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Showing posts from April, 2009

सब ने कहा आडवाणी बाय-बाय

सब ने कहा आडवाणी बाय-बाय बीजेपी ने मानी हार आडवाणी नही बन सके पीएम.. 2009 शुरू हुआ जो बीजेपी ने राग रागा की उनके पीएम होगें लाल कृष्णा आडवाणी ..मंच सज गया ..लाईट साउड और एक्शन फिल्म शुरू ,परोमो भी बना प्रसून जोशी ने पंक्तिया भी दे दी मज़बूत नेता निर्णायक सरकार ..आडवाणी जी ने अपने पहले संवाद मे ही दूसरी फौज के सरदार को कमज़ोर भी कहा ..और अपने को बहादुर भले ही कंधार और गुजरात के मामले को गोल-गोल घुमा दिया हो .. नाटक चल रहा था ..धड़ा धड़ा प्रचार हो रहा था ..उमा भारती की एंटरी भी हो जाती है ..वरूण गांधी का भाषण और युवा चेहरा उनके साथ जुड़ जाता है दो बार उनकी रैली मे चप्पल और खडाऊ भी चलाये जाते हैं ...पर दोस्त आजकल तो टीआरपी का ज़माना है ..कोई भी अभिनेता या नेता बेकार हैं अगर उसके शो की टीआरपी न आ रही हो .. और अगर ज्यादा वक्त तक टीआरपी न मिले तो प्रो़डयूसर दूसरा शो लाता या फिर मुख्य किरदार को बदलने का इरादा जताता है ..यही बीजेपी ने किया ..2009 के चुनाव मे भले ही वो कहे या न कहे उन्होने अपनी हार मान ही ली है ..आ़डवाणी जी को उनके ही क्षेत्र गांधीनगर से कांग्रेस के पटेल से कड़ी चुनौती मिल रही...

कौन उठायेगा पत्रकारों के लिये आवाज़...

कौन उठायेगा पत्रकारों के लिये आवाज़... दुनिया भर के मुद्दे ...हर बड़ी समस्या का समाधान ..जिनके आगे प्रधानंमंत्री और राष्ट्रपति भी थराएं...दुशमन के हर वार का जिनके पास हो जवाब... हर समाज ,हर वर्ग,का जो रखे ख्याल ..जिनको देश का चौथा स्तंभ तक कहा जाता है ..हर जगह भगवान के साथ ये भी मौजूद होते हैं.. इनको ही पत्रकार कहते हैं.... याद है मुझको जब जेट एयरवेज़ ने अपने कर्मचारियों की छुट्टी की थी ..सब से पहले पहुच कर इन्होने उनकी स्टोरी दिखाई.. हर एक के ग़म के साथ ये मौजूद रहे नतीजा नरेश गोयल को अपना फैसला वापस लेना पड़ा .. हर एक घर फिर से खिल उठे ।सरकार के भी निर्देश ये ले आये ... पर आज ये खुद मुसीबत में हैं ...हर दिन 40 से 50 पत्रकारों की विभन्न अखबारों और चैनलो से छुट्टी की जा रही है ..मंदी की मार बता कर.. न किसी अखबार में खबर आती है औऱ न ही कोई चैनल इसे कवर करता है ...क्योंकि जो पत्रकार इसपर बोलेगा लिखे गा अगला नम्बर उसका ही होगा ... नामी गिरामी पत्रकारों को छोड़ दे बाकी का क्या होगा ..जिन्होने 40-45 साल अपनी ज़िन्दगी के बीता लिये हैं ..उन्हे क्या कहीं नौकरी मिलेगी..आज हर जगह ताला है ..कहीं ...

BIG BAZAAR…कहीं आप ठगे तो नहीं जा रहे हैं..

BIG BAZAAR…कहीं आप ठगे तो नहीं जा रहे हैं.. बिग बाज़ार को आप सस्ती चीज़े मिलने की जगह से जानते होगें..आजकल तो हर छोटे बड़े शहर में इस के शोरूम खुल गये हैं..पर क्या आप को पता हैं कि यहां से खरीदारी से आपको कुछ फायदा नहीं हो रहां ब्लकि आप ठगे जा रहे है। कवेल ठगे जाना ही नहीं आपके साथ धोखा हो रहा फरॉर्ड हो रहा है...ये बात तो पुरानी हो गई है कि वहां पर रोज़मर्रा की वस्तुऐ महगीं है ..जो सस्ती हैं वो एकदम खराब इस्तमाल करने लायक नहीं ... इसके अलावा जब भुगतान कर रहे होगें तब सब से ज्यादा आपको चुना लग सकता है ।...ख़ास कर उनको जो क्रेडीट या डेबीट कार्ड से भुगतान करते हैं..इनकी भुगतान की मशीन हमेशा खराब ही रहती है ..कई बार आप का कार्ड सुऐप किया जायेगा ...फिर कहा जायेगा आपका कार्ड खराब है ..ग्राहक इतना परेशान हो जाता है कि वो बिल में क्या क्या लिखा गया उसमें उसका ध्यान ही नही जायेगा । औऱ जब वो बाहर एटीएम में अपना बैलंस चैक करे गा तो पता चलेगा की भुगतान कार्ड से बिग बाज़ार द्वारा हो चुका है .फिर आप चक्कर लगाईये ..आप से कहा जायेगा आप अगले महीने आईये तब आपके पैसे वापस होगें..और अगला महीना अगला महीना ...

डरे हुए नरेंद्र मोदी ......

डरे हुए नरेंद्र मोदी ...... टीवी पर खबर देखी, नरेंद्र मोदी चुनावी सभा को संबोधित करने के लिए पहुंचे, सभा का स्थान मोदी का अपना घर था, जी हां मोदी का घर यानी गुजरात, अरे भई गुजरात तो मोदी का घर है ही । इसमे क्या दो राय। अब घर आप उसी जगह को कहते हैं जहां आप सुख चैन से अपने मन माफिक अंदाज़ में रहते हैं। घर के आप मालिक होते हैं । घर में आप जो चाहे वही करते हैं ।तो कुछ ऐसा ही हाल पूरे गुजरात का हैं। गुजरात मोदी के इशारे पर ही चलता हैं। गुजरात में जो मोदी चाहते हैं वही होता , फिर चाहे वो आमिर खान की फिल्मों का विरोध हो या फिर प्रदेश में नैनो प्लांट का आना यानी सब कुछ मोदी के इशारों पर । ये किसी से छुपा नही कि गुजरात में हर तरफ मोदी के ही जयकारे लगते हैं, मोदी की तारीफ करते लोग थकते नही हैं , गुजरात के लोग तो आडवाणी की जगह भी मोदी को ही देखना चाहते हैं भले ही वो मोदी की शर्म भर कर मुखर हो कर कुछ ना बोलें , और तो और जो लोग मोदी के घर आते हैं वो भी मोदीमय हो जाते हैं फिर वो चाहे कितने ही बड़े धनकुबेर क्यों ना हो। याद ही होगा आपको वाईब्रेंट गुजरात सम्मिट जब देश के बड़े उद्योगपतियों ने , मोदी के...

क्या आप बन्तों को जानते है ?

कैसे बचें बन्तों से.. क्या आपने कभी प्यार किया है ..क्या कभी आप डेट पर गये हैं..क्या आप किसी लड़की से अकेले में मिलने की चाहत रखते हैं...क्या मिलें हैं ..पहेली मुलाक़ात क्या आपको याद है..तो आप बन्तों को ज़रूर जानते होगें । आज मैं आपको बन्तों का परिचय दूगां फिर आप मुझे बताईयेगा क्या आपकी ज़िन्दगी में भी कोई बन्तों आई..या आपने भी कभी बन्तों का पात्र अदा किया या नहीं.. बन्तों वो हस्ती है तो हर खूबसूरत लड़की के साथ एकस्ट्रा पैकज के रूप में आती है वो उस लड़की से एकदम विपरित होती है ... अगर लड़की गोरी है तो वो काली,अगर लड़की ने मॉडर्न कपड़े पहने हैं तो वो हिन्दुस्तानी लिबास में मौजूद होगी.। वो लड़की की गार्ड की भूमिका में आती है ..प्रेमिका को पांच मिनट लेकर आती है और दो घण्टे तक बैठी रहती है ..लड़का लड़की तो कम खाते हैं वो उनसे दोगुना निगल लेती है ।..और दूसरी टेबल पर बैठे पूरी नज़र लड़की और लड़के की बातों और हरकत पर रखती है ..औऱ बीच बीच में अपने उस्तादों वाले दाव पेंच भी लड़की को बताती रहती है । हर दो तीन मिनट बाद वो लड़की को चलने के लिये कहती है या दूसरी स्थिति में वो लड़की से जल्दी से काम ...

कैसे लिखूं एक प्यार भरा गीत...।।

कहा गये प्यार के शब्द एक ऐसा गीत जिसमें प्यार भरे शब्द हों एक ऐसा गीत जो सब के लब पर चढ जाये एक ऐसा गीत जो सारे भेद भाव मिटाये एक ऐसा गीत जो अपना बनाये एक ऐसा गीत जिसे सब गुनगुनाये एक ऐसा गीत जिसे तो भी सुने और वो भी सुने एक ऐसा गीत जिसमें अपना सा एहसास हो एक ऐसा गीत जिसमें खुशग़वार माहौल हो एक ऐसा गीत जिसमें हमसफर ही हमराज़ हो एक ऐसा गीत जिसमे लहरों और वादीयों का साथ हो एक ऐसा गीत जो चंदा औऱ तारों पर चलाये एक ऐसा गीत जो हर मुशकिल दूर भगाये एक ऐसा गीत जो फिक्र को मात दे एक ऐसा गीत जो गुलामी से निजात दे।। पर क्या करूं मिल नहीं रहे मुझे शब्द लिखना तो चाहता हूं सूझ नहीं रहे बोल ... कितना वक्त बीत गया सूने हुये प्यार के शब्द .. .कहां से खोजूं कहां से लाऊ, ढ़ूढ़ कर प्यार वाला अक्षर किधर जाऊं, किससे मांगू..दो ,चार शब्द ।.. न हिले लब..न चले ज़हन .। कैसे लिखूं एक प्यार भरा गीत...।।

चुनाव के बाद 500 टीवी पत्रकारों की नौकरी जायेगी..

चुनाव के बाद 500 टीवी पत्रकारों की नौकरी जायेगी.. टेलीविज़न इतिहास में इतना फिका चुनाव कभी नहीं रहा।एक तो कोई मुद्दा नही। .कुछ दिन तक वरुण चले फिर आडवाणी और मनमोहन की लड़ाई..आज़म ,अमर और जया की मुहब्बत और लड़ाई,टाइटलर और 1984 या फिर संजयदत्त..इन मामुली बातों को बहुत खीचा चनैलों ने ..जितन खीच सकते थे । इस बार पत्रकारों को बाहर शूट पर जाने पर पाबंदी हो गई ..जो कुछ मुफ्त का टूर होता है उसी मैं जाने की अनुमति मिल रही .. दूसरा एक जो कारण है वो ये की पॉलीटिकल कार्यक्रम से टीआरपी नहीं आ पा रही यानि जनता को चुनावी खबरों में कोई रूची नहीं है .. शुक्र है तालिबान है जो रोज़ी रोटी चला रहा है ..मैने 2009 के शुरूआत में लिखा था की 2009 बड़ा खतरनाक होगा.अब वो धीरे-धीरे सच हो रहा है ..कई चैनलों में इस्तिफा लेने का कार्यक्रम शुरू हो गया। कई चैनल बंद हो गये हैं । सैलरी तो हर चैनल में काटनी शुरू कर दी गई है ..बस चुनाव का इतंज़ार है ।लिस्ट बन चुकी है ।चुनाव के परिणाम का इंतज़ार हैं..जहा रिज़ेल्ट आया वही पत्रकारों को त्याग पत्र देने का कहा जायेगा। जुलाई मैं आफत आई...इस लिये दोस्त अपने काम से प्यार करों संस्...

आडवाणी जी अजी भोजन पर तो आते

अजी भोजन पर तो आते आज एक आर्टिकल पढ़ा था बड़प्पन के बारे में उसने भी कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया कि हां वाक्ई कहीं ऐसा तो नही कि मैं भी इसी बड़प्पन का शिकार हो रही हूं . खैर चलिए छोड़ते हैं बड़ी बड़ी बातों को छोटी छोटी आम बातें करते हैं जिन्हे बेवजह बड़ा बनाने की जुगत बिठाता रहता हैं मीडिया। एक नेता ने बयान दिया, बयान क्या दिया ,मानो मुसिबत मोल ले ली, मीडिया बयान को इतनी बार दिखाएगी कि एक बार दिया हुआ बयान ब्रह्मवाणी की तरह बार बार गूंजता हुआ सुनाई देगा। कई बार तो अपने मतलब के बयान को नेता के मुंह से बुलवाने के लिए , इस तरह की ऐडिटिंग की जाती हैं कि नेता वो ही एक बात बार बार दोहराते नज़र आते हैं मानों नेता ना हो , कोई चाबी वाला गुड्डा या गुड़ियां हो , जो चाबी खत्म होने तक वहीं दोहराते रहेंगे। और अनगिनत बार तो बतंगड़ उस बात का बनाया जाता हैं जो नेता बोलते नही बल्कि बोलने की तमन्ना रखते हैं , नेता बेचारे तो बात गले में घोटं लेते हैं लेकिन मीडिया हैं कि उंगली हल्क में डाल देती है, ऐसे में नेता ठहरे मंझे हुए खिलाड़ी कुछ नही उगलते , पर मीडिया अपना करिशमा दिखाने के लिए नेता के कुछ ना बोलने क...

धीरे-धीरे

धीरे-धीरे धीरे धीरे तुम होये मेरे धीरे धीरे चंदा ढलहे धीरे धीरे तारा चले धीरे धीरे आसू बहे धीरे धीरे लब हिले धीरे धीरे नज़रों ने देखा धीरे धीरे अपने हुये धीरे धीरे पास आये धीरे धीरे मुस्कुराये धीरे धीरे और नज़दीकियां बढ़ी धीरे धीरे धर्य टूटा धीरे धीरे कुछ हुआ धीरे धीरे फिर दूर हुये धीरे धीर और दूर हूये धीरे धीरे यादे आई धीरे धीरे यादे रहीं धीरे धीरे यादे उझल हुई धीरे धीरे बस अब यूहीं और अब यू भी नहीं.... धीरे धीरे अब कुछ नहीं होता धीरे धीरे अब कुछ नही होगा धीरे धीरे बहुत हुआ धीरे धीरे अब खत्म अब जो होगा तेज़ होगा ज़बरदस्त होगा

गाली दो..क्योकि हम मॉडर्न है ..

गाली दो..क्योकि हम मॉडर्न है .. पिछले कुछ सालो से कुछ नये शब्दों का जन्म हुआ..जैसे फट गई ...लग गई...उसने तो ले ली ..बी-सी..एम-सी ,फक ऑफ..लगे रहो .बजाते रहो...फाड देगा...औऱ भी बहुत जो कम से कम मैं लिख नही सकता ...ये सब बोलने वाले अपने को मॉर्डन कहते हैं। मैं दिल्ली की अच्छी सोसाइटी में रहता हूं.. अच्छा इस लिये कह रहा हूं की दिल्ली है और जो लोग रहते सब के पास मंहगी गाडी है अच्छी नौकरी करते हैं ..उमंदा कपड़े पहनते हैं औऱ बच्चे नामी स्कूलों में पढतें हैं... कल की बात है मैं घर के पास टहल रहा था तो बच्चे एक जगह से कूद रहे थे ..एक लड़का कूदने से डर रहा था..तो बाकी बच्चे बोल रहे थे देख इस की फट रही है ..देख देख फट रही है..उनके साथ उनके मां बाप भी हंस रहे थे । जिस ऑफिस में काम करता हूं वहां देश के कई महत्वपूर्ण मामलों पर चर्चा होती और ख़ास बात ये हमारा ऑफिस महिला प्रधान है पर हर औरत की जुबांन पर फक ऑफ रहता है हमेशा.. इस साल ऑफिस के काम के बाद घर पर खाली समय बिताने का वक्त मिल रहा है ..इसी दौरान मैं टीवी में आने वाले कई रियलटी शो देख रहा हूं .उनमें से एक एमटीवी रोडीज़ भी है ..वहा पर सब की भाषा ...

कांग्रेस ने तो सबक ले लिया..क्या बीजेपी सबक ले गी..

कांग्रेस ने तो सबक ले लिया..क्या बीजेपी सबक ले गी.. ...चलो 25 साल के बाद ही सही ..जूते के बदौलत ही सही ...3,000 हज़ार लाशे और इतने ही बरबाद हुए घरों.. करोड़ो नारों , वोट की ख़ातीर और बिगड़ते समीकरण के कारण ही सही पर कांग्रेस ने वो कर ही दिया जिसका पूरे देश को इंतज़ार था । लोगो कहते ये सब वोट का चक्कर है और सारी बात बनावटी है ..माना ये सच है पर इतनी हिम्मत दिखाने का ज्ज़बा तो कांग्रेस ने दिखाया..भले 25 साल लगे हो.पर उस खौफनाक मंजर की आलोचना तो की उसे ग़लत ठहराया.. मनमोहन सिंह को भले ही कमज़ोर प्रधानमंत्री कहते हों आडवाणी पर आज उस कमज़ोर शख्स ने वो कर दिया जो निर्याणक नेता न कर सका ।अपने को दोषी मान लेना भी बहुत बड़ी बात होती है ।जो कांग्रेस ने किया । पर क्या बीजेपी कभी कर पाये गी गोधरा के दोषी मोदी को बर्खास्त कांग्रेस ने तो अपनी ग़लती मानी क्या बीजेपी मानेगी ...मोदी के विकास की दुहाई मत दिजिये गा ।आप ने विकास किया इस लिये आप किसी भी समुदाय को को मार सकते हैं । ये तो वो ही बात हो गई आप के पास बीएमडब्लू है तो आप किसी को भी कुचल सकते हैं।मोदी तो छोड़ीये आप तो वरूण गांधी का समर्थन भी नहीं ...

जूता नम्बर 8- जनरैल सिंह अंदर की बात

जूता नम्बर 8- जनरैल सिंह अंदर की बात दिन 7 अप्रैल 09 करीव सवा बारह बजे थे। गृहमंत्री की प्रेस कॉन्फेंस चल रही थी कि अचानक एक पत्रकार बोला देखो पी.चिदंबरम पर किसी ने कुछ फेंका । सब ने कहा मज़ाक कर रहे हो फिर सब ने ध्यान से देखा, प्रेस कॉन्फ्रेंस रूकी तो राज़ सब के सामने खुला .. सामने आया 8 नम्बर का जूता- और पहने वाला था जनरैल सिंह । जनरैल सिंह को पत्रकार ज्यादातर जानते थे और अखबार दैनिक जागरण से भी परिचित थे। अब बातों से बात निकली पहले तो ब्रेकिंग न्यूज़ में सब व्यस्त रहे सब ने कहा जनरैल सिंह... काग्रेस की.. प्रेस में, वो भी पी चिदबरम की...अब तो ये लम्बा गये..पर कुछ ही देर में जनरैल रिहा हो गये..और पकडे जाने के बाद यानि पुलिस स्टेशन जाने से पहले वो एक टीवी चैनल को फोनो भी दे देते हैं । जिसमें वो सफाई देते हैं उनका तरीका ग़लत हो सकता है पर मुद्दा सही था ।उनके छूटते ही न्यूज़ खत्म हो चुकी थी और अंदर की बात खुलनी शुरू हुई सब से पहले जनरैल सिंह तो कांग्रेस कवर ही नही करते ...फिर वहा क्यो गये वो डिफेंस देखते हैं । दूसरा एनआई के दो कैमरा वहां क्यो मौजूद थे केवल एनआई का कैमरा उनका क्ल...

मिस इंडिया 2009-मिस इंडिया 1975

मिस इंडिया 2009-मिस इंडिया 1975 पूजा चोपड़ा –मिस इंडिया वलर्ड एकता चौधरी –मिस इंडिया यूनिवर्स श्रया किशोर- मिस इंडिया अर्थ अगर आपको खुदा मिले तो आप क्या कहेगें मिस इंडिया में फाइनल में चुनी गई पांच सुंदरियों से ये सवाल लिख कर बोलने को कहा गया .. जवाब वो ही रटा रटाया जो हर अमीर आदमी भारत में रहे कर देना सिख जाता है एक ने कहा हम क्यों धर्म में बंटे हुये हैं दूसरी बोली मैं शुक्र गुज़ार हूं की आज मैं इस मुकाम पर पहुची एक ने कहा मां की आंख में भगवान है फिर भगवान ने बहुत से लोगो से उनकी मां क्यो छीन ली एक बोली इतने लोग क्यो मर रहे हैं हर तरफ ,अगर इंसान के पास इस का जवाब होता तो मैं भगवान से ये नहीं पुछती .. कहने का मतलब ये हैं की इसके बाद यानि इस जवाब के बाद इनमें से एक मिस इंडिया का खिताब जीत जायेगीं ,,और जीत के वक्त एंकर ही इतने कंफियूसड हो गए की ये बता ही नही पा रहे की कौन क्या जीता ... एक बार एक का नांम बोला गया ,दूसरी बार फिर किसी और का फिर जो रिबन मिलते हैं वो बदले गये ..बाद में वो ही पेपर फूल उडाये गए..और मिस इंडिया वर्ल्ड यूनिवर्स मुस्कराती ही रही.. इसकी सफाई दी गई की ये नया फार्मेट...

अरे वो तो बस दुखी ही रहता है

आज मैं दुखी हूं क्या फिर से तुम दुखी हो हां फिर से उफ इस बार क्या हो गया पता नहीं पता नहीं ,फिर क्यों दुखी हो क्या दुख हो तो उसके पीछे कुछ होना ज़रूरी होता हां जरूरी है ..बहुत ज़रूरी है बे बात के दुखी होना बेवाकूफों की निशानी है तो मैं बेवाकूफ ही सही पर कोई तो वजह होगी तुम वजह जान कर क्या करोगे कुछ नहीं पर जानना चाहता हूं क्यों मेरी आदत है मेरा शौक है क्यों क्या करते हो जान कर मै क्या कर सकता हूं कुछ नहीं तो ..तो फिर हां बस तुम दुखी हो ये बात मैं दूसरों को बता दूगां दूसरों को तुम मेरा दुख ,दूसरों क्यों बताओ गे मैं तो यही करता हूं दूसरे क्या जवाब देते हैं कुछ नहीं वो कहे देते है अरे वो तो बस दुखी ही रहता है