो उठता ...उठ उठ कर थक जाता है ..साल महीने बरसों हो जाते पर धीरे धीरे जो होना होता या वक्त के साथ जो होना चाहिए वो होता रहता ... दुआ मांगने में कोई परहेज़ नही न ही मैं किसी से किसी चीज़ के लिए मना कर रहा हूं... पर मैने तो न जाने कब से कोई दुआ ही नहीं मांगी ।
पर अब मन करता है की.... उस भगवान उस अल्लाह से मांगू जिससे ललित मोदी मागता है विजया माल्या बिल गेस्टस अरब के शेख. साहारा श्री मांगते है ...अगर आप जानते हो इनके भगवान इनके अल्लाह को तो मुझे ज़रूर बताइए.. आपके मारे ही इस गरीब का भला हो जाए..और ये हाथ प्रार्थना के लिए उठ पड़े...
Comments
जहाँ तक प्रार्थना का प्रश्न है तो मानव से वह सारी चीज़ माँगी जा सकती है जिसे प्रदान करने की वह ताक़त रखता हो। जैसे पैसा,सामान आदि इसी के अंतर्गत बच्चे का माँ से माँगना भी आता है। लेकिन जिसे प्रदान करने की मानव में ताक़त न हो जैसे सन्तान माँगना,संकटों से मुक्ति का सवाल तो यह सब देने वाला मात्र अल्लाह है जो एक है, जिसके पास माँ बाप नहीं, जिसके पास सन्तान नहीं, जिसको किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं पड़ती, वह हर समय हमे देख रहा है।
जिस अल्लाह ने हमें तुच्छ वीर्य से बनाया, संवारा, और बुद्धि-ज्ञान प्रदान किया क्या उसका हक़ नहीं है कि हम मात्र उसी से सवाल करें जबकि उसने इस धरती को परीक्षास्थल ही बनाया है... परिणाम स्थल नहीं।
और हम जो कुछ अल्लाह से माँगते हैं वह देता अवश्य है परन्तु देने के तीन तरीक़े होते हैं
(1) तुरन्त दे देता है।
(2) उसके बदले हमारी किसी बड़ी परेशानी को दूर कर देता है।
(3) या आखिरत में उसे उसका बदला देने के लिए टाल देता है। क्योंकि असल ज़िंदगी तो मरने के बाद की है।
हर हालत में मिलता ज़रूर है। यही बात हमारे नबी मुहम्मद सल्ल0 ने फरमाई है।