किसी ने कहा 4

मन्दिर को सजाने-सँवारने में भगवान को भुला देना निरी मूर्खता है । किन्तु देवालयों को गन्दा, तिरस्कृत, जीर्ण-शीर्ण रखना भी पाप माना जाता है । इसी प्रकार शरीर को नश्वर कहकर उसकी उपेक्षा करना अथवा उसे ही सजाने-सॅंवारने में सारी शक्ति खर्च कर देना, दोनों ही ढंग अकल्याणकारी हैं हमें सन्तुलन का मार्ग अपनाना चाहिए । शारीरिक आरोग्य के मुख्य आधार आत्म-संयम एवं नियमितता ही हैं, इनकी उपेक्षा करके मात्र औषधियों के सहारे आरोग्य लाभ का प्रयास मृगमरीचिका के अतिरिक्त और कुछ नहीं है ।

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