MRS IRSHAD
मिसेज़ इरशाद
लखनऊ के चौक की तंग गलियां और गलियों में धूमती बिटन ..जहां से निकलती मुल्ला मौलवी ब्रुके पहने औरतें या फिर चौहराये पर खड़े लखनऊ के शौदे.. सभी कान में फुस से कहते रियासत की लड़की ज़रूर कोई गुल खिलाए गी।..शायद बिटन की चंचलता तेज़ तरार होना बिना बाज़ू का कुर्ता पहनना और लड़कों की साइकिल चलाना वो भी ऐसे मौहल्ले में जहां औरतों ने सिर्फ मौहल्ले के सब्ज़ी वाले या कसाई के अलावा किसी और गैर शख्स से बात ही न की हो...पर बिटन सब से जुदा और हट के है पर हां इस गलतफहमी में मत रहिए की बिटन पढाई में बहुत अच्छी होगी परिवार वाले बहुत मॉर्डन होगें अब्बा तालिम के समर्थक होगें..ऐसा कुछ नहीं बिल्कुल नहीं..
रियासत तो पांच वक्त के नमाज़ी ज्यादातर वक्त उनका मजलिस मातम रोज़े नज़र नियाज़ में गुज़रता और खाली वक्त मिलता तो वो इस परेशानी में निकल जाता की पांच पांच लड़कियों की शादी कैसे होगी.... .या मौला कोई मौज्ज़ा(चमत्कार) दिखाओ..या इमामे ज़माना तुम्ही अपना करिशमा करो..खैर करिशमा तो वक्त के साथ हो ही जाता है उनमें अगर इन सब को ज़हमत भी न दी जाये तब भी काम तो अपने समय पर ही होता है खैर ये तो आस्था की बात है।.... इस को छोड़ कर देखते है बिटन क्या कर रही है...
नूरूल्ला आटे वाले से बिटन का हंसी का दौर लगा हुआ अपने आंखों के इशारों से उसके मन को टटोल रही हैं नूरूल्ला भी शहर के नंबर वन छीछोरा में से एक है काली शक्ल फैली नाक पीले दांत और बाकी जगह आटा लगा रहता है .. इनकी दोस्ती कहे या दिल्लगी पर दोनो मुनाफे में ही रहते हैं ।बैलट नूरूल्ला से कोई लड़की बात करे ये तो उसने क्या अल्ला मियां ने भी नहीं सोचा होगा ..और इसी बहाने बिटन उससे 20-25 किलो आटा ले आती इतना आटा की रियासत मियां के दादा ने भी न सोचा था..। पर मौहल्ले मे बातें खूब होतीं हैं ... बिटन की मां सुलताना दिल पकड़ कर बैठ जाती हैं और अपने हाल और लडकियों के नसीब को अपना मुकद्दर मान चुकी हैं...
इस बार मोहरर्म में अपने घर में अज़ाखाना सजाते वक्त दिल से रो पड़ी ।आंसू रुकने का नाम न ले बस मौला या मौला लड़कियों की शादी करा दो .. लड़किया सच में कितनी बोझ है और बिना शादी के अपने घर मे कितना बड़ा गुनाह हैं..। ये कोई सुलताना से पूछें ..
इस बार इमामबाडे में अशरा पढ़ने मौलाना इशरत आए हैं । जनाब कद 6 फुट का क्या नूरानी चेहरा है और भई क्या मसायब पढ़ते हैं बस पूछो मत आंखों से आंसू नही रूकते और सब से अहम बात वो कुंवारें हैं ..बस फिर क्या.. ..चौक मे जितने भी माकान थे और वहां रहने वाले कुंवारी लड़किया के अम्मा अब्बा और भाईजान..। मौलाना साहब को अपने घर बुलाने में आमादा हो गए..मौहरर्म में रिश्ते की बात तौबा तौबा .. पर भई बात नवीं में हो जाएगी पहले मौलाना साहब की खातिरदारी तो करो ...सब जुटे थे मौलाना इशरत को अपनी तरफ खीचनें के लिए ..
शिया लड़कियों को रोटी सब्ज़ी बनानी न आती हो तो चलेगा पर हां मजलिस मातम करना नौहा हदीस पढ़ना जरूर आना चाहिए बस जो मिलता अपनी लड़कियों की तारीफ में सब से पहले यही कहता बहुत अच्छा मरसिया पढ़ती हैं..और जनाब हदीस कुरआन की आयतों पर पढती हैं। हमने तो भईया इन्हे बच्चपन से ही सब सिखा दिया है बस इमाम हुसैन की दुआ है... सब आता है .।
शहर में जहा तैयारियां हो रही थी मौहरर्म के ग़म से रिश्तों के रास्ते निकाले जा रहे थे । वहीं सुलताना बेग़म अपने घर के छोटे अज़ाखाने में बैठी अपनी बेटियों से नौहा पढ़ने को कहे रही थी घर में तबरूक़ न होने की वजह से खुद ही मां बेटियां मातम कर लेती है ..।बिटन ने नौहा उठाया वाक़ई आवाज़ में जो दर्द या फिर कशिश हैं जो भी सुने बस रूक जाये और बिना सुने आगे जा न सके ..।
सामने रह रहे मौलाना इशरत के कानो में भी आवाज़ गई तो उन्होने घरवालों से पूछा कौन बीबी नौहा पढ़ रही हैं ... उस घर की औरत ने कहा बस... मौलाना साहब आवाज़ पर मत जाइये आवाज़ ही अच्छी है बाकी तो इनके घर और इस लड़की के बारे में कुछ भी बताने को ख़ास नहीं.... अल्लाह बस ..मुंह न खुलवाए तौबा तौबा..मौलाना साहब ने सिर झुका लिया ..।
पर मौहल्ला वो भी चौक का..... बात निकली तो दूर तक जाती है और रियासत मियां का घर तो एकदम सामने हैं.. अरी सुलताना मौलाना इशरत बिटन के बारे में पूछ रहे थे ..क्या आवाज़ है कहे रहे थे ..पर नसीम ने, तौबा-तौबा क्या क्या कहा बिटन के बारे में....
सुलताना तो रोने लगी पर बिटन इतनी देर में नसीम के घर पहुंच गई और जो चिल्लाई और गाली गलोच किया ..तो बस सब ने दांतों तले उंगलियां दबा ली।
मौहरर्म खत्म हुआ अज़ाखानों को समेटा गया .. और उधर मौलाना इशरत का रिश्ता रियासत मियां के घर पर आ गया .. पर मसला है मौलाना साहब ने तो बस आवाज़ सुनी थी शक्ल तो देखी नहीं थी तो ऱिश्ता भेजा किस के लिए...
... मेरे लिए अम्मा ....मेरे लिए बिटन बोली... मैं.... ही करूगीं मौलाना इशरत से शादी ... अरे कम्बखतमारी ज़रा तो शर्म कर ले... दो-दो बड़ी बहनें बैठीं हैं और तुझे शादी की पड़ी है... न न हम नहीं मानेगें मौलाना साहब से हम ही शादी करेगें सब अपनी किस्मत लेकर पैदा होते हैं....
इतना सुनना था कि घर में रोना पीटना शुरू हो गया और लगा की मौहरर्म अभी खत्म नही हुआ ..अज़ीज़ा और मुन्नी खूब रोयीं...। हाय-हाय हम तो बिटन को कितना प्यार करते हैं और वो हमारा ही घर उजाड़ रही है .।
बिटन चिल्लाई अरे ये हर्राफापन हमें न दिखाओ.. हम ही करेगें इशरत से शादी ..। बस इतना सुनना था रियासत मियां जो अब तक खामोश बैठे थे न जाने कहा से उनमे गैब से ताकत आई और जूती लेकर बिटन पर टूट पड़े और मुंह पर जो बिटन के जूतियां बजाई की उसका मुंह लाल होकर नीला पड़ गया ।
... और ये नीलपन अज़ीज़ा की शादी के बाद ही खत्म हुआ .. मौलाना इशरत सच में काफी शारीफ थे देहज मे कुछ न लिया औऱ न ही कोई ज्यादा बराती लाये..।
शरीयत के हिसाब से शादी की जैसी नबी ने फातमा की शादी अली से की थी ..और रियासत मियां की ज़िम्मेदारी को समझा और जल्द ही मुन्नी का भी रिश्ता करा दिया।..... ..बिटन तो टूट ही गई थी ..घर के मसले में बोलती ही न थी ।
उसके दिमाग में अपने घरवालों को सबक सिखाने की गहरी साज़िश चल रही थी। नूरूल्ला से उसने खूब दोस्ती बढ़ा ली थी .. औऱ मुन्नी की शादी के बाद एक रात नूरूल्ला के साथ भाग गई... शहर में खबर आग की तरह फैली शिया सुन्नी का दंगा भड़क गया पुलीस फोर्स लगी सब ने रियासत को खूब कोसा कैसी लड़की पैदा की नाक तो कटाई कितनो की जान ले ली ..
दो दिन के बाद गोरखपुर से दोनो को पकड़ के लाया गया ।बिटन की खूब कुटाई हुई.. बिटन के मामू ने बहन सुलताना से कहा अब जैसा मैं कहूं वो करो नहीं तो इसके मारे किसी का भी ब्याह न होगा।
उन्होने बताया दिल्ली में एक लड़का सरकारी नौकरी में है ।मां बाप कोई नहीं हैं अकेला है बहुत होशियार है बहुत तरक्की करेगा असगर इऱशाद नाम है उसका । अच्छा ये तो बहुत उमदा रिश्ता है.. मौलाना इशरत बोले ....पर वो ..क्या वो ..वो सैय्यद नहीं है हमारी तरह .सैय्यद नहीं.... न न रियासत मियां में भी जान आ गई । भई गैर सैय्यदों में न करेगें शादी ..सैयद की लड़की गैर सैय्यदों के यहां खुश नही रहती । ये सुन कर मामू भड़क गए सैय्यद की लड़किया पूरे मौहल्ले मे छूछवाती फिरें... वो चलेगा पर गैर सैय्यदों में नहीं... अभी सुन्नी लड़के साथ मुंह काला करवा कर लौटी है ये भी तो देखो कौन सैय्यद करेगा तुम्हारी बिटन से ब्याह बडे आए सैय्यद.... कहीं के...। मामूजान जाने लगे सब सिर झुका कर बैठे थे तभी बिटन की आवाज़ आई मामूजान मै करूगीं शादी सबने बिटन की तरफ देखा ..और फिर सिर झुका लिया ।
लखनऊ में तो शादी नहीं हो सकती थी इसलिए बहराइच में मामू के घर ही लड़के को बुला कर निकाह कर दिया गिनती के कुछ रिश्तेदार थे असगर इरशाद की दूर की एक फूप्पी थी बस और कोई नहीं असगर इरशाद भी खुश थे एक तो बिटन खूबसूरत दूसरी सैदानी । 5-फुट की बिटन को 4-फुट के असगर ही मिलने थे। किसी ने मज़ाक मे कहे ही दिया.... दिलासा देने के लिए समझ लिजिये... कहा चलो अमिताभ और जया की जोड़ी को उल्टी कर दो ...
खैर सारी रस्मों के बाद रूखसती का वक्त आ गया ।मामू के लड़के ने आज़ान दी और बिटन ने आंसूओं की झड़ी लगा दी सारी बहने भी बहुत रोयीं..
बहराईच से दिल्ली की कोई सीधी ट्रेन न होने के कारण पहले सब लखनऊ पहुचें जैसे ही अमीनाबाद बस अड्डे पर उतरे किसी ने आकर खबर दी की नूरूल्लाह को करंट लग गया और उसकी मौत हो गई...दिल्ली की ट्रेन रात की थी इसलिए सब घर पहुचें गली में भीड़ थी नूरूल्लाह की मौत इसकी वजह थी..।लोगों ने इनके परिवार को बहुत गंदी नज़र से देखा सब चुपचाप घर में आ गए..।
पहले बिटन को असगर कुछ महीने बाद ले जाने वाले थे वहां उसके रहने के लिए कुछ अलग इंतज़ाम करते लेकिन रियासत मियां ने कहा असगर मिया अपने साथ ही ले जाओ जहां रहते हो वही रह लेगी । असगर इरशाद तो शरीफ आदमी थे मना करने का कोई सवाल नहीं उठता ...। बेचारे खुद ही उठ कर स्टेशन गए और दो टिकट लेकर आ गए... ज्यादातर वक्त सबका खामोशी से गुज़रा पर हां दामाद के लिए आज क़ोरमा और बिरयानी बनी थी... वो भी बकरे के गोशत की ।
पूरा दिन यूहीं गुज़र गया रात आ गई ..। बिटन भी जाने के लिए तैयार हो चुकी थी। लंहगा उतार दिया था और नया चमकीला सूट पहन लिया ..स्टेशन पर सब छोड़ने आए ।गाड़ी में बैठने की जगह नहीं मिली इसलिए टायलेट के पास ही चादर बिछा कर दोनो बैठ गए ..ट्रेन चल दी ....पर अब बिटन नहीं रोयी ..असगर को नींद आ गई वो बिटन के कंधे पर सिर रख कर सो गया और बिटन अपनी आने वाली ज़िन्दगी किस पटरी पर चलेगी इस बारे में सोच रही थी ..रात कट गयी और दिल्ली आ गयी..।।
पहली बार चौक की गलियां छोड़ कर किसी बड़े शहर को देखा था और वो भी दिल्ली जिसका ज़िक्र सिर्फ लोगों और दुकानदारों से ही सुना था । आज दिल्ली में खुद को पाकर उसे अपने पर घमंड हो रहा था ..।असगर मियां बोले चलिए इधर से बस मिलेगी सुल्तानपुरी की...। कोई सीधी बस नहीं जाती दो बसें बदलनी पड़ेगीं। ... भरी हुई बस और बस में बिटन , बिटन के शौहर और उनके साथ ही दिल्ली के लुच्चे ..पर बिटन खामोश ही रही ..बस बदली दूसरी बस खाली थी खिड़की पर बैठी बिटन बाहर देख कर बहुत खुश हुई...। इसके बाद इक्का करके सुल्तानपुरी की जलेबी चौक पहुचें और फिर पैदल अंदर मकान में, मकान क्या कहें एक कोठरी थी खैर बिटन को इन सब की आदत थी पर हां पाखाना और गुसलखाना बाहर था जिसमें आसपास की कोठरी के लोग भी जाया करते थे...।
पानी नहीं था असगर मियां दूर हैंडपम्प से एक बालटी पानी लाये और पडोस में रहे रही माकान मालकिन को बता भी दिया..।
बिटन हाथ-मुंह धोकर कमरे में आई तो देखा आसपड़ोस की औरतें आयी हुईं थी सबने असगर मियां की तारीफ की कहा लखनऊवाली तो बहुत खूबसूरत है ..तब से बिटन का नाम लखनऊवाली ही पड़ गया ... आसपास के लड़को को भी खबर मिल गई कि मियां नाटे की लुगाई टनटनाटन है ..आए दिन गली के चक्कर काटते रहते ।
बिटन भी इशारा समझती थी और असगर भी ..पर इस खामोशी से एक महीना कट गया और असगर मियां ने अपनी पहली तन्खाह बिटन लखनऊवाली के हाथ में दी । पहली बार पूरी उम्र मे उसके हाथ में पैसे आये थे जो उसके अपने थे कोई पूछने वाला नहीं था किसके हैं ... या कहां से चुराए हैं,कोई टोकने वाला भी नही था ।... जी, आज बकरे को गोशत लाओ कोरमा और बिरयानी बनाओंगी साथ ही दूध और चावल भी लाना खीर भी बनेगी....असगर ने कहा हां ठीक है ...कल इतवार है सिनेमा और दिल्ली देखने भी चलेंगे। बढ़िया खाना खाया ...बिटन के हाथ में ज़याका तो था ही । दूसरे दिन दिल्ली देखी और सिनेमा भी ...।
बिटन को अब अच्छा लगने लगा था ..और लोग उसे लखनऊवाली कहे ये सुनना भी उसे बहुत अच्छा लगता था । बीच में मामूजान भी आए..बिटन खुश थी और मामू का शुक्रिया भी अदा किया ,,, । मामू जाते जाते असगर से कहे गए भई अब खुशखबरी भी सुनाओ..असगर ने सिर झुकाकर मुस्कुरा दिया..
बिटन पेट से हो गईं बाकि तो सब ठीक था पर बाहर पाखाना और गुसलखाना होने की वजह से बड़ी दिक्कत थी कई बार आसपड़ोस वालों ने बदतामीज़ी भी की। असगर मियां ने खुद पाखाना और गुसलखाना साफ किया..सरकारी अस्पताल में जाना आना नौकरी से छुट्टी बहुत परेशानी ..लोगों ने कहा अरे लखनऊ वाली की बहन या मां को बुला लो..।असगर मियां ने बिटन से पूछा बिटन ने साफ मना कर दिया असगर चुप हो गए।....पर वक्त के साथ रोटी बनाने की भी समस्या होती जा रही थी । डाक्टरों ने बिटन को आराम की सलाह दी ।हार के मां को बुलाना ही पड़ा ..पर बिटन को तो मौका चाहिए था एक आद दिन तो सब ठीक चला। फिर तो बिटन अपने शरीर के दर्द को भूल गई बस याद रहा दिल और दिमाग का दर्द जो उसकी मां ने दिया था । फिर क्या हाथ धो कर अपनी मां के पीछे पड़ गई..।
हम तो गैर सैयय्द है आवारा हैं... हमने तो पूरे लखनऊ का मुंह काला किया है। बड़ी आई हमारी मां बन कर ..मां बेचारी खूब रोती एक बार तो मां का सब्र टूट ही गया वो भी खूब लड़ी ..बस तनाव बहुत हो गया मां ने दामाद से हाथ जोड़े और कहा हमें लखनऊ की ट्रेन में बिठा दो ..बिटन ने कहा कोई ट्रेन में नहीं बस पर चढा कर आ जाओ ।....हमारा मियां गैर सैय्यद है कोई नौकर नहीं ..की ...सबकी चाकरी करेगा..।
असगर मियां तो बीवी के गुलाम थे बस पर बिठा कर आ गए..बेचारी मां कैसे एक अंजान शहर से अपने लखनऊ पहुचीं बस मुंह से या अली मदद कहती रहीं ..और रोती रहीं कैसे मिन्नते करके ट्रेन का टिकट लिया बेचारी कितनी परेशानी से वापस पहुचीं अपनो को कोसते हुए.. हाय कैसी लड़की पैदा की मैने।
आखिरी वक्त में मकानमालकिन ही सहारा बनी असगर मिया ने सुसराल फोन कर बताया की लड़की हुई है। मां सुलताना ने कहा मुबारक हो पर अल्लाह उसे बिटन की तरह न बनाए भई हम आ न सकेगें..। असगर ने बिटन को बता दिया पहले तो अपनी मां को खूब बुरा भला कहा फिर थोड़ा संभली तो असगर मियां की क्लास लेनी शुरू की...
किसने कहा था तुम्हें फोन करने को मेरी तो किस्मत ही खराब थी कि तुमसे शादी की ...सही कहते थे अब्बा गैरसैय्यादों से शादी नहीं करनी चाहिए... बौड़म आदमी मिला है मुझे... बेचारे असगर कुछ न बोले मकानमालकिन भी मौका देख कर निकल गई ..पर असगर मियां की आंखों में आसू थे।
दफतर में असग़र मियां ने मिठाई बांटी पर दोस्तों और बॉस ने कहा मिठाई से काम नहीं चलेगा भई ..बिरयानी खिलाओ वो भी भाभी के हाथ की..।असगर मियां घर आए तो हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे अपनी बेग़म से कुछ कहने.. पर बिटन की आंखे बहुत तेज़ थी उसने परख लिया की मियां के दिमाग में कुछ चल रहा है। पूछा क्या खिलाई मिठाई दोस्तों को.. और साहब को ..बस इतना पूछना था कि असगर मियां तो कुत्ते की तरह लोट गये ..ऐ बेग़म सब कह रहे थे कि...क्या..की भई हम सब बिरयानी खाएगें..साहब भी कह रहे थे ... बिटन मुस्कुराई मुस्कुराहट में अपनी हैमीयत का एहसास था ।
बोली दो किलो बड़े का और आधा किलो बकरे का गोशत ले आना ..असगर बोले बेग़म दो अलग अलग गोशत क्यो... बिटन बोली बौड़म बॉस को बकरे की बिरयानी खिलाओ तभी तरक्की होगी .. असगर समझ गये उन्हे अपनी किस्मत पर नाज़ हो रहा था की कितनी समझदार उनकी बीबी है..।
जब दूसरी बेटी हुई और उसके होते ही असगर मियां की तरक्की भी हो गई पर अब बिटन का दिल इस छोटी कोठरी में नहीं लगा रहा था और तीन साल निकल गए मौहरर्म और मजलिस किये हुए। बीच में लखनऊ भी गयी पर अपने घर नही गयी। असगर मिया को गेस्ट हाउस मे कमरा मिला था बहने और बाप मिलने आये और चुपचाप चले गये बिटन कुछ न बोली न उनकी तरफ देखा न कुछ कहा असगर मियां ने ही उनसे बात की।
लखनऊ जाने का मकसद था ग़ार की दरगाह पर कलावा बांधना और हज़रत अब्बास के रोज़े पर दुआ मांगना की अच्छा घर मिले और एक लड़का हो जो आप का अलम उठाए ...शायद इस बार मौला ने सुन ली सुलतानपुरी छूट गया और यमुना पार में एक बड़ा किराये का मकान भी मिल गया..जहा बिटन ने छोटा सा इमामबड़ा सजाया और अपनी बिरादरी को बुलाकर पहले हदीसे किसा कराई और एक हफ्ते बाद एक मजलिस भी कराई जहा तब्बरूक़ में शालें और बर्तन बांटे और अपना परिचय मिसेज़ इरशाद के नाम से कराया..। बिटन लखनाऊवाली अब मिसेज़ इरशाद बन कर हिन्दुस्तान की राजधानी में शान से रहने लगी।।और असगर इरशाद भी खुश है इतनी समझदार बीवी और तीन बेटी और तीन बेटों के बाप बनकर ।
मेरा मानना हैं जिन्दगी केवल खुशियों का पल तो नहीं है ... जब खुशी आपके दामन में आती है तो ये लिखवाकर कि ग़म भी एक दिन आएगें ज़रूर... और अचानक असग़र इरशाद की तब्बीयत बिगड़ गई ..इतवार का दिन था करीब सवा बारह बजे बाथरूम से नहा कर निकले .तो पसीने में तर थे ... बिटन ने सोचा की पानी है ..पंखे के नीचे बैठे..आंखें बंद होने लगी ...सब लोग टीवी देख रहे थे ..अचानक असग़र गिर पड़े .. बड़ी बेटी ने देखा... और चिल्ला पड़ी... डैडी ..बिटन किचन में थी दौड़ कर आई.. जाधों पर सिर रखा .एक कोहराम मच गया पड़ोस वाले भी आगए... जल्दी से ऑटो को बुलाया गया ..पास के नर्सिंग होम लेकर गए तो डॉक्टरों ने कहा पंत ले कर जाओ अटैक आया है ... उन्हीं की ऐम्बुलेंस में इरशाद को लेटाया गया बिटन और बड़ा लड़का साथ थे बाकी बच्चे घर में पड़ोस की ख़ाला के पास थे ..दुआ कर रहे थे या अल्लाह डैडी को ठीक कर दो ... या हज़रत अब्बास या इमाम हुसैन मेरे डैडी को अच्छा कर दो...
वक्त पर दवा और दुआ न पहुचें तो दोनो बेकार हैं... पंत के डाक्टरों ने मना कर दिया बिटन तो समझ नहीं पाई..पैरों तले ज़मीन निकल गई ..आंखें खुली की खुली रहेगी.सांस न जाने कहां चली गई..बदन सुन हो गया..कुछ अल्फाज़ नहीं निकले ..बस बड़े बड़े दीदे फाड़ कर डाक्टरों को घूर रही थी ... कहां चले गये ,क्यों चले गये ..क्या हो गया किस गुनाह की सज़ा मिली मुझे...पड़ोस से आए लोगों ने उसे बिठाया की आपको अभी बहुत लंबा सफर तय करना है बच्चों को संभालना है ज़रा होश में रहिए.. बड़े लड़के की आंखे भरी थी कभी मां को देख रहा था कभी बाप की लाश ..। डॉक्टरों ने कहा आप लाश को ले जाए अगर देर करेगें तो फिर काग़ज़ी कार्यवाई.पोस्टमॉटर्म..और भी बहुत कुछ... ।लोगों ने कहां ठीक है मिसेज़ इरशाद से पूछ लेते हैं ..बिटन ने कहा जैसा आप सब ठीक समझों.. ।
एम्बुलेंस को वापस घर की तरफ मोड़ा गया ... एक आदमी स्कूटर पर पहले ही मौहल्ले में जाकर खबर दे दी कि इरशाद साहब नहीं रहे.. बिरादरी के लोग इकट्टा होने लगे घर में बच्चों ने रोना शुरू कर दिया बड़ी बुढ़ी औरतें समझाने लगी ...।एम्बुलेंस घर पर रूकी तो एक दर्दनाक मंज़र था .. वो पल जो हर किसी की ज़िन्दगी में ज़रूर आता है कहीं पहले तो कहीं बाद में ..लाश को नीचे उतारा गया औरते बिटन को कमरे में ले गई मर्दो ने लाश को गुसुल देने के लिए अलग कर दिया गया मौलाना ने पूछा क्या कोई इरशाद साहब का भाई बाप और कोई रिश्तेदार है जिसका इंतज़ार किया जाए या यहीं पर दफनाया जाएगा उन्हें ..बिटन बैगम ने कहा कोई नहीं आप लोग ही कर दो बेटी ने मां से कहा मम्मी नानी नाना खालू... बिटन ने कहा आ जायेंगे जब उन्हे आना होगा... ।
पर दफनाने से पहले मसला था ..जैसा आप सब जानते हैं कि असग़र इरशाद गैर सैय्यद थे ..तो क्या सैय्यद उनकी गवाही दे सकते हैं.. शिया समुदाय में मरने के बाद कुछ लोग दस्तख्त करते हैं कि हां मरने वाला मोमिन था यानी नमाज़ रोज़ा और मजिलस मातम करता था ... पर सैय्यद और गैर सैय्यद का मसला यहां के लोगों के लिए नया था .. बिरादरी के बुर्ज़ग के एक रिश्तेदार ईरान में मौलवियत पढ़ रहे थे उन्हे फोन किया गया ..मसला बताया गया कुछ देर के बाद का उन्होने वक्त दिया ..इतनी देर में बिरादरी की औरतों मे खुसुर फुसुर और आदमी में मसलै मसायल का ज़िक्र आया कुछ ने लखनऊ भी फोन खड़का दिया ... बाद में बात साफ हुई गवाही कोई भी दे सकता है .. खैर जब असगर इरशाद का ज़नाज़ा उठा तो बिटन से रहा नहीं गया चीख़ मार कर मय्यत को पकड लिया ... ऐसे कैसे मुझे छोड़ कर जा रहे हो ..वाकई..वो मंज़र बहुत दर्दनाक होता जब हमें पता होता है आज जो ये घर से जा रहा है फिर कभी वापस नहीं आयेगा... असगर इरशाद को ले जाया गया,दफन कर दिया गया धीरे धीरे बाकी लोग भी चले गए..ये रात बिटन और उनके बच्चों के लिए कयामत की रात से कम नहीं थी ..बिना असग़र के पहली रात.. बच्चों की बिना बाप के पहली रात.... ये रात ऐसी होती है जिसमें हर गुज़रा लम्हा नज़र आता है जाने वाले की हर बात याद आती है ... उसके न आने का दर्द और उसके बिना इतना लंबा सफर ..आज घर में हर कोई रो रहा था अपने अपने कोने पकड़ कर..बाप और पति का ग़म से बढ़ कर और क्या ग़म होगा ...
मैं फिर कहूंगा जिन्दगी सिर्फ खुशियों का पल नहीं होती यहां ग़मों का साया भी साथ चलता है ..और इस साये को दूर करने के लिए.. इंसान को ही उठना पड़ता और हिम्मत दिखा कर अपनी आगे की मंजिल को तय करना होता है ..
बिटन पर बड़ी ज़िम्मेदारी थी छह बच्चे और अपने को संभालना... तीजे की मजिलस में इऱशाद मियां के ऑफिस से अफसर भी आय़े थे बिटन से मिले और कहा जब आप इन सब से फारिक हो जाएं तो ऑफिस ज़रूर आईये.. हफ्ते भर में सब रिश्तेदार चले गए हां इस बार बिटन ने किसी से झगड़ा नहीं किया । शायद अब किसी का महत्व उसकी ज़िन्दगी में नहीं रहा सिवाए अपने बच्चों के भविष्य को छोड़ कर ।
आज बहुत दिनों के बाद बिटन घर के बाहर निकली थी साथ में बड़ा लड़का आज इरशाद मियां के ऑफिस से कोई चेक मिलना था... साथ में पडोस के शर्मा जी को भी ले लिया पढ़े लिखे हैं काग़ज़ी कार्रवाई के लिए ...
ऑफिस पहुचें तो सरकारी दफ्तरों के हाल की तरह था पर हां इरशाद मियां का रव्यैया इतना अच्छा था कि मिसेज़ इरशाद से मिलने ज्यादतर सारे कर्मचारी आ गए ..। तभी किसी ने उनके कागज़ों को पूरा करने में हो रही देरी के बारे में बताया कहा उन्होने किसी का टेंडर पास किया था वो कंपनी भाग गई। सब ने एक दूसरे का मुंह देखा.... बिटन को कुछ समझ में नहीं आया ....ये सारी बातें बिटन के लिए नई थी...
तभी चपरासी आया बिटन से कहा साहब आपको बुला रहे हैं। बिटन शर्मा जी से बोली आप भी चलिए... बॉस ने बिटन का उठ कर स्वागत किया मिस्टर इरशाद की तारीफ की पीएफ का चेक तैयार था उन्हे दिया ..और साथ में कहा कि आपको पता ही होगा इरशाद असग़र पर एक केस है कुछ एक टेंडर के घपले का इसलिए उनकी पेंशन और फंड अभी रोके हुए हैं ...केस चल रहा जबतक चलेगा तब तक पेंशन और फंड नहीं मिल सकते है हम कोशिश कर रहे हैं पर आप जानती हैं सरकारी मामला है..बिटन ने शर्माजी कि तरफ देखा.शर्माजी ने कहा सर इनके तो छह बच्चे हैं कैसे ज़िन्दगी कटेगी..अगर पेंशन नहीं तो कुछ इनके लिए नौकरी का ही इंतज़ाम कर दिजिये.बॉस ने कहा इसके बारे में सोच सकते है वैसे आप कहां तक पढ़ी हुई हैं... बिटन तो खामोश हो गयी धीरे से बोली बस साहब जो धर में पढ़ लिया उतना ही ..कमरे में खामोशी छा गई..बॉस का इशारा था क्या हो सकता है ..तीनों उठ कर आ गए...रास्ते में शर्मा जी ने कहा आपका किसी बैंक में एकाउंट है .. सारे शब्द बिटन के लिए नए थे.. लड़का बोला नहीं मम्मी तो कहीं निकली ही नहीं ..शर्माजी ने पूछा और पापा का, लड़का हां पास के ही सरकारी बैंक में है .. बातों बातों में घर आगया शर्माजी बोले पापा के बैंक की पास बुक निकाल लेना और मम्मी की फोटो भी रख लेना न हो तो खिचवा लेना आज शुक्रवार है कल आधे दिन तक बैंक खुलेगा मेरी जान पहचान है खाता में खुलवा दूंगा..।
घर में कदम रखा तो सारे बच्चे पास आगए..छोटे दोनों लड़के स्कूल गए हुए थे । बड़ी लड़की ने अरहर की दाल और चावल बनाए हुए थे ..वहीं इमामबाड़े के कमरे में बैठ कर बिटन खाने लगी बेटा भी खा रहा था ..खाते खाते बिटन की आंखों से आंसू निकलने लगे आंसू को रोकना चाहा.. आंसू आवाज़ में बदल गए.. पर इस बार जो आवाज़ निकली थी वो इरशाद मियां के जाने के ग़म की न हो कर औरत की बेबसी की थी किस तरह एक औरत आदमी पर निर्भर रहती है ..बिटन के रोते ही बच्चे भी रोने लगे दोनो बच्चे जो स्कूल से आये थे । वो भी घर का ये मंज़र देख, खुद भी रोने में शरीक हो गये।
रोना राहत लेकर आता है और राहत उम्मीदें जगाता हैं और उम्मीदों से हौसला पैदा होता है । बिटन में हौसला आ गया था साथ ही ये समझ भी पैदा हो गई थी कि उसे ही सब करना है । शाम को बिटन ने फोटो की दुकान पर जाकर तस्वीर खिचवाई.। इस उम्मीद के साथ लेटी कि सुबह से जिन्दगी की नई जंग लड़नी है ।
सुबह शर्माजी आ गये थे बेटे ने असगर मियां की पुरानी पास बुक ले ली थी मृत्यु.प्रमाण पत्र और घर का राशन कार्ड साथ में बिटन की तस्वीर । सब बैंक पहुचें । मैनेजर के आने में देर थी । सब बाहर सोफे पर बैठे थे तभी बैंक में बिरादरी के दोनो आदमी भी आ गए बैंक से पैसे निकालने उन्होने बिटन को शर्मा जी के साथ देखा न सलाम हुआ न दुआ अपना पैसा निकाला और चले गए। बिटन को भी लगा कि इन्होने ऐसा बर्ताव क्यों किया है पर जिन्दगी में अपने ग़म कम हैं कि दूसरों कि नज़रों और रवैय्या का ख्याल रखा जाये ।
बैंक मैनेजर आ गये थे सारे काग़ज़ात पूरे थे शर्माजी से जान पहचान थी और असग़र मियां को भी जानते थे इसलिए खाता खुलने में कोई परेशानी नहीं हुई..बिटन को साइन करना नहीं आता था तो उनका अंगूठा लगवाया गया । और बिटन इरशाद का बैंक खाता चालू हो गया । पीएफ का चेक डाला गया और लगा कि ज़िन्दगी संभल गई।
मुझे नहीं पता की अमीरों के लिए खुशी का क्या मतलब होता है पर हां हिन्दुस्तान की करीब आधे से ज्यादा जनसख्या छोटी छोटी चीज़ो में खुशियां और अपनी कामयाबी ढ़ूढ़ और समझ लेती जिसे लेकर ज़िन्दगी को आगे बढ़ा लेती है।
हकीकत को जितनी जल्दी इंसान समझ ले वो उसके लिए बेहतर है और जीवन को सही राह पर लाने के लिए बेहतर है । पीएफ के पैसे कब तक चलेगे छह बच्चे बच्चियां बड़ी होगीं पढ़ाई लिखाई और हर तरह के खर्च। बेटे से बिटन ने कहा जाकर शर्माजी को बुला ला । बेटा गया दरवाज़ा शर्माजी की बीवी ने खोला बेटे को देखकर अजीब सा मुंह बनाया । बेटा बोला अंटी अंकल हैं मम्मी ने बुलाया है ।शर्माजी की बीवी ने शर्माजी को आवाज़ लगाई शर्माजी आगए। बिटन के लड़के से कहा चलो मैं अभी आता हूं... ।बेटा चला गया शर्माजी बीवी ने कहा अजी जल्दी आना अच्छा नहीं लगता आपका बार बार जाना ..अरे शर्माजी ने कहा कैसी बाते करती हो किसी विधवा की मदद करना कोई ग़लत नहीं है ।कहे कर शर्माजी चले गये ।
बिटन ने शर्माजी से घर का हाल बताया कहा अब गुज़ारा होना मुश्किल हो रहा कल ऑफिस चल कर पेंशन की बात कर लेते हैं और अपनी नौकरी की भी । शर्माजी कहते हैं हां हां क्यों नहीं मैं कल सुबह ही आ जाता हूं और चल बेनर्जी जी से बात करते हैं। शर्माजी घर आये बीवी को बात बतायी बीवी ने मुंह बनाया कहा धर में इतना काम है और आपको घूमने की पड़ी रहती है शर्माजी ने कहा अरे भई किसी का काम आपके जाने से हो जाये तो इसमें बुरा क्या है ।
सुबह शर्माजी बिटन और बिटन के बड़े लड़के साथ ऑफिस के निकले तभी शर्माजी ने कहा बहनजी बड़ी लड़की को भी ले लिजिये बिटन ने पूछा क्यों शर्माजी ने कहा बात करने और समझाने में आसानी होगी .बड़ी लड़की भी तैयार हो गई और सब असगर मियां के ऑफिस पहुच गये ।
कहते हैं दुनिया वक्त के साथ सब भूल जाती है ..या फिर ये कहें कि वक्त हमे अपने आप में इतना मसरूफ कर देता है कि दुनिया कहां तक पहुच गई इसका हमें अंदाज़ा ही नहीं होता।उन्ही को इसकी पीड़ा सहनी पड़ती है जिस पर बीती होती है ।असगर इरशाद अब एक पुरानी कहानी हो चुके थे इसलिए ऑफिस में लोगों के ज़हन में बाते धुंधली पड़ गयी थी ।इसबार काफी इंतज़ार कराया बॉस ने चपरासी भी सही से नहीं बोला । पर जब वक्त की मार आप पर पड़ी है तो आपको ही सहना पड़ेगा ।इंतज़ार खत्म हुआ सब कमरे में गये पूछा क्या हुआ पता चला मामला अभी चल रहा है बिटन को रोना आ गया शर्माजी ने कहा साहब कैसे पालेगीं छह बच्चों कुछ इनकी नौकरी का ही इंतज़ाम कर दिजिये . बॉस बोले देखिये ये कुछ पढ़ी लिखी तो हैं नहीं बच्चे छोटे हैं उन्हे नौकरी दे नहीं सकते ।
हां फोरथ टाइप कैटेगरी की नौकरी करनी है तो मैं बात कर सकता हूं.. बिटन को समझ में नहीं आ रहा था उसने पूछा जी करना क्या होगा .उन्होने साफ कहा पानी पिलाना फाइल इधर से उधर ले जाना यही काम होगा बच्चों को बहुत बुरा लगा पर बिटन को फैसला लेना था और वक्त गवाह है उसने कभी भी फैसले लेने में देरी नहीं की ।बिटन बोली ठीक है मुझे मंजूर है मैं करूंगी नौकरी ...कमरे में खामोशी और ये एहसास की मजबूरी इंसान से सब कुछ करा सकती है ।
बिटन अब नौकरी करने लगी थी । सारे काम बड़ी मेहनत और इमानदारी से करती बुरा ज़रूर लगता पर काम तो करना ही था । देखने में मासूम और अच्छा परिवार की झलक लोगों को उससे उसके बारे में जानने के लिये मजबूर करती ।ऐसे ही किसी ने हमदर्द ने कहा आप पढ़ाई क्यों नहीं करती अगर दसवीं भी कर लेगीं तो क्लर्क की नौकरी तो लग ही जायेगी।
बिटन के लिए ये ऐसा था जैसे अंधरे में कहीं से एक लौ दिख गई हो पता कर के उसने शाम की क्लास ज्वाइंन कर ली बच्चों ने भी मां का साथ दिया जो समझ में नहीं आता उसे सब बच्चे मिल कर समझा देते ऑफिस में भी पता चला तो वहां भी लोगों ने उसकी मदद की कहते है न आप एक बार कुछ करने की ठाने तो सही रास्ते अपने आप बनते जाते हैं... बहुत उतार चढ़ाव आये कईयों से झगड़ा भी हुआ शर्मा जी बीवी भी लड़ने आ गई उन्हे लगा कि उनके पति को अपने वश में कर लिया है बिटन ने उस शाम शर्माजी की बीवी ने खूब बदतामिज़ी की पर बिटन अब बदल चुकीं थी वो चुप रही कुछ न बोली बस हाथ जोड़ कर कहा बहन अब कभी नहीं शर्माजी को अपने घर आने के लिए कहूंगी ।
बीच में मौलाना इशरत भी आये बड़ी बेटी का रिश्ता लेकर पर बिटन ने कहा पहले अपनी बच्चों की तालीम पूरी करूंगी फिर कोई शादी ब्याह के बारे में सोचूंगी ।
बिटन ने दसंवी पास कर ली इस बार जूनियर क्लर्क के लिए उसका प्रमोशन भी हो गया अब कुर्सी पर बैठना उसे बहुत अच्छा लगता था लोग उसे मैडम कहे ये भी सुनना उसे बहुत पसंद था अपने बच्चों की पढ़ाई में भी वो पीछे नहीं हटी सुना था की मंझली बेटी का किसी सरदार लड़के से दोस्ती है बिटन ने बहुत समझदारी से काम लिया अपनी बेटी को समझाया और उसे अपनी कहानी सुनाई कहा मैं तुझे मना नहीं करूंगी पर ज़िन्दगी कुछ फैसले हमे हमेशा रोने के लिये मजबूर करते हैं दोस्ती बुरी चीज़ नहीं पर शादी ब्याह बहुत बड़ा फैसला होता है ज़िन्दगी जो अभी हमे सुदंर दिखती है इन्ही फैसलों के कराण ज़िन्दगी दोज़ख बन जाती है ।अपने पैरों पर खड़े हो जाऊ कुछ कर लो तब तुम्हारे सारे फैसले सहीं लगने लगें । नहीं तो लोग पीछे नहीं हटेगे ये कहने से कि जो गुल इसकी मां ने खिलाया वो ही बेटी खिला रही है कहते कहते बिटन रोने लगी और साथ ही बेटी भी रो पड़ी पर बेटी को बात समझ में आ गयी।
बिटन फिर उस सरदार फैमली के पास गयी इसबार लड़ने नें के लिये नही समझाने के लिये गयी थी जाकर उनके आगे हाथ जोड़ लिये वो लोग समझदार थे मामला समझते थे पूरा भरोसा दिया कि ऐसा कुछ नहीं है और न होगा जिससे सब की बदनामी होगी ।
असग़र मियां का केस खत्म हो गया था बिटन को काफी अच्छे पैसे मिले थे जिससे उसने ज़मीन लेकर अपना माकान बनाया असगर मंजिल नाम रखा । बच्चों की पढ़ाई में भी खर्च किया ।
वक्त बदलता ज़रूर है जिन्दगी अपनी रफतार से आगे बढ़ती रहती है बिटन सुपरीटेंडट के पद से रिटायर हो रही थी आज ऑफिस में कार्यक्रम था बेटिया अपने पतियो के साथ आयी थी बेटे भी पढ़ कर नौकरी कर रहे थे । सब मां के कार्यक्रम में मौजूद थे ।
फूल मालाओं से मिसेज़ इरशाद का स्वागत किया गया और उनकी तारीफ के पुल बांधे गये और उनसे दो शब्द कहने को कहा ...
बिटन मंच पर आयी तो आंखों में आसू थे कहा मुझे इतना प्यार और सम्मान मिलेगा ये मैने कभी नहीं सोचा था लखनऊ की गलियों में धूमना इससे झगड़ा करना उससे लड़ना कभी यहां कभी वहां वक्त के झोके मुझे किन रास्तों से गुज़र कर यहां तक लाये कई बार टूटी कई बार संभली छह बच्चे बिन पति के ज़िन्दगी मुश्किल था सफर पर चाहत थी जीने की इसलिए सफर का एहसास न हो सका आज में ज़रूर रिटायर हो रहीं हूं पर मेरा ये सफर जारी रहेगा ..तालियों से सब ने उनकी बात से सहमति जताई।
खाने के बाद सब धर की तरफ चल दिये । धर आते ही छोटा बेटा जल्दी से उतरा उसके हाथ में कुछ था उतरते ही उसने उस प्लेट को दरवाज़े पर टांगा सब लोग ज़ोर से हंसे और हंसी में खुशी का इज़हार था सब अंदर गये दरवाज़ा बंद हुआ ।मेरी नज़र नेम प्लेट पर गई लिखा था मिसेज़ बिटन इरशाद ( रिटायर्ड सुपरिटेंड)...
लखनऊ के चौक की तंग गलियां और गलियों में धूमती बिटन ..जहां से निकलती मुल्ला मौलवी ब्रुके पहने औरतें या फिर चौहराये पर खड़े लखनऊ के शौदे.. सभी कान में फुस से कहते रियासत की लड़की ज़रूर कोई गुल खिलाए गी।..शायद बिटन की चंचलता तेज़ तरार होना बिना बाज़ू का कुर्ता पहनना और लड़कों की साइकिल चलाना वो भी ऐसे मौहल्ले में जहां औरतों ने सिर्फ मौहल्ले के सब्ज़ी वाले या कसाई के अलावा किसी और गैर शख्स से बात ही न की हो...पर बिटन सब से जुदा और हट के है पर हां इस गलतफहमी में मत रहिए की बिटन पढाई में बहुत अच्छी होगी परिवार वाले बहुत मॉर्डन होगें अब्बा तालिम के समर्थक होगें..ऐसा कुछ नहीं बिल्कुल नहीं..
रियासत तो पांच वक्त के नमाज़ी ज्यादातर वक्त उनका मजलिस मातम रोज़े नज़र नियाज़ में गुज़रता और खाली वक्त मिलता तो वो इस परेशानी में निकल जाता की पांच पांच लड़कियों की शादी कैसे होगी.... .या मौला कोई मौज्ज़ा(चमत्कार) दिखाओ..या इमामे ज़माना तुम्ही अपना करिशमा करो..खैर करिशमा तो वक्त के साथ हो ही जाता है उनमें अगर इन सब को ज़हमत भी न दी जाये तब भी काम तो अपने समय पर ही होता है खैर ये तो आस्था की बात है।.... इस को छोड़ कर देखते है बिटन क्या कर रही है...
नूरूल्ला आटे वाले से बिटन का हंसी का दौर लगा हुआ अपने आंखों के इशारों से उसके मन को टटोल रही हैं नूरूल्ला भी शहर के नंबर वन छीछोरा में से एक है काली शक्ल फैली नाक पीले दांत और बाकी जगह आटा लगा रहता है .. इनकी दोस्ती कहे या दिल्लगी पर दोनो मुनाफे में ही रहते हैं ।बैलट नूरूल्ला से कोई लड़की बात करे ये तो उसने क्या अल्ला मियां ने भी नहीं सोचा होगा ..और इसी बहाने बिटन उससे 20-25 किलो आटा ले आती इतना आटा की रियासत मियां के दादा ने भी न सोचा था..। पर मौहल्ले मे बातें खूब होतीं हैं ... बिटन की मां सुलताना दिल पकड़ कर बैठ जाती हैं और अपने हाल और लडकियों के नसीब को अपना मुकद्दर मान चुकी हैं...
इस बार मोहरर्म में अपने घर में अज़ाखाना सजाते वक्त दिल से रो पड़ी ।आंसू रुकने का नाम न ले बस मौला या मौला लड़कियों की शादी करा दो .. लड़किया सच में कितनी बोझ है और बिना शादी के अपने घर मे कितना बड़ा गुनाह हैं..। ये कोई सुलताना से पूछें ..
इस बार इमामबाडे में अशरा पढ़ने मौलाना इशरत आए हैं । जनाब कद 6 फुट का क्या नूरानी चेहरा है और भई क्या मसायब पढ़ते हैं बस पूछो मत आंखों से आंसू नही रूकते और सब से अहम बात वो कुंवारें हैं ..बस फिर क्या.. ..चौक मे जितने भी माकान थे और वहां रहने वाले कुंवारी लड़किया के अम्मा अब्बा और भाईजान..। मौलाना साहब को अपने घर बुलाने में आमादा हो गए..मौहरर्म में रिश्ते की बात तौबा तौबा .. पर भई बात नवीं में हो जाएगी पहले मौलाना साहब की खातिरदारी तो करो ...सब जुटे थे मौलाना इशरत को अपनी तरफ खीचनें के लिए ..
शिया लड़कियों को रोटी सब्ज़ी बनानी न आती हो तो चलेगा पर हां मजलिस मातम करना नौहा हदीस पढ़ना जरूर आना चाहिए बस जो मिलता अपनी लड़कियों की तारीफ में सब से पहले यही कहता बहुत अच्छा मरसिया पढ़ती हैं..और जनाब हदीस कुरआन की आयतों पर पढती हैं। हमने तो भईया इन्हे बच्चपन से ही सब सिखा दिया है बस इमाम हुसैन की दुआ है... सब आता है .।
शहर में जहा तैयारियां हो रही थी मौहरर्म के ग़म से रिश्तों के रास्ते निकाले जा रहे थे । वहीं सुलताना बेग़म अपने घर के छोटे अज़ाखाने में बैठी अपनी बेटियों से नौहा पढ़ने को कहे रही थी घर में तबरूक़ न होने की वजह से खुद ही मां बेटियां मातम कर लेती है ..।बिटन ने नौहा उठाया वाक़ई आवाज़ में जो दर्द या फिर कशिश हैं जो भी सुने बस रूक जाये और बिना सुने आगे जा न सके ..।
सामने रह रहे मौलाना इशरत के कानो में भी आवाज़ गई तो उन्होने घरवालों से पूछा कौन बीबी नौहा पढ़ रही हैं ... उस घर की औरत ने कहा बस... मौलाना साहब आवाज़ पर मत जाइये आवाज़ ही अच्छी है बाकी तो इनके घर और इस लड़की के बारे में कुछ भी बताने को ख़ास नहीं.... अल्लाह बस ..मुंह न खुलवाए तौबा तौबा..मौलाना साहब ने सिर झुका लिया ..।
पर मौहल्ला वो भी चौक का..... बात निकली तो दूर तक जाती है और रियासत मियां का घर तो एकदम सामने हैं.. अरी सुलताना मौलाना इशरत बिटन के बारे में पूछ रहे थे ..क्या आवाज़ है कहे रहे थे ..पर नसीम ने, तौबा-तौबा क्या क्या कहा बिटन के बारे में....
सुलताना तो रोने लगी पर बिटन इतनी देर में नसीम के घर पहुंच गई और जो चिल्लाई और गाली गलोच किया ..तो बस सब ने दांतों तले उंगलियां दबा ली।
मौहरर्म खत्म हुआ अज़ाखानों को समेटा गया .. और उधर मौलाना इशरत का रिश्ता रियासत मियां के घर पर आ गया .. पर मसला है मौलाना साहब ने तो बस आवाज़ सुनी थी शक्ल तो देखी नहीं थी तो ऱिश्ता भेजा किस के लिए...
... मेरे लिए अम्मा ....मेरे लिए बिटन बोली... मैं.... ही करूगीं मौलाना इशरत से शादी ... अरे कम्बखतमारी ज़रा तो शर्म कर ले... दो-दो बड़ी बहनें बैठीं हैं और तुझे शादी की पड़ी है... न न हम नहीं मानेगें मौलाना साहब से हम ही शादी करेगें सब अपनी किस्मत लेकर पैदा होते हैं....
इतना सुनना था कि घर में रोना पीटना शुरू हो गया और लगा की मौहरर्म अभी खत्म नही हुआ ..अज़ीज़ा और मुन्नी खूब रोयीं...। हाय-हाय हम तो बिटन को कितना प्यार करते हैं और वो हमारा ही घर उजाड़ रही है .।
बिटन चिल्लाई अरे ये हर्राफापन हमें न दिखाओ.. हम ही करेगें इशरत से शादी ..। बस इतना सुनना था रियासत मियां जो अब तक खामोश बैठे थे न जाने कहा से उनमे गैब से ताकत आई और जूती लेकर बिटन पर टूट पड़े और मुंह पर जो बिटन के जूतियां बजाई की उसका मुंह लाल होकर नीला पड़ गया ।
... और ये नीलपन अज़ीज़ा की शादी के बाद ही खत्म हुआ .. मौलाना इशरत सच में काफी शारीफ थे देहज मे कुछ न लिया औऱ न ही कोई ज्यादा बराती लाये..।
शरीयत के हिसाब से शादी की जैसी नबी ने फातमा की शादी अली से की थी ..और रियासत मियां की ज़िम्मेदारी को समझा और जल्द ही मुन्नी का भी रिश्ता करा दिया।..... ..बिटन तो टूट ही गई थी ..घर के मसले में बोलती ही न थी ।
उसके दिमाग में अपने घरवालों को सबक सिखाने की गहरी साज़िश चल रही थी। नूरूल्ला से उसने खूब दोस्ती बढ़ा ली थी .. औऱ मुन्नी की शादी के बाद एक रात नूरूल्ला के साथ भाग गई... शहर में खबर आग की तरह फैली शिया सुन्नी का दंगा भड़क गया पुलीस फोर्स लगी सब ने रियासत को खूब कोसा कैसी लड़की पैदा की नाक तो कटाई कितनो की जान ले ली ..
दो दिन के बाद गोरखपुर से दोनो को पकड़ के लाया गया ।बिटन की खूब कुटाई हुई.. बिटन के मामू ने बहन सुलताना से कहा अब जैसा मैं कहूं वो करो नहीं तो इसके मारे किसी का भी ब्याह न होगा।
उन्होने बताया दिल्ली में एक लड़का सरकारी नौकरी में है ।मां बाप कोई नहीं हैं अकेला है बहुत होशियार है बहुत तरक्की करेगा असगर इऱशाद नाम है उसका । अच्छा ये तो बहुत उमदा रिश्ता है.. मौलाना इशरत बोले ....पर वो ..क्या वो ..वो सैय्यद नहीं है हमारी तरह .सैय्यद नहीं.... न न रियासत मियां में भी जान आ गई । भई गैर सैय्यदों में न करेगें शादी ..सैयद की लड़की गैर सैय्यदों के यहां खुश नही रहती । ये सुन कर मामू भड़क गए सैय्यद की लड़किया पूरे मौहल्ले मे छूछवाती फिरें... वो चलेगा पर गैर सैय्यदों में नहीं... अभी सुन्नी लड़के साथ मुंह काला करवा कर लौटी है ये भी तो देखो कौन सैय्यद करेगा तुम्हारी बिटन से ब्याह बडे आए सैय्यद.... कहीं के...। मामूजान जाने लगे सब सिर झुका कर बैठे थे तभी बिटन की आवाज़ आई मामूजान मै करूगीं शादी सबने बिटन की तरफ देखा ..और फिर सिर झुका लिया ।
लखनऊ में तो शादी नहीं हो सकती थी इसलिए बहराइच में मामू के घर ही लड़के को बुला कर निकाह कर दिया गिनती के कुछ रिश्तेदार थे असगर इरशाद की दूर की एक फूप्पी थी बस और कोई नहीं असगर इरशाद भी खुश थे एक तो बिटन खूबसूरत दूसरी सैदानी । 5-फुट की बिटन को 4-फुट के असगर ही मिलने थे। किसी ने मज़ाक मे कहे ही दिया.... दिलासा देने के लिए समझ लिजिये... कहा चलो अमिताभ और जया की जोड़ी को उल्टी कर दो ...
खैर सारी रस्मों के बाद रूखसती का वक्त आ गया ।मामू के लड़के ने आज़ान दी और बिटन ने आंसूओं की झड़ी लगा दी सारी बहने भी बहुत रोयीं..
बहराईच से दिल्ली की कोई सीधी ट्रेन न होने के कारण पहले सब लखनऊ पहुचें जैसे ही अमीनाबाद बस अड्डे पर उतरे किसी ने आकर खबर दी की नूरूल्लाह को करंट लग गया और उसकी मौत हो गई...दिल्ली की ट्रेन रात की थी इसलिए सब घर पहुचें गली में भीड़ थी नूरूल्लाह की मौत इसकी वजह थी..।लोगों ने इनके परिवार को बहुत गंदी नज़र से देखा सब चुपचाप घर में आ गए..।
पहले बिटन को असगर कुछ महीने बाद ले जाने वाले थे वहां उसके रहने के लिए कुछ अलग इंतज़ाम करते लेकिन रियासत मियां ने कहा असगर मिया अपने साथ ही ले जाओ जहां रहते हो वही रह लेगी । असगर इरशाद तो शरीफ आदमी थे मना करने का कोई सवाल नहीं उठता ...। बेचारे खुद ही उठ कर स्टेशन गए और दो टिकट लेकर आ गए... ज्यादातर वक्त सबका खामोशी से गुज़रा पर हां दामाद के लिए आज क़ोरमा और बिरयानी बनी थी... वो भी बकरे के गोशत की ।
पूरा दिन यूहीं गुज़र गया रात आ गई ..। बिटन भी जाने के लिए तैयार हो चुकी थी। लंहगा उतार दिया था और नया चमकीला सूट पहन लिया ..स्टेशन पर सब छोड़ने आए ।गाड़ी में बैठने की जगह नहीं मिली इसलिए टायलेट के पास ही चादर बिछा कर दोनो बैठ गए ..ट्रेन चल दी ....पर अब बिटन नहीं रोयी ..असगर को नींद आ गई वो बिटन के कंधे पर सिर रख कर सो गया और बिटन अपनी आने वाली ज़िन्दगी किस पटरी पर चलेगी इस बारे में सोच रही थी ..रात कट गयी और दिल्ली आ गयी..।।
पहली बार चौक की गलियां छोड़ कर किसी बड़े शहर को देखा था और वो भी दिल्ली जिसका ज़िक्र सिर्फ लोगों और दुकानदारों से ही सुना था । आज दिल्ली में खुद को पाकर उसे अपने पर घमंड हो रहा था ..।असगर मियां बोले चलिए इधर से बस मिलेगी सुल्तानपुरी की...। कोई सीधी बस नहीं जाती दो बसें बदलनी पड़ेगीं। ... भरी हुई बस और बस में बिटन , बिटन के शौहर और उनके साथ ही दिल्ली के लुच्चे ..पर बिटन खामोश ही रही ..बस बदली दूसरी बस खाली थी खिड़की पर बैठी बिटन बाहर देख कर बहुत खुश हुई...। इसके बाद इक्का करके सुल्तानपुरी की जलेबी चौक पहुचें और फिर पैदल अंदर मकान में, मकान क्या कहें एक कोठरी थी खैर बिटन को इन सब की आदत थी पर हां पाखाना और गुसलखाना बाहर था जिसमें आसपास की कोठरी के लोग भी जाया करते थे...।
पानी नहीं था असगर मियां दूर हैंडपम्प से एक बालटी पानी लाये और पडोस में रहे रही माकान मालकिन को बता भी दिया..।
बिटन हाथ-मुंह धोकर कमरे में आई तो देखा आसपड़ोस की औरतें आयी हुईं थी सबने असगर मियां की तारीफ की कहा लखनऊवाली तो बहुत खूबसूरत है ..तब से बिटन का नाम लखनऊवाली ही पड़ गया ... आसपास के लड़को को भी खबर मिल गई कि मियां नाटे की लुगाई टनटनाटन है ..आए दिन गली के चक्कर काटते रहते ।
बिटन भी इशारा समझती थी और असगर भी ..पर इस खामोशी से एक महीना कट गया और असगर मियां ने अपनी पहली तन्खाह बिटन लखनऊवाली के हाथ में दी । पहली बार पूरी उम्र मे उसके हाथ में पैसे आये थे जो उसके अपने थे कोई पूछने वाला नहीं था किसके हैं ... या कहां से चुराए हैं,कोई टोकने वाला भी नही था ।... जी, आज बकरे को गोशत लाओ कोरमा और बिरयानी बनाओंगी साथ ही दूध और चावल भी लाना खीर भी बनेगी....असगर ने कहा हां ठीक है ...कल इतवार है सिनेमा और दिल्ली देखने भी चलेंगे। बढ़िया खाना खाया ...बिटन के हाथ में ज़याका तो था ही । दूसरे दिन दिल्ली देखी और सिनेमा भी ...।
बिटन को अब अच्छा लगने लगा था ..और लोग उसे लखनऊवाली कहे ये सुनना भी उसे बहुत अच्छा लगता था । बीच में मामूजान भी आए..बिटन खुश थी और मामू का शुक्रिया भी अदा किया ,,, । मामू जाते जाते असगर से कहे गए भई अब खुशखबरी भी सुनाओ..असगर ने सिर झुकाकर मुस्कुरा दिया..
बिटन पेट से हो गईं बाकि तो सब ठीक था पर बाहर पाखाना और गुसलखाना होने की वजह से बड़ी दिक्कत थी कई बार आसपड़ोस वालों ने बदतामीज़ी भी की। असगर मियां ने खुद पाखाना और गुसलखाना साफ किया..सरकारी अस्पताल में जाना आना नौकरी से छुट्टी बहुत परेशानी ..लोगों ने कहा अरे लखनऊ वाली की बहन या मां को बुला लो..।असगर मियां ने बिटन से पूछा बिटन ने साफ मना कर दिया असगर चुप हो गए।....पर वक्त के साथ रोटी बनाने की भी समस्या होती जा रही थी । डाक्टरों ने बिटन को आराम की सलाह दी ।हार के मां को बुलाना ही पड़ा ..पर बिटन को तो मौका चाहिए था एक आद दिन तो सब ठीक चला। फिर तो बिटन अपने शरीर के दर्द को भूल गई बस याद रहा दिल और दिमाग का दर्द जो उसकी मां ने दिया था । फिर क्या हाथ धो कर अपनी मां के पीछे पड़ गई..।
हम तो गैर सैयय्द है आवारा हैं... हमने तो पूरे लखनऊ का मुंह काला किया है। बड़ी आई हमारी मां बन कर ..मां बेचारी खूब रोती एक बार तो मां का सब्र टूट ही गया वो भी खूब लड़ी ..बस तनाव बहुत हो गया मां ने दामाद से हाथ जोड़े और कहा हमें लखनऊ की ट्रेन में बिठा दो ..बिटन ने कहा कोई ट्रेन में नहीं बस पर चढा कर आ जाओ ।....हमारा मियां गैर सैय्यद है कोई नौकर नहीं ..की ...सबकी चाकरी करेगा..।
असगर मियां तो बीवी के गुलाम थे बस पर बिठा कर आ गए..बेचारी मां कैसे एक अंजान शहर से अपने लखनऊ पहुचीं बस मुंह से या अली मदद कहती रहीं ..और रोती रहीं कैसे मिन्नते करके ट्रेन का टिकट लिया बेचारी कितनी परेशानी से वापस पहुचीं अपनो को कोसते हुए.. हाय कैसी लड़की पैदा की मैने।
आखिरी वक्त में मकानमालकिन ही सहारा बनी असगर मिया ने सुसराल फोन कर बताया की लड़की हुई है। मां सुलताना ने कहा मुबारक हो पर अल्लाह उसे बिटन की तरह न बनाए भई हम आ न सकेगें..। असगर ने बिटन को बता दिया पहले तो अपनी मां को खूब बुरा भला कहा फिर थोड़ा संभली तो असगर मियां की क्लास लेनी शुरू की...
किसने कहा था तुम्हें फोन करने को मेरी तो किस्मत ही खराब थी कि तुमसे शादी की ...सही कहते थे अब्बा गैरसैय्यादों से शादी नहीं करनी चाहिए... बौड़म आदमी मिला है मुझे... बेचारे असगर कुछ न बोले मकानमालकिन भी मौका देख कर निकल गई ..पर असगर मियां की आंखों में आसू थे।
दफतर में असग़र मियां ने मिठाई बांटी पर दोस्तों और बॉस ने कहा मिठाई से काम नहीं चलेगा भई ..बिरयानी खिलाओ वो भी भाभी के हाथ की..।असगर मियां घर आए तो हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे अपनी बेग़म से कुछ कहने.. पर बिटन की आंखे बहुत तेज़ थी उसने परख लिया की मियां के दिमाग में कुछ चल रहा है। पूछा क्या खिलाई मिठाई दोस्तों को.. और साहब को ..बस इतना पूछना था कि असगर मियां तो कुत्ते की तरह लोट गये ..ऐ बेग़म सब कह रहे थे कि...क्या..की भई हम सब बिरयानी खाएगें..साहब भी कह रहे थे ... बिटन मुस्कुराई मुस्कुराहट में अपनी हैमीयत का एहसास था ।
बोली दो किलो बड़े का और आधा किलो बकरे का गोशत ले आना ..असगर बोले बेग़म दो अलग अलग गोशत क्यो... बिटन बोली बौड़म बॉस को बकरे की बिरयानी खिलाओ तभी तरक्की होगी .. असगर समझ गये उन्हे अपनी किस्मत पर नाज़ हो रहा था की कितनी समझदार उनकी बीबी है..।
जब दूसरी बेटी हुई और उसके होते ही असगर मियां की तरक्की भी हो गई पर अब बिटन का दिल इस छोटी कोठरी में नहीं लगा रहा था और तीन साल निकल गए मौहरर्म और मजलिस किये हुए। बीच में लखनऊ भी गयी पर अपने घर नही गयी। असगर मिया को गेस्ट हाउस मे कमरा मिला था बहने और बाप मिलने आये और चुपचाप चले गये बिटन कुछ न बोली न उनकी तरफ देखा न कुछ कहा असगर मियां ने ही उनसे बात की।
लखनऊ जाने का मकसद था ग़ार की दरगाह पर कलावा बांधना और हज़रत अब्बास के रोज़े पर दुआ मांगना की अच्छा घर मिले और एक लड़का हो जो आप का अलम उठाए ...शायद इस बार मौला ने सुन ली सुलतानपुरी छूट गया और यमुना पार में एक बड़ा किराये का मकान भी मिल गया..जहा बिटन ने छोटा सा इमामबड़ा सजाया और अपनी बिरादरी को बुलाकर पहले हदीसे किसा कराई और एक हफ्ते बाद एक मजलिस भी कराई जहा तब्बरूक़ में शालें और बर्तन बांटे और अपना परिचय मिसेज़ इरशाद के नाम से कराया..। बिटन लखनाऊवाली अब मिसेज़ इरशाद बन कर हिन्दुस्तान की राजधानी में शान से रहने लगी।।और असगर इरशाद भी खुश है इतनी समझदार बीवी और तीन बेटी और तीन बेटों के बाप बनकर ।
मेरा मानना हैं जिन्दगी केवल खुशियों का पल तो नहीं है ... जब खुशी आपके दामन में आती है तो ये लिखवाकर कि ग़म भी एक दिन आएगें ज़रूर... और अचानक असग़र इरशाद की तब्बीयत बिगड़ गई ..इतवार का दिन था करीब सवा बारह बजे बाथरूम से नहा कर निकले .तो पसीने में तर थे ... बिटन ने सोचा की पानी है ..पंखे के नीचे बैठे..आंखें बंद होने लगी ...सब लोग टीवी देख रहे थे ..अचानक असग़र गिर पड़े .. बड़ी बेटी ने देखा... और चिल्ला पड़ी... डैडी ..बिटन किचन में थी दौड़ कर आई.. जाधों पर सिर रखा .एक कोहराम मच गया पड़ोस वाले भी आगए... जल्दी से ऑटो को बुलाया गया ..पास के नर्सिंग होम लेकर गए तो डॉक्टरों ने कहा पंत ले कर जाओ अटैक आया है ... उन्हीं की ऐम्बुलेंस में इरशाद को लेटाया गया बिटन और बड़ा लड़का साथ थे बाकी बच्चे घर में पड़ोस की ख़ाला के पास थे ..दुआ कर रहे थे या अल्लाह डैडी को ठीक कर दो ... या हज़रत अब्बास या इमाम हुसैन मेरे डैडी को अच्छा कर दो...
वक्त पर दवा और दुआ न पहुचें तो दोनो बेकार हैं... पंत के डाक्टरों ने मना कर दिया बिटन तो समझ नहीं पाई..पैरों तले ज़मीन निकल गई ..आंखें खुली की खुली रहेगी.सांस न जाने कहां चली गई..बदन सुन हो गया..कुछ अल्फाज़ नहीं निकले ..बस बड़े बड़े दीदे फाड़ कर डाक्टरों को घूर रही थी ... कहां चले गये ,क्यों चले गये ..क्या हो गया किस गुनाह की सज़ा मिली मुझे...पड़ोस से आए लोगों ने उसे बिठाया की आपको अभी बहुत लंबा सफर तय करना है बच्चों को संभालना है ज़रा होश में रहिए.. बड़े लड़के की आंखे भरी थी कभी मां को देख रहा था कभी बाप की लाश ..। डॉक्टरों ने कहा आप लाश को ले जाए अगर देर करेगें तो फिर काग़ज़ी कार्यवाई.पोस्टमॉटर्म..और भी बहुत कुछ... ।लोगों ने कहां ठीक है मिसेज़ इरशाद से पूछ लेते हैं ..बिटन ने कहा जैसा आप सब ठीक समझों.. ।
एम्बुलेंस को वापस घर की तरफ मोड़ा गया ... एक आदमी स्कूटर पर पहले ही मौहल्ले में जाकर खबर दे दी कि इरशाद साहब नहीं रहे.. बिरादरी के लोग इकट्टा होने लगे घर में बच्चों ने रोना शुरू कर दिया बड़ी बुढ़ी औरतें समझाने लगी ...।एम्बुलेंस घर पर रूकी तो एक दर्दनाक मंज़र था .. वो पल जो हर किसी की ज़िन्दगी में ज़रूर आता है कहीं पहले तो कहीं बाद में ..लाश को नीचे उतारा गया औरते बिटन को कमरे में ले गई मर्दो ने लाश को गुसुल देने के लिए अलग कर दिया गया मौलाना ने पूछा क्या कोई इरशाद साहब का भाई बाप और कोई रिश्तेदार है जिसका इंतज़ार किया जाए या यहीं पर दफनाया जाएगा उन्हें ..बिटन बैगम ने कहा कोई नहीं आप लोग ही कर दो बेटी ने मां से कहा मम्मी नानी नाना खालू... बिटन ने कहा आ जायेंगे जब उन्हे आना होगा... ।
पर दफनाने से पहले मसला था ..जैसा आप सब जानते हैं कि असग़र इरशाद गैर सैय्यद थे ..तो क्या सैय्यद उनकी गवाही दे सकते हैं.. शिया समुदाय में मरने के बाद कुछ लोग दस्तख्त करते हैं कि हां मरने वाला मोमिन था यानी नमाज़ रोज़ा और मजिलस मातम करता था ... पर सैय्यद और गैर सैय्यद का मसला यहां के लोगों के लिए नया था .. बिरादरी के बुर्ज़ग के एक रिश्तेदार ईरान में मौलवियत पढ़ रहे थे उन्हे फोन किया गया ..मसला बताया गया कुछ देर के बाद का उन्होने वक्त दिया ..इतनी देर में बिरादरी की औरतों मे खुसुर फुसुर और आदमी में मसलै मसायल का ज़िक्र आया कुछ ने लखनऊ भी फोन खड़का दिया ... बाद में बात साफ हुई गवाही कोई भी दे सकता है .. खैर जब असगर इरशाद का ज़नाज़ा उठा तो बिटन से रहा नहीं गया चीख़ मार कर मय्यत को पकड लिया ... ऐसे कैसे मुझे छोड़ कर जा रहे हो ..वाकई..वो मंज़र बहुत दर्दनाक होता जब हमें पता होता है आज जो ये घर से जा रहा है फिर कभी वापस नहीं आयेगा... असगर इरशाद को ले जाया गया,दफन कर दिया गया धीरे धीरे बाकी लोग भी चले गए..ये रात बिटन और उनके बच्चों के लिए कयामत की रात से कम नहीं थी ..बिना असग़र के पहली रात.. बच्चों की बिना बाप के पहली रात.... ये रात ऐसी होती है जिसमें हर गुज़रा लम्हा नज़र आता है जाने वाले की हर बात याद आती है ... उसके न आने का दर्द और उसके बिना इतना लंबा सफर ..आज घर में हर कोई रो रहा था अपने अपने कोने पकड़ कर..बाप और पति का ग़म से बढ़ कर और क्या ग़म होगा ...
मैं फिर कहूंगा जिन्दगी सिर्फ खुशियों का पल नहीं होती यहां ग़मों का साया भी साथ चलता है ..और इस साये को दूर करने के लिए.. इंसान को ही उठना पड़ता और हिम्मत दिखा कर अपनी आगे की मंजिल को तय करना होता है ..
बिटन पर बड़ी ज़िम्मेदारी थी छह बच्चे और अपने को संभालना... तीजे की मजिलस में इऱशाद मियां के ऑफिस से अफसर भी आय़े थे बिटन से मिले और कहा जब आप इन सब से फारिक हो जाएं तो ऑफिस ज़रूर आईये.. हफ्ते भर में सब रिश्तेदार चले गए हां इस बार बिटन ने किसी से झगड़ा नहीं किया । शायद अब किसी का महत्व उसकी ज़िन्दगी में नहीं रहा सिवाए अपने बच्चों के भविष्य को छोड़ कर ।
आज बहुत दिनों के बाद बिटन घर के बाहर निकली थी साथ में बड़ा लड़का आज इरशाद मियां के ऑफिस से कोई चेक मिलना था... साथ में पडोस के शर्मा जी को भी ले लिया पढ़े लिखे हैं काग़ज़ी कार्रवाई के लिए ...
ऑफिस पहुचें तो सरकारी दफ्तरों के हाल की तरह था पर हां इरशाद मियां का रव्यैया इतना अच्छा था कि मिसेज़ इरशाद से मिलने ज्यादतर सारे कर्मचारी आ गए ..। तभी किसी ने उनके कागज़ों को पूरा करने में हो रही देरी के बारे में बताया कहा उन्होने किसी का टेंडर पास किया था वो कंपनी भाग गई। सब ने एक दूसरे का मुंह देखा.... बिटन को कुछ समझ में नहीं आया ....ये सारी बातें बिटन के लिए नई थी...
तभी चपरासी आया बिटन से कहा साहब आपको बुला रहे हैं। बिटन शर्मा जी से बोली आप भी चलिए... बॉस ने बिटन का उठ कर स्वागत किया मिस्टर इरशाद की तारीफ की पीएफ का चेक तैयार था उन्हे दिया ..और साथ में कहा कि आपको पता ही होगा इरशाद असग़र पर एक केस है कुछ एक टेंडर के घपले का इसलिए उनकी पेंशन और फंड अभी रोके हुए हैं ...केस चल रहा जबतक चलेगा तब तक पेंशन और फंड नहीं मिल सकते है हम कोशिश कर रहे हैं पर आप जानती हैं सरकारी मामला है..बिटन ने शर्माजी कि तरफ देखा.शर्माजी ने कहा सर इनके तो छह बच्चे हैं कैसे ज़िन्दगी कटेगी..अगर पेंशन नहीं तो कुछ इनके लिए नौकरी का ही इंतज़ाम कर दिजिये.बॉस ने कहा इसके बारे में सोच सकते है वैसे आप कहां तक पढ़ी हुई हैं... बिटन तो खामोश हो गयी धीरे से बोली बस साहब जो धर में पढ़ लिया उतना ही ..कमरे में खामोशी छा गई..बॉस का इशारा था क्या हो सकता है ..तीनों उठ कर आ गए...रास्ते में शर्मा जी ने कहा आपका किसी बैंक में एकाउंट है .. सारे शब्द बिटन के लिए नए थे.. लड़का बोला नहीं मम्मी तो कहीं निकली ही नहीं ..शर्माजी ने पूछा और पापा का, लड़का हां पास के ही सरकारी बैंक में है .. बातों बातों में घर आगया शर्माजी बोले पापा के बैंक की पास बुक निकाल लेना और मम्मी की फोटो भी रख लेना न हो तो खिचवा लेना आज शुक्रवार है कल आधे दिन तक बैंक खुलेगा मेरी जान पहचान है खाता में खुलवा दूंगा..।
घर में कदम रखा तो सारे बच्चे पास आगए..छोटे दोनों लड़के स्कूल गए हुए थे । बड़ी लड़की ने अरहर की दाल और चावल बनाए हुए थे ..वहीं इमामबाड़े के कमरे में बैठ कर बिटन खाने लगी बेटा भी खा रहा था ..खाते खाते बिटन की आंखों से आंसू निकलने लगे आंसू को रोकना चाहा.. आंसू आवाज़ में बदल गए.. पर इस बार जो आवाज़ निकली थी वो इरशाद मियां के जाने के ग़म की न हो कर औरत की बेबसी की थी किस तरह एक औरत आदमी पर निर्भर रहती है ..बिटन के रोते ही बच्चे भी रोने लगे दोनो बच्चे जो स्कूल से आये थे । वो भी घर का ये मंज़र देख, खुद भी रोने में शरीक हो गये।
रोना राहत लेकर आता है और राहत उम्मीदें जगाता हैं और उम्मीदों से हौसला पैदा होता है । बिटन में हौसला आ गया था साथ ही ये समझ भी पैदा हो गई थी कि उसे ही सब करना है । शाम को बिटन ने फोटो की दुकान पर जाकर तस्वीर खिचवाई.। इस उम्मीद के साथ लेटी कि सुबह से जिन्दगी की नई जंग लड़नी है ।
सुबह शर्माजी आ गये थे बेटे ने असगर मियां की पुरानी पास बुक ले ली थी मृत्यु.प्रमाण पत्र और घर का राशन कार्ड साथ में बिटन की तस्वीर । सब बैंक पहुचें । मैनेजर के आने में देर थी । सब बाहर सोफे पर बैठे थे तभी बैंक में बिरादरी के दोनो आदमी भी आ गए बैंक से पैसे निकालने उन्होने बिटन को शर्मा जी के साथ देखा न सलाम हुआ न दुआ अपना पैसा निकाला और चले गए। बिटन को भी लगा कि इन्होने ऐसा बर्ताव क्यों किया है पर जिन्दगी में अपने ग़म कम हैं कि दूसरों कि नज़रों और रवैय्या का ख्याल रखा जाये ।
बैंक मैनेजर आ गये थे सारे काग़ज़ात पूरे थे शर्माजी से जान पहचान थी और असग़र मियां को भी जानते थे इसलिए खाता खुलने में कोई परेशानी नहीं हुई..बिटन को साइन करना नहीं आता था तो उनका अंगूठा लगवाया गया । और बिटन इरशाद का बैंक खाता चालू हो गया । पीएफ का चेक डाला गया और लगा कि ज़िन्दगी संभल गई।
मुझे नहीं पता की अमीरों के लिए खुशी का क्या मतलब होता है पर हां हिन्दुस्तान की करीब आधे से ज्यादा जनसख्या छोटी छोटी चीज़ो में खुशियां और अपनी कामयाबी ढ़ूढ़ और समझ लेती जिसे लेकर ज़िन्दगी को आगे बढ़ा लेती है।
हकीकत को जितनी जल्दी इंसान समझ ले वो उसके लिए बेहतर है और जीवन को सही राह पर लाने के लिए बेहतर है । पीएफ के पैसे कब तक चलेगे छह बच्चे बच्चियां बड़ी होगीं पढ़ाई लिखाई और हर तरह के खर्च। बेटे से बिटन ने कहा जाकर शर्माजी को बुला ला । बेटा गया दरवाज़ा शर्माजी की बीवी ने खोला बेटे को देखकर अजीब सा मुंह बनाया । बेटा बोला अंटी अंकल हैं मम्मी ने बुलाया है ।शर्माजी की बीवी ने शर्माजी को आवाज़ लगाई शर्माजी आगए। बिटन के लड़के से कहा चलो मैं अभी आता हूं... ।बेटा चला गया शर्माजी बीवी ने कहा अजी जल्दी आना अच्छा नहीं लगता आपका बार बार जाना ..अरे शर्माजी ने कहा कैसी बाते करती हो किसी विधवा की मदद करना कोई ग़लत नहीं है ।कहे कर शर्माजी चले गये ।
बिटन ने शर्माजी से घर का हाल बताया कहा अब गुज़ारा होना मुश्किल हो रहा कल ऑफिस चल कर पेंशन की बात कर लेते हैं और अपनी नौकरी की भी । शर्माजी कहते हैं हां हां क्यों नहीं मैं कल सुबह ही आ जाता हूं और चल बेनर्जी जी से बात करते हैं। शर्माजी घर आये बीवी को बात बतायी बीवी ने मुंह बनाया कहा धर में इतना काम है और आपको घूमने की पड़ी रहती है शर्माजी ने कहा अरे भई किसी का काम आपके जाने से हो जाये तो इसमें बुरा क्या है ।
सुबह शर्माजी बिटन और बिटन के बड़े लड़के साथ ऑफिस के निकले तभी शर्माजी ने कहा बहनजी बड़ी लड़की को भी ले लिजिये बिटन ने पूछा क्यों शर्माजी ने कहा बात करने और समझाने में आसानी होगी .बड़ी लड़की भी तैयार हो गई और सब असगर मियां के ऑफिस पहुच गये ।
कहते हैं दुनिया वक्त के साथ सब भूल जाती है ..या फिर ये कहें कि वक्त हमे अपने आप में इतना मसरूफ कर देता है कि दुनिया कहां तक पहुच गई इसका हमें अंदाज़ा ही नहीं होता।उन्ही को इसकी पीड़ा सहनी पड़ती है जिस पर बीती होती है ।असगर इरशाद अब एक पुरानी कहानी हो चुके थे इसलिए ऑफिस में लोगों के ज़हन में बाते धुंधली पड़ गयी थी ।इसबार काफी इंतज़ार कराया बॉस ने चपरासी भी सही से नहीं बोला । पर जब वक्त की मार आप पर पड़ी है तो आपको ही सहना पड़ेगा ।इंतज़ार खत्म हुआ सब कमरे में गये पूछा क्या हुआ पता चला मामला अभी चल रहा है बिटन को रोना आ गया शर्माजी ने कहा साहब कैसे पालेगीं छह बच्चों कुछ इनकी नौकरी का ही इंतज़ाम कर दिजिये . बॉस बोले देखिये ये कुछ पढ़ी लिखी तो हैं नहीं बच्चे छोटे हैं उन्हे नौकरी दे नहीं सकते ।
हां फोरथ टाइप कैटेगरी की नौकरी करनी है तो मैं बात कर सकता हूं.. बिटन को समझ में नहीं आ रहा था उसने पूछा जी करना क्या होगा .उन्होने साफ कहा पानी पिलाना फाइल इधर से उधर ले जाना यही काम होगा बच्चों को बहुत बुरा लगा पर बिटन को फैसला लेना था और वक्त गवाह है उसने कभी भी फैसले लेने में देरी नहीं की ।बिटन बोली ठीक है मुझे मंजूर है मैं करूंगी नौकरी ...कमरे में खामोशी और ये एहसास की मजबूरी इंसान से सब कुछ करा सकती है ।
बिटन अब नौकरी करने लगी थी । सारे काम बड़ी मेहनत और इमानदारी से करती बुरा ज़रूर लगता पर काम तो करना ही था । देखने में मासूम और अच्छा परिवार की झलक लोगों को उससे उसके बारे में जानने के लिये मजबूर करती ।ऐसे ही किसी ने हमदर्द ने कहा आप पढ़ाई क्यों नहीं करती अगर दसवीं भी कर लेगीं तो क्लर्क की नौकरी तो लग ही जायेगी।
बिटन के लिए ये ऐसा था जैसे अंधरे में कहीं से एक लौ दिख गई हो पता कर के उसने शाम की क्लास ज्वाइंन कर ली बच्चों ने भी मां का साथ दिया जो समझ में नहीं आता उसे सब बच्चे मिल कर समझा देते ऑफिस में भी पता चला तो वहां भी लोगों ने उसकी मदद की कहते है न आप एक बार कुछ करने की ठाने तो सही रास्ते अपने आप बनते जाते हैं... बहुत उतार चढ़ाव आये कईयों से झगड़ा भी हुआ शर्मा जी बीवी भी लड़ने आ गई उन्हे लगा कि उनके पति को अपने वश में कर लिया है बिटन ने उस शाम शर्माजी की बीवी ने खूब बदतामिज़ी की पर बिटन अब बदल चुकीं थी वो चुप रही कुछ न बोली बस हाथ जोड़ कर कहा बहन अब कभी नहीं शर्माजी को अपने घर आने के लिए कहूंगी ।
बीच में मौलाना इशरत भी आये बड़ी बेटी का रिश्ता लेकर पर बिटन ने कहा पहले अपनी बच्चों की तालीम पूरी करूंगी फिर कोई शादी ब्याह के बारे में सोचूंगी ।
बिटन ने दसंवी पास कर ली इस बार जूनियर क्लर्क के लिए उसका प्रमोशन भी हो गया अब कुर्सी पर बैठना उसे बहुत अच्छा लगता था लोग उसे मैडम कहे ये भी सुनना उसे बहुत पसंद था अपने बच्चों की पढ़ाई में भी वो पीछे नहीं हटी सुना था की मंझली बेटी का किसी सरदार लड़के से दोस्ती है बिटन ने बहुत समझदारी से काम लिया अपनी बेटी को समझाया और उसे अपनी कहानी सुनाई कहा मैं तुझे मना नहीं करूंगी पर ज़िन्दगी कुछ फैसले हमे हमेशा रोने के लिये मजबूर करते हैं दोस्ती बुरी चीज़ नहीं पर शादी ब्याह बहुत बड़ा फैसला होता है ज़िन्दगी जो अभी हमे सुदंर दिखती है इन्ही फैसलों के कराण ज़िन्दगी दोज़ख बन जाती है ।अपने पैरों पर खड़े हो जाऊ कुछ कर लो तब तुम्हारे सारे फैसले सहीं लगने लगें । नहीं तो लोग पीछे नहीं हटेगे ये कहने से कि जो गुल इसकी मां ने खिलाया वो ही बेटी खिला रही है कहते कहते बिटन रोने लगी और साथ ही बेटी भी रो पड़ी पर बेटी को बात समझ में आ गयी।
बिटन फिर उस सरदार फैमली के पास गयी इसबार लड़ने नें के लिये नही समझाने के लिये गयी थी जाकर उनके आगे हाथ जोड़ लिये वो लोग समझदार थे मामला समझते थे पूरा भरोसा दिया कि ऐसा कुछ नहीं है और न होगा जिससे सब की बदनामी होगी ।
असग़र मियां का केस खत्म हो गया था बिटन को काफी अच्छे पैसे मिले थे जिससे उसने ज़मीन लेकर अपना माकान बनाया असगर मंजिल नाम रखा । बच्चों की पढ़ाई में भी खर्च किया ।
वक्त बदलता ज़रूर है जिन्दगी अपनी रफतार से आगे बढ़ती रहती है बिटन सुपरीटेंडट के पद से रिटायर हो रही थी आज ऑफिस में कार्यक्रम था बेटिया अपने पतियो के साथ आयी थी बेटे भी पढ़ कर नौकरी कर रहे थे । सब मां के कार्यक्रम में मौजूद थे ।
फूल मालाओं से मिसेज़ इरशाद का स्वागत किया गया और उनकी तारीफ के पुल बांधे गये और उनसे दो शब्द कहने को कहा ...
बिटन मंच पर आयी तो आंखों में आसू थे कहा मुझे इतना प्यार और सम्मान मिलेगा ये मैने कभी नहीं सोचा था लखनऊ की गलियों में धूमना इससे झगड़ा करना उससे लड़ना कभी यहां कभी वहां वक्त के झोके मुझे किन रास्तों से गुज़र कर यहां तक लाये कई बार टूटी कई बार संभली छह बच्चे बिन पति के ज़िन्दगी मुश्किल था सफर पर चाहत थी जीने की इसलिए सफर का एहसास न हो सका आज में ज़रूर रिटायर हो रहीं हूं पर मेरा ये सफर जारी रहेगा ..तालियों से सब ने उनकी बात से सहमति जताई।
खाने के बाद सब धर की तरफ चल दिये । धर आते ही छोटा बेटा जल्दी से उतरा उसके हाथ में कुछ था उतरते ही उसने उस प्लेट को दरवाज़े पर टांगा सब लोग ज़ोर से हंसे और हंसी में खुशी का इज़हार था सब अंदर गये दरवाज़ा बंद हुआ ।मेरी नज़र नेम प्लेट पर गई लिखा था मिसेज़ बिटन इरशाद ( रिटायर्ड सुपरिटेंड)...
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