किसी ने कहा-2
ईश्वर विश्वास मनुष्य जीवन की सार्थकता और सुव्यवस्था के लिए बहुत आवश्यक है । यों तो सामान्य नैतिक सिद्धांतों पर आस्था रखते हुए भी मनुष्य नेक जीवन जी सकता है, अपने व्यक्तिगत उत्कर्ष और सामाजिक उन्नति में सफल योगदान दे सकता है, लेकिन ईश्वर-विश्वास के अभाव में वह कभी भी भटक सकता है । एक सर्वव्यापी, सर्व समर्थ, न्यायकारी सत्ता के रूप में ईश्वर की मान्यता मनुष्य को आदर्शनिष्ठ, समाजनिष्ठ तथा विकासोन्मुख बनाए रखने में उपयोगी सिद्ध हो सकती है । आस्तिकता को आज उपेक्षणीय और निरर्थक इसलिए माना जाने लगा है कि ईश्वर के सम्बंध में बड़ी भ्रांत मान्यताएँ फैला दी गई हैं । लोग यह समझने लगे हैं कि ईश्वर हम जैसा ही कोई निकृष्ट मनोभूमि वाला व्यक्ति है, जो थोड़ी सी खुशामद से प्रसन्न हो जाता है या पूजा स्तुति करने वालों से संतुष्ट हो जाता है । आज आस्तिक कहलाने वालों की गतिविधियों को देखकर यही निष्कर्ष निकलता है, लेकिन विवेक कहता है कि ऐसी अनैतिक सत्ता ईश्वर तो नहीं हो सकती, शैतान भले हो । कुछ लोग ईश्वर को करुणा-निधान, कृपानिधान तक मानकर ही रह जाते हैं । यह मान्यता सत्य होते हुए भी एकांगी है । ईश्वर जहां पीड़ितों के प्रति करुणा निधान है, वहाँ दुष्टों के लिए रुद्र भी है ।
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